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व्यधिकरण बहुव्रीहि कहते हैं । उदा. चक्कहत्थो भरहो (चक्रहस्तो भरतः) =
चक्कं हत्थे जस्स सो । - 20. इस समास के विग्रह में प्रथमा विभक्ति को छोड़कर सभी विभक्तियों का
प्रयोग होता है । द्वितीया - पत्तनाणो मुणी (प्राप्तज्ञानो मुनिः) = पत्तं नाणं जं सो तृतीया - जिअकामो थूलभद्दो (जितकामः स्थूलभद्रः) = जिओ कामो
जेण सो जिआरिगणो अजिओ (जितारिगणोऽजितः) = जिओ अरिगणो
जेण सो पंचमी - नट्ठदंसणो मुणी (नष्टदर्शनो मुनिः) = नटुं दंसणं जत्तो सो षष्ठी - सेअंबरा मुणिणो (वेताम्बराः मुनयः) = सेअं अंबरं जाणं ते
दिण्णवया साहवो (दत्तव्रताः साधवः) = दिण्णाइं वयाइं जेसिं ते सप्तमी - वीरनरो गामो (वीरनरो ग्रामः) = वीरा नरा जम्मि सो
कुद्धसीहा गुहा (क्रुद्धसिंहा गुफा) = कुद्धो सीहो जाए सा 21. निषेधार्थक अव्यय अ या अण का , वि-निर् आदि उपसर्ग का और स या
सह अव्यय का नाम के साथ समास के विशेषण के रूप में प्रयोग हो तो भी बहुव्रीहि समास होता है । उदा. अव्यय अ = अपुत्तो (अपुत्रः) = नत्थि पुत्तो जस्स सो
अणाहो (अनाथः) = नत्थि नाहो जस्स सो । अण् -अणुज्जमो पुरिसो (अनुद्यमः पुरुषः) = नत्थि उज्जमो जस्स सो
अणवज्जो मुणी (अनवद्यो मनिः) = नत्थि अवज्जं जस्स सो उपसर्ग वि - विरूवो जणो (विरूपो जनः) = विगयं रूवं जत्तो सो विरसं भोयणं (विरसं भोजनम्) = विगओ रसो जत्तो तं निर् -निद्दयो जणो (निर्दयो जनः) = निग्गआ दया जस्स सो
निराहारा कन्ना (निराहारा कन्या) = निग्गओ आहारो जीए सा अव्यय स - ससीसो आइरिओ विहरेइ (सशिष्य आचार्यो विहरति) = सह - सीसेहिं सह आइरिओ विहरेइ सो सपुत्तो पिआ गच्छइ (सपुत्रः पिता गच्छति) = पुत्तेहिं सह पिआ गच्छइ स.
अव्वईभाव (अव्ययीभाव) समास 22. नाम के साथ अव्यय जोड़ने से अव्ययीभाव समास बनता है, यह
समास नपुंसकलिंग एकवचन में होता है और अन्त में दीर्घस्वर हो तो
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