Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 520
________________ 25595959595955 559555555555 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 59595555555595959555552 卐 (3) Michchhamirupa garha-to state 'may the faults committed by me become false or undone'. (4) Evamapi prajnaptirupa garha-to deefly 卐 think that Bhagavan has said that faults are condoned if one criticises himself for the faults committed. 卐 फ्र 卐 फ अलमस्तु (निग्रह) - पद NIGRAHA-PAD (SEGMENT OF RESTRAINT) 264. Garha (reproach) is of four kinds – ( 1 ) Upasampadarupa garha to think of going to the guru for stating one's faults. (2) Vichikitsarupa garha-to think of correcting one's censurable faults. फ्र २६५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- अप्पणो णाममेगे अलमंथू भवति णो परस्स, 卐 5 परस्स णाममेगे अलमंथू भवति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि अलमंथू भवति परस्सवि, एगे णो अप्पणो अलमंथू भवति णो परस्स । फ्र २६५. पुरुष चार प्रकार के होते हैं - ( १ ) कोई पुरुष अपना निग्रह करने में समर्थ होता है, किन्तु दूसरे का निग्रह करने में समर्थ नहीं होता; (२) कोई दूसरे का निग्रह करने में समर्थ होता है, अपना निग्रह करने में नहीं; (३) कोई अपना निग्रह करने में समर्थ भी होता है और पर का निग्रह करने में भी; और (४) कोई न अपना निग्रह करने में समर्थ होता है और न पर का निग्रह करने में । 265. (1) Some man is able to restrain (nigraha ) himself but not others. (2) Some man is able to restrain others but not himself. (3) Some man is able to restrain himself as well as others. (4) Some man is able to neither restrain himself nor others. ऋजु - वक्र - मार्ग - पद RIJU VAKRA-MARG PAD २६६. चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममेगे उज्जू, उज्जू णाममेगे वंके, वंके णाममेगे उज्जू, वंके णाममेगे वंके । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - उज्जू णाममेगे उज्जू, उज्जू णाममेगे वंके, वंके णाममेगे उज्जू, वंके णाममेगे वंके। २६६. मार्ग चार प्रकार के होते हैं - ( १ ) ऋजु और ऋजु - कोई मार्ग ऋजु (सरल) दिखता है और सरल ही होता है; (२) ऋजु और वक्र - कोई मार्ग ऋजु दिखता है, किन्तु वक्र होता है; (३) वक्र और 5 ऋजु - कोई मार्ग वक्र दिखता है, किन्तु ऋजु होता है; और (४) वक्र और वक्र- कोई मार्ग वक्र दिखता है 5 और वक्र ही होता है। (SEGMENT OF STRAIGHT AND OBLIQUE PATH) इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं - (१) कोई पुरुष सरल दिखता है और सरल ही होता है; (२) कोई सरल दिखता है, किन्तु कुटिल होता है; (३) कोई कुटिल दिखता है, किन्तु सरल होता है; और (४) कोई कुटिल दिखता है और कुटिल ही होता है। 266. Marg (path) are of four kinds-(1) Riju and riju-some path is riju (straight or simple) in appearance and riju (simple) actually as well. Sthaanunga Sutra (1) स्थानांगसूत्र (१) Jain Education International (438) फफफफफफफ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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