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तव - तप
| तवसा (तपसा) |तवसो (तपसः) तम - अंधकार, राहु| तमसा (तमसा) | तमसो (तमसः) चक्खु - चक्षु चक्खुसा (चक्षुषा) चक्खुसो (चक्षुषः) काय - देह कायसा (कायेन)| कायसो (कायस्य) जोग - योग जोगसा (योगेन)। बल - बल बलसा (बलेन) कम्म - कर्म, क्रिया | कम्मुणा (कर्मणा) धम्म - धर्म | धम्मुणा (धर्मेण)
इस प्रकार सिद्ध प्रयोग भी आर्ष प्राकृत में मिलते हैं - उदा. तमसा गसिओ वि सूरो विक्कम किं विमुच्चइ = राह द्वारा ग्रसित सूर्य भी क्या अपने पराक्रम का त्याग करता है ?
स्त्रीलिंग 12. विद्युत् सिवाय के व्यञ्जनान्त स्त्रीलिंग शब्दों में अन्त्य व्यंजन का आ
अथवा या होता है, उनके रूप आ कारान्त, उ कारान्त स्त्रीलिंग के समान बनते हैं । उदा. सरिआ - या (सरित्) नदी
पडिवआ - या (प्रतिपद्) एकम, पडवा पाडिवआ - या । आवआ - या 4 (आपत्) दुःख, आपदा संपआ - या (सम्पत्) लक्ष्मी विज्जु
(विद्युत्) बिजली 13. (1) व्यंजनान्त स्त्रीलिंग में अन्त्य र का रा होता है - उदा. गिरा स्त्री. (गिर) वाणी
धुरा स्त्री. (धुर) धुसरी, अग्र .
पुरा स्त्री. (पुर) नगरी (2) क्षुध् के ध् का और ककुभ् के भ् का हा होता है । उदा. छुहा (क्षुध) भूख, कउहा (ककुभ) दिशा . (3) अप्सरस् शब्द के स् का सा विकल्प से होता है । उदा. अच्छरसा (अप्सरस्) अप्सरा, देवयोनि विशेष
अच्छरा )
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