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17. मच्चुस्स सो पमाओ, जं जीवो जियँइ निमेसंपि ।
18. गिम्हस्स मज्झण्हे भाणुस्स तावो अंईव तिक्खो होइ, पुव्वण्हे अवरण्हे य मंदो होइ ।
19. गोयमाओ गणिणो पण्हाणमुत्तरं जाणिमो ।
20. गुरुस्स विणएण मुरुक्खो वि पंडिओ होइ । 21. नत्थि कामसमो वाही, नत्थि मोहसमो रिऊ । नत्थ कोवसमो वही, नत्थि नाणा परं सुहं ||1|| प्राकृत में अनुवाद करें
शिष्य गुरु को प्रश्न पूछते हैं ।
हम सर्वज्ञ भगवंत के पास धर्म सुनते हैं । अज्ञानियों से पंडित डरते हैं ।
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मैं सदा पुष्पों से शांतिनाथ भगवान की पूजा करता हूँ ।
वह तीक्ष्ण शस्त्र से शत्रु (दुश्मन) को मारता है ।
शांति (जिनेश्वर) के ध्यान से कल्याण होता है ।
आलस प्राणियों का भयंकर दुश्मन है, लेकिन वीर पुरुष उसको जीतते
हैं ।
केवली के वचन असत्य नहीं होते हैं ।
कृष्ण नेमि (जिनेश्वर) से सम्यक्त्व प्राप्त करते हैं ।
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10. भौंरे मधु के लिए घूमते हैं ।
11. सैनिक राजा से द्रव्य की आशा रखते हैं ।
12. सिंह की आवाज से मनुष्यों का हृदय कम्पित होता है ।
13. चन्द्र का प्रकाश मन को आनंद देता है ।
14. बन्दर वृक्ष के पके हुए फल खाते हैं ।
15. हम गुरु के पास धर्म सुनते हैं ।
16. मनुष्य व्याधि से बहुत घबराते हैं ।
17. बालकों को प्रभु का पूजन पसन्द आता हैं ।
18. सिंह हाथियों को फाड़ते हैं ।
19. साधु शास्त्र का अपमान नहीं करते हैं ।
20. हाथियों से सिंह नहीं डरते हैं ।
• जियइ-देश्य धातु होने से ह्रस्व हुआ है, अन्यथा जीयइ प्रयोग होता है ।
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