Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 644
________________ ת ת 55 נ ת )))) ת נ )) וב תב תב וב ת ת )) ) )))) Ir ir Ir III 口5555555555555555555555555555555555556 ॐ ४६४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-परिण्णातकम्मे णाममेगे णो परिण्णातगिहावासे, परिण्णातगिहावासे णाममेगे णो परिण्णातकम्मे, [ एगे परिण्णातकम्मेवि परिण्णातगिहावासेवि, एगे । है णो परिण्णातकम्मे णो परिण्णातगिहावासे ]। - ४६४. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष परिज्ञातकर्मा तो होता है, किन्तु गृहावास का म परित्यागी नहीं होता, (२) कोई गृहावास का परित्यागी तो होता है, किन्तु परिज्ञातकर्मा नहीं होता, ! (३) कोई परिज्ञातकर्मा भी होता है और परिज्ञातगृहावास भी, (४) कोई न तो परिज्ञातकर्मा होता है है और न परिज्ञातगृहावास होता है। 464. Purush (men) are of four kinds-(1) some man is parijnat-karma (knowledgeable about violence) but not parijnat-grihavas (who renounces household), (2) some man is parijnat-grihavas but not parijnat-karma, (3) some man is parijnat-karma as well as parijnat-: grihavas, and (4) some man is neither parijnat-karma nor parijnat- : grihavas. विवेचन-परिज्ञातकर्मा का अर्थ है-जिसने ज्ञान से हिंसा आदि का स्वरूप जान लिया है। परिज्ञातसंजजो हिंसादि की लालसा को त्यागता है। हिंसा आदि को तथा विषयेच्छा को त्यागने की इच्छा नहीं रखते ॐ हैं। अर्थात् दिखाने के रूप में हिंसा आदि के त्यागी होते हैं, प्रथम कोटि में वे हैं जो हिंसा का स्वरूप म जानते हैं किन्तु भाव रूप में उनसे विरक्त नहीं होते। ये पाखण्डी या आडम्बरी होते हैं। दूसरी कोटि के, मन ।' पापों व इच्छा तृष्णा से दूर रहते हैं, किन्तु व्यवहार दृष्टि में संसारी प्रतीत होते हैं, जैसे व्रतधारी श्रावक। तीसरी कोटि के व्यवहार व निश्चय; शरीर व मन दोनों से ही पापों के त्यागी होते हैं, जैसे अप्रमत्त संयमी। चौथी कोटि के सामान्य संसारी हैं, जो समान्य रूप से विषय हिंसा आदि में लगे रहते हैं और मन से भी विषय में लीन होते हैं। संज्ञा का अर्थ है-बलवती तीव्र इच्छा। उसके चार प्रकार हैं-आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा। __जिसने गृहवास का त्यागकर साधु धर्म स्वीकार कर लिया है। Elaboration-parijnat-karma-one who has understood violence and other sinful activities through his knowledge. Parijnat-sanjna-one who has renounced the desire to indulge in violence and other sinful activities. The first category mentioned here includes people who are knowledgeable about violence but are not desirous of renouncing violence y and fondness for mundane pleasures. In other words they are the 4 hypocrites who pose to have abandoned violence but, in fact, are not mentally detached from it. The second category includes those who have distanced themselves from sins and desires but formally appear to be householders, for example a vow abiding layman. The third category )) )) ) )) )))) )) )) ))) स्थानांगसूत्र (१) (558) Sthaananga Sutra (1) B)) 日历步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步牙牙牙牙%%%%% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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