Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 627
________________ )) ) ) ) 8555555555555555555555555555555555555 ॐ ४३७. एवं देवंधगारे, देवुज्जोते, देवसण्णिवाते, देवुक्कलियाए, देवकहकहए, [चउहिं 5 ठाणेहिं देवंधगारे सिया, तं जहा-अरहंतेहिं वोच्छिज्जमाणेहिं, अरहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे, जायतेजे बोछिज्जमाणे ]। ४३७. चार कारणों से देवलोक में अन्धकार होता है-(सूत्र ४३५ के अनुसार) (१) अर्हन्तों के व्युच्छेद हो जाने पर, (२) अर्हत् प्ररूपित धर्म के व्युच्छेद हो जाने पर, (३) पूर्वगत श्रुत के व्युच्छेद फ़ हो जाने पर, (४) अग्नि के व्युच्छेद हो जाने पर। 437. There are four reasons for spread of darkness in dev-lok (divine realm or the heavens) (as mentioned in aphorism 435)-(1) on nirvana of Arihants, (2) on extinction of the religion propagated by Arhat, (3) extinction of the subtle canon, and (4) on extinction of gross fire. 卐 ४३८. चउहि ठाणेहिं देवुज्जोते सिया, [तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पवयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु।] + ४३९. चउहिं ठाणेहिं देवसण्णिवाते सिया, [तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्ययमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु।] ४४०. चउहि ठाणेहिं देवुक्कलिया सिया, [तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पवयमाणेहिं, आरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिबाणमहिमासु।] ४४१. चउहि ठाणेहिं देवकहकहए सिया, [तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु।] म ४३८. चार कारणों से देवलोक में उद्योत (प्रकाश) होता है-(१) अर्हन्तों के उत्पन्न होने पर, (२) अर्हन्तों के प्रव्रजित होने पर, (३) अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने की महिमा पर, ॐ (४) अर्हन्तों के परिनिर्वाण कल्याण की महिमा पर। ४३९. (उक्त) चार कारणों से देव-सन्निपात होता है। ४४०. उक्त चार कारणों से देवोत्कलिका होता है। ४४१. उक्त चार कारणों से देव-कहकहा होते हैं। 438. There are four reasons for spread of light in dev-lok (divine realm)-(1) at the time of birth of Arihants, (2) at the time of initiation of Arihants, (3) at the time of celebrating the attainment of omniscience by Arihants, and (4) at the time of celebration of the Nirvana Kalyanak of Arihants. 439. For the aforesaid four reasons there occurs deu-sannipat (descending of gods on the land of humans or earth). * 440. For the aforesaid four reasons there occurs devotkalika (great fi congregation of vimaan dwelling gods). 卐5555555))))))) 听听听听听听听听听听听听。 - चतुर्थ स्थान (641) Fourth Sthaan 白听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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