________________
क्रियातिपत्त्यर्थ तैयार प्रत्यय
एकवचन
बहुवचन
क्रियातिपत्त्यर्थ । पुंलिंग स्त्रीलिंग
न्तो, माणो न्ती, माणी न्ता, माणा न्तं, माणं ज्ज, ज्जा
न्ता, माणा न्तीओ, माणीओ, न्ताओ, माणाओ न्ताई, माणाई
नपुंसकलिंग सर्वपुरुष सर्ववचन
विशेष्य के लिंग अनुसार प्रथमा एकवचन और बहवचन के उन-उन लिंग के प्रत्यय 'न्त-+माण' को लगाने से उपर्युक्त प्रत्यय बनते हैं तथा सर्वपुरुष-सर्ववचन में ज्ज-ज्जा प्रत्यय धातु को लगाने से क्रियातिपत्त्यर्थ
के रूप बनते हैं । (३/१८०) 3. क्रियातिपत्त्यर्थ - क्रिया की अतिपत्ति (निष्फलता) सूचित होती है । 'अमुक
कार्य हुआ होता तो अमुक कार्य होता' लेकिन पहला कार्य नहीं हुआ इसलिए उसके ऊपर आधार रखनेवाला दूसरा कार्य भी नहीं हुआ । इस
प्रकार क्रिया की निष्फलता सूचित होती है । (३/१७९) 4. क्रियातिपत्त्यर्थ - जब संकेत या शर्त पूरी नहीं हुई हो ऐसे सांकेतिक वाक्यों
में प्रयुक्त होता है । उदा. जइ सो विज्ज भणन्तो, ता सही होन्तो-यदि उसने विद्या प्राप्त की
होती तो वह सुखी होता । 5. प्राकृत रूपावतार में क्रियातिपत्त्यर्थ के न्त-माण प्रत्यय के पूर्व अ का इ-ए
किया है । उदा. हसिंतो, हसेंतो, हसिमाणं, हसेमाणं वगैरह । 6. आर्ष में न्तो-माणो के स्थान पर न्ते-माणे प्रत्यय भी लगता है ।
उदा. हसन्ते, हसमाणे, होन्ते, हुन्ते, होमाणे | + 'माण' प्रत्ययान्तवाले प्रयोग प्राकृत साहित्य में बहुत ही अल्प दिखाई देते हैं । x प्राकृत साहित्य में से उद्धृत क्रियातिपत्त्यर्थ के तीनों लिंग के
उदा. पुं. एकव. : जइ तुमं संपइमं न मुंचंतो, तो हं मंसगिद्धगिद्धाइयाण भक्खं
थ
- ११५