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13. जिनके द्वारा चोरी की गई उनको राजा ने सजा दिलवाई । (दंड) 14. कुमार ने घर से निकलकर (अभिनिक्खम् ) सब का त्याग करके, बगीचे में आचार्य के पास संयम ग्रहण किया और बहुत कुमारों को भी ग्रहण करवाया । (गिण्ह्)
15. संयम में रहे साधु भगवन्त सुखपूर्वक दिन बिताते हैं । (जाव्) 16. जो भाइयों और मित्रों को परस्पर लड़ाता है (जुज्झ ) और वक्त पर मनुष्य के पास अपना मस्तक भी कटवाता है (छिंद), वह अदृष्ट ही है । 17. प्रसन्न रानी ने चोर को अपने मकान में ले जाकर सुन्दर भोजन करवाया, उसके बाद वस्त्र और आभूषण देकर छुट्टी दी ।
18. ज्ञातपुत्र समवसरण में बैठकर मनुष्यों और देवों को जन्म और मरण का कारण समझाते हैं । (जाण्-बोह)
19. सज्जन पुरुष कहते हैं कि पापकर्म जीवों को हमेशा संसारचक्र में घुमाते हैं । (भमाड)
20. सभी धर्मों का त्याग करके एक वीतराग देव की तू सेवा कर, वही सभी पापों से तुझे छुड़ायेगा । (मुय्)
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