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अपवाद :- ज्ञ (ज् ) के ञ् का विकल्प से लोप भी होता है ।
पज्जा । (प्रज्ञा) | अज्जा । (आज्ञा) | मणोज्जं । (मनोज्ञम्)
पण्णा | अण्णा.. | मणोण्णं । 'अभिज्ञ' इत्यादि शब्दों में ज्ञ का ण्ण होता है तब अन्त्य अ का उ होता है। अहिण्णु (अभिज्ञ), कयण्णु (कृतज्ञ), जब ण्ण नहीं होता है तब उपर्युक्त नियमानुसार ञ् का लोप होकर अहिज्ज (अभिज्ञ), सवज्ज (सर्वज्ञ) इत्यादि होते हैं । 'अभिज्ञ' आदि शब्द होने से 'प्राज्ञ' आदि शब्दों में अन्त्य अ का उ नहीं होता है ।
उदा. पण्णो, पज्जो (प्राज्ञः). 7. शब्द के अन्दर श्म, ष्म, स्म, ह्म का म्ह होता है तथा पक्ष्म शब्द के क्ष्म
का भी म्ह होता है । किसी स्थान में ह्म का म्म भी होता है । (२/७४) उदा. श्म - कम्हारा (कश्मीराः)। ह्म - बम्हचेरं । (ब्रह्मचर्यम्)
ष्म - गिम्हो (ग्रीष्मः) | बम्भचेरं । स्म - विम्हओ (विस्मयः)| क्ष्म - पम्हो (पक्ष्म) ह्म - बम्हा (ब्रह्मा) किसी स्थान में म्ह नहीं होता है । बम्हणो । (ब्राह्मणः) । रस्सी (रश्मिः) बम्भणो
| सरो (स्मरः)
शब्दार्थ (पुंलिंग) आएस (आदेश) हुकम, आज्ञा | पाणि (प्राणिन्) प्राणी, जीव इंदु (इन्दु) चन्द्र
बंधु (बन्धु) बंधु, मित्र ईसर (ईश्वर) ईश्वर
भिक्खु (भिक्षु) साधु कइ । (कवि) कवि
मंति (मन्त्रिन्) मंत्री कवि
मुणि (मुनि) मुनि गुरु (गुरु) गुरु, ज्येष्ठ
रिसि (ऋषि) ऋषि जइ (यति) यति, साध
वाहि (व्याधि) रोग, पीड़ा जोगि (योगिन्) योगी
विम्हअ (विस्मय) आश्चर्य तित्थद्धार (तीर्थोद्धार) तीर्थ का उद्धार | संसग्ग (संसर्ग) संग, संबंध निवइ (नृपति) राजा
साहु (साधु) साधु, मोक्षमार्ग की साधना पज्जुण्ण (प्रद्युम्न) कामदेव , कृष्ण का
करनेवाले पुत्र
| सूरि (सूरि) आचार्य पमाअ (प्रमाद) प्रमाद, भूल जाना
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