Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 608
________________ 卐 others but not himself (abhigrahadhari or ascetic with specific resolve), (3) some man serves himself as well as others (sthavir kalpi or senior 5 and non-itinerant ascetic) and (4) some man neither serves himself not others (jinakalpi or ascetic, who goes into complete isolation). विवेचन - स्वार्थी मनुष्य अपनी सेवा करता है, दूसरों की नहीं । निःस्वार्थी मनुष्य दूसरों की सेवा करता है, अपनी नहीं । सुश्रावक या सुशिष्य अपनी भी सेवा करता है और दूसरों की और पादोपगमन संथारा वाला या जिनकल्पी मुनि न अपनी सेवा करता है और न 5 करता है। । आलसी, मूर्ख दूसरों की सेवा 卐 卐 Elaboration-A selfish person serves himself and none else. A selfless person serves others not himself. A good shravak (Jain layman) and a good disciple serves himself as well as others. A lazy and foolish person! or the ascetics who have retired into solitude, Jinakalpi or one observing 5 ultimate vow, neither serves himself nor others. 卐 卐 फ फ्र णो पडिच्छइ । 卐 卐 卐 फ्र ४१३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- करेति णाममेगे वेयावच्चं णो पडिच्छइ, पडिच्छइ णाममेगे वेयावच्चं णो करेति, एगे करेतिवि वेयावच्चं पडिच्छवि, एगे णो करेति वेयावच्चं ४१३. पुरुष चार प्रकार के होते हैं - (१) कोई दूसरों की वैयावृत्य करता है, किन्तु दूसरों से 卐 5 अपनी वैयावृत्य नहीं कराता (समर्थ या निस्पृह पुरुष); (२) कोई दूसरों से अपनी वैयावृत्य कराता है, ५ फ्र फ्र किन्तु दूसरों की नहीं करता ( आचार्य या रुग्ण, वृद्ध); (३) कोई दूसरों की भी वैयावृत्य करता है और अपनी भी दूसरों से कराता है ( स्थविरकल्पी); तथा (४) कोई न दूसरों की वैयावृत्य करता है और न 5 दूसरों से अपनी कराता है (जिनकल्पी या स्वार्थी पुरुष ) । Y 5 卐 卐 फ्र 卐 413. Purush (men) are of four kinds-(1) some man serves himself but avoids others serving him (a resourceful or desireless person ), ( 2 ) some man accepts services of others but does not serve others (an acharya, a sick or old person), (3) some man serves others and also accepts services of others (a sthavir kalpi or senior and non-itinerant ascetic), and (4) some man neither serves others nor accepts services of others (a jinakalpi or a selfish person). फ्र फ्र फ्र 卐 अर्थ- मान- पद ARTH- MAAN PAD (SEGMENT OF MONEY AND PRIDE ) फ्र 卐 卐 ४१४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अट्ठकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे 5 卐 卐 फणाममेगे णो अट्ठकरे, एगे अट्ठकरेवि माणकरेवि, एगे णो अट्ठकरे णो मापकरे । ४१४. पुरुष चार प्रकार के होते हैं - (१) कोई पुरुष अर्थकर - ( काम करने वाला या धनोपार्जन फ करने वाला) होता है, किन्तु उसका अभिमान नहीं करता (जैसे- राजा का मंत्री या घर का मुखिया); Sthaananga Sutra (1) स्थानांगसूत्र (१) ( 522 ) Jain Education International ahhhh For Private & Personal Use Only फफफफफफफफफफफफफफफफफब फ्र 卐 www.jainelibrary.org

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