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ॐ
चित्र परिचय १२ ।
Illustration No. 12
वाचनीय-अवाचनीय 8 (१) गुरु सभी शिष्यों को ज्ञान व विद्या दान करते हैं। परन्तु जो विनयशील शिष्य होते हैं, वे ज्ञान 8 के पात्र होते हैं, वे शीघ्र ही ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। उन पर विद्या देवता भी शीघ्र प्रसन्न होती है। जो ॐ अहंकारी और बातूनी होते हैं, वे ज्ञानी गुरु से भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते। वे ज्ञान के अपात्र होते हैं। ॐ विद्या देवता उन पर विमुख रहती है।
(२) जो शिष्य व छात्र इन्द्रिय-संयमी और खाने-पीने के लोलुप नहीं होते, उन्हें गुरु द्वारा प्रदत्त a ज्ञान शीघ्र ही प्राप्त होता है। किन्तु जो खाने-पीने के लोभी व इन्द्रिय-विषयों में आसक्त रहते हैं उनको ॐ गुरु द्वारा प्रदत्त ज्ञान व्यर्थ ही जाता है। वे रसलोलुप विद्या प्राप्त नहीं कर सकते।
(३) जो छात्र व विद्यार्थी गुरु के अनुशासन में रहते हैं। परस्पर प्रेम और सद्भावपूर्वक पढ़ते हैं। अध्यापक का सन्मान करते हैं। वे वास्तव में विद्या के पात्र होते हैं। किन्तु जो आपस में कलह, लड़ाई 0 करते रहते हैं, गुरुजनों का अनुशासन नहीं मानते वे ज्ञान-प्राप्ति के योग्य नहीं होते। उन पर कभी विद्या देवता प्रसन्न नहीं होती। चित्र में ज्ञान के पात्र व अपात्र शिष्यों की वृत्तियों का दिग्दर्शन कराया है।
-स्थान ३, सूत्र ३५८-३५९
VAACHANIYA-AVAACHANIYA (1) A guru imparts knowledge and learning to all his disciples. The modest ones are deserving and they acquire knowledge soon. The goddess of learning is also soon pleased with them. The conceited and insolent cannot acquire knowledge even from a learned guru. They are undeserving and the goddess of learning is also averse to them.
(2) The disciples who are not given to special liking for tasty food and command control over senses, soon acquire knowledge from the guru. Those who are gourmet and obsessed with sensual pleasures waste the knowledge they acquire from the guru. Such obsessed ones fail to acquire knowledge.
(3) The disciples or students who follow the discipline prescribed by the guru and study with amity and goodwill among co-students are the genuinely deserving ones. Those who frequently quarrel among themselves and are not disciplined are the undeserving ones. The goddess of learning is never pleased with them. The illustrations shows the activities of the deserving and undeserving students.
-Sthaan 3, Sutra 358-359
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