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4. शत्रुओं से प्रजा का रक्षण करने के लिए राजा (राय) के पुरुषों ने नगर
के बाहर खाई (परिहा) बनायी । 5. पत्थर जैसे (गाव) हृदय को धारण करनेवाले ये मनुष्य बैलों को (उच्छ
बइल्ल) बहुत पीड़ा देते हैं । अन्धकार में (तम) मनुष्य चक्षु (चक्खु) द्वारा देखने के लिए समर्थ नहीं होते हैं। लोग आश्विन महीने में प्रतिपदा से (पडिवया) लेकर पूर्णिमा पर्यन्त महोत्सव करते हैं ।
विद्वान् मनुष्य अपने (अप्प) गुणों द्वारा सर्वत्र पूजे जाते हैं । 9. सोनी कसौटी पर सुवर्ण की परीक्षा करते हैं । 10. अच्छा वैद भी टूटे हुए आयुष्य को (आउ-आउस) जोड़ने के लिए (संध्)
समर्थ (पक्कल) नहीं होता है। 11. तुम्हारे जैसे (तुम्हारिस) स्नेहवाले (नेहालु) पुरुषों को हमारे जैसे
(अम्हारिस) गरीब पर प्रीति करनी चाहिए । 12. सभी इन्द्र तीर्थंकरों के जन्म (जम्म) काल में मेरुपर्वत पर तीर्थंकरों को
लेकर जन्ममहोत्सव करते हैं । 13. मनुष्यों को संपत्ति (संपया) में गर्विष्ठ (गव्विर) नहीं बनना चाहिए और
दुःख (आवया) में दीन नहीं बनना चाहिए । 14. जीव अपने ही (अप्पाण) कर्म के माध्यम से सुख और दुःख प्राप्त करता
है, दूसरा देता है, वह मिथ्या है। 15. गुरुओं के आशीर्वादों से (आसीसा) कल्याण ही होता है, इसलिए
उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए । 16. तपश्चर्या (तव) द्वारा कर्मों की निर्जरा होती है और क्रोध से कर्मों का बन्ध
होता है। 17. शास्त्र - पढ़े हुए मूर्ख ज्यादा होते हैं, लेकिन जो आचारवाले हैं वे ही
पण्डित कहलाते हैं। 18. बन्धु ने राजा को (राय) कहा कि तू राज्य का त्याग कर और यहाँ मत ठहर । 19. अच्छी तरह पालन किया हुआ राज्य राजा को (राय) बहुत धन और
कीर्ति देता है। 20. वृद्धावस्था में (वुद्धृत्तण) शरीर की सुन्दरता (सुंदस्तण) नष्ट होती है । 21. दूसरों के (पारकेर) दुःख सुनकर महात्माओं का (महप्प) मन दयावाला
बनता है । (दयालु)
• यहाँ 'पढिअवंता' कर्तवि भूतकृदन्त का प्रयोग करें ।।
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