Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 632
________________ 25559555555 5 55 5 卐 (२) दूसरी दुःखशय्या - कोई पुरुष मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हो, अपने प्राप्त 5 लाभ से (भिक्षा में प्राप्त भक्त - पानादि से) सन्तुष्ट नहीं होता है, किन्तु दूसरे को प्राप्त हुए लाभ की आशा फ 卐 555555555555! (४) चौथी दुःखशय्या - कोई पुरुष मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुआ। उसको ऐसा विचार होता है - जब मैं गृहवास में रहता था, तब मैं सम्बाधन (मालिश ), परिमर्दन ( दबाना), गात्राभ्यंग ( तेल आदि चुपड़ना) और गात्रोत्क्षालन (स्नान) करता था। परन्तु जब से मुण्डित होकर अगार से अनगार बना हूँ, तब से मैं सम्बाधन, परिमर्दन, गात्राभ्यंग और गात्रप्रक्षालन नहीं कर पा रहा हूँ। ऐसा 5 विचार कर वह सम्बाधन, परिमर्दन, गात्राभ्यंग और गात्रप्रक्षालन की आशा करता है, इच्छा कारता है, प्रार्थना करता है और अभिलाषा करता है। सम्बाधन, परिमर्दन, गात्राभ्यंग और गात्रप्रक्षालन की इच्छा करता हुआ, प्रार्थना करता हुआ और अभिलाषा करता हुआ वह अपने मन को ऊँचा- नीचा करता है और विनिघात को प्राप्त होता है। यह उस मुनि की चौथी दुःखशय्या है। 450. Duhkhashayya ( bed of misery) is of four kinds— 5 फ करता है, इच्छा करता है, प्रार्थना करता है और अभिलाषा ( निरन्तर चाहना ) करता है। वह दूसरे के लाभ की आशा करता हुआ, इच्छा करता हुआ, प्रार्थना करता हुआ और अभिलाषा करता हुआ मन को ऊँचा - नीचा करता है और विनिघात को प्राप्त होता है। यह उसकी दूसरी दुःखशय्या है। (३) तीसरी दुःखशय्या - कोई पुरुष मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हो देवों और मनुष्य सम्बन्धी काम - भोगों की आशा करता है, इच्छा करता है, प्रार्थना करता है, अभिलाषा करता है। वह देवों के और मनुष्यों के काम-भोगों की आशा करता हुआ, इच्छा करता हुआ, प्रार्थना करता हुआ अभिलाषा करता हुआ मन को ऊँचा-नीचा करता है और विनिघात को प्राप्त होता है। यह उसकी तीसरी दुःखशय्या है। 卐 (1) First bed of misery-On getting tonsured and getting initiated as a homeless ascetic after renouncing his household, some person does not have belief, awareness and interest in the ascetic-sermon out of1. suspicion, 2. misgiving, 3. doubt, 4. distrust, and 5. perversion. Continued disbelief, unawareness and disinterest in the ascetic-sermon 卐 சு 5 lead to a wavering mind and, in turn, his fall from grace (vinighat ). This is his first bed of misery. 卐 (2) Second bed of misery-On getting tonsured and getting initiated as a homeless ascetic after renouncing his household, some person is not contented with his gains (collected alms) and hopes, desires, prays and craves for gains by others. Such continued hope, desire, prayer and craving lead to a wavering mind and, in turn, his fall 5 from grace (vinighat ). This is his second bed of misery. 5 5 स्थानांगसूत्र (१) Jain Education International (546) फफफफफफफफफफ्रा Sthaananga Sutra (1) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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