Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 438
________________ का DODVEDAORVAORMro * CoupAYODANUAROBARODARODARODARODRODRODRODROPPORDMRODR. * * 9869809009009RODRORROPAROSAROPAROPAROPAR | चित्र परिचय १५ । Illustration No. 15 धर्म्यध्यान के आलम्बन और अनुप्रेक्षा धर्म्यध्यान के चार आलम्बन___ चार कारणों से धर्म्यध्यान की स्थिरता तथा वृद्धि होती है-(१) वाचना-गुरुजनों के पास शास्त्र आदि का अध्ययन करना। (२) पृच्छना-पढ़े हुए शास्त्रों के विषय में जिज्ञासा कर गुरुजनों से समाधान प्राप्त करना। (३) परिवर्तना-गुरु से जो-जो शास्त्र पढ़ा है, उसका पुनः पुनः स्मरण पुनः स्मरण करते रहना (४) अनुप्रेक्षागुरुजनों से जो ज्ञान प्राप्त किया है, उसके अर्थ व भाव पर गहराई के साथ चिन्तन-मनन करते रहना। चार अनुप्रेक्षाएँ अनुप्रेक्षा से चित्त की निर्मलता व स्थिरता बढ़ती है। अनुप्रेक्षा मुख्यतः चार प्रकार की है-(१) एकत्वानुप्रेक्षा“आत्मा अकेला ही कर्मबन्ध करता है। अकेला ही सुख-दुःख रूप फल भोगता है-मेरा चिन्मयस्वरूप आत्मा । अकेला है।'' इस प्रकार का गहरा चिन्तन करना। (२) अनित्यानुप्रेक्षा-यह शरीर, धन, परिवार आदि सभी वस्तुएँ म अनित्य हैं। क्षण-क्षण परिवर्तनशील हैं। नन्हा शिशु बड़ा होकर युवक बनता है, युवक बूढ़ा और बूढ़ा एक दिन मर जाता है-इसी प्रकार सब कुछ अनित्य है। (३) अशरणानुप्रेक्षा-संसार में माता-पिता, पति-पत्नी कोई भी दुःख, बुढ़ापा और मृत्यु से किसी की रक्षा नहीं कर सकते। मृत्यु आने पर कोई शरणदाता नहीं है। (४) संसारानुप्रेक्षा-यह समूचा संसार जन्म-मरण की लपटों में जल रहा है। तृष्णा और कषायों की आग सभी को जला रही है। इन भावों के चिन्तन से वैराग्य का जन्म होता है। धर्म्यध्यान की वृद्धि होती है। -स्थान ४, सूत्र ६६-६७ SUPPORTS OF DHARMADHYANA AND ANUPREKSHA Four supports of dharmadhyana There are four things that enhance concentration and duration of dharmadhyana-(1) Vaachana-to take lessons of or read Agams and other scriptures. (2) Prichhana-to seek clarification and elaboration from the learned ones. (3) Parivartana-to revise and repeat what has been learnt. (4) Anupreksha-to ponder over the learned text and meaning profoundly. Four Anuprekshas Anupreksha or contemplations enhances the purity and stability of mind. It is of four kinds-(1) Ekatvanupreksha-to revolve around the thought that "Soul is alone in karmic bondage and suffering pleasure and pain. My sublime soul too is alone.” (2) Anityanupreksha-to revolve around the thought that mundane things like body, wealth and family are ephemeral. They transform every moment. A child grows to be a young man. A youth becomes old and dies one day-this way everything is transitory. (3) Asharananupreksha-to revolve around the thought that there is no succour and refuge from misery, dotage and death including parents and spouse. At the time of death there is no refuge. (4) Samsaranupreksha-to revolve around the thought about the all consuming fire-like state of cycles of rebirth. The fire of desires and passions is burning everyone. These thoughts give rise to detachment enhancing pious meditation. -Sthaan 4, Sutra 66-67 OP ANOMATOMOXOGO KROD.80 DRDR.SKSher areachesh M Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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