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नाणाहि, नाणाहिन्तो, नाणा. | नाणेहि, नाणेहिन्तो, नाणेसुन्तो. छठी- | नाणस्स
नाणाण, नाणाणं. 4. संयुक्त व्यंजन का प्रथम अक्षर क-ग-ट्-ड्-त्-द-प-य-श्-ए-स् और क प
हो तो लोप होता है, लोप के पश्चात् शेष व्यंजन तथा संयुक्त व्यंजन, के स्थान पर हआ आदेशभूत व्यंजन जो शब्द की आदि में न हो तो द्वित्व होता है, (द्वित्व हआ व्यंजन वर्गीय दूसरा या चौथा व्यंजन हो तो द्वित्व के प्रथम व्यंजन के स्थान पर क्रमशः वर्गीय पहला और तीसरा व्यंजन रखा जाता है । (उपसर्ग नि.1 ब देखो.) (२/७७, ८९, ९०, ९२, ९३) अपवाद :- दीर्घस्वर तथा अनुस्वार के बाद शेषव्यंजन तथा आदेशभूत व्यंजन द्वित्व नहीं होता है । र-ह किसी भी स्थान में द्वित्व नहीं होते हैं। उदा. क् - भुत्तं (भुक्तम्) । ष् - निहुरो (निष्ठुरः)
ग् - दुद्धं (दुग्धम्) स् - नेहो (स्नेहः) ट् - छप्पओ (षट्पदः) x - क - दुक्खं (दुःखम्) ड् - खग्गो (खड्गः ) x . प . अन्तप्पाओ (अन्तःपातः) त् - उप्पलं (उत्पलम्) दीर्घस्वर - फासो (स्पर्शः) द् - मोग्गरो (मुद्गरः) अनुस्वार - संझा (सन्ध्या) प् - सुत्तो (सुप्तः) र - बम्हचेरं (ब्रह्मचर्यम्)
श् - निच्चलो (निश्चलः) | ह - विहलो (विह्वलः) आदेशभूत व्यंजन - क्ष का ख जक्खो (यक्षः), खओ (क्षयः), संखओ
(संक्षयः) 5. संयुक्त व्यंजन के अन्त में म्- न्- य्-ल-व्-ब्-र- हो तथा संयुक्त व्यंजन
का प्रथम व्यंजन ल्-व्-ब-र हो तो उसका लोप होता है । (जहाँ दोनों व्यंजनों का लोप होता हो वहाँ प्रयोगानुसार दो में से एक का लोप करना.) (३/७८/७९) उदा. कव्वं (काव्यम्), पक्कं (पक्वम्), सण्हं-लण्हं (श्लक्ष्णम्),
दारं-वारं (द्वारम्). म् - सरो (स्मरः)
व् - पक्कं (पक्वम्) न् - नग्गो (नग्नः )
ब् - सद्दो (शब्दः ) य् - वाहो (व्याधः)
र् . चक्कं (चक्रम्) ल - सण्हं (श्लक्ष्णम्)
र् - अक्को (अर्कः) ल - वक्कलं (वल्कलम्)
र् - वग्गो (वर्गः)
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