Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 609
________________ ) )) %%%%%%%%%%% )) )))) )) %%% )) )) %%%% ) 055555555555555555555555555555555555 卐 (२) कोई अभिमान करता है, किन्तु अर्थकर नहीं होता (जैसे-दरिद्र, मूर्ख या आलसी अथवा निकम्मा ॥ विद्यावान पुरुष); (३) कोई अर्थकर भी होता है और अभिमान भी करता है (सामान्य गृहस्थ); और ॐ (४) कोई न अर्थकर होता है और न अभिमान ही करता है (साधु)। 414. Purush (men) are of four kinds(1) some man is arthakar (employed or a money earner) but is not proud of that (a king's minister or the head of a family), (2) some man is proud but is not arthakar (a poor, foolish or lazy person or an educated unemployed), (3) some man is arthakar as well as proud (an ordinary householder), and (4) some man is neither arthakar nor proud (an ascetic). गण-अर्थकर-पद GANA-ARTHAKAR-PAD (SEGMENT OF WORKER FOR RELIGIOUS ORGANIZATION) ४१५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गणट्ठकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे णाममेगे णो गणट्टकरे, एगे गणट्ठकरेवि माणकरेवि, एगे णो गणट्टकरे णो माणकरे। . ४१५. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई गण (संघ) के लिए कार्य करता है, किन्तु उसका अभिमान नहीं करता; (२) कोई अभिमान तो करता है, किन्तु गण के लिए कार्य नहीं करता; (३) कोई ॐ गण के लिए कार्य भी करता है और अभिमान भी करता है; और (४) कोई न गण के लिए कार्य ही. करता है और न अभिमान ही करता है। 415. Purush (men) are of our kinds—(1) some man is ganarthakar (works for or serves the religious organization) but is not proud of that, (2) some man is proud but is not ganarthakar, (3) some man is ganarthakar as well as proud, and (4) some man is neither ganarthakar nor proud. ४१६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गणसंगहकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे ॐ णाममेगे णो गणसंगहकरे, एगे गणसंगहकरेवि माणकरेवि, पगे णो गणसंगहकरे णो माणकरे। ४१६. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई गण के लिए (साधनों का) संग्रह करता है, किन्तु अभिमान नहीं करता; (२) कोई अभिमान तो करता है, किन्तु संग्रह नहीं करता; (३) कोई संग्रह भी करता है और अभिमान भी; तथा (४) कोई गण के लिए न संग्रह ही करता है और न अभिमान ही करता है। 416. Purush (men) are of four kinds-(1) some man is ganasangrahakar (collects money and provisions for the religious organization) but is not proud of that, (2) some man is proud but is not ganasangrahakar, (3) some man is ganasangrahakar as well as proud, and (4) some man is neither ganasangrahakar nor proud. $$% )) $$$$ ) ) ))) ))) )) ) )) ) ))) ) ))) ))) )) ))) ) ) चतुर्थ स्थान (523) Fourth Sthaan ) 5 B) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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