Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 554
________________ intermediate directions—(1) Ghanadant island, (2) Lashtadant island, (3) Goodhadant island, and (4) Shuddhadant island. On these islands live four kinds of human beings-(1) Ghanadant, (2) Lashtadant, (3) Goodhadant, and (4) Shuddhadant. उत्तरदिशावर्ती २८ अन्तद्वीप NORTHERN 28 MIDDLE ISLANDS ३२८. जंबुद्धीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं सिहरिस्स वासहरपव्वयस्स चउसु विदिसासु ॐ लवणसमुदं तिण्णि-तिण्णि जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अन्तरदीवा पण्णत्ता, तं जहा एगूरुयदीवे, सेसं तहेव गिरवसेसं भाणियव्वं जाव सुद्धदंता। म ३२८. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधर पर्वत की चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र के भीतर तीन-तीन सौ योजन जाने पर चार अन्तर्वीप हैं। जैसे-(१) एकोरुक द्वीप, (२) आभाषिक द्वीप, (३) वैषाणिक द्वीप, (४) लांगुलिक द्वीप। _इस प्रकार जैसे क्षुल्लक हिमवान् वर्षधर पर्वत की चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र के भीतर जितने 卐 अन्तद्वीप और जितने प्रकार के मनुष्य हैं वह सर्व वर्णन यहाँ पर भी शुद्धदन्त मनुष्य पर्यन्त मन्दर पर्वत के उत्तर में जानना चाहिए। 328. In Jambu Dveep to the north of Mandar mountain in all the four intermediate directions of Shikhari Varshadhar mountain there are four antardveeps (middle islands) three hundred Yojans (a unit of eight miles) from the shore in Lavan Samudra—(1) Ekoruk island, (2) Abhashik 卐 island, (3) Vaishanik island, and (4) Langulik island. In the same way all the description about all middle islands and all kinds of human beings living there should be read to be the same as that mentioned about the middle islands in Lavan Samudra in the four intermediate directions of Kshullak Himavan Varshadhar mountain up to Shuddhadant human beings. विवेचन-उक्त आठ सूत्रों में ५६ अन्तर्वीपों और वहाँ रहने वाले मनुष्यों के विषय में वर्णन है। ये द्वीप लवण समुद्र के भीतर दक्षिण-उत्तर चारों विदिशाओं में हैं। २८ अन्तर्दीप दक्षिण में तथा २८ उत्तर दिशा में ऊ में हैं। वहाँ के निवासी मनुष्य व तिर्यंच युगलिया होते हैं। वहाँ असि, मषि, कृषि का प्रयोग नहीं होने से उन्हें ' अकर्मभूमि कहते हैं। उनकी सब प्रकार की आवश्यकताएँ दस प्रकार के कल्पवृक्षों से पूर्ण होती हैं। एक 5 दिन के अन्तर से उन्हें भूख लगती है। उनकी आयु पल्योपम के असंख्यातवें भाग की होती है। जब ७९ मदिन की आयु शेष रहती है तब सन्तान का जोड़ा एक पुत्र व एक पुत्री पैदा होती है। ७९ दिन उनका पालन-पोषण करने के बाद व माता-पिता एक छींक व उबासी के साथ आयुष्य पूर्ण कर देवगति में जाते । 卐 हैं। (विस्तृत वर्णन जीवाभिगम, प्रतिपत्ति ३ देखें) चित्र में अन्तर्द्वीपों की स्थिति बताई गई है। स्थानांगसूत्र (१) (470) Sthaananga Sutra (1) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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