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5. आर्ष प्राकृत में सर्वपुरुष सर्ववचन में धातु के अंग को त्था, त्थ और + सु प्रत्यय लगाया जाता है ।
त्था, त्थ और सु प्रत्यय लगाने पर पूर्व अ का इ होता है । (४/२१४) उदा. कह + त्था कहित्था
हस + त्था = हसित्था
नेअ + त्था = नेइत्था
जिण + त्था = जिणित्था
6. सु प्रत्यय लगाने पर पूर्व के अक्षर पर अनुस्वार रखा जाता हैउदा. कह + सु = कहिंसु
हस + सु = हसिंसु जिण + सु = जिणिंसु
इसी प्रकार बुह - बोहित्था, हो - होत्या,
+ सु = सु
अ + सु
-
•
--
=
हव् - हवित्था,
मिला मिलाइत्था,
=
उदा. कह + सु
नेइंसु
उवे (उप + इ) उवेइत्था,
उदा. रायगिहे नयरे सेणिओ नाम राया होत्या. (एकव . )
समणस्स भगवओं महावीरस्स एगारह गणहरा होत्था (बहुव . )
7. सु प्रत्यय लगाने पर कुछ स्थानों में धातु के पहले 'अ' लगता है ।
अकहिंसु
भव + सु = अभविंसु
सर्वपुरुष आसि
सर्ववचन
=
बोहिंसु
होंसु
हविंसु
मिलाइंसु
उवेंसु, उवेइंसु
7
कर + सु = अकरिंसु
अकहिं जिणो जयंतीए (एकव . )
किं अरिहंता गणहरदेवा वा सक्कयसिद्धंतकरणे असमत्था अभविंसु ? पाइअभासाए सिद्धंतं अकरिंसु (बहुव .) ( सम्यक्त्वसप्ततिकावृत्तौ)
अस् धातु के रूप (३/१६४)
जय + सु = अजइंसु
संस्कृत सिद्ध प्रयोग से होनेवाले आर्ष रूप ब्रू = अब्बवी । (अब्रवीत् )
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तृ. पु. एकवचन
+ सु प्रत्यय लगाने पर कुछ स्थानों में पूर्व अ का ए भी होता है । उदा. . परिकहेंसु (बृह. गा. 4685) उदीरेंसु, निज्जरेंसु (भगवती - शत - १, उद्देशा - ३, सूत्र- २८