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9. शब्द की आदि में य हो तो ज होता है तथा उपसर्ग के बाद य हो तो किसी
स्थान में ज होता है- (१/२२४) उदा. जसो (यशस्)
संजमो (संयमः) जमो (यमः)
संजोगो (संयोगः) जाइ (याति)
अवजसो (अपयशः) 10. (अ). जो शब्द अलग करने हों, उन प्रत्येक शब्द के अन्त में अथवा सभी
शब्दों के अन्त में च अव्यय का प्रयोग होता है । उदा. फलं च पुष्पं च वत्थं च गिण्हइ अथवा फलं पुष्पं वत्थं च गिण्हइ । (ब). प्रायः अनुस्वार के बाद च का और स्वर के बाद च के स्थान पर
य-अ का प्रयोग होता है । 11. वृषादि धातुओं के क्र का अरि होता है । (४/२३५) उदा. वरिसइ (वर्षति) 12. य वर्ण के पूर्व अथवा पश्चात् अ अथवा आ को छोड़कर कोई भी स्वर
हो तो य वर्ण के स्थान में प्रायः अ होता है । (१/१८०) उदा. आयरिय +ओ = आयरिओ, (आचार्यः)|मय - मओ, (मदः) जणय - जणओ, (जनकः)
मारिया-भारिआ । (भार्या) 13. इ इत्यादि पुरुषबोधक प्रत्यय के बाद स्वर आये तो संधि नहीं होती है। (१/९) उदा. होइ इह (भवति इह) ।
जिण (जिन) एकवचन
बहुवचन जिणो, जिणे
जिणा. जिणं
जिणा, जिणे. नपुंसकलिंग नाण (ज्ञान) नाणं
नाणाइं, नाणाइँ, नाणाणि. बी.)
शब्दार्थ (लिंग) आइरिय । (आचार्य) आचार्य.
|उवज्झाय) आयरिय
ऊज्झाय (उपाध्याय) उपाध्याय.
ओज्झाय आयव (आतप) धूप.
चोर (चौर) चोर. आस (अश्व) घोड़ा.
जण (जन) जन, मनुष्य. जणय (जनक) पिता. ३३ -
पुंलिंग
प
बी.
प.।