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जिन - पद JINA-PAD (SEGMENT OF JINA)
३९४. तओ जिणा पण्णत्ता, तं जहा - ओहिणाणजिणे, मणपज्जवणाणजिणे, केवलणाणजिणे । ३९५. तओ केवली पण्णत्ता, तं जहा - ओहिणाणकेवली, मणपज्जवणाणकेवली, केवलणाणकेवली ३९६. तओ अरहा पण्णत्ता, तं जहा - ओहिणाणअरहा, मणपज्जवणाणअरहा, केवलणाण अरहा
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३९४. जिन तीन प्रकार के होते हैं - (१) अवधिज्ञानी जिन, (२) मनः पर्यवज्ञानी जिन, और (३) केवलज्ञानी जिन । ३९५. केवली तीन प्रकार के होते हैं - (१) अवधिज्ञानी केवली, (२) मनः पर्यवज्ञान केवली, और (३) केवलज्ञान केवली । ३९६. अर्हन्त तीन प्रकार के होते हैं(१) अवधिज्ञानी अर्हन्त, (२) मनः पर्यवज्ञानी अर्हन्त, और (२) केवलज्ञानी अर्हन्त ।
(यहाँ अतीन्द्रियज्ञान की अपेक्षा तीनों का कथन है। जो अवधिज्ञानी और मनः पर्यवज्ञानी उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त करते हैं यहाँ उनका कथन है ।)
फ्र
लेश्या - पद LESHYA-PAD (SEGMENT OF COMPLEXION OF SOUL)
३९७. तओ लेसाओ दुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा । ३९८. तओ लेसाओ सुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा । ३९९. तओ लेसाओ दोग्गतिगामिणीओ, संकिलिट्ठाओ अमणुण्णाओ, अविसुद्धाओ, अप्पसत्थओ, सीतलुक्खाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- कण्हलेसा, णीणलेसा, काउलेसा । ४००. तओ लेसाओ सोगतिगामिणीओ, असंकिलिट्ठाओ मणुण्णाओ, विसुद्धाओ, पसत्थाओ, णिद्धण्हाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा । ]
i तृतीय स्थान
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३९७. तीन लेश्याएँ दुरभिगंध ( दुर्गन्धयुक्त पुद्गलों) वाली होती हैं- (१) कृष्णलेश्या, (२) नीललेश्या, और (३) कापोतलेश्या । ३९८. तीन लेश्याएँ सुरभिगंध (सुगन्ध ) वाली होती हैं-(१) तेजोलेश्या, (२) पद्मलेश्या, और (३) शुक्ललेश्या । ३९९. [ पहली तीन लेश्याएँ, जीव को दुर्गति में ले जाने वाली; संक्लिष्ट - (क्लेशयुक्त परिणाम वाली), अमनोज्ञ अविशुद्ध, अप्रशस्त और शीत - रूक्ष होती हैं । ४००. अन्तिम तीन लेश्याएँ जीव को सुगति में ले जाने वाली; असंक्लिष्ट, मनोज्ञ, विशुद्ध, प्रशस्त और स्निग्ध-उष्ण होती हैं ।]
(307)
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394. Jina (the conqueror of attachment and aversion) are of three kinds—(1) avadhi-jnani jina, (2) manahparyava- jnani jina, and (3) kevaljnani jina. 395. Kevali (the omniscient) are of three kinds-(1) avadhijnani kevali, (2) manahparyava-jnani kevali, and (3) keval-jnani kevali. 396. Arhant (Tirthankar) are of three kinds – (1) avadhi- jnani Arhant, फ्र ; (2) manahparyava- jnani Arhant, and (3) keval - jnani Arhant. (This statement is in context of super-natural powers. This includes the avadhi-jnanis and manahparyava-jnanis who attain keval-jnana 5 ( omniscience) during the very same birth.)
Third Sthaan
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