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वरिसं । (वर्षम्)
|तविअं । (तप्तम्) वासं ।
तत्तं । वारिसा । (वर्षा)
वइरं । (वज्रम्) वासा ।
वज्जं । 12. श्री, हरी, कृत्स्न, क्रिया इन शब्दों में संयुक्त अन्त्य व्यंजन के पूर्व इ
रखी जाती है । (२/१०८) उदा. सिरी (श्री:)
कसिणो (कृत्स्नः) हिरी (हरी)
किरिया (क्रिया) 13. संस्कृत में आनेवाले तस् प्रत्यय के स्थान पर तो - दो प्रत्यय विकल्प
से लगता है, तो - दो न हो तब अकार सहित विसर्ग हो तो पूर्व स्वर
और व्यंजनसहित विसर्ग का ओ होता है । (१/२७, २/१६०, ३/३२) उदा. जत्तो, जदो, जओ (यतः) अन्नत्तो, अन्नदो, अन्नओ (अन्यतः)
कत्तो, कदो, कओ (कुतः) पुरओ (पुरतः) तत्तो, तदो, तओ (ततः) मग्गओ (मार्गतः)
सव्वत्तो, सव्वदो, सवओ (सर्वतः) 14. विशेषण नाम का स्त्रीलिंग शब्द के अन्त में आ अथवा ई लगाने पर
बनता है किन्तु अकारान्त विशेषण नामों का स्त्रीलिंग प्रायः आ लगाने
पर बनता है, कुछ स्थानों में ई भी लगता है | उदा. पिय-पिया, पिआ (प्रिया) तारिस-तारिसा, तारिसी (तादृशी)
निच्च-निच्चा (नित्या) हसमाण-हसमाणा, हसमाणी वल्लह-वल्लहा (वल्लभा) (हसमाना) सरिस-सरिसा सरिसी (सदृशी)| हसंत-हसंता, हसंती (हसन्ती)
शब्दार्थ (स्त्रीलिंग) अवरा (अपरा) = पश्चिम दिशा इत्थी, थी (स्त्री) = स्त्री, नारी आणा (आज्ञा) = आदेश, हुकम , आज्ञा | उत्तरा (उत्तरा) = उत्तरदिशा आवया (आपद्-आपदा) = आपत्ति , कला (कला) = कला
कहा (कथा) = कहानी इड्डि । (ऋद्धि) = वैभव, ऐश्वर्य, समृद्धि कामधेणु (कामधेनु) = कामधेनु गाय
किवा (कृपा) = दया
पीड़ा
रिद्धि
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