Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 309
________________ 2 55 5 5 5 555 555555555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 52 255959555 5955555 5 5 55 5 5 5 5 5 55955555 5 5 5 5 5 5 595959595952 卐 45 अयोग्य) होते हैं - समय, प्रदेश और परमाणु । २१५. तीन अदाह्य ( ग्रहण करने के अयोग्य) होते हैं - समय प्रदेश और परमाणु। २१६. तीन अनर्ध (अर्ध भाग से रहित ) होते हैं - समय, प्रदेश और परमाणु २१७. तीन अमध्य (मध्य भाग से रहित) होते हैं - समय, प्रदेश और परमाणु । २१८. तीन अप्रदेशी (प्रदेशों से रहित) होते हैं - समय, प्रदेश और परमाणु । २१९. तीन अविभाज्य (विभाजन के अयोग्य) हैंसमय, प्रदेश और परमाणु । 212. Three things are achchhedya (cannot be pierced impenetrable)— ( 1 ) Samaya (smallest fraction of time ), ( 2 ) pradesh (smallest fraction of space; space-point) and (3) paramanu (smallest fraction of matter; ultimate particle) 213. In the same way three thingsh are abhedya (cannot be disintegrated), adahya (cannot be burnt ) f agrahya (cannot be taken or confined), anardh (cannot be halved) amadhya (without a center or middle), and apradeshi (without sections) For example three things are abhedya (cannot be disintegrated) Samaya, pradesh and paramanu. 214. Three things are adahya (cannot be burnt ) — Samaya, pradesh and paramanu. 215. Three things are! agrahya (cannot be taken or confined ) — Samaya, pradesh andr paramanu. 216. Three things are anardh (cannot be halved) – Samaya pradesh and paramanu. 217. Three things are amadhya (without a center or middle ) — Samaya, pradesh and paramanu. 218. Three thingsh are apradeshi (without sections ) — Samaya, pradesh and paramanu. 2195 Three things are avibhajya (indivisible ) — Samaya, pradesh and paramanu. दुःख - पद DUHKHA-PAD (SEGMENT OF MISERY) २२०. अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे गोयमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी-विं भया पाणा समणाउसो ? गोयमादी समणा णिग्गंथा समणं भगवं महावीरं उवसंकमंति, उवसंकमित्ता वंदंति णमंसंति, प्र वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी—णो खलु वयं देवाणुप्पिया ! एयम जाणामो वा पासामो वा । तं जर्दि णं देवाप्पिया ! एयम णो गिलायंति परिकहित्तए, तमिच्छामो णं देवाणुप्पियाणं अंतिए एयम जाणित्तए । फ अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे गोयमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी - दुक्खभया पाणा समणाउसो ! तृतीय स्थान से णं भंते ! दुक्खे केण कडे ? जीवेणं कडे पमादेणं । णं भंते! दुक्खे कहं वेइज्जति ? अप्पमाएणं । २२०. श्रमण भगवान महावीर ने गौतम आदि श्रमण निर्ग्रन्थों को आमंत्रित करके इस प्रकार कहा- "आयुष्मन् ! श्रमणो ! जीव किससे भय खाते हैं ? " (237) Jain Education International 5தமிழதததததகக கருத Third Sthaan For Private & Personal Use Only *********************************தமிழின் www.jainelibrary.org

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