Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 665
________________ 555555555555555555555555558 a555555555555555555 495. In terms of pradeshagra (number of space-points) four astikaya dravya (agglomerative entities) are equal—(1) Dharmastikaya, $ (2) Adharmastikaya, (3) Lokakash, and (4) single soul. विवेचन-इन चारों के असंख्यात प्रदेश होते हैं और वे बराबर-बराबर हैं। Elaboration-All these four entities have innumerable space-points and their number is equal. नो सुपश्य-पद NO SUPASHYA-PAD (SEGMENT OF NOT ORDINARILY VISIBLE) ४९६. चउण्हमेगं सरीरं णो सुपस्सं भवइ, तं जहा-पुढविकाइयाणं, आउकाइयाणं, ॐ तेउकाइयाणं, वणस्सइकाइयाणं। ___४९६. इन चार काय के जीवों का एक शरीर सुपश्य (सहज दृश्य) नहीं होता है-(१) पृथ्वीकायिक जीवों का, (२) अप्कायिक जीवों का, (३) तैजसकायिक जीवों का, (४) साधारण वनस्पतिकायिक ॐ जीवों का। 496. A single body of these four beings is not supashya (ordinarily 5 visible)—(1) prithvi-kayik jivas (earth-bodied beings), (2) ap-kayik jivas 4i (water-bodied beings), (3) taijas-kayik jivas (fire-bodied beings), and (4) sadharan vanaspati-kayik jivas (clustered plant-bodied beings). विवेचन-'सुपश्य नहीं' का अर्थ आँखों से दिखाई नहीं देता, यह समझना चाहिए। इन चारों ही 卐कायों के जीवों में एक-एक जीव के शरीर की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग बताई गई है। इतने छोटे शरीर का दिखना नेत्रों से सम्भव नहीं है। हाँ, अनुमानादि प्रमाणों से उनका जानना सम्भव है म या फिर केवली भगवान उनको देखते हैं। Elaboration-Nosupashya means not visible with naked eye. A 41 single being of any of the aforesaid four classes of beings occupies $ innumerable fraction of an Angul (width of a finger). It is not possible to see such minute body with naked eye. They are either known 5 hypothetically or are visible to an omniscient. इन्द्रियार्थ-पद INDRIYARTH-PAD (SEGMENT OF FUNCTION OF SENSE ORGANS) ४९७. चत्तारि इंदियत्था पुट्ठा वेदेति, तं जहा-सोइंदियत्थे, घाणिंदियत्थे, जिभिंदिपत्थे, , फासिंदियत्थे। ४९७. चार इन्द्रियों के विषय स्पर्श होने पर ही अर्थात् ग्राहक इन्द्रिय के साथ उनका संयोग होने + पर ही ज्ञान होता है, जैसे-(१) श्रोत्रेन्द्रिय का विषय-शब्द, (२) घ्राणेन्द्रिय का विषय-गन्ध, चतुर्थ स्थान (579) Fourth Sthaan Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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