Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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'बालरामायण' की प्रस्तावना में आचार्य राजशेखर ने उल्लेख किया है कि उनके षट् प्रबन्ध हैं।1 भूगोल विषयक 'भुवनकोश' नामक ग्रन्थ के विषय में उन्होंने 'काव्यमीमांसा' में स्वयं लिखा है। 'काव्यमीमांसा' के 17वें अध्याय में कवियों के ज्ञान हेतु आचार्य राजशेखर ने भारतवर्ष का संक्षिप्त भूगोल प्रस्तुत किया और कहा है कि जो अधिक जानना चाहे मेरे 'भुवनकोश' को देखे किन्तु वह ग्रन्थ अब अप्राप्त है। यद्यपि तात्कालिक भौगोलिक ज्ञान के लिए 'काव्यमीमांसा' पर्याप्त है।
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'हरविलास' महाकाव्य के सम्बन्ध में आचार्य राजशेखर तो मौन हैं किन्तु जैन आचार्य हेमचन्द्र ने 'काव्यानुशासन' में तथा उज्जवलदत्त ने 'उणादिसूत्रवृत्ति' में इस ग्रन्थ की चर्चा की है। 3 किन्तु यह ग्रन्थ उपलब्ध न होने से इसके सम्बन्ध में स्पष्ट प्रमाण देना संभव नहीं है।
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आचार्य राजशेखर ने 900 ई० के लगभग महेन्द्रपाल के समय में 'कर्पूरमञ्जरी' की रचना की। इस नाटिका में चण्डपाल और कुन्तल देश की राजकुमारी कर्पूरमञ्जरी की प्रणयकथा वर्णित है। प्राकृत भाषा में रचित होने के कारण यह ग्रन्थ 'सट्टक' कहलाया । जिस प्रबन्ध में नाटिका का पूर्ण अनुकरण
1. " यद्यस्ति स्वस्ति तुभ्यं भव पठनर्रुचिर्विद्धि नः षट् प्रबन्धान् --
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" इत्थं देशविभागो मुद्रामात्रेण सूत्रितः सुधीयाम् । यस्तु जिगीषत्यधिकं पश्यतु मद्भुवनकोशमसौ ॥"
काव्यमीमांसा
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(क) स्वनामाङ्कता यथा राजशेखरस्य हरविलासे।" " 'आशीर्यथा हरविलासे
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म श्रुतीनां मुखमक्षरम् प्रसीदतु सतां स्वान्तेष्वेकं त्रिपुरुषीमयम् ॥"
'सुजनदुर्जनस्वरूपं यथा हरविलासे
इतस्ततो भवन् भूरि न पतेत् पिशुनः शुनः अवदाततया किञ्च न भेदो हसतः सतः ॥"
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- " ( बालरामायण, 1-11)
(ख) "दशाननक्षिप्तखुरप्रखण्डितः क्वचिद् गतार्थो हरदीधितिर्यथा । - इति हरविलासे"
(सप्तदश अध्याय, पृष्ठ 248 )
(काव्यानुशासन हेमचन्द्र पृष्ठ 435 )
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(उणादिसूत्रवृत्ति - उज्जवलदत्त, 2 - 28 )