Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 509
________________ lifetime bear fruits during this life, and (4) bad karmas acquired during 441 the past lifetime bear fruits during the next life. (1) Good karmas acquired during this lifetime bear pleasant fruits (happiness) during this very life, (2) good karmas acquired during this lifetime bear pleasant fruits during the next life, (3) good karmas acquired during the past lifetime bear pleasant fruits during this life and (4) good karmas acquired during the past lifetime bear pleasant fruits during the next life. विवेचन-पाप कर्मों का फल बताकर उनसे विरक्ति पैदा करने वाली निर्वेदनी कथा का दो प्रकार से निरूपण किया गया है। प्रथम प्रकार में पापानुबंधी कर्मों का फल भोगने के चार प्रकार बताये हैं। उदाहरण रूप में जैसे-(१) चोर, हत्यारे आदि इस जन्म में पाप कर्म करके इसी जन्म में कारागार आदि की सजा भोगते हैं। (२) कितने ही शिकारी आदि इस जन्म में पाप बन्ध कर नरकादि परलोक में दुःख भोगते हैं। (३) कितने ही प्राणी पूर्वभवोपार्जित पाप कर्मों का दुष्फल इस जन्म में गर्भकाल से लेकर ॐ मरण तक दारिद्र्य, व्याधि आदि के रूप में भोगते हैं। (४) पूर्वभव में उपार्जन किये गये अशुभ कर्मों से म उत्पन्न काक, गिद्ध आदि जीव माँस-भक्षणादि करके पुनः पाप कर्मों को बाँधकर नरकादि में दुःख भोगते हैं। द्वितीय प्रकार में पुण्यानुबन्धी अर्थात् पुण्य कर्म का फल भोगने के चार प्रकार बताये हैं। उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-(१) तीर्थंकरों आदि को दान देने वाला दाता इसी भव में विशेष पुण्यों का उपार्जन कर स्वर्णवष्टि आदि पंच आश्चर्यों को प्राप्त कर पण्य का फल भोगता है। (२) साध आदि सत्पुरुष इस लोक में संयम की साधना के साथ-साथ पुण्य कर्म को बाँधकर परभव में स्वर्गादि के सुख भोगते हैं। (३) परभव में उपार्जित पुण्य के फल को तीर्थंकरादि इस भव में भोगते हैं। (४) पूर्वभव में उपार्जित शुभ कर्मों से जैसे तीर्थंकर बनने वाली दिव्य आत्माएँ स्वर्ग में जाकर (वहाँ पर फल नहीं प्राप्त ॥ कर) मनुष्य भव में आकर उनका फल भोगते हैं। (विशेष वर्णन देखें हिन्दी टीका, पृष्ठ ७८०) ___Elaboration-The nirvedini-katha, that inspires detachment by showing the bitter fruits of demeritorious karmas, has been explained two ways. Stated at first are the four ways of suffering fruits of demeritorious karmas. The examples of said four ways are-(1) Thieves, murderers and other criminals suffer punishment like imprisonment for the sinful deeds committed by them during this life time. (2) Many hunters acquire bondage of demeritorious karmas during this birth and suffer during next birth in places like hell. (3) Many beings suffer poverty, disease and other miseries during this birth as a consequence of bondage of demeritorious karmas from past birth. (4) Born as carrion eaters like vulture and crow due to sinful actions in the past birth, many beings further indulge in sinful deeds like killing and consuming meat to चतुर्थ स्थान (427) Fourth Sthaan EFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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