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for cooking food, and (4) nishthannakatha-talk about ingredients and $ money utilized in cooking food. ___ २४४. (३) देसकहा चउब्विहा पण्णत्ता, तं जहा-देशविहिकहा, देसविकप्पकहा, देसच्छंदकहा, देसणेवत्थकहा।
२४४. (३) देशकथा चार प्रकार की है-(१) देशविधिकथा-विभिन्न देशों में प्रचलित विधिविधानों की चर्चा। (२) देशविकल्पकथा-विभिन्न देशों के अन्न की तथा परकोटे आदि की चर्चा ।
(३) देशच्छन्दकथा-विभिन्न देशों के विवाहादि सम्बन्धी रीति-रिवाजों की चर्चा। (४) देशनेपथ्यकथा। विभिन्न देशों के वेश-भूषादि की चर्चा।
244. (3) Desh-katha (talk about country) is of four kinds—(1) deshvidhi-katha—talk about customs and laws prevalent in various countries, (2) desh-vikalp-katha-talk about food grains and boundary walls etc. in various countries, (3) deshachchhand-katha-talk about customs and rituals of marriage and other such occasions in various countries, and (4) desh-naipathya-katha--talk about dresses and other
adornments in various countries. म २४५. (४) रायकहा चउबिहा पण्णत्ता, तं जहा-रण्णो अतियाणकहा, रण्णो णिज्जाणकहा, रण्णो बलवाहणकहा, रण्णो कोसकोट्ठागारकहा।
२४५. (४) राजकथा चार प्रकार की है-(१) राज-अतियान कथा-राजा के नगर-प्रवेश के ॐ समारम्भ की चर्चा। (२) राज-निर्याण कथा-राजा के युद्ध आदि के लिए नगर से निकलने की चर्चा।
(३) राज-बल-वाहन कथा-राजा के सैन्य, सैनिकों और वाहनों की चर्चा। (४) राज-कोष-कोष्ठागार ॥ कथा-राजा के खजाने और धान्य-भण्डार आदि की चर्चा ।
245. (4) Raj-katha (talk about king) is of four kinds—(1) raj-atiyan- i katha-talk about celebrations of a king's entry in the city, (2) raj. niryan-katha-talk about a king's departure from the city for a war or other purpose, (3) Raj-bal-vahan-katha-talk about a king's army, soldiers and vehicles, and (4) raj-kosh-koshtagar-katha-talk about a king's treasury and granary etc. कथा-पद KATHA-PAD (SEGMENT OF RELIGIOUS DISCOURSE)
२४६. चउब्विहा कहा पण्णत्ता, तं जहा-अक्खेवणी, विक्खेवणी, संवेयणी, णिवेदणी।
२४६. कथा-(धर्मकथा) चार प्रकार की है-(१) आक्षेपणी कथा-ज्ञान, दर्शन आदि के प्रति के आकर्षण उत्पन्न करने वाली कथा। (२) विक्षेपणी कथा-पर-मत का कथन कर स्व-मत की स्थापना - * करने वाली कथा। (३) संवेदनी कथा-शरीर की अशुचिता आदि दिखाकर वैराग्य उत्पन्न करने वाली ॥ +कथा, और (४) निर्वेदनी कथा-कर्मों के फल बतलाकर अशुभ कर्मों से विरक्ति उत्पन्न करने वाली कथा।
स्थानांगसूत्र (१)
(424)
Sthaananga Sutra (1)
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