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14. निडुरो पावेहिंतो धम्मं वंछइ । 15. आणंदो सावगो दंसणत्तो न कया चलइ । 16. पव्वयाणं मंदरो निच्चलो अत्थि ।
17. सो पमाया सुत्तं पुत्तं पहरेइ । अट्ठाए गामाओ गाममडंति बंभणा ।
18. तस्स वच्छस्स पक्काइं फलाणि अईव महुराणि संति । 19. धम्मिओ सइ दीणाणं जणाणं धन्नाई देइ ।
20. जस्स धम्मो व अट्ठो अत्थि तं नरं सव्वे अविक्खिरे । 21. सो नग्गो भमइ, जणेहिंतो वि न लज्जए ।
22. धम्मो सुहाणं मूलं दप्पो मूलं विणासस्स ।
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23. धिद्धी मूढा जीवा, कुणंति गुरुए मणोरहे विविहे । 24. विणया णाणं णाणाओ, दंसणं दंसणाहि चरणं च । चरणाहिंतो मुक्खो, मोक्खे सोक्खं अणाबाहं ||2|| प्राकृत में अनुवाद करें
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1. सज्जन पुरुष पापियों का विश्वास नहीं करते हैं । शेर की आवाज से मनुष्यों के हृदय कम्पित होते हैं । साधुओं के समुदाय जिनेश्वर के साथ मोक्ष में जाते हैं । मूर्ख चारित्र की श्रद्धा नहीं करते हैं ।
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जीव और अजीवों को प्रकाश करनेवाला क्या है ?
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10. जो न्यायमार्ग का उल्लंघन करता है, वह दुःख पाता है।
11. राजा काव्यों से पंडितों की परीक्षा करता है ।
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जो चारित्र की श्रद्धा करता है, वह भाव से श्रावक है । वह घर से निकलता है और साधु बनता है ।
पश्चात्ताप से पाप नष्ट होते हैं ।
शिष्य उपाध्याय के पास अध्ययन पढ़ते हैं ।
12. व्याघ्र से मनुष्य डरता है । 13. संघ धर्म के विरुद्ध सहन नहीं करता है ।
14. धार्मिक व्यक्ति पापों से डरता है ।
15. किसी का धन हरण करना पाप है।
16. जो जिनवचन का उल्लंघन करते हैं, वे सुख प्राप्त नहीं करते हैं । 17. तू विनय से अच्छी तरह शोभा देता है ।
18. उसको धिक्कार हो क्योंकि वह सब की निन्दा करता है ।
19. वह धान्य बेचता है और बहुत द्रव्य कमाता है ।
20. तू उसकी व्यर्थ ही निन्दा करता है ।
21. शिष्य हमेशा (सदा) सूत्रों के अध्ययनों की आवृत्ति करते हैं । 22. बालक को दूध पसंद आता है ।
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