Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 659
________________ फफफफफफफफफफफफफफफ 卐 கமித்ததமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிததமி*******மிததமிதி फ्र विवेचन - उक्त तीनों सूत्रों में छह कायिक जीवों में से अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों को छोड़ 5 दिया गया है, इसका कारण है, वे मरकर मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते और इसीलिए वे दूसरे भव 卐 में सिद्ध नहीं हो सकते। छहों कायों में जो सूक्ष्म जीव हैं, वे भी मरकर अगले भव में मनुष्य न हो सकने के कारण मुक्त नहीं हो सकते। त्रस के साथ 'उदार' विशेषण से यह सूचित किया गया है कि विकलेन्द्रिय स प्राणी भी अगले भव में सिद्ध नहीं हो सकते। अतः संज्ञी पंचेन्द्रिय त्रस जीवों को 'उदार त्रस प्राणी' पद से ग्रहण करना चाहिए। द्विशरीरी का अर्थ है - एक वर्तमान भव का शरीर तथा एक अगले भव का मनुष्य शरीर जिससे मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। Elaboration-In the three aforesaid aphorisms fire-bodied and airbodied beings have been excluded. The reason is that they do not reincarnate as human beings and therefore they cannot attain liberation during next birth. The minute (sukshma) beings in all the six life forms also do not reincarnate as humans and so they too-cannot get liberated. The adjective udaar with tras indicates that vikalendriya (one to four sensed) beings also cannot get liberated during the next birth. Thus the phrase 'udaar tras prani' should be interpreted as sentient mobile beings. Dvishariri means having two bodies or the present body and the human body during the next birth when liberation may be attained. सत्त्व - पद SATTVA-PAD (SEGMENT OF COURAGE) ४८६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - हिरिसते, हिरिमणसत्ते, चलसत्ते, थिरसत्ते । ४८६. पुरुष चार प्रकार के होते हैं। जैसे- (१) हीसत्त्व - विषम परिस्थिति में भी लज्जावश कायर न होने वाला । (२) हीमनः सत्त्व - भयवश शरीर में रोमांच, कम्पनादि होने पर भी मन में दृढ़ता रखने वाला । (३) चलसत्त्व - परीषहादि आने पर विचलित होने वाला । ( ४ ) स्थिरसत्त्व - उग्र से उग्र परीषह और उपसर्ग आने पर भी स्थिर रहने वाला। 486. Purush (men) are of four kinds-(1) Hri-sattva-who, in adverse conditions, does not show cowardice for face-saving. (2) Hrimanahsattva-who remains mentally strong even when his body trembles with fear. (3) Chal-sattva-who gets disturbed in face of afflictions. (4) Sthirsattva-who is unmoved even by gravest afflictions. प्रतिमा - पद PRATIMA-PAD (SEGMENT OF SPECIAL CODES AND RESOLUTIONS) ४८७. चत्तारि सेज्जपडिमाओ पण्णत्ताओ । ४८८. चत्तारि वत्थपडिमाओ पण्णत्ताओ । ४८९. चत्तारि पायपडिमाओ पण्णत्ताओ । ४९०. चत्तारि ठाणपडिमाओ पण्णत्ताओ । 5 चतुर्थ स्थान फ्र Jain Education International (573) For Private & Personal Use Only फ्र Fourth Sthaan 卐 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 2 5 फ 卐 फ 卐 卐 फ www.jainelibrary.org

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