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भविष्य कृदन्त 8. धातु को 'इस्स' प्रत्यय लगाकर वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय लगाने पर
भविष्य कृदन्त बनता है। उदा. पुंलिंग | नपुंसकलिंग | स्त्रीलिंग जिण+इस्स = जिणिस्सन्तो, | जिणिस्सन्तं, जिणिस्सई, जिणिस्समाणो | जिणिस्समाणं जिणिस्सन्ती,
जिणिस्सन्ता, जिणिस्समाणी,
जिणिस्समाणा (जेष्यन्-जेष्यमाणः) . (जेष्यन्-जेष्यमाणम्)- (जेष्यन्ती-जेष्यमाणा) जीतता होगा | जीतता होगा | - जीतती होगी
विध्यर्थ कृदन्त 9. धातु के अंग को तव्व, अव्व, अणीअ (अणीय) और अणिज्ज प्रत्यय
लगाने पर विध्यर्थ कर्मणि कृदन्त बनता है, तव्व और अव्व प्रत्यय लगने पर पूर्व अ का इ अथवा ए होता है । उदा. बोह - बोहिअव्वं , बोहेअव्वं , बोहणीअं , बोहितव्वं , बोहेतव्वं ,
बोहणिज्जं ।
(बोद्धव्यम्-बोधनीयम्) - जानने योग्य झाअ - झाइअव्वं, झाएअव्वं, झाअणीअं, झाइतव्वं, झाएतव्वं,
झाअणिज्जं
(ध्यातव्यम् - ध्यानीयम्) - ध्यान करने योग्य झा - झाअव्वं , झाणीअ, झातव्वं , झाणिज्जं
उपयोगी अनियमित विध्यर्थ कृदन्त कायव्वं (कर्तव्यम्) = करने योग्य मोत्तव्वं (मोक्तव्यम्) = छोड़ने योग्य घेतब्बं (गृहीतव्यम्) = ग्रहण करने योग्य | रोत्तव् (रोदितव्यम्) = रोने योग्य दट्ठदं (द्रष्टव्यम्) = देखने योग्य हंतव्वं (हन्तव्यम्) = मारने योग्य भोत्तवं (भोक्तव्यम्) = भुगतने योग्य,
खाने योग्य -
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