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ह्रस्वस्वर होता है । उदा. उव - उवसिद्धगिरि (उपसिद्धगिरि) = सिद्धगिरिणो समीवं = सिद्धगिरि
के पास अणु - अणुजिणं (अनुजिनम्) = जिणस्स पच्छा = जिन के पीछे जह - जहसत्तिं (यथाशक्ति) = सत्तिं अणइक्कमिअ = शक्ति अनुसार :
जहविहिं (यथाविधि) = विहिं अणइक्कमिअ = विधि अनुसार अहि (अधि) - अज्झपं (अध्यात्मम्) = अप्पम्मि इइ (आत्मनि इति) आत्मा के बारे में पइ . पइनयरं (प्रतिनगरम्) = नयरं नयरं ति = प्रत्येक नगर में
पइदिणं (प्रतिदिनम) = दिणं दिणं ति = प्रत्येक दिन, रोज पइघरं (प्रतिगृहम्) = घरे घरे त्ति = प्रत्येक घर में
7. एकसेस (एकशेष) समास स्वरूप सम्बन्धी 23. समान रूपवाले पदों का समास करते समय एक पद रहता (बचता) है
और अन्यपदों का लोप होता है, वह एकशेष समास कहलाता है । उदा. जिणा (जिनाः) = जिणो अ जिणो अ जिणो अ त्ति नेत्ताइं (नेत्रे) = नेत्तं च नेत्तं च त्ति
विरूप सम्बन्धी पिअरा (पितरौ) - माआ य पिआ य त्ति ससुरा (श्वशुरौ) - सासू अ ससुरो अ त्ति इस प्रकार संक्षेप में यहाँ समासों के नियम बोध हेतु दिये हैं । वास्तव में संस्कृत के नियमानुसार ही प्राकृत में भी समास बनते हैं । श्रीमद्हेमचन्द्रसूरीश्वरजी ने भी अपने आठवें अध्याय में (8-1-1) सूत्र में समास प्रकरण के लिए संस्कृत के समान की ही सिफारिश की है इसलिए विद्यार्थियों को संस्कृत के नियम ध्यान में रखकर ही समास करने चाहिए।
__ शब्दार्थ (पुंलिंग) अरुण (अरुण) सूर्य का सारथी, सूर्य, | एरावण (ऐरावण) इन्द्र का हाथी संध्याराग
ओह (ओघ) समूह अववाय (अपवाद) निन्दा, अपवाद किंनर (किन्नर) देवविशेष , व्यंतर देव आरंभ (आरम्भ) आरंभ, जीववध की जाति
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