________________
3555555555555555555555))))))))
ॐ ४०२. (१३) पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई बलसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं; । (२) कोई श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं; (३) कोई बलसम्पन्न भी होता है और श्रुतसम्पन्न
भी; और (४) कोई न बलसम्पन्न और न श्रुतसम्पन्न ही होता है। 卐
४०३. (१४) पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई बलसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं; ऊ (२) कोई शीलसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं; (३) कोई बलसम्पन्न भी और शीलसम्पन्न भी होता + है; और (४) कोई न बलसम्पन्न और न शीलसम्पन्न ही होता है। ॐ ४०४. (१५) पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई बलसम्पन्न होता है, किन्तु चारित्रसम्पन्न नहीं; म (२) कोई चारित्रसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं; (३) कोई बलसम्पन्न भी और चारित्रसम्पन्न भी
होता है; और (४) कोई न बलसम्पन्न और न चारित्रसम्पन्न ही होता है। 4 401. (12) Purush (men) are also of four kinds—(1) Some man is bal
sampanna (strong) and not rupa sampanna (beautiful). (2) Some man is rupa sampanna and not bal sampanna. (3) Some man is both bal sampanna and rupa sampanna. (4) Some man is neither bal sampanna i nor rupa sampanna.
402. (13) Purush (men) are of four kinds—(1) Some man is bal 5 sampanna (strong) and not shrut sampanna (having knowledge of
scriptures). (2) Some man is shrut sampanna and not bal sampanna. ! $ (3) Some man is both bal sampanna and shrut sampanna. (4) Some man is neither bal sampanna nor shrut sampanna.
403. (14) Purush (men) are of four kinds-(1) Some man is bal y sampanna (strong) and not sheel sampanna (endowed with good ! + character). (2) Some man is sheel sampanna and not bal sampanna.
(3) Some man is both bal sampanna and sheel sampanna. (4) Some man is neither bal sampanna nor sheel sampanna.
404. (15) Purush (men) are of four kinds-(1) Some man is bal sampanna (strong) and not chaaritra sampanna (endowed with pious conduct). (2) Some man is chaaritra sampanna and not bal sampanna. (3) Some man is both bal sampanna and chaaritra sampanna. (4) Some man is neither bal sampanna nor chaaritra sampanna. रूप-पद RUPA-PAD (SEGMENT OF BEAUTY)
४०५. (१६) चत्तारि पुरिस्रजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, एवं रूवेण य सीलेण य, रूवेण य चरित्तेण य, सुयसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो सुयसंपण्णे।
गा
| स्थानांगसूत्र (१)
(518)
Sthaananga Sutra (1)
9555555555555555555555555555555555555g
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org