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होता है । ( ३ ) पूर्वगत - इसके अन्तर्गत चौदह पूर्वों का समावेश है । ( ४ ) अनुयोग - इसमें तीर्थंकरादि शलाका पुरुषों के चरित्र वर्णित हैं।
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131. Drishtivada (the twelfth Anga of the Dvadashangi) is of four 5 kinds (parts)—(1) Parikarma-reading this gives the ability to 5 understand the Sutra (text). (2) Sutra — reading this imparts the knowledge of dravya-paryaya ( entities and modes ). ( 3 ) Purvagat - this includes all the fourteen Purvas (the subtle canon). (4) Anuyoga-This contains the biographies of Tirthankars and other Shalaka Purush (epoch makers).
विवेचन - शास्त्रों में अन्यत्र दृष्टिवाद के पाँच भेद बताये गये हैं- (१) परिकर्म, (२) सूत्र,
(३) प्रथमानुयोग, (४) पूर्वगत, और ( ५ ) चूलिका । यहाँ चतुर्थ स्थान होने के कारण चार भेद ही बताये हैं। परिकर्म में गणित सम्बन्धी करण- सूत्रों का वर्णन है तथा इसके पाँच भेद हैं- ( १ ) चन्द्रप्रज्ञप्ति, (२) सूर्यप्रज्ञप्ति, (३) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, (४) द्वीप - सागरप्रज्ञप्ति, और (५) व्याख्याप्रज्ञप्ति ।
प्रायश्चित्त- पद PRAYASHCHIT-PAD (SEGMENT OF ATONEMENT)
१३२. चउव्विहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा - णाणपायच्छित्ते, चरित्तपायच्छित्ते, वियत्तकिच्चपायच्छित्ते ।
दंसणपायच्छित्ते,
१३२. प्रायश्चित्त चार प्रकार का है - ( १ ) ज्ञान - प्रायश्चित्त, (२) दर्शन - प्रायश्चित्त, (३) चारित्र - प्रायश्चित्त, (४) व्यक्तकृत्य - प्रायश्चित्त ।
132. Prayashchit ( atonement) is of four kinds – (1) jnana-prayashchit, (2) darshan-prayashchit, (3) chaaritra-prayashchit, and (4) vyakt-krityaprayashchit.
विवेचन-संस्कृत टीका में इनका दो प्रकार से निरूपण मिलता है
(१) प्रथम प्रकार - ज्ञान के द्वारा चित्त की शुद्धि और पापों का विनाश होता है, अतः ज्ञान ही प्रायश्चित्त है ! इसी प्रकार दर्शन और चारित्र के द्वारा चित्त की शुद्धि और पापों का विनाश होता है, अतः वे ही प्रायश्चित्त हैं । व्यक्त-कृत्य प्रायश्चित्त अर्थात् गीतार्थ साधु जागरूक रहकर, यतनापूर्वक जो कार्य करता है, वे पाप - विनाशक होते हैं। अतः वह स्वयं प्रायश्चित्त है।
चतुर्थ स्थान
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Elaboration-Other scriptures mention of five parts of Drishtivada(1) Parikarma, (2) Sutra, (3) Prathamanuyoga, (4) Purvagat, and (5) Chulika. As here place number four has been narrated, only four i parts have been mentioned here. The Parikarma part describes mathematical formulae and related details. It has five sections(1) Chandra-prajnapti, (2) Surya-prajnapti, ( 3 ) Jambudveep-prajnapti, (4) Dveep-sagar-prajnapti, and (5) Vyakhya-prajnapti.
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Fourth Sthaan
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