Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 560
________________ 5555555555555555555555555555555555558 के मूल में भूमि पर उन अंजनपर्वतों की परिधि इकतीस हजार छह सौ तेईस (३१,६२३) योजन और ऊपरी भाग में तीन हजार एक सौ बासठ (३,१६२) योजन की है। __ वे मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और अन्त में सबसे पतले हैं। गोपुच्छ के आकार वाले हैं। वे + सभी ऊपर से नीचे तक अंजनरत्नमयी (कृष्ण वर्ण) है, स्फटिक के समान स्वच्छ और पारदर्शी, चिकने, चमकदार, शाण पर घिसे हुए से मृदुल, प्रमार्जनी से साफ किये सरीखे, रजरहित, निर्मल, वेदाग, 卐 निष्कण्टक, निरावरण छाया वाले, प्रभायुक्त अपनी किरणों से दूसरों को प्रकाशित करने वाले, मन को प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय, कमनीय और अतीव रमणीय हैं। 338. In the exact center of chakraval vishkambh (circular area) of $1 Nandishvaravar Dveep there are four Anjan mountains in four directions—(1) Eastern Anjan Parvat, (2) Southern Anjan Parvat, (3) Western Anjan Parvat, and (4) Northern Anjan Parvat. Their height is eighty four thousand Yojans (a unit of eight miles) and $depth from the ground level is one Yojan. Their expanse on the land is ten thousand Yojans. With gradual reduction it becomes one thousand Yojans at the top. Their circumference at the base on ground level is thirty one thousand six hundred twenty three (31,623) Yojans (a unit of eight miles) and at the top it is three thousand one hundred sixty two (3,162) Yojans. They are large at the base, lesser at the middle and least at the top. They are of the shape of tail of a cow. From top to bottom they are anjanaratnamayi (of the colour of a black gem), clear and transparent like rock crystal, smooth, shining, brilliant as if polished on a grinding wheel and rubbed with a soft cloth, dust-free, spotless, thorn-less (without any fi sharp outcrops), with a clean shadow, radiant, enlightening, delightful, \i attractive, enchanting and extremely pleasing in appearance. ____३३९. तेसिं णं अंजणगपव्ययाणं उवरि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता। तेसिं णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि सिद्धायतणा पण्णत्ता। ते णं सिद्धायतणा एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, बावत्तरि जोयणाई उड्डे उच्चत्तेणं।। तेसिं णं सिद्धायतणाणं चउदिसिं चत्तारि दारा पण्णता, तं जहा-देवदारे, असुरदारे, णागदारे, सुवण्णदारे। तेसु णं दारेसु चउबिहा देवा परिवसंति, तं जहा-देवा, असुरा, णागा, सुवण्णा। तेसिं णं दाराणं पुरओ चत्तारि मुहमंडवा पण्णत्ता। तेसिं णं मुहमंडवाणं पुरओ चत्तारि है पेच्छाघरमंडवा पण्णत्ता। तेसिं णं पेच्छाघरमंडवाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि वइरामया अक्खाडगा ॐ पण्णत्ता। तेसिंणं वइरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि मणिपेढियातो पण्णत्ताओ। तासिं स्थानांगसूत्र (१) (476) Sthaananga Sutra (1) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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