Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 566
________________ $$$$$ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ इनका विस्तार आदि शेष सर्व वर्णन पूर्व दिशा के समान है, उसी प्रकार दधिमुख पर्वत है और 卐 उसी प्रकार सिद्धायतन यावत् वनषण्ड का वर्णन जानना चाहिए। 342. In all the four directions of the Eastern Anjan Parvat among the aforesaid four Anjan Parvats there are four Nanda pushkarinis (delightful lakes with lotuses)—(1) Nandishenaa, (2) Amogha, (3) Gostupa, and (4) Sudarshana. The expanse and other description should be read as mentioned about the east, including the same Dadhimukh Parvat, same Siddhayatan ...and so on up to... van-khand. ३४३. तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले अंजणगपवते, तस्स णं चउद्दिसिं चत्तारि णंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-विजया, वेजयंती, जयंती, अपराजिता। ताओ णं णंदाओ पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयसहस्सं सेसं तं चेव पमाणं, तहेव दधिमुहगपव्वता, तहेव सिद्धाययणा जाव वणसंडा। ३४३. उन चार अंजन पर्वतों में जो उत्तर दिशा वाला अंजन पर्वत है, उसकी चारों दिशाओं में ॐ (१) विजया, (२) वैजयन्ती, (३) जयन्ती, (४) अपराजिता ये चार नन्दा पुष्करिणियाँ हैं। वे नन्दा पुष्करिणियाँ एक लाख योजन विस्तृत हैं, शेष सर्व वर्णन पूर्व के समान है। उसी प्रकार दधिमुख पर्वत है उसी प्रकार सिद्धायतन यावत् वनषण्ड जानना चाहिए। 343. In all the four directions of the Northern Anjan Parvat among the aforesaid four Anjan Parvats there are four nanda pushkarinis (delightful lakes with lotuses) (1) Vijayaa, (2) Vaijayanti, (3) Jayanti, and (4) Aparajita. The expanse and other description should be read as mentioned about the east, including the similar existence of Dadhimukh Parvat, Siddhayatan ...and so on up to... van-khand. रतिकर पर्वत-पद RATIKAR PARVAT-PAD (RATIKAR MOUNTAIN) ३४४. णंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवाल-विक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे चउसु विदिसासु ॐ चत्तारि रतिकरगपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वए, दाहिणपुरथिमिल्ले + रतिकरगपव्वए, दाहिण-पच्चथिमिल्ले रतिकरगपव्वए, उत्तरपच्चत्थिमिल्ले रतिकरगपव्वए। ते णं ॐ रतिकरगपव्वता दस जोयणसयाई उड्डे उच्चत्तेणं, दस गाउयसताइं उबेहेणं, सव्वत्थ समा झल्लरिसंठाणसंठिता, दस जोयणसयाई विक्खंभेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं, सबरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। ३४४. नन्दीश्वरवर द्वीप के चक्रवाल विष्कम्भ (वलयाकार विस्तार) के बिल्कुल मध्य भाग में चारों विदिशाओं में चार रतिकर पर्वत (रमणीय क्रीड़ास्थली) हैं-(१) उत्तर-पूर्व दिशा का रतिकर | स्थानांगसूत्र (१) (482) Sthaananga Sutra (1) | 日岁岁 岁岁岁%%% %% %% %%% %%%% %%% %%% %% %%% %% %% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696