Book Title: Aao Prakrit Sikhe Part 01
Author(s): Vijaykastursuri, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan
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कलाओ, चोवट]ि महिलागणे, सिप्पाणमेगसयं, एए तिन्नि पयाहियवाए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचइ, ततो पच्छा
लोगंतिएहिं देवेहिं संबोहिए संवच्छरियं दाणं दाऊण परिव्वइओ । 11. जिणमए एगादस अंगाणि, बारस उवंगाणि, छ छेयगंथा, दस पइन्नगाइ,
चत्तारि मूलसुत्ताइं, नंदिसुत्त-अणुओगदाराइं च दोणि त्ति पणचालीसा
आगमा संति । 12. भंते ! नाणं कइविहं पन्नत्तं, गोयमा ! नाणं पंचविहं पन्नत्तं तं जहा
मइनाणं, सुअनाणं ओहिनाणं, मणपज्जवनाणं, केवलनाणं च । 13. चत्तारि लोगपाला, सत्त य अणियाइं तिणि परिसाओ ।
एरावणो गइंदो, वज्जं च महाउहं तस्स (सक्कस्स) ।।2।। 14. बत्तीसं किर कवला, आहारो कुच्छिपूरओ भणिओ |
पुरिसस्स महिलाए, अट्ठावीसं मुणेयव्वा ।।3।। 15. अठ्ठावीसं लक्खा, अडयालीसं च तह सहस्साइं ।
सव्वेसिं जिणाणं, जईण माणं विणिदिटुं ।।4।। 16. पढमे न पढिआ विज्जा, बिईए न अज्जिअं धणं ।
तईए न तवो तत्तो, चउत्थे किं करिस्सए ।।5।। 17. सत्तो सद्दे हरिणो, फासे नागो रसे य वारियरो ।
किवणपयगो रूवे , भसलो गंधेण विणट्ठो ।।6।। 18. पंचसु सत्ता पंच वि, णट्ठा जत्थागहिअपरमठ्ठा ।
एगो पंचसु सत्तो, पजाइ भस्संतयं मूढो ||7|| 19. • कुरुजणवयहत्यिणाउरनरीसरो पढमं,
तओ महाचक्कवट्टिभोए महप्पहावो । जो बावत्तरिपुरवरसहस्सवरनगरनिगमजणवयवई,
बत्तीसारायवरसहस्साणुयायमग्गो || चउदसवररयणनवमहानिहि-चउसट्ठिसहस्सपवरजुवईण सुंदरवई चुलसीहयगयरहसयसहस्ससामी,
छन्नवइगामकोडिसामी आसी जो भारहमि भयवं ।। वेट्टओ ।।8।। 20. • तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया ।
___ संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे || रासानंदियं ।। युग्मम् ।।9।। • [ये दो स्तुतियाँ शान्तिनाथ भ. की हैं, वेड्ढओ (वेष्टकः), रासानंदिअयं
(रासानन्दितम्) ये दो छन्द विशेष के नाम हैं ]
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