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च. छ.
अट्ठहि, अट्ठहिं, अट्ठहिँ | नवहि, नवहिं, नवहिँ अट्ठण्ह, अट्ठण्हं
नवण्ह, नवण्हं अकृत्तो, अट्ठाओ, अट्ठाउ, | नवत्तो, नवाओ, नवाउ, अट्ठाहिन्तो, अट्ठासुन्तो नवाहिन्तो, नवासुन्तो अट्ठसु, अट्ठसुं
नवसु, नवसुं
स.
इस प्रकार दह, दस से अट्ठारस पर्यन्त के रूप जानने चाहिए । कइ (कति) = कितना ? के रूप बहवचन में ही होते हैं। तीनों लिंग में | बहुवचन प. बी. कई त.
कईइ, कईहिं, कईहिँ च. छ. . कइण्हं, कइण्ह पं.
कइतो, कईओ, कईउ, कईहिन्तो, कईसुन्तो
कईसु; कईसुं 5. संख्यावाचक शब्द में आर्ष प्राकृत में अन्त्य आ का अ भी होता है, इसके
रूप पुंलिंग और नपुंसकलिंग प्रथमा और द्वितीया एकवचन में प्राकृत साहित्य में दिखाई देते हैं । उदा. आ का अ - एगूणवीस, वीस, बावीस, चउव्वीस, पणवीस, छव्वीस, एगूणतीस, तीस, बत्तीस, तेत्तीस, छत्तीस, अट्ठतीस - अड़तीस, एगूणचत्तालीस, चत्तालीस, बायालीस, छायाल - छायालीस, अडयाल - अठ्ठचत्तालीस, एगूणपन्नास, पन्नास, एगावन्न - एगपन्नास, छप्पन्न - छप्पन्नास, अट्ठावन्न - अडवन्न । अठ्ठपन्नास इत्यादि. एगुणपन्नं राइंदियाइं जीविउं. द्वितीया एकव. (वसुदेवहिंडी पृ. 278) चत्तालीसं जोयणा चूला मेरूम्मि प्रथमा एकव. (नि. पृ. 29) वीसं गयदंतेसु, जयंति तीसं कूलगिरीसु प्रथमा एकव. (शाश्वत जिनस्तवे) 6. एगूणपण्णासा इत्यादि में ण्ण का न्न भी होता है ।
उदा. एगूणपन्नासा, पन्नासा, एगावन्ना, बावन्ना, तेवन्ना 7. एगूणवीसा से नवणवइ पर्यन्त शब्दों में से आकारान्त शब्दों के रूप 'रमा'
के समान और इकारान्त शब्दों के रूप 'बुद्धि के समान होते हैं । उदा. एगूणवीसाओ, एगूणवीसाउ, एगूणवीसा - (एगूणवीसा का प्रथमा बहुवचन)
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