Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 603
________________ )) )) )) 45 398. (9) Purush (men) are of four kinds(1) Some man is kula sampanna (of good paternal lineage) and not shrut sampanna (having + knowledge of scriptures). (2) Some man is shrut sampanna and not kulas sampanna. (3) Some man is both kula sampanna and shrut sampanna. 45 (4) Some man is neither kula sampanna nor shrut sampanna. 399. (10) Purush (men) are of four kinds-(1) Some man is kula sampanna (of good paternal lineage) and not sheel sampanna (endowed with good character). (2) Some man is sheel sampanna and not kula 卐 sampanna. (3) Some man is both kula sampanna and sheel sampanna. 卐 (4) Some man is neither bula sampanna nor sheel sampanna. ____400. (11) Purush (men) are of four kinds (1) Some man is kula sampanna (of good paternal lineage) and not chaaritra sampanna (endowed with pious conduct). (2) Some man is chaaritra sampanna and not kula sampanna. (3) Some man is both kula sampanna and chaaritra sampanna. (4) Some man is neither kula sampanna nor chaaritra sampanna. ))) ))) )) )) )) )) ))) ) बल-पद BAL-PAD (SEGMENT OF STRENGTH) + ४०१. (१२) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, म रूवसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे। ४०२. (१३) एवं बलेण य सुएण य, एवं बलेण य सीलेण य, एवं बलेण य चरित्तेण य, [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, सुयसंपण्णे णाममेगे मणो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो सुयसंपण्णे ]। ४०३. (१४) [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सीलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो सीलसंपण्णे ] ४०४. (१५) [चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, * चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ] ॐ ४०१. (१२) पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई बलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं; (२) कोई रूपसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं; (३) कोई बलसम्पन्न भी और रूपसम्पन्न भी; और ॐ (४) कोई न बलसम्पन्न और न रूपसम्पन्न ही होता है। )) )) )) ) ) 5 9 | चतुर्थ स्थान (517) Fourth Sthaan ज) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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