Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 559
________________ 2015 55 54 55 9 5 5 5 5 5 5 95 95 95 95 95 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 95 95 95 95 95 95 95 9555555 卐 फ्र फ्र 卐 卐 फ्र 卐 All the details mentioned in Shabdoddeshak (third lesson of second 卐 ३३७. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बहिया चत्तारि भरहाई, चत्तारि एरवयाइं । एवं जहा सदुद्देसए तहेव णिरवसेसं भाणियव्यं जाव चत्तारि मंदरा चत्तारि मंदरचूलियाओ । ३३७. जम्बूद्वीप द्वीप के बाहर (धातकीषण्ड और पुष्करवर द्वीप में) चार भरत क्षेत्र, चार ऐरवत क्षेत्र हैं । जैसे शब्दोद्देशक (दूसरे स्थान के तीसरे उद्देशक) में जो बतलाया गया है, वह सब पूर्ण रूप जान लेना चाहिए। वहाँ जो दो-दो की संख्या के बतलाये गये हैं, वे यहाँ चार-चार जानना चाहिए। 卐 धातकीषण्ड में दो मन्दर और दो मन्दरचूलिका तथा पुष्करवरद्वीप में भी दो मन्दर और मन्दरचूलिका हैं। 337. Outside Jambu Dveep there are four Bharat areas and four 5 Airavat areas (in Dhatakikhand and Pushkaravar Dveep). Sthaan) should be read here. The numbers two mentioned there should अंजणगपव्वता पण्णत्ता, 5 पच्चत्थिमिल्ले अंजणगपव्वते, उत्तरिल्ले अंजणगपव्वते । be changed to four. In Dhatakikhand there are two Mandar and two Mandar Chulika and so are in Pushkaravar Dveep. यहाँ नन्दीश्वर द्वीप - पद NANDISHVAR DVEEP PAD (SEGMENT OF NANDISHVAR DVEEP) ३३८. णंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवाल - विक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे चउद्दिसिं चत्तारि ते णं अंजणगपव्वता चउरासीतिं जोयणसहस्साइं उडुं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, तदणंतरं च णं मायाए - मायाए 5 परिहायमाणा - परिहारमाणा उवरिमेगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं पण्णत्ता मूले इक्कतीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं, उवरिं तिण्णि-तिण्णि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्टं जोयणसतं परिक्खेवेणं । मूले विच्छिण्ण मज्झे संखित्ता उप्पिं तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता 5 सव्वअंजणमाया अच्छा सण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकड-च्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोय पासाईया दरिसणीया अभिरुवा पडिरूवा । ३३८. नन्दीश्वरवर द्वीप के चक्रवाल- विष्कम्भ (मंडल) के ठीक बीचोबीच चारों दिशाओं में चार अंजनपर्वत हैं। जैसे- (१) पूर्वी अंजनपर्वत, (२) दक्षिणी अंजनपर्वत, (३) पश्चिमी अंजनपर्वत, (४) उत्तरी अंजनपर्वत । तं जहा - पुरथिमिल्ले अंजणगपव्वते, दाहिणिल्ले अंजणगपव्वते, उनकी ऊँचाई चौरासी हजार योजन और भूमितल में गहराई एक योजन है। भूमि पर उनका 5 योजन विस्तार है। विस्तार दस हजार योजन है । तदनन्तर थोड़ी-थोड़ी मात्रा से हीन होता हुआ ऊपरी भाग में एक हजार 5 चतुर्थ स्थान फ Jain Education International (475) 2 95 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55555 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 59595959 952 For Private & Personal Use Only Fourth Sthaan 卐 卐 கு***தமிழ******ழ*தமிழ**தமிழ************* 卐 www.jainelibrary.org

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