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19. पज्जुण्णो जणे डहइ ।
20. निवई मंतीहिं सद्धिं रज्जस्स मंतं मंतेइ । 21. निवइणो मणोण्णेहिं कव्वेहिं तूसंति । 22. धन्नाणं चेव गुरुणो आएसं दिंति ।
23. धम्मो बंधू अ मित्तो अ, धम्मो य परमो गुरु । नणं पालगो धम्मो, धम्मो रक्खइ पाणिणो ||1|| 24. दाणेण विणा न साहू, न हुंति साहूहिं विरहिअं तित्थं । दाणं दितेण तओ, तित्थुद्धारो कओ होइ ||2||
प्राकृत में अनुवाद करें
1. मुनि शास्त्र में पण्डित होते हैं ।
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10. राजा दुर्जनों (धूर्तों) को दण्ड देते हैं और सज्जनों का पालन करते हैं । 11. भौंमरों को मधु पसंद है ।
तुम सदा साधुओं के साथ प्रतिक्रमण करते हो । मैं मद का त्याग करता हूँ ।
योगी जंगल में रहते हैं और काम को जीतते हैं ।
मुनि उत्कृष्ट ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं ।
पण्डित रोग से खिन्न नहीं होते हैं ।
वैद्य रोगों को दूर करते हैं ।
मैं स्तोत्रों द्वारा सर्वज्ञ भगवंत की स्तुति करता हूँ । ताराओं के बीच चन्द्रमा शोभा देता है ।
12. वह सदा प्रभात काल में उद्यान में जाता है और आचार्यों तथा साधुओं को वन्दन करता है ।
13. साधु कभी भी पाप में प्रवृत्ति नहीं करते हैं ।
14. ऋषि मन्त्र द्वारा आकाश में उड़ते हैं । 15. मेघ पानी बरसाता है ।
16. चन्द्र दिन में शोभा नहीं देता है ।
17. बालक दही खाता है ।
18. गुरु हमारे जैसे पापियों का भी उद्धार करते हैं ।
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