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level) and apratham Samaya ayogi Kevali ksheen-kashaya Vitarag samyam (discipline with detachment and extinct passions at omniscience level devoid of karmic association any time after the first Samaya of attaining the level). Also charam Samaya ayogi Kevali ksheen-kashaya Vitarag samyam (discipline with detachment and extinct passions at omniscience level devoid of karmic association during the ultimate Samaya before crossing the level) and acharam Samaya ayogi Kevali ksheen-kashaya Vitarag samyam (discipline with detachment and extinct passions at omniscience level devoid of karmic association any time prior to the ultimate Samaya before crossing the level).
विवेचन - अहिंसादि पंच महाव्रतों को धारण करना, मन, वचन, काय को वश में रखना तथा पाँचों इन्द्रियों के विषयों को जीतने की साधना को संयम कहा गया है। उसके मुख्य रूप से दो भेद कहे हैं(१) सरागसंयम, और ( २ ) वीतरागसंयम । दसवें गुणस्थान तक राग कषाय विद्यमान रहता है, अतः वहाँ तक के संयम को सरागसंयम और उससे ऊपर के गुणस्थानों में राग का उदय या सत्ता का अभाव हो जाने से वीतरागसंयम होता है। राग भी दो प्रकार का होता है - सूक्ष्म और बादर (स्थूल) । दशवें गुणस्थान में सूक्ष्मराग रहता है, अतः वहाँ तक सूक्ष्मसम्परायसंयम (जिसमें केवल लोभ कषाय का अंश शेष रहता हो) और छठे गुणस्थान से नवम गुणस्थान तक के संयम को बादरसम्परायसंयम कहते हैं 5 (इसमें संज्वलन कषाय का उदय स्थूल रूप से रहता है। पूर्ववर्ती संयम से यह विशुद्धतर होता है)। नवम गुणस्थान के अन्तिम समय में बादर राग का अभाव होने पर दशम गुणस्थान में प्रवेश करने वाले जीवों के प्रथम समय के संयम को प्रथमसमय सूक्ष्मसम्पराय सरागसंयम कहते हैं और उसके सिवाय शेष 5 समयवर्ती जीवों के संयम को अप्रथमसमय सूक्ष्मसम्पराय सरागसंयम कहा जाता है। इसी प्रकार
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गुणस्थान के अन्तिम समय के संयम को चरम और उससे पूर्ववर्ती संयम को अचरम सूक्ष्मसम्पराय सरागसंयम कहा है। आगे सभी सूत्रों में प्रतिपादित प्रथम और अप्रथम तथा चरम और अचरम का भी फ इसी प्रकार अर्थ समझना चाहिए।
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उपशम श्रेणी चढ़ने वाले जीव के संयम को विशुद्धयमान और उपशम श्रेणी करके नीचे गिरने वाले 5 के संयम को संक्लिश्यमान कहा गया है।
कषायों का क्षय करके बारहवें गुणस्थान में प्रवेश करने के प्रथम समय में और शेष समयों तथा फ्र चरम समय और उससे पूर्ववर्ती अचरम समय वाले वीतराग छद्मस्थ जीवों के वीतराग संयम होता है। इस संयम वाला जीव अवश्य ही मोक्ष जाता है।
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Elaboration-Samyam or ascetic-discipline includes accepting five great vows; having control over mind, speech and body; and endeavour towards rising above sensual indulgences. It has two main categories5 (1) saraag samyam or discipline with attachment, and ( 2 ) vitaraag 5 samyam or discipline with detachment. Up to the tenth Gunasthaan (level
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Sthaananga Sutra (1)
स्थानांगसूत्र ( १ )
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(72)
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