Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 569
________________ 听听听听听听听听听听 听听听听听 ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת 口555555555555555555555555555555555555 विवेचन-सूत्र ३०९ से ३१९ तक में नंदीश्वर द्वीप का जो वर्णन किया है, उससे पता चलता है कि मैं 卐 यह द्वीप वास्तव में कितना रमणीय और आनन्ददायक है। ढाई द्वीप के बाहर के सभी द्वीपों में के नन्दीश्वर का अलग ही महत्त्व है। इस पर देव-देवियाँ चातुमार्सिक, सांवत्सरिक तथा जिन जन्म ॐ कल्याणक आदि अवसरों पर अष्टान्हिक महोत्सव मनाते हैं। यह द्वीप देव रमणीय द्वीप है। इसका ॥ विस्तृत वर्णन जीवाभिगमसूत्र में देखना चाहिए। Elaboration The description of Nandishvar Dveep given in aphorisms 309-319 informs us how enchanting and delightful this continent is. f Nandishvar Dveep has its own importance among the continents outside Adhai Dveep. Gods and goddesses perform Ashtanhik Mahotsava (a specific religious celebrations) here on various occasions like chaturmasik (four months of monsoon stay), Samvatsarik (annual) and auspicious days of birth of Tirthankars. This is a continent frequented by gods. For detailed description of this continent consult Jivabhigam Sutra. # सत्य-पद SATYA-PAD (SEGMENT OF TRUTH) ३४९. चउबिहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहा-णामसच्चे, ठवणसच्चे, दवसच्चे, भावसच्चे। ३४९. सत्य के चार प्रकार हैं-(१) नामसत्य-किसी व्यक्ति का 'सत्य' नाम रखना। (२) स्थापनासत्यमें किसी वस्तु में 'सत्य' का आरोप करना। (३) द्रव्यसत्य-सत्य का ज्ञाता, किन्तु उपयोगशून्य पुरुष। । (४) भावसत्य-सत्य का ज्ञाता और सत्यविषयक उपयोग से युक्त। 349. Satya (truth) is of four kinds—(1) Naam satya (satya as name) # a person who is named Satya. (2) Sthapana satya-a thing in which 5 satya (truth) is installed. (3) Dravya satya (physical truth)-a person F who knows truth but does not act accordingly. (4) Bhaava satyafi a person who knows truth and also acts accordingly. म आजीविक तप-पद AJIVIK-TAP-PAD (SEGMENT OF PENANCE OF AJIVIKS) ३५०. आजीवियाणं चउबिहे तवे पण्णत्ते, तं जहा-उग्गतवे, घोरतवे, रसणिज्जूहणता, जिभिंदियपडिसंलीणता। ३५०. आजीविकों (गोशालक के शिष्यों) का तप चार प्रकार का है-(१) उग्रतप-षष्ठभक्त (उपवास) बेला, तेला आदि करना। (२) घोरतप-सूर्य-आतापनादि के साथ उपवासादि करना। (३) रस-निफूहणतप-घृत आदि रसों का परित्याग करना। (४) जिह्वेन्द्रिय-प्रतिसंलीनता तप-मनोज्ञ और अमनोज्ञ भक्त-पानादि में राग-द्वेषरहित होकर जिह्वेन्द्रिय को वश करना। 350. Tap (penance) of Ajiviks (followers of Goshalak) is of four kinds(1) Ugra-tap-to observe Shasht bhakt (two-day fast), Asht bhakt (three day fast) and other such austerities. (2) Ghor-tap-to observe fasts ת ת ת ת ת ת ת ת ת תב תבזבוב ובוב चतुर्थ स्थान (485) Fourth Sthaan 195555555555555555555555555555555553 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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