Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 671
________________ 055555555555555555555555555555555558 )) )) ) ) )) )) ) ))) म. जो काल सब ओर से भयानक दीखता हो, भले ही वह अल्पकाल के लिए हो या बहुकाल के लिए, वह कालापाय कहलाता है। उसे धर्मपूर्वक व्यतीत करना चाहिए, क्योंकि जीवन को पवित्र एवं धर्ममय म बनाना ही कालापाय को दूर करने का साधन है। म क्रोध आदि कषाय जो आत्मा के सद्गुणों का नाश करने वाले हैं, उन्हीं से भावों में मालिन्य आता के म है, अतः उन्हें भावापाय कहा जाता है। जैसे-चण्डकौशिक पूर्वभव के तीव्र कषायों के कारण ही सर्प बना 卐 और फिर भगवान के द्वारा प्रतिबोध प्राप्त कर कषायों को अनर्थ का मूल कारण जान लेने पर क्षमा का आश्रय लेकर समाधिपूर्वक जीवन-यापन करके आठवें देवलोक का उच्च देव बना। (ख) उपाय-इष्ट पदार्थ की प्राप्ति के लिए जो व्यापारादि रूप साधन-सामग्री होती है, उसे उपाय कहते हैं। इसके भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से चार भेद होते हैं। (ग) स्थापना-कर्म-जिस दृष्टान्त के द्वारा परमत का निराकरण हो और स्वमत की पुष्टि या स्थापना फ़ हो, उसे स्थापना-कर्म कहते हैं। जैसे कि सूत्रकृतांग नामक सूत्र के दूसरे श्रुतस्कन्ध के पहले अध्ययन में पुण्डरीक का रूपक दिया गया है। भ्रान्ति आदि का निराकरण करके उन्हें सत्यमार्ग पर स्थापित करना भी स्थापना-कर्म है। (घ) प्रत्युत्पन्न विनाशी-यदि किसी अच्छे गुण के विनाश होने की सम्भावना हो, तो तत्काल ही उसे विनाश से बचाने का प्रयत्न करना चाहिए। जैसे-शील रक्षा के लिए कन्या आदि को कामोत्तेजक ॐ नृत्यशाला आदि में जाने से रोकने का प्रयत्न करना। इसी प्रकार यदि शिष्यों के कुमार्गगामी होने की सम्भावना हो तो उनको कुमार्ग से हटाकर सन्मार्ग में लाने का प्रयत्न करना। २. आहरणतद्देश-जिसमें दृष्टान्त अर्थात् उपमेय के एक ही भाग से उपमान की समानता प्रदर्शित की जाए, उसे आहरणतद्देश कहा जाता है। जैसे कि “इसका मुख चन्द्र के समान सौम्य है।" यहाँ उपमान रूप चन्द्र की केवल सौम्य आकृति ही ग्रहण की गई है। यद्यपि चन्द्र में अन्य अनेक विशेषताएँ हैं तो भी उनमें से एक सौम्य धर्म का ही मुख में आरोप किया गया है, अतः यह दृष्टान्त आहरणतद्देश ज्ञात क है। इसके भी चार भेद होते हैंॐ (क) अनुशिष्टि-गुणवान् व्यक्ति के गुणों की प्रशंसा करना, जनता में उसके अनुकरण की प्रवृत्ति को जागृत करने का प्रयत्न करना, जिस चरित या दृष्टान्त से जन-मन को अनुशासन में रहने की शिक्षा ॐ मिले, उस दृष्टान्त का वर्णन करना अनुशिष्टि ज्ञात कहलाता है। जैसे कि सुभद्रा सती ने अपने शील का महत्त्व दिखलाया, देवों ने उसकी प्रशंसा की, औरों को उसके समान सदाचार पालन करने की प्रेरणा । दी। (ख) उपालंभ-किसी अपराध के होने पर अपराधी को शान्तिपूर्वक और मधुर वचनों से उपालंभ म देना, जिससे वह कुमार्ग से हटकर सन्मार्ग पर आ जाए, ऐसा उपालंभ आत्मशुद्धि का एक उत्तम मार्ग ) ) )) ))))) )) )) )) );) म चतुर्थ स्थान (685) Fourth Sthaan Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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