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पाठ 21 व्यअनान्त नाम, तद्धित, अधिकतादर्शक और श्रेष्ठतादर्शक प्रत्यय
प्राकृत में व्यंजनान्त नाम के अन्त्य व्यंजनों का लोप होता है लेकिन कुछ शब्दों में विशेषता है, वह आगे बतायेंगे । 1. व्यंजनान्त नामों के अन्त्य व्यंजन का जिनमें लोप होता है उनके रूप
पहले बताये गये अ कारान्त, इकारान्त-उ कारान्त पुंलिंग और नपुंसकलिंग नामों के समान बनते हैं | उदा. जसो (यशस्)
जम्मो (जन्मन्) तमो (तमस्)
धणी (धनिन्) चक्खू (चक्षुष)
हत्थी (हस्तिन्) 2. स् कारान्त और न् कारान्त नामों का पुंलिंग में ही प्रयोग होता है लेकिन
दाम (दामन्), सिर (शिरस्), नह (नभस्) शब्दों का प्रयोग नपुंसकलिंग में ही होता है। पुं. प्रथमा एकवचन
नपुंसक प्रथमा एकवचन उदा. उरो (उरस) = वक्षस्थल दामं (दामन्) माला जसो (यशस्) = यश
सिरं (शिरस्) मस्तक तमो (तमस्) = अन्धकार नहं (नभस्) आकाश तेओ (तेजस्) = तेज पओ (पयस्) = दूध, जल तवो (तपस्) = तप जम्मो (जन्मन्) = जन्म नम्मो (नर्मन्) = हँसी, क्रीड़ा
मम्मो (मर्मन्) = मर्म, रहस्य अपवाद :- कुछ स्थानों में नपुंसकलिंग में भी प्रयोग दिखाई देते हैं । उदा. सेयं (श्रेयस्) कल्याण
सम्मं (शर्मन्) कल्याण वयं (वयस्) उम्र
चम्म (चर्मन्) चमड़ा सुमणं (सुमनस्) श्रेष्ठ मन, उदार चित्त
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