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अध्ययन सार
चतुर्थ स्थान में चार की संख्या से सम्बन्ध रखने वाले अनेक प्रकार के विषय संकलित हैं। यद्यपि इस स्थान में सैद्धान्तिक, भौगोलिक, प्राकृतिक और मनोविश्लेषक आदि अनेक विषयों के चार-चार भंगों की चतुर्भंगियाँ वर्णित हैं। इनमें वृक्ष, फल, मेघ, घट, वस्त्र, गज, अश्व आदि व्यावहारिक प्रतीकों के माध्यम से पुरुषों की मनोवृत्तियों का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। यह प्रतीकात्मक वर्णन रोचक होने के साथ ही भिन्न-भिन्न प्रकार की जीवन-शैली का दिग्दर्शन भी कराता है। इसमें वर्णित वृक्ष, फल, घट, मेघ आदि को उपमान बनाकर मानव (पुरुष) को उपमेय बनाया गया है और उनके द्वारा मनुष्यों के व्यवहार और स्वभाव-शील तथा आन्तरिक गुणों का उद्घाटन किया है। इन चतुर्भंगियों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि जैनदर्शन प्रत्येक वस्तु के विषय में अनेकांतदृष्टि से, विविध पक्षों पर चिन्तन करता है ।
चतुर्थ स्थान
अध्ययन का प्रारम्भ अन्तक्रिया के वर्णन से होता है । अन्तक्रिया के चार प्रकारों का वर्णन करते हुए प्रथम अन्तक्रिया में भरत चक्री का, द्वितीय अन्तक्रिया में गजसुकुमाल का, तीसरी में सनत्कुमार चक्री का और चौथी में मरुदेवी का दृष्टान्त दिया गया है।
विकथा, कथापद, कषायपद में उनके प्रकारों का दृष्टान्त - सहित वर्णन कर उनमें वर्तमान जीवों के दुर्गति-सुगतिगमन का वर्णन बड़ा उद्बोधक है।
चार प्रकार के पुत्र व चार प्रकार के पुरुषों के वर्णन बहुत रोचक और ज्ञानवर्द्धक हैं। टीकाकार ने उनसे सम्बन्धित अनेक दृष्टान्तों का संकेत किया है।
भौगोलिक वर्णन में जम्बूद्वीप, धातकीषण्ड और पुष्करवरद्वीप आदि का वर्णन है। नन्दीश्वरद्वीप का विस्तृत वर्णन तो चित्त को चमत्कृत करने वाला है।
सैद्धान्तिक वर्णन में महाकर्म- अल्पकर्म वाले निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी एवं श्रमणोपासक - श्रमणोपासका का ध्यान -पद में चारों ध्यानों के भेद-प्रभेदों का वर्णन मननीय है।
साधुओं की दुःखशय्या और सुखशय्या के चार-चार प्रकार प्रत्येक साधक के लिए बड़े उद्बोधक हैं। आचार्य और अन्तेवासी के प्रकार भी उनकी मनोवृत्तियों के परिचायक हैं।
यदि संक्षेप में कहा जाय तो यह स्थान ज्ञान-सम्पदा एवं लोकानुभव का विशाल भण्डार है।
| चतुर्थ स्थान
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Fourth Sthaan
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