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पाठ -3. वर्तमानकाल - तृतीयपुरुष तृतीय पुरुष के प्रत्यय (३/१३९, १४२) एकवचन
बहुवचन इ, ए, 2 ति- ते (ति-ते) | अन्ति,न्ते, इरे, (अन्ति- अन्ते)
भणए
1. जिस धातु के अन्त में 'अ' हो उसे ही 'ए' प्रत्यय लगाया जाता है । उदा. भण् अ = भण ए = भणए, भणइ, भणेइ ।
तृतीय पुरुष के रूप एकवचन
बहुवचन भणइ,
भणन्ति, भणन्ते, भणिरे, भणेइ,
भणेन्ति, भणेन्ते, भणेइरे,
4 भणिन्ति, भणिन्ते,भणइरे. 2. इन प्रत्ययों के प्रयोग प्राचीन कथाओं और चूर्णि आदि में बहुत जगह किये गये हैं। 3. पद के अन्दर रहेङ्-ञ्- ण-न् और म् का विकल्प से पूर्व के अक्षर पर अनुस्वार होता है।
अनुस्वार न हो तो, बाद के व्यंजन के वर्ग का अनुनासिक होता है । (१/२५,४०) उदा. हसंति-हसन्ति (हसन्ति), पंको-पङ्को-(पङ्कः), संझा-सञ्झा (सन्ध्या), संढो-सण्ढो (षण्ढः), चंदो-चन्दो-(चन्द्रः), कंपइ- कम्पइ (कम्पते) । संयुक्त व्यंजन के पहले दीर्घस्वर हो तो प्रयोगानुसार प्रायः ह्रस्व होता है । (१/८४) उदा. भण् ए = भणे न्ति = भणिन्ति, इसी तरह भणिन्ते । शब्द के अन्दर भी संयुक्त व्यंजन के पूर्व का स्वर ह्रस्व होता है । उदा. अंबं (आम्रम्) | मुणिंदो (मुनीन्द्रः) | निलुप्पलं (नीलोत्पलम्) अस्सं (आस्यम्) | नरिंदो (नरेन्द्रः) । पुज्जं (पूज्यम्) तित्थं (तीर्थम्) | चुण्णो (चूर्णः)
धातु आदर् (आ+दृ) आदर करना. निज्झर् (क्षि) क्षय होना. किण (क्री) खरीदना.
फास् । (स्पृश्- स्पर्श) स्पर्श जम्म् (जन्) उत्पन्न होना .
फरिस् । करना ,छूना. धुव् (धू) धूजाना, हिलाना.
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