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卐 231. Nirgranth ( Jain male ascetic) and nirgranthini (Jain female
5 ascetic) wear clothes for three reasons (1) hri-pratyaya (to avoid
5 immodesty ), (2) jugupsa - pratyaya (to avoid censure and revulsion), and
फ्र
(3) parishah-pratyaya (to avoid afflictions like cold).
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आत्म-रक्षक - पद ATMARAKSHAK-PAD (SEGMENT OF SPIRITUAL PROTECTORS)
२३२. तओ आयरक्खा पण्णत्ता, तं जहा - धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएत्ता भवति, तुसिणीए वा सिया, उट्ठित्ता वा आयाए एगंतमंतमवक्कमेज्जा ।
२३२. तीन आत्मरक्षक हैं- (१) अकरणीय कार्य में प्रवृत्त व्यक्ति को धर्म कार्य में प्रवृत्ति की प्रेरणा
देने वाला, (२) प्रेरणा न देने की स्थिति में मौन धारण करने वाला, (३) मौन और उपेक्षा न करने की स्थिति में वहाँ से उठकर एकान्त में जाने वाला ।
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5 विकट- दत्ति-पद VIKAT-DATTI-PAD (SEGMENT OF POTABLE WATER)
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२३३. णिग्गंथस्स णं गिलायमाणस्स कप्पंति तओ वियडदत्तीओ पडिग्गाहित्तते, तं जहाउक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ।
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232. There are three atmarakshaks (spiritual protectors) – ( 1 ) A
person who inspires and steers someone indulging in misdeeds towards religious activities. (2) A person who remains silent when he is unable to
फ्र
२३३. ग्लान (रुग्ण) निर्ग्रन्थ साधु को तीन प्रकार की दत्तियाँ (प्रासुक जल) लेनी कल्पती हैं
(१) उत्कृष्ट दत्ति - पर्याप्त जल या कलमी चावल की कांजी । (२) मध्यम दत्ति - अनेक बार किन्तु अपर्याप्त
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फ जल और साठी चावल की कांजी। (३) जघन्य दत्ति- एक बार पी सके उतना जल, तृण धान्य की कांजी
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inspire and guide. (3) A person who retires into solitude when he is unable even to avoid or remain silent.
फ्र या उष्ण जल ।
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卐 233. It is mandatory for a glaan (ailing) nirgranth to accept three 5 kinds of datti (potable water ) – (1) Utkrisht datti (maximum quantity of
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water) ample quantity of water or good quality rice soup. (2) Madhyam
datti (average quantity of water)--numerous servings of meager
quantity of water or average quality rice soup. (3) Jaghanya datti
(minimum quantity of water)-just one serving of meager quantity of
water, husk soup or boiled water.
विवेचन - धारा टूटे बिना एक धार में जितना जल आदि मिले, उसे एक दत्ति कहते हैं। जितने जल
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से सारा दिन निकल जाय, उतना जल लेना उत्कृष्ट दत्ति है। उससे कम लेना मध्यम दत्ति है तथा एक
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5 बार ही प्यास बुझ सके, इतना जल लेना जघन्य दत्ति हैं। (संस्कृत टीका, भाग २, पृष्ठ २३५)
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स्थानांगसूत्र (१)
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Sthaananga Sutra (1)
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