Book Title: Navsmaranadisangraha
Author(s): Vicharshreeji, Damayantishreeji
Publisher: Nagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसंग्रह 5 संप्राहिका साध्वीजी महाराज श्रीविचारश्रीजी तथा श्रीदमयन्तीश्रीजी Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महमहावीरवद्धमाणसामिस्स || नवस्मरणादिसंग्रह 卐 संग्राहिका साध्वीजी महाराज श्रीविचारश्रीजी तथा श्रीदमयन्तीश्रीजी 卐 स्वर्गस्थ पूज्यपाद साध्वीजी श्री १००८ श्रीवसन्तश्रीजी महाराजकी पुण्य स्मृतिमें - नागोर - बीकानेरादिनगर वास्तव्य श्रावक-श्राविकाओंकी ओरसे भेट Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक नागोरादिगृहस्थवर्गकी ओर से पं. नगीनदास केवळशी शाह भाटवाडी : अहमदाबाद वि. सं. २०२० ] वीरनि. सं. २४९० [ ई. स. १९६४ : मुद्रक : जयंति दलाल वसंत प्रि. प्रेस घीकांटा अहमदाबाद Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान श्री पार्श्वनाथ स्वामि भांडुकतीर्थ (श्री खाणमाई गवाणका सौजन्यसे) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायाम्भोनिधि युगप्रधानाचार्य श्री १००८ श्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वरजी महाराज , Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्यपाद आचार्य भगवान् श्री १००८ श्री विजयकमलसूरिजी महाराज Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंजाब देशोद्धारक शासनप्रभावक आचार्य भगवान् श्री १००८ 8 ad विजय वल्लभसूरीश्वरजी महाराज Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्यपाद पंन्यासजी श्री १००८ श्री नेमविजयजी महाराज Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्यपाद ज्ञानयोगी आगमप्रभाकरजी श्री १००८ श्री. पुण्यविजयजी महाराज. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परमपूज्य वयोवृद्ध प्रवर्तिनी श्री १००८ श्रीदानश्रीजी महाराज Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परंमपूज्य साध्वीजी महाराज श्री १००८ श्री वसन्त श्रीजी महाराज जन्म सं. १९४८ ] दीक्षा सं. १९६७ [स्वर्गवास सं. २०१९ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण जिनका जीवन दान, संयम, तप, तीर्थयात्रा, तीर्थोद्धार, विनय, वैयावृत्य, सहधार्मिकोद्धार आदिमें व्यतीत हुआ; अतः जो हमारे लिए एक अनुपम अमर प्रेरणामूर्ति हुए, उन पूज्यपाद, दीर्घसंयमी, तपस्वी गुरुणीजी महाराज श्री १०० श्रीवसन्तश्रीजी महाराजको उनके उपकारोंके स्मरणार्थ सादर समर्पण चरणसेविकाविचारश्री (शिष्या) तथा दमयन्तीश्री (गुरुभगिनी) Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदन प्रत्येक समझदार मनुष्यको अपने सांसारिक कार्यों के अतिरिक्त पूजन-यजनादि कर्तव्य भी आवश्यक होता है । उस समय अपने आराध्य देवोंके गुणप्रामादिख्यापक स्तोत्र - स्तवनादिका पाठ भी यथासमय यथामति करना ही होता है । अतः स्तवन- स्तोत्र - स्तुति आदिके संग्रहरूप पुस्तकोंकी आवश्यकता भी रहती है, फलतः आज अनेक जनों द्वारा प्रकाशित एतद्विषयक विविध ग्रंथ उपलब्ध है । प्रस्तुत प्रयास भी तद्योग्य महानुभावों की सुविधाके लिए किया है । इस पुस्तक में अनेक विद्वान् मुनिओने जिन स्तोत्रोंका महत्त्वपूर्ण प्रभाव दिखलाया है और अनेक महानुभावोंने जिनका प्रभावका साक्षात्कार किया है एसे नवस्मरण तथा अन्य भी महाप्राभाविक स्तोत्रादि दिएं है । इनमें निबद्ध महाप्राभाविक मंत्राक्षरोंके प्रभाव से पाठकको अपनी योग्यतानुसार विविध लाभ होता है, यह बात तो एक आनुषंगिक फलात्मक है, मुख्यतया तो इन स्तुतिपाठोंसे अपने आराध्यपाद तीर्थाधिपति भगवंतोकी निष्काम स्तवना करके अपने आपको धन्य मानना वही है । तथाप्रकारके अभ्यासिवर्गका ख्याल रख कर प्रस्तुत प्रकाशनमें अति उपयोगी छोटे छोटे प्राचीन प्रकरण भी दिए है, जिनका प्रकाशन कई वर्ष पूर्व श्रीआत्मानन्द जैनसभा - भावनगरसे हुआ था । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुवलयमालाकथागत पंचपरमेष्ठिनमस्कार तथा प्रवचनमंगलसार और चतुः शरण - आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णक आदि प्राकृत रचनाओंके अतिरिक्त बहुतसी उपकारक भाषारचनाएं भी प्रस्तुत प्रकाशनमें दी है, जिनका परिचय ग्रंथकी अनुक्रमणिका देखनेसे होगा । हमारे श्रद्धेय स्वर्गस्थ पूज्यपाद साध्वीजी महाराज श्री १००८ श्रीवसन्तश्रीजी महाराजकी पुण्यस्मृतिमें प्रकाशित यह ग्रंथ में इस निवेदनको साथ ही उनका संक्षिप्त परिचय दिया है, उसे पाठकगण अवश्य पढ़ें, जिसे अनुमोदना आदिका महान् लाभ हो । मुद्रणशुद्धि में बराबर ध्यान रखने पर भी अनवधान और दृष्टिदोषादिसे जो क्षतियां रह गई हो उनको सुधार कर पढनेके लिए पाठकगणको “मिच्छामि दुक्कडं " पुरस्सर प्रार्थना है । निवेदिका विचारश्री तथा दमयन्तीश्री Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वनामधन्य परमपूज्य साध्वीजी श्री १००८ श्रीवसन्तश्रीजी महाराजका संक्षिप्त परिचय प्रातःस्मरणीय परमपूज्य श्रीवसन्तश्रीजी महाराजका शुभ जन्म सं. १९४८ का मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी ( मौनएकादशी ) के दिन बीकानेरमें हुआ था। आपके पिताजी और माताजीका शुभनाम क्रमशः श्रीभैरुदानजी तथा श्रीचांदाबाई था। आपकी शादी केवल आठ सालकी उम्रमें हुई । “पुण्यात्माओंको भववैराग्यके निमित्तोंका योग भी सहज होता ही है" आपको भी यह बातका स्वानुभव शादीके बाद केवल चार मास में ही आपके पतिका देहान्तसे हुआ । इस प्रकार संसारकी असारताको प्रत्यक्ष देखकर आपका मन इसी समयसे उदासीन होता रहा । उत्तरोत्तर प्रवर्द्धमान धर्मभावनासे बारह सालकी उम्रके बादसे ही आप धर्माराधनमें मग्न हुई और दीक्षाप्रहणकी दृढ़ इच्छा बराबर जागृत होती रही। दीक्षाग्रहणकी भावना दृढ होनेके बाद ही आपने अपनी सभी संपत्ति जो करीब रु. ४००००) (चालीस हजार )की थी, पिंजरापोल-बीकानेर- में जीवदयार्थ दे दी। इस प्रकार इस नश्वर संपत्तिका मूक जीवोंके कल्याणार्थ सद्व्यय करके आप शाश्वतसुख के मार्ग में दिन प्रतिदिन विशेष उद्युक्त होती रही। . Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीक्षाग्रहणके विषय में बीकानेर में घरवालोंकी सम्मति न होने के कारण बीस वर्षकी उम्र में सं. १९६७ की अक्षयतृतीयाको अहमदा बादमें शान्तमूर्ति पूज्यपाद मुनिप्रवरश्रीहंसविजयजी महाराजके पुण्य करकमलों से दीक्षा लेकर पुण्यनामधेय साध्वीजी श्रीदानश्रीजी महाराजकी शिष्या बनी और सं. १९६८ की वसन्तपंचमी के रोज पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीविजयदानसूरीजीके पवित्र करकमलोंसे आपकी बडी दीक्षा हुई । आपका दीक्षाकाल बावन वर्षका रहा । इस सुदीर्घ दीक्षापर्यायमें आपने मासक्षमण, बीसस्थानकतप, सिद्धितप, अष्टापदतप, सोलह उपवास, पन्द्रह उपवास, ग्यारह उपवास, नव उपवास, आठ उपवास, पांच उपवास, चार उपवास, छकैया आदि विभिन्न तपोंकी आराधना यथाशक्ति की । तपस्या पर आपका ध्यान विशेषरूपसे था । आपने अपने साध्वीजीवनमें छोटे बड़े अनेक तीर्थोंकी यात्रा, जैसे आबूजी, शत्रुंजयजी, गिरनारजी, तारंगाजी करके जीवन सफल किया शत्रुंजयकी निन्याणवे यात्रा नव की, जिसमें पांच दादाकी और चार तलहटीकी यात्रा की। अपने गृहस्थकालमें भी कई तीर्थोके दर्शन किये। कई तीर्थोका पुनरुद्धार करनेके लिए जगह २ उपदेश दे कर आर्थिक सहायता भी दिलाई। और भी आपने जीवन में कई महान कार्य किए - १. बीकानेर में आपके उपदेशसे दादावाडी बनी, उसमें गुरुमन्दिर भी आपके उपदेशानुसार ही बनवाया गया । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. आपके ही परिश्रमसे नागोरमें तपागच्छीय उपाश्रयका कार्य पूर्णरूपसे निर्मित हुआ जिसे श्राविकाओंको आराधनाके लिए कायमी धर्मस्थान मिला। ३. नागोरमें जैनसमाजकी ओरसे प्रस्थापित पाठशालाके संकटकालमें समय २ पर आर्थिक सहयोग दिलाया । और पढनेवालोंका उत्साह बढानेके लिए समय २ पर विविध प्रेरणा दी। ४. तद्योग्य सहधर्मि भाइ-बहिनोंकी आर्थिक कठिनाइयां के विषयमें सम्पन्न धनिकोंको उपदेश एवं प्रेरणा-सूचन आदि दे के उनकी विषम स्थितिमें उचित सहारा दिलाया। मुख्यतया पंजाब, राजस्थान, गुजरात-सौराष्ट्र में विहार करके आपने धर्मका प्रसार किया और जैनसमाजका शक्य उपकार करके अनेकोंको धर्माराधनमें लगाकर धार्मिकक्षेत्रमें नये वसन्तकी शोभा बहलाई । साधु-साध्वीयोंको आवश्यक साधन आदिका कोई भी कार्य जान कर आप तुरन्त इसका प्रबंध कराती थी। अपने गुरुवर्गकी सविनय सेवा-भक्तिमें अप्रमत्त रही । आपने अपने साध्वीसमुदायमें छोटे बडे के साथ यथोचित व्यवहार किया जिसके कारण सर्व साध्वीगण आपके जीवनकी भूरि भूरि प्रशंसा करता है तथा अपना भी जीवन इसी आदर्शमय बनानेके लिए प्रयत्नशील रहता है। ____दीक्षाकालके बावनवर्ष पर्यन्त छोटी बड़ी बीमारीमें कभी भी विलायती एवं अभक्ष्य औषधका सेवन नहीं किया, तथा बीमारीके Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समयमें भी सर्वथा डाक्टर आदि पुरुषवर्गसे अपनेको निरपवादरूपसे अस्पृष्ट रखा। इस प्रकार अपनी ७१॥ वर्षकी उम्र में ५२ वर्ष पर्यन्त चारित्रका पालन करके नागोरमें सं. २०१९ का जेठ सुदि त्रीजकी रात्रिको कलाक-१२ उपर ५ मिन्ट के समय पंचपरमेष्ठिका ध्यानमें मग्न अवस्थामें नमस्कारमंत्रका जाप सुनते हुए आपका समाधिपूर्वक स्वर्गवास हुआ। स्मशानयात्रा बडी भव्य रही। शुभम् । शिवम् । मंगलम् । ___ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र १. नमस्कार महामन्त्रस्मरणम् । १ २. उवसग्गहरस्मरणम् । १-२ ३. संतिकरस्मरणम् । २-३ ४. तिजयपहुत्तस्मरणम् । ४-५ ५. नमिऊणस्मरणम् । ५-७ ६. अजितशान्तिस्मरणम् । ८-१४ ७. भक्तामरस्मरणम् । १४-२२ ८. कल्याणमन्दिर ग्रन्थानुक्रमणिका | स्मरणम् । २२-३० ९. बृहच्छान्तिस्मरणम् । ३०-३४ १०. जयतिहुअणस्तोत्रम् । ३४-३९ ११. श्रीपार्श्वनाथमन्त्रा ४५ धिराजस्तोत्रम् । ४०-४३ १२. ग्रहशान्तिस्तोत्रम् । ४३-४४ १३. वज्रपञ्जर स्तोत्रम् | १४. जिनपञ्जर स्तोत्रम् । ४६-४८ १५. श्रीगौतमस्वाम्यष्टकम् । ४९-५० १६. शत्रुञ्जयतीर्थस्तोत्रम् । ५०-५२ १७. पञ्चषष्टियन्त्रगर्भित चतुर्विंशतिजिन स्तोत्रम् । ५२-५३ ५३-५४ १८. १९. बृहद् ऋषिमण्डल - " स्तोत्रम् । ५५-६४ २०. रत्नाकरपञ्चविशिका । ६५-६९ पत्र २१. श्रीशत्रुञ्जयलघुकल्पः । ६९-७१ २२. समवसरणस्तवः | ७२-७१ २३. अन्नायउंछकुलकम् । ७४-७७२४. अल्पबहुत्वगर्भित श्रीमहावीर स्तवनम् । ७७-७८. २५. लघ्वल्पबहुत्वम् । ७८-७९ २६. परमाणुखण्डषट् त्रिशिका । ७९-८०२७. पुद्गलषत्रिशिका । ८०-८३ २८. निगोदषटत्रिशिका । ८४-८७ २९. बन्वषट्त्रिंशिका । ८७-९०. ३०. पुद्गलपरावर्तस्तोत्रम् । ९०-९१ ३१. श्रावकत्रतभङ्गप्रकरणम्। ९२-९५ ३२. गाङ्गेयभङ्गप्रकरणम् । ९६-९८ ३३. सिद्धपञ्चाशिका | ९८-१०४ ३४. सिद्धदण्डिकास्तत्रः । १०४-१०६ ३५. भावप्रकरणम् । १०६-१०९ ३६. योनिस्तवः । १०९-११०. ३७. विचारसप्ततिका । ११०-११८ ३८. विचारपञ्चाशिका । ११८-१२३ ३९. कालसप्ततिका । १२३-१३४०. क्षुल्लकभवावलि प्रकरणम् । १३०-१३२: ४१. देहस्थितिस्तवः ॥ १३२-१३४ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र पत्र १२. कायस्थिति | ५१. गौडीपार्श्वजिनस्तोत्रम् । १३४-१३६ वृद्धस्तवन । १६९-१७५ ५३. लोकनालि ५२. सीताजीनी द्वात्रिशिका । १३६-१४० सज्झाय । १७५-१८. ५५. श्रीगौतम ५३. प्रभातमां भाववानी गणधरस्तोत्रम् । १४. भावना । १८० - १८३ १५. नन्दीसूत्र- . ५५. सीमंधरजिनमङ्गलगाथाः । १४१-१४४ आलोयणस्तवन । १८४-१८५ १६. पञ्चपरमेष्ठि ५५ खामणांसज्झाय । १८५-१८६ ५६. चार शरणां। १८७-१८८ नमस्कारः । १४५-१५२ (कुवलयमालागतः) ५७. पद्मावती आराधना। १८८-१९१ :४७. प्रवचनमङ्गलसारः। १५२-१५४ ५८. पुण्यप्रकाशन (कुवलयमालागतः) स्तवन । १९१-२०१ १८. चतुःशरणप्रकीर्णकम् । ५९. गौतमस्वामिनो १५४-१६० रास । २०२-२१० १९. आतुरप्रत्याख्यान-. ६०. मंगलपचीशी । २१०-२१२ प्रकीर्णकम् १६०-१६८ । ६१. पच्चक्खाणनो ५.. प्रभुस्तुति । १६८-१६९ कोठो। २१३-२२॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तुत प्रकाशनमें आर्थिक सहयोग दाताओंकी शुभनामावली रु. दाताका शुभनाम ५०१ ) शेठ श्री सरदारमलजी कानमलजी समदडीया २५०) शेठ माणेकचंदजी बेताला १०१), मगनमलजी धनराज साचर ५१) श्रीरतनबाई समदडीया ५१) शेठ श्री अमोलकचंदजी हस्तिमलजी बोथरा ५१) जेठमलजी बंगाणी ५१), ताराचंदजी चांदमलजी कोचर २५), रैवतमलजी सिंघी २५), नथमलजी गेनचंदजी २५), नथमलजी ज्ञेनचंदजी कोठारी २१) केवलचन्दजी समदडीया " • "3 २१) नेमिचन्दजी चोधरी २१) श्री समतबाई चोधरी १४) शेठ श्री जीतमलजी बांगाणी १३) श्रीमलजी ओस्तवाल १२) भीखमचंदजी कोठारी ११) बस्तीमलजी बोथरा ११), उदयचन्दजी बोथरा ११), हीराचन्दजी चोरडीया 39 "9 " 2 रु. दाताका शुभनाम ११), पुखराजजी बांठीया ११), मांगीमलजी दुग्गड ११), हीरालालजी छल्लाणी ११), उदयचन्दजी छत्राणी ११), कस्तूरचन्दजी बंगाणी ११) , कस्तूरचन्दजी वागण ११),, भँवरलालजी कपूरचन्दजी ११), दीपचन्दजी सुराणा ११), मंगलचन्दजी भँवरलाल कोचर ११), मगनमलजी पारेख ११) छगनमलजी सुराणा ११), जतनमलजी दफ्तरी ११) शेठश्री कालूरामजी बोथरा ११), भँवरलालजी विजयलालजी नाहर ११) भँवरलालजी साणसुखा ११), नन्दकिशोरजी कोचर در ,, ११) झवरीलालजी निहालचन्दजी >> कोचर ११), मोवनलालजी सेठिया Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दाताका शुभनाम (११) ससकरणजी सुराणा ११), रूपचन्दजी गोलेच्छा " ११), माणकचन्दजी डांगर ११), परसनमलजी ११), सिवबकसजी मगरज कोचर ११), सीबकजी कोचरकी वहु ११) श्री आशाबाई ११) श्रीफताबाई बीकानेरवाला ११) श्रीबस्तांबाई कोचर १०) शेठ श्री गणेशमलजी काकरीया ७),, चम्पालालजी सुराणा ७ ),, तोलारामजी बछावत ७), टिकमचन्दजी भँवरलालजी कोचर ७) श्रीछतीबाईके उपाश्रयकी बाईयां ५) शेठश्री भँवरीमलजी कटारीया ५) बस्तीमलजी दुग्गड ५) जवरीमलजी बांठीया 31 ५) ताराचन्दजी समदडीया ५),, फुसालालजी दूगड ,, जबर चन्दजी बेताला ५) 37 "> ५), नीलमचन्दजी पीचा ५) आसकरणजी सुराणा د. १४ दाताका शुभनाम ५), गिरधरलालजी छगनलालजी कोचर ५) ا. ५) ५) ५) ५) गणपतमलजी बंगाणी " ५) शेठश्री गुनचन्दजी कोचर ५ ),, सतीदानजी कोचर ५) ५) " ५ ),, 22 "? "" " भँवरलालजी बुलाकचन्दजी कोचर फागजी कोचर ५) श्रीसूरजवाई ५) श्रीफिनाबाई पुगलीया श्रीपामबाई सीराया :) नीलमचन्दजी पीचा शीखरचन्दजी नाहटा माणकचन्दजी छाजेड भँवरलालजी ढड्ढा छगनमलजी कोचर की वहु ४) श्री भँवरीबाई ४) श्रीछोटाबाई सुराणा ४) शेठ श्री प्रेमचन्दजी मोजीलालजी कोचर २) भँवरीमलजी दुग्गड २) पखालालजी दुग्गड २) हंसराजजी दूगड २) मगराजजी सुराणा " Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रु. दाताका शुभनाम २) समरतमलजी झवरीलालजी कोचर २) इंदरनी मां २) श्रीज्ञानबाई रु. दाताका शुभनाम २) श्रीसायरबाई २) श्रीरतनबाई कोचर २) श्रीइन्दरबाई कोचर २) श्रीकेसरबाई बिकानेर Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्यश्रीविजयवल्लभसूरिभ्यो नमः ॥ नवस्मरणानि। प्रथमं नमुक्कारमन्त्रस्मरणम् ॥ नमो अरिहंताणं ॥१॥ नमो सिद्धाणं ॥२॥ नमो आयरियाणं ॥३॥ नमो उवज्झायाणं ॥४॥ नमो लोए सव्वसाहणं ॥५॥ एसो पंचनमुक्कारो ॥६॥ सव्वपावप्पणासणो ॥७॥ मंगलाणं च सव्वेसि ॥ ८॥ पढम हवइ मंगलं ॥९॥ - - द्वितीयं उवसग्गहरस्मरणम् । उवसग्गहरं पास, पासं वंदामि कम्मघणमुकं । विसहरविसनिन्नासं, मंगलकल्लाणआवासं ॥१॥ विसहरफुलिंगमंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ। तस्स गह रोग मारी, दुटुजरा जंति उवसामं ॥२॥ ____ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्कहे चिट्ठउ दूरे मंतो, तुझ पणामो वि बहुफलो होइ । नरतिरिएसु वि जीवा, पार्वति न दुक्खदोगचं ॥३॥ तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणिकप्पपायवन्भहिए। पावंति अविग्घेणं, जीवा. अयरामरं ठाणं ॥४॥ इअ संथुओ महायस!, भत्सिन्भरनिन्भरेण हिअएण। ता देव! दिज बोहिं, भवे भवे पास! जिणचंद ! ॥६॥ तृतीयं संतिकरस्मरणम् । संतिकरं संतिजिणं, जगसरणं जयसिरीइ दायारं । समरामि भत्तपालग-निव्वाणीगरुडकयसेवं ॥१॥ है सनमो विप्पोसहि-पत्ताणं संतिसामिपायाणं । झौं स्वाहामंतेणं, सव्वासिवदुरिअहरणाणं ॥२॥ ॐ संतिनमुक्कारो, खेलोसहिमाइलद्विपत्ताणं । सौं ह्रौँ नमो सव्वोसहिपत्ताणं च देइ सिरिं ॥३॥ वाणीतिहुअणसामिणि-सिरिदेवीजक्खरायगणिपिडगा। गहदिसिपालसुरिंदा, सया वि रक्खंतु जिणभत्ते ॥४॥ रक्खंतु मम रोहिणि, पन्नत्ती वजसिखला य सया। वजंकुसि चक्केसरि, नरदत्ता कालि महकाली ॥५॥ ९ . ११ १२ १३ गोरी तह गंधारी, महजाला माणवी अवहरुटा । १४ १५ अच्छुत्ता माणसिआ महमाणसिआओ देवीओ॥६॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयं संतिकरस्मरणम्। जक्खा गोमुह महजक्ख तिमुह जक्खेस तुंबरू कुसुमो। मायंगो विजयाऽजिअ, बंभो मणुओ सुरकुमारो ॥७॥ माया १३ १४ १५ १६ १७ । छम्मुह पयाल किन्नर, गरुडो गंधव्व तह य जक्खिदो। कूपर वरुणो भिउडी गोमेहो पास मायंगो ॥८॥ देवीओ चक्केसरि, अजिआ दुरिआरि कालि महकाली। ६ ७ ८ ९ १० ११ अचुअ संता जाला, सुतारयाऽसोअ सिरिवच्छा ॥९॥ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ चंडा विजयंकुसि पन्नइत्ति निव्वाणि अचुआ धरणी । १९ २० २१ २२ २३ २४ वहरुट दत्त गंधारि, अंब पउमावई सिद्धा॥१०॥ इअ तित्थरक्खणरया, अन्ने वि सुरा सुरी य चउहा वि। वंतरजोइणीपमुहा, कुणंतु रक्खं सया अम्हं ॥ ११ ॥ एवं सुदिद्विसुरगण-सहिओ संघस्स संतिजिणचंदो। मज्झ वि करेउ रक्खं, मुणिसुंदरसूरिथुअमहिमा ॥१२॥ इअ संतिनाहसम्मदिट्टियरक्खं सरइ तिकालं जो। सव्योवहवरहिओ, स लहइ सुहसंपयं परमं ॥ १३ ॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे चतुर्थं तिजयपहुत्तस्मरणम् । तिजयपहुत्तपयासयअट्टमहापाडिहेरजुत्ताणं । समयक्खित्तठिआणं, सरेमि चक्कं जिनिंदाणं ॥ १ ॥ २५ ૮. १५ ५० पणवीसा य असीआ, पनरस पन्नास जिणवरसमूहो । नासेउ सयलदुरिअं भविआणं भतिजुत्ताणं ॥ २ ॥ २० ४५ ३० ७५ वीसा पणयाला विय, तीसा पन्नत्तरी जिणवरिंदा । गह भूअरक्खसाइणिघोरुवसग्गं पणासंतु ॥ ३ ॥ ७० ३५ ६० सत्तरि पणतीसा वि य, सट्टी पंचेव जिणगणो एसो । वाहिजलजलणहरिकरिचोरारिमहाभयं हरउ ॥ ४ ॥ ५५ १० ६५ ४० पणपन्ना य दसेव य, पन्नट्टी तह य चेव चालीसा । रक्खंतु मे सरीरं, देवासुरपणमिआ सिद्धा ॥ ५ ॥ तँ हरहुंहः सरसुंसः, हरहुंहः तह य चेव सरसुंसः । आलिहियनामगर्भ, चक्क किर सव्वओभदं ॥ ६ ॥ १ ३ ॐ रोहिणि पन्नत्ती वजसिंखला तह य वज्जअंकुसिआ । ७ ८ Theft नरदत्ता, कालि महाकालि तह गोरी ॥ ७ ॥ ४ १० ११ १२ १३ १४ गंधारी महजाला, माणवि वहरु तह य अच्छुत्ता । 44 १५ १६ माणसि महमाणसिआ, विज्जादेवीओ रक्खंतु ॥ ८ ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ तिजयपटुत्तस्मरणम् । पंचदसकम्मभूमिसु, उत्पन्न सत्तरी जिणाण सयं । विविहरयणाइवन्नो- वसोहिअं हर दुरिआई ॥ ९ ॥ चउतीसअहसजुआ, अट्टमहापाडिहेरकय सोहा । तित्थयरा गयमोहा, झाएअव्वा पयत्तेणं ॥ १० ॥ ॐ वरकणय संखविममरगयघणसन्निहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूइअं वंदे ॥ स्वाहा ॥ ११॥ ॐ भवणवइवाणवंत रजोइसवासी विमाणवासी अ । जे के विदुदेवा, ते सच्चे उवसमंतु ममं ॥ स्वाहा ॥ १२ ॥ चंदणकप्पूरेणं, फलए लिहिऊण खालिअं पीअं । एगंतराइगह भूअसाइणिमुग्गं पणासेइ ॥ १३ ॥ इअ सत्तरिसयजंतं, सम्मं मंतं दुवारि पडिलिहिअं । दुरिआरिविजयवंतं, निन्तं निचमह ॥ १४ ॥ पञ्चमं नमिऊ स्मरणम् । नमिऊण पणयसुरगणचूडामणिकिरणरंजिअं मुणिणो । चलणजुअलं महाभयपणासणं संथवं वुच्छं ॥ १ ॥ सडियकरचरणनहमुह - निबुडुनासा विवन्नलायन्ना । कुट्टमहारोगानल फुलिंगनिद्दड्ढसव्वंगा ॥ २ ॥ ते तुह चलणाराहणसलिलंजलिसेयवढिउच्छाहा । arदवदड्ढा गिरिपायव व पत्ता पुणो लच्छि ॥ ३ ॥ दुव्वायखुभियजलनिहि उन्भडकल्लोल भीसणारावे' संभंतभयविसं ठुलनिज्जामयमुक्कवावारे ॥ ४ ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्घहे अविदलिअजाणवत्ता, खणेण पावंति इच्छिअं कूलं । पासजिणचलणजुअलं, निचं चिअ जे नमंति नरा ॥८॥ खरपवणुद्धयवणदव-जालावलिमिलियसयलदुमगहणे । डझंतमुद्धमयवहु-भीसणरवभीसणम्मि वणे ॥ ६ ॥ जगगुरुणो कमजुअलं, निव्वाविअसयलतिहुअणाभो। जे संभरंति मणुआ, न कुणइ जलणो भयं तेसिं ॥७॥ विलसंतभोगभीसण-फुरिआरुणनयणतरलजीहालं । उग्गभुअंगं नवजलयसच्छहं भीसणायारं ॥ ८ ॥ मन्नंति कीडसरिसं, दूरपरिच्छूढविसमविसवेगा। तुह नामक्खरफुडसिद्धमंतगुरुआ नरा लोए ॥९॥ अडवीसु भिल्ल-तक्कर-पुलिंद-सहलसहभीमासु। भयविहुरवुनकायर-उल्लूरिअपहिअसत्थासु ॥१०॥ अविलुत्तविहवसारा, तुह नाह ! पणाममत्तवावारा। ववगविग्धा सिग्छ, पत्ता हियइच्छियं ठाणं ॥११॥ पनलिआनलनयणं, दूरवियारियमुहं महाकायं। नहकुलिसघायविअलिअ-गइंदकुंभत्थलाभो॥१२॥ पणयससंभमपत्थिव-नहमणिमाणिकपडिअपडिमस्स। तुह वयणपहरणधरा, सीहं कुद्धं पि न गणंति ॥१३॥ ससिधवलदंतमुसलं, दीहकरुल्लालवड्ढउच्छाहं । महुपिंगनयणजुअलं, ससलिलनवजलहरारावं ॥ १४ ॥ भीमं महागइंदं, अचासनं पि ते न वि गणंति । जे तुम्ह चलणजुअलं, मुणिवइ ! तुंगं समल्लीणा ॥१८॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमं नमिऊणस्मरणम् । समरम्मि तिक्खखग्गा-भिघायपविद्धउद्धृयकबंधे। कुंतविणिभिन्नकरिकलहमुक्कसिकारपउरम्मि ॥ १६ ॥ निजियदप्पुद्धररिउ-नरिंदनिवहा भडा जसं धधलं । पावंति पावपसमिण, पासजिण! तुह प्पभावेण ॥१७॥ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाइं ॥१८॥ एवं महाभयहरं, पासजिणिदस्स संथवमुआरं। भवियजणाणंदयरं, कल्लाणपरंपरनिहाणं ॥ १९ ॥ रायभय-जक्ख-रक्खस-कुसुमिण-दुस्सउण रिक्खपीडासु। संझासु दोसु पंथे, उवसग्गे तह य रयणीसु ॥२०॥ जो पढइ जो अ निसुणइ, ताणं कइणो य माणतुंगस्स। पासो पावं पसमेउ सयलभुवणच्चियच्चलणो ॥ २१ ॥ उवसग्गंते कमठासुरम्भि झाणाओ जो न संचलिओ। सुर-नर-किन्नरजुवईहिं संथुओ जयउ पासजिणो ॥२२॥ एअस्स मज्झयारे, अट्ठारसअक्खरेहिं जो मंतो। जो जाणइ सो झायइ, परमपयत्थं फुडं पासं ॥ २३ ॥ पासह समरण जो कुणइ, संतुट्टे हियएण । अट्टत्तरसयवाहिभय, नासह तस्स दूरेण ॥ २४ ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे षष्ठं अजितशान्तिस्मरणम् । अजिअं जिअसत्र्वभयं, संतिं च पसंतसव्वगयपावं । जयगुरु संतिगुणकरे, दो वि जिणवरे पणिवयामि ॥ ॥ १ ॥ गाहा ॥ ववगयमंगलभावे, ते हं विउलतवनिम्मलसहावे । निरुवममहप्पभावे, थोसामि सुदिट्ठसम्भावे ||२|| गाहा सव्वदुक्ख पसंतीणं, सव्वपावप्पसंतिणं । सया अजिय संतीणं, णमो अजिअसंतिणं ॥ ३ ॥ सिलोगो ॥ अजियजिण ! सुहृप्पवत्तणं, तव पुरिसुत्तम ! नामकित्तणं । तह य धिमइप्पवत्तणं, तव य जिणुत्तम ! संति ! कित्तणं ॥ ४ ॥ मागहिआ ॥ किरिआविहिसंचिअकम्मकिलेसविमुक्खयरं, अजिअं निचिअं च गुणेहिं महामुणिसिद्धिगयं । अजिअस्स य संतिमहामुणिणो वि अ संतिकरं, सययं मम निबुइ कारणयं च नमसणयं ॥ ५ ॥ आलिंगणयं ॥ पुरिसा ! जइ दुक्खवारणं, जइ अ विमग्गह सुक्खकारणं । अजिअं संतिं च भावओ, अभयकरे सरणं पवज्जहा || ६ || मागहिआ ॥ अरइ-रइतिमिरविरहिअमुवरयजरमरणं, सुर-असुरगरुल-भुयगवइपययपणिवइअं । अजिअमहमवि अ सुनयनयनिउणमभयकरं, सरणमुवसरिअ भुवि-दिविजमहिअं सययमुवणमे ॥ ७ ॥ संगययं ॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठं अजितशान्तिस्मरणम् । तं च जिणुत्तममुत्तमनित्तमसत्तधरं, अजव-मद्दव-खंतिविमुत्ति-समाहिनिहिं । संतिकरं पणमामि दमुत्तमतित्थयरं, संतिमुणी मम संतिसमाहिवरं दिसउ ॥ ८ ॥ ॥सोवाणयं ॥ सावत्थिपुव्वपत्थिवं च वरहत्थिमस्थयपसत्थवित्थिन्नसंथिअं थिरसरिच्छवच्छं, मयगललीलायमाणवरगंधहत्थिपत्थाणपत्थियं संथवारिहं । हथिहत्यवाहुं धंतक गरुअगनिरुवहयपिंजरं पवरलक्खणोवचिअसोमचारुरूवं, सुइसुहमणाभिरामपरमरमणिज्जवरदेवदुंदुहि निनायमहुरयरसुहागिरं ॥ ९॥ वेड्ढओ॥ अजिअं जिआरिगणं, जिअसव्वभयं भवोहरि। पणमामि अहं पयओ, पावं पसमेउ मे भयवं! ॥१०॥ ॥रासालुद्धओ॥ कुरुजणवयहत्थिणाउरनरीसरो पढमं तओ महाचक्कवडिभोए महप्पभावो, जो बावत्तरिपुरवरसहस्सवरनगरनिगमजणवयवई बत्तीसारायवरसहस्साणुयायमग्गो। चउदसवररयण-नवमहानिहि-चउसद्विसहस्सपवरजुवईण सुंदरवई, चुलसीहय-गय-रहसयसहस्ससामी छण्णवइगामकोडिसामी आसी जो भारहम्मि भयवं ॥११॥ वेड्ढओ॥ तं संति संतिकर, संतिणं सव्वभया। संति थुणामि जिणं, संति विहेउ मे ॥१२॥रासानंदिययं ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे इक्खाग! विदेहनरीसर ! नरवसहा! मुणिवसहा!, नवसारयससिसकलाणण ! विगयतमा ! विहुअरया!! अजिउत्तम! तेयगुणेहिं महामुणिअमिअबला! विउलकुला!, पणमामि ते भवभयमूरण ! जगसरणा ! मम सरणं ॥ १३ ॥ चित्तलेहा ॥ देव-दाणविंद-चंद-सूरवंद ! हह-तु?! जिट्टपरम! लट्ठरुव! धंतरप्प-पट्ट-सेअ-सुद्ध-निद्ध-धवल ।-दंतपंति ! संति ! सति-कित्ति-मुत्ति-जुत्ति-गुत्ति-पवर !, दित्ततेअ !, बंद ! धेअ ! सव्वलोअभाविअप्पभाव ! णेअ ! पइस मे समाहिं ॥ १४॥ नारायओ॥ विमलससिकलाइरेअसोम, वितिमिरसूरकराइरेअते। तिअसवइगणाइरेअरूवं, धरणिधरप्पवराइरेअसारं ॥ ॥१५॥ कुसुमलया। सत्ते अ सया अजिअं, सारीरे अ बले अजिअं। तवसंजमे अ अजिअं, एस थुणामि जिणं अजिअं ॥ १६ ॥ ॥ भुअगपरिरिंगिअं॥ सोमगुणेहिं पावइ न तं नवसरयससी, तेअगुणेहि पावइ न तं नवसरयरवी। रूवगुणेहिं पावइ न तं तिअसगणवई, सारगुणेहिं पावइ न तं धरणिधरवई ॥ १७ ॥ ॥खिजिअयं ॥ तित्थवरपवत्तयं तमरयरहिअं, धीरजणथुअचिअंचुअकलिकलुसं । संतिसुहपवत्तयं तिगरणपयओ, संतिमहं - महामुणि सरणमुवणमे ॥ १८ ।। ललिअयं ॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठं अमितशान्तिस्मरणम् । विणओणयसिररइ अंजलिरिसिगणसंधुअं थिमिअं, विषुहाहिवघणवइ-नरवइथुअमहिअचिअं बहुसो । अइरुग्गयसर यदि वायर समहिअसप्पभं तवसा, गणगणवियरणसमुइअचारणबंदिअं सिरसा ॥ १९ ॥ || किसलयमाला ॥ असुर - गरुलपरिवंदिअं, किन्नरोरगणमंसिअं । देवकोडिसयसंधुअं, समणसंघपरिवदिअं ॥ २० ॥ सुमुहं ॥ अभयं अणहं, अरयं अरुयं । अजिअं अजिअं पयओ पणमे ॥ २१ ॥ विज्जुविलसिअं ॥ आगया वरविमाणदिव्वकणगरहतुरयपहकरसएहिं हुलिअं । ससंभमोअरणखुभिअलुलिअचलकुंडलंगयतिरीड सोहंत मउलिमाला ॥ २२ ॥ वेड्ढओ ॥ जं सुरसंघा सासुरसंघा वेरविउत्ता भन्तिसुजुत्ता, आयरभूसिअसंभमपिंडिअ सुट्टसुविम्हि असब्वबलोघा । उत्तमकंचणरयणपरूविय भासुर भूसण भासुरिअंगा, गाय समोणयभतिवसागय-पंजलिपेसियसीसपणामा || ॥ २३ ॥ रयणमाला ॥ वंदिऊण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेव य पुणो पयाहिणं । पणमिऊण य जिणं सुरासुरा, पमुइआ सभवणाई तो गया ॥ २४ ॥ खित्तयं ॥ तं महामुणिमहं पि पंजली, रागदोस-भय- मोहवज्जिअं । देवदाणवनरिंदवंदिअं, संतिमुत्तमं महातवं नमे ॥ २५ ॥ ॥ खितयं ॥ ११ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे अंबरंतर विआरणिआहिं, ललिअहंस बहुगामिणिआहिं । पोणसोणियणसालिणिआहिं, सकलकमलदललो अणि आहिं ॥ २६ ॥ दीवयं ॥ मणिकंचण पीणनिरंतरथणभरविणमियगायलआहिं, पसिढिलमेहलसोहिअसोणितडाहिं । वरखिखिणिणेउरसतिलयवलयविभूसणिआहिं, रइकरचउरमणोहर सुंदरदंसणिआहिं ॥। २७ ॥ चित्तक्खरा || देवसुंदरीहिं पापवंदिआहिं वंदिआ य जस्स ते सुविकमा कमा, अप्पणो निडालएहिं मंडणोडुणप्पगार ए हिं केहि केहि वि? अवगतिलयपत्तलेहनामएहिं चिल्लएहिं संगयंगयाहिं, भत्तिसन्निविद्ववंदना गयाहिं हुति ते य बंदिआ पुणो पुणो ॥ २८ ॥ नारायओ ॥ तमहं जिणचंद, अजिअं जिअमोहं । धुअस किलेसं, पओ पणमामि ।। २९ ।। नंदिअयं || थुअवदिअयस्सा रिसिगणदेवगणेहिं, तो देववहुहिं पयओ पणमियअस्सा । जस्स जगुत्तमसासणअस्सा, भत्तिव सागयपिंडियआहिं । देववरच्छरसाबहुआहिं, सुरवररइगुणपंडियआहिं ॥ ३० ॥ भासुरयं ॥ वंससद्दतं तितालमेलिए तिउक्खराभिरामसद्दमीसए कए अ, सुइसमाणणे अ सुद्धसज्जगी अपायजालघंटिआहिं । वलय- मेहला कलावनेउराभिरामसद्दमीसए कए अ, देवनहिआहिं हाव-भाव किभमप्पगार एहिं । नचि Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठं भजितशान्तिस्मरणम् अण अंगहारएहिं वंदिआ य जस्स ते सुविकमा कमा, तयं तिलोअसव्वसत्तसंतिकारयं पसंतसव्वपावदोसमेस हं नमामि संतिमुत्तमं जिणं ॥३१॥ नारायओ॥ छत्त-चामर-पडाग-जूअ-जव-मंडिआ, झयवर-मगरतुरय-सिरिवच्छसुलंछणा । दीव-समुद्द-मंदर-दिसागयसोहिआ, सत्थिअ-वसह-सीह-रह-चक्कवरंकिया ॥३२॥ ॥ ललिअयं ॥ सहावलढा समप्पइटा, अदोसदुट्ठा गुणेहिं जिट्ठा । पसायसिहा तवेण पुट्ठा, सिरीहिं इट्टा रिसीहिं जुट्टा॥ ॥३३ ॥ वाणवासिआ॥ ते तवेण धुअसव्वपावया, सव्वलोअहिअमूलपावया । संथुआ अजिअसंतिपायया, हुंतु मे सिवसुहाणदायया॥ ॥ ३४ ॥ अपरांतिका ॥ एवं तवबलविउलं, थुअं मए अजिअसंतिजिणजुअलं । ववगयकम्मरयमलं, गई गयं सासयं विउलं ॥ ३५॥ ॥गाहा ॥ तं बहुगुणप्पसायं, मुक्खसुहेण परमेण अविसायं । नासेउ मे विसायं, कुणउ अपरिसाविअपसायं ॥३६॥ ॥ गाहा ॥ तं मोएउ अनंदि, पावेउ अ नंदिसेणमभिनंदि। परिसा वि अ सुहनंदि, मम य दिसउ संजमे नंदि ॥ ३७ ॥ ॥ गाहा ॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिस पक्खिअ चाउम्मासे, संवच्छरिए अवस्स भणिअन्यो। सोअव्यो सव्वेहिं, उवसग्गनिवारणो एसो ॥३८॥ जो पढइ जो अनिसुणइ, उभओ कालं पि अजिअसंतिथयान हुहुति तस्स रोगा, पुन्युप्पन्ना विनासंति॥ जइ इच्छह परमपयं, अहवा कित्ति सुवित्थडं भुवणे। ता तेलुकुद्धरणे, जिणवयणे आयरं कुणह॥४०॥ सप्तमं भक्तामरस्मरणम् । भक्तामरप्रणतमौलिमणिप्रभाणा मुद्योतकं दलितपापतमोवितानम् । सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ॥१॥ यः संस्तुतः सकलवाङ्मयतत्त्वबोधा दुद्भुतबुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः । स्तोत्रैर्जगत्रितयचित्तहरैरुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥ २॥ बुद्धथा विनाऽपि विषुधार्चितपादपीठ !, - स्तोतुं समुद्यतमतिर्विगतत्रपोऽहम् । बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दुबिम्बमन्यः क इच्छिति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥३॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं भक्तामरस्मरणम् । वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र ! शशाङ्ककान्तान् , कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्धया ? । कल्पान्तकालपवनोद्धतनकचक्रं, को वा तरीतुमलमम्बुनिधि भुजाभ्याम् ? ॥४॥ सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश !, कर्तुं स्तवं विंगतशक्तिरपि प्रवृत्तः। प्रीत्याऽऽत्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्र, नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ?॥4॥ अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम, त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति, तचारुचूतकलिकानिकरैकहेतुः ॥६॥ त्वत्संस्तवेन भवसन्ततिसन्निबद्धं, पापं क्षणात् क्षयमुपैति शरीरभाजाम् । आक्रान्तलोकमलिनीलमशेषमाशु, सूर्याशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् ॥ ७ ॥ मत्वेति नाथ ! तव संस्तवनं मयेद__ मारभ्यते तनुधियाऽपि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनीदलेषु, मुक्ताफलद्युतिमुपैति नन्दविन्दुः॥८॥ आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्तदोष, त्वत्सङ्कथाऽपि जगतां दुरितानि हन्ति । ___ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकाशभाञ्जि ॥ ९ ॥ नात्यद्भुतं भुवनभूषण ! भूतनाथ ! भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः । तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा, भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ? ॥ १० ॥ दृष्ट्रा भवन्तमनिमेषविलोकनीयं, नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः । पीत्वा पयः शशिकरद्युतिदुग्धसिन्धोः, क्षारं जलं जलनिधेरशितुं क इच्छेत् १ ॥ ११ ॥ यैः शान्तरागरुचिभिः परमाणुभिस्त्वं, निर्मातिस्त्रिभुवनैकललामभूत ! | तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां 'यत्ते समानमपरं नहि रूपमस्ति ॥ १२ ॥ वक्त्रं क्व ते सुरनरोरगनेत्रहारि, निःशेषनिर्जितजगत्रितयोपमानम् ? | बिम्बं कलङ्कमलिनं क निशाकरस्य ?, यद्वासरे भवति पाण्डुपलाशकल्पम् ॥ १३ ॥ सम्पूर्णमण्डलशशाङ्ककलाकलाप - शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लङ्घयन्ति । ये संश्रितास्त्रि जगदीश्वरनाथ मेकं, कस्तान्निवारयति सञ्चरतो यथेष्टम् ? ॥ १४ ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं मकामरलारणम् । चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशाहनाभि तं मनागपि मनो न विकारमार्गम् । कल्पान्तकालमरुता चलिताचलेन, किं मन्दरादिशिखरं चलितं कदाचित् १ ॥१५॥ निधूमवतिरपवर्जिततैलपूरः, कृत्स्नं जगत्रयमिदं प्रकटीकरोषि। गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाशः ॥१६॥ नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः, स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगन्ति । नाम्भोधरोदरनिरुद्धमहाप्रभावः, सूर्यातिशायिमहिमाऽसि मुनीन्द्र! लोके ॥१७॥ नित्योदयं दलितमोहमहान्धकार, . गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम् । विभ्राजते तव मुखाजमनल्पकान्ति, विद्योतयजगदपूर्वशशाङ्कबिम्बम् ॥१८॥ किं शर्वरीषु शशिनाहि विवस्वता वा, - युष्मन्मुखेन्दुदलितेषु तमस्तु नाथ!। निष्पन्नशालिवनशालिनि जीवलोके, कार्य कियज्जलधरैजलभारनः १ ॥ १९॥ ज्ञानं यथा स्वयि विभाति कृतावकाशं, नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषुः। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेजः स्फुरन्मणिषु याति पथा महत्त्वं, नैवं तु काचशकले किरणाकुलेऽपि ॥ २० ॥ मन्ये वरं हरिहरावय एव दृष्टा, दृष्टेषु येषु दयं त्वयि तोषमेति। किं वीक्षितेन भवता भुषि येन नान्यः, कश्चिन्मनो हरति नाथ! भवान्तरेऽपि ॥२१॥ स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान् , नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता। सर्वा दिशो दधति भानि सहस्ररम्मि, प्राच्येव दिग जनयति स्फुरदंशुजालम् ॥ २२ ॥ स्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांस मादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात् । त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु, नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र ! पन्थाः॥२३॥ त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसङ्घयमाचं, ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनङ्गकेतुम् ।। योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं, ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ॥ २४ ॥ धुद्धस्त्वमेव विषुधार्चितबुद्धिषोधात्, त्वं शङ्करोऽसि भुवनत्रयशङ्करस्वात् । धाताऽसि धीर! शिवमार्गधिविधानाद, व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥२५ ___ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं भक्तामरस्मरणम् । तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्त्तिहराय नाथ 1, तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय । तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन ! भवोदधिशोषणाय ॥ २६ ॥ को विस्मयोsa यदि नाम गुणैरशेषस्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश ! | दोषैरुपान्तविविधाश्रयजातगर्वैः, स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि ॥२७॥ उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूख माभाति रूपममलं भवतो नितान्तम् । स्पष्टोल्लसत्किरणमस्ततमोविलानं, L fati rafra पयोधरपार्श्ववर्ति ॥ २८ ॥ सिंहासने मणिमयूखशिखा विचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् । बिम्बं वियद्विलसदंशुलतावितानं, तुङ्गोदयाद्विशिरसीव सहस्ररश्मेः ॥ २९ ॥ कुन्दावदातचलचामरचारुशोभं, विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम् । उद्यच्छशाङ्कशुचिनिर्झरवारिधार सुस्त सुरगिरेरिव शातकौम्भम् ॥ ३० ॥ छत्रत्रयं तव विभाति शशाङ्ककान्तमुचैः स्थितं स्थगित भानुकर प्रतापम् । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे मुक्ताफलप्रकरजालविवृद्धशोभ, प्रख्यापयत्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥ ३१॥ उन्निद्रहेमनवपङ्कजपुञ्जकान्ती, पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥ ३२॥ इत्थं यथा तव विभूतिरभूजिनेन्द्र !, - धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य । यादा प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा, ताहक कुतो ग्रहगणस्य विकाशिनोऽपि ॥ ३३॥ श्योतन्मदाविलविलोलकपोलमूल मत्तभ्रमद्धमरनादविवृद्धकोपम् । ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं, दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् ॥३४॥ भिन्नेभकुम्भगलदुज्ज्वलशोणितात मुक्ताफलप्रकरभूषितभूमिभागः। बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि, नाकामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ।। ३५ ॥ कल्पान्तकालपवनोद्धतवहिकल्पं, . “दावानलं ज्वलितमुज्ज्वलमुत्फुलिङ्गम् । विश्वं जिघासुमिव सम्मुखमापतन्तं, स्वनामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ॥ ३६ ॥ ___ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं भक्तामरस्मरणम् । रक्तक्षणं समदकोकिलकण्ठनीलं, क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम् । आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तशङ्क स्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः ॥ ३७॥ वल्गत्तुरङ्गगजर्जितभीमनाद__ माजी बलं बलवतामपि भूपतीनाम् । उद्यद्दिवाकरमयूखशिखापविद्धं, त्वत्कीर्तनात् तम इवाशु भिदामुपैति ॥ ३८ ॥ कुन्ताग्रभिन्नगजशोणितवारिवाह वेगावतारतरणातुरयोधभीमे । युद्धे जयं विजितदुर्जयजेयपक्षा स्त्वत्पादपङ्कजवनायिणो लभन्ते ॥ ३९॥ अम्भोनिधौ क्षुभितभीषणनक्रचक्र पाठीनपीठभयदोल्वणवाडवानो। रङ्गत्तरङ्गशिखरस्थितयानपात्रा. स्त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद व्रजन्ति ॥४०॥ उद्भूतभीषणजलोदरभारभुनाः, शोच्यां दशामुपगताच्युतजीविताशाः। त्वत्पादपङ्कजरजोऽमृतदिग्धदेहा, मां भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः॥४१॥ आपादकण्ठमुरुशृङ्खलवेष्टिताङ्गा, गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्ठजनाः। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मवस्मरणादिसङ्कहे स्वन्नाममन्त्रमनिशं मनुजाः स्मरन्तः, सद्यः स्वयं विगतबन्धभया भवन्ति ॥४२॥ मत्तदिपेन्द्र-मृगराज-दवानला-हि सङ्ग्राम-वारिधि-महोदर-बन्धनोत्थम् । तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव, - यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥४३॥ स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र ! गुणैर्निबद्धां, भत्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम् । धत्ते जनो य इह कण्ठगतामजलं, तं मानतुङ्गमवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥ ४४ ॥ अष्टमं कल्याणमन्दिरस्तोत्रम् । कल्याणमन्दिरमुदारमवद्यभेदि, भीताभयप्रदमनिन्दितमधिपद्मम् । संसारसागरनिमजदशेषजन्तु पोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य ॥१॥ यस्य स्वयं सुरगुरुगरिमाम्धुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृतमतिर्न विभुविधातुम् । तीर्थेश्वरस्य कमठस्मयधूमकेतो. स्तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये ॥२॥ युग्मम् सामान्यतोऽपि तव वर्णयितुं स्वरूपमस्मादृशाः कथमधीश! भवन्त्यधीशाः। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टम कल्याणमन्दिरस्मरणम् । धृष्टोऽपि कौशिकशिशुर्यदि चा दिवान्धो, रूपं प्ररूपयति किं किल धर्मरश्मेः १ ॥३॥ मोहक्षयादनुभवन्नपि नाथ ! मर्यो, नूनं गुणान् गणयितुं न तव क्षमेत । कल्पान्तवान्तपयसः प्रकटोऽपि यस्मा न्मीयेत केन जलधेर्नेनु रत्नराशिः ॥४॥ अभ्युद्यतोऽस्मि तव नाथ ! जडाशयोऽपि, कतुं स्तवं लसदसङ्ख्यगुणाकरस्य । बालोऽपि किं न निजबाहयुगं वितत्य, विस्तीर्णतां कथयति स्वधियाऽम्पुराशेः॥५॥ ये योगिनामपि न यान्ति गुणास्तवेश!, वक्तुं कथं भवति तेषु ममावकाशः । जाता तदेवमसमीक्षितकारितेयं, जल्पन्ति वा निजगिरा ननु पक्षिणोऽपि ॥६॥ आस्तामचिन्त्यमहिमा जिन ! संस्तवस्ते, नामाऽपि पाति भवतो भवतो जगन्ति । तीव्रातपोपहतपान्थजनान् निदाधे, प्रीणाति पद्मसरसः सरसोऽनिलोऽपि ॥७॥ हृदर्तिनि त्वयि विभो ! शिथिलीभवन्ति, जन्तोः क्षणेन निविडा अपि कर्मबन्धाः। सद्यो भुजङ्गममपा इव मध्यभाग. मभ्यागते बनशिखण्डिनि चन्दनस्य ॥ ८॥ ___ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ मवस्मरणादिलबहे मुच्यन्त एव मनुजाः सहसा जिनेन्द्र !, - रौद्रैरुपद्रवशतैस्त्वयि वीक्षितेऽपि । गोस्वामिनि स्फुरिततेजसि दृष्टमात्रे, चौरैरिवाशु पशवः प्रपलायमानैः ॥९॥ त्वं तारको जिन ! कथं भविनांत एव, त्वामुखहन्ति हृदयेन यदुत्तरन्तः। यहा दृतिस्तरति यजलमेष नून मन्तर्गतस्य मरुतः स किलानुभावः ॥१०॥ यस्मिन् हरप्रभृतयोऽपि हतप्रभावाः, सोऽपि त्वया रतिपतिः क्षपितःक्षणेन । विध्यापिता हुतभुजः पयसाऽथ येन, पीतं न किं तदपि दुर्धरवाडवेन ? ॥११॥ स्वामिन्ननल्पगरिमाणमपि प्रपन्ना स्त्वां जन्तवः कथमहो! हृदये दधानाः। जन्मोदधि लघु तरन्त्यतिलाघवेन ?, चिन्त्यो न हन्त ! महतां यदि वा प्रभावः॥१२॥ क्रोधस्त्वया यदि विभो ! प्रथमं निरस्तो, ध्वस्तास्तदा बत कथं किल कर्मचौराः। लोषत्यमुत्र यदि वा शिशिराऽपि लोके, नीलमाणि विपिनानि न कि हिमानी? ॥१३॥ त्वां योगिनो जिन ! सदा परमात्मरूप. मन्वेषयन्ति हृदयाम्बुजकोशदेशे। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अक्रमं कल्याण विरस्मरणम् । पूतस्य निर्मलरुचेर्यदि वा किमन्यदक्षस्य सम्भवि पदं ननु कर्णिकायाः १ ॥ १४ ॥ ध्यानाज्जिनेश ! भवतो भविनः क्षणेन, देहं विहाय परमात्मदशां व्रजन्ति । तीव्रानलादुपलभावमपास्य लोके, चामीकरत्वमचिरादिव धातुभेदाः ।। १५ ।। अन्तः सदैव जिन ! यस्य विभाव्यसे त्वं, भव्यैः कथं तदपि नाशय से शरीरम् ? | एतत्स्वरूपमथ मध्यविवर्त्तिनो हि, यद्विग्रहं प्रशमयन्ति महानुभावाः ॥ १६ ॥ आत्मा मनीषिभिरयं त्वदभेदबुद्धया, ध्यातो जिनेन्द्र ! भवतीह भवत्प्रभावः । पानीयमप्यमृतमित्यनुचिन्त्यमानं, किं नाम नो विषविकारमपाकरोति ? ॥ १७ ॥ त्वामेव वीततमसं परवादिनोऽपि नूनं विभो ! हरिहरादिधिया प्रपन्नाः । किं काचकामलिभिरीश ! सितोऽपि शङ्को, नो गृह्यते विविधवर्णविपर्ययेण ? ॥ १८ ॥ धर्मोपदेशसमये सविधानुभावा दास्तां जनो भवति ते तरुरप्यशोकः । अभ्युद्गते दिनपतौ समहीरुहोऽपि, किं वा विबोधमुपयाति न जीवलोकः १ ॥ १९ ॥ २५ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे चित्रं विभो ! कथमवाङ्मुखवृन्तमेथ, विष्वक् पतत्यविरला सुरपुष्पवृष्टिः १ । त्वद्गोचरे सुमनसां यदि वा मुनीश !. गच्छन्ति नूनमध एव हि बन्धनानि ॥ २० ॥ स्थाने गभीर हृदयोदधिसम्भवायाः, पीयूषतां तव गिरः समुदीरयन्ति । पीत्वा यतः परमसम्मदसङ्गभाजो, भव्या व्रजन्ति तरसाऽप्यजरामरत्वम् ॥ २१ ॥ स्वामिन् । सुदूरमवनम्य समुत्पतन्तो, मन्ये वदन्ति शुचयः सुरवामरौघाः । येsस्मै नतिं विद्यते मुनिपुङ्गवाय, ते नूनमूर्ध्वगतयः खलु शुद्धभावाः ॥ २२ ॥ श्यामं गभीरगिरमुज्ज्वलहेमरत्न सिंहासनस्थमिह भव्यशिखण्डिनस्त्वाम् । आलोकयन्ति रभसेन नदन्तमुचै चामीकराद्रिशिरसीव नवाम्बुवाहम् ॥ २३ ॥ उद्गच्छता तव शितिद्युतिमण्डलेन, लुसच्छदच्छविरशोकतरुर्बभूव । सान्निध्यतोऽपि यदि वा तव वीतराग !, नीरागतां व्रजति को न सचेतनोऽपि १ ॥ २४ ॥ भो भोः ! प्रमादमवधूय भजध्वमेन मागत्य निर्वृतिपुरिं प्रति सार्थवाहम् । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमं कल्याणमन्दिर स्मरणम् । एतन्निवेदयति देव ! जगन्नयाय, मन्ये नदन्नभिनभः सुरदुन्दुभिस्ते ॥ २५ ॥ उद्योतितेषु भवता भुवनेषु नाथ !, तारान्वितो विधुरयं विहताधिकारः । मुक्ताकलापकलितोच्छ्रवसितातपत्र व्याजात् त्रिधा धृततनुर्ध्रुवमभ्युपेतः ॥ २६ ॥ स्वेन प्रपूरितजगन्नयपिण्डितेन, कान्ति-प्रताप - यशसामिव सञ्चयेन | माणिक्य- हेम-रजतप्रविनिर्मितेन, सालत्रयेण भगवन्नभितो विभासि ॥ २७ ॥ दिव्यस्रजो जिन ! नमत्रिदशाधिपाना मुत्सृज्य रनरचितानपि मौलिबन्धान् । पादौ श्रयन्ति भवतो यदि वा परत्र, त्वत्सङ्गमे सुमनसो न रमन्त एव ॥ २८ ॥ त्वं नाथ ! जन्मजलधेर्विपरामुखोऽपि, यत्तारयस्यसुमतो निजपृष्ठलग्नान् । युक्तं हि पार्थिवनिपस्य सतस्तबैव, चित्रं विभो ! यदसि कर्मविपाकशून्यः ॥ २९ ॥ विश्वेश्वरोऽपि जनपालक ! दुर्गतस्त्वं, किं वाऽक्षरप्रकृतिरप्यलिपिस्त्वमीश ! | अज्ञानवत्यपि सदैव कथश्चिदेव, ज्ञानं त्वयि स्फुरति विश्वविकाशहेतुः ॥ ३० ॥ ૨૭ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮ नवस्मरणादिस प्राग्भारसम्भृतनभांसि रजांसि रोषादुत्थापितानि कमठेन शठेन यानि । छायाऽपि तैस्तव न नाथ ! हता हताशो, ग्रस्तस्त्वमीभिरयमेव परं दुरात्मा ॥ ३१ ॥ यद् गर्जदूर्जितघनौघमद्भ्रभीमं, भ्रश्यतडिन्मुसलमांसलघोरधारम् । दैत्येन मुक्तमथ दुस्तरवारि दधे, तेनैव तस्य जिन ! दुस्तरवारिकृत्यम् || ३२ ॥ ध्वस्तोर्ध्वकेश विकृताकृतिमर्त्यमुण्डप्रालम्बभृद्भयद वक्त्रविनिर्यदग्निः । प्रेतव्रजः प्रति भवन्तमपीरितो यः, सोऽस्याऽभवत् प्रतिभवं भवदुःखहेतुः ॥ ३३ ॥ धन्यास्त एंव भुवनाधिप ! ये त्रिसन्ध्यमाराधयन्ति विधिवद् विधुतान्यकृत्याः । भक्त्योल्लसत्पुलकपक्ष्मलदेहदेशाः, पादद्वयं तव विभो ! भुवि जन्मभाजः ||३४|| अस्मिन्नपारभववारिनिधौ मुनीश !, मन्ये न मे श्रवणगोचरतां गतोऽसि । आकर्णिते तु तव गोत्रपवित्रमन्त्रे, किं वा विपद्विषधरी सविधं समेति १ ॥ ३५ ॥ जन्मान्तरेऽपि तव पादयुगं न देव !, मन्ये मया महितमीहितदानदक्षम् । Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमं कल्याणमन्दिर स्मरणम् । तेनेह जन्मनि मुनीश ! पराभवानां, जातो निकेतनमहं मथिताशयानाम् ॥ ३६ ॥ नूनं न मोहतिमिराषृतलोचनेन, विभो ! सकृदपि प्रविलोकितोऽसि । मर्माविधो विधुरयन्ति हि मामनर्थाः प्रोद्यत्प्रबन्धगतयः कथमन्यथैते ? ॥ ३७ ॥ आकर्णितोऽपि महितोऽपि निरीक्षितोऽपि, नूनं न चेतसि मया विधृतोऽसि भक्त्या । जातोऽस्मि तेन जनबान्धव ! दुःखपात्रं, यस्मात् क्रियाः प्रतिफलन्ति न भावशून्याः ॥ ३८ ॥ त्वं नाथ ! दुःखिजनवत्सल ! हे शरण्य !, कारुण्यपुण्यवसते ! वशिनां वरेण्य ! | भक्त्या नते मयि महेश ! दयां विधाय, दुःखाङ्कुरोद्दलनतत्परतां विधेहि ॥ ३९ ॥ निःसङ्घभ्यसारशरणं शरणं शरण्य मासाथ सादितरिपु प्रथितावदातम् । स्वत्पादपङ्कजमपि प्रणिधानवन्ध्यो, वध्योऽस्मि चेद् भुवनपावन ! हा हतोऽस्मि ||४० ॥ देवेन्द्रवन्द्य ! विदिताखिलवस्तुसार 1, संसारतारक ! विभो ! भुवनाधिनाथ ! | त्रायस्व देव ! करुणाद ! मां पुनीहि, सीदन्तमद्य भयव्यसनाम्बुराशे ॥ ४१ ॥ २९ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ममस्मरणादिसहे. यद्यस्ति नाथ ! भवदनिसरोरुहाणां, भक्तेः फलं किमपि सन्ततिसञ्चितायाः। तन्मे त्वदेकशरणस्य शरण्य ! भूयाः, स्वामी त्वमेव भुवनेऽत्र भवान्तरेऽपि ॥४२॥ इत्थं समाहितधियो विधिवजिनेन्द्र !, सान्द्रोल्लसत्पुलकक किताङ्गाभागाः। स्वद्विम्बनिर्मलमुखाम्बुजबद्धलक्षा, ये संस्तवं तव विभो ! रचयन्ति भव्या ॥४॥ जननयनकुमुदचन्द्रप्रभास्वराः स्वर्गसम्पदो भुक्त्वा । ते विगलितमलनिचया, अचिरान्मोक्षं प्रपद्यन्ते ॥ ४४ ॥ युग्मम् ॥ नवमं बृहच्छान्तिस्मरणम् । भो भो भव्या ! शृणुत वचनं प्रस्तुतं सर्वमेतद्, __ ये यात्रायां त्रिभुवनगुरोराहता भक्तिभाजः । तेषां शान्तिर्भवतु भवतामहदादिप्रभावा- दारोग्य-श्रीधृति-मतिकरी क्लेशविध्वंसहेतुः ॥१॥ भो भो भव्यलोकाः ! इह हि भरतैरावतविदेहसम्भवानां समस्ततीर्थकृतां जन्मन्यासनप्रकम्पानन्तरमवधिना विज्ञाय सौधर्माधिपतिः सुघोषाघण्टाचालनानन्तरं सकालसुरासुरेन्द्रः सह समागत्य, सविनयमहद्र Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं पहच्छान्तिस्मरणम् । ३१ द्वारकं गृहीत्वा, गत्वा कनकाद्रिशृङ्गे, विहितजन्माभिषेक शान्तिमुद्घोषयति यथा, ततोऽहं कृतानुकारमिति कृत्वा 'महाजनो येन गतः स पन्थाः' इति भव्यजनैः सह समेत्य, लात्रपीठे स्लानं विधाय, शान्तिमुद्घोषयामि, तत्पूजा-यात्रा-लात्रादिमहोत्सवानन्तरमिति कृत्वा कर्ण दरवा निशम्यतां निशम्यतां स्वाहा।। ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां प्रीयन्तां भगवन्तोऽर्हन्तः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिनस्त्रिलोकनाथास्त्रिलोकमहितास्त्रिलोकपूज्यास्त्रिलोकेश्वरात्रिलोकोद्योतकराः। ॐ ऋषभ-अजित-सम्भव-अभिनन्दन सुमति-पमप्रभ-सुपार्श्व-चन्द्रप्रभ-सुविधि-शीतल-श्रेयांस-वासुपूज्यविमल-अनन्त-धर्म-शान्ति-कुन्थु-अर-मल्लि-मुनिसुव्रतनमि-नेमि-पार्श्व-वर्धमानान्ता जिनाः शान्ताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा । ॐ मुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजय-दुर्भिक्ष कान्तारेषु दुर्गमार्गेषु रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा । ॐ श्री-ही-धृति-मति-कीर्ति-कान्ति-बुद्धि-लक्ष्मी-मेधाविद्यासाधन-प्रवेश-निवेशनेषु सुगृहीतनामानो जयन्तु ते जिनेन्द्राः। ॐ रोहिणी-प्रज्ञप्ति-वजशृङ्खला-वजाकशी अप्रति का चका-पुरुषदता-काली-महाकाली-गौरी-गारधारी-साखर Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ नवस्मरणादिसङ्कहे महाज्वाला-मानवी-वैरोव्या-अच्छुप्ता-मानसी-महामानसी षोडश विद्यादेव्यो रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा । ॐ आचार्योपाध्यायप्रभृतिचातुर्वर्ण्यस्य श्रीश्रमणसङ्घस्य शान्तिर्भवतु तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु।। ॐ ग्रहाश्चन्द्र-सूर्या-ऽङ्गारक-बुध-बृहस्पति-शुक्र-शनैश्रर-राहु-केतुसहिताः सलोकपालाः सोम-यम-वरुणकुबेर वासवा-ऽऽदित्य-स्कन्द-विनायकोपेता ये चाऽन्ये. ऽपि ग्राम-नगर-क्षेत्रदेवतादयस्ते सर्वे प्रीयन्तां प्रीयन्तां, अक्षीणकोष-कोष्ठागारा नरपतयश्च भवन्तु स्वाहा । ॐ पुत्र-मित्र-भ्रातृ-कलत्र-सुहृत्-स्वजन-सम्बन्धि. बन्धुवर्गसहिता नित्यं चाऽऽमोदप्रमोदकारिणः, अस्मिश्व भूमण्डलायतननिवासिसाधु-साध्वी-श्रावक-श्रावि. काणां रोगोपसर्ग-व्याधि-दुःख-दुर्भिक्ष-दौमनस्योपशमनाय शान्तिभवतु। ___तुष्टि-पुष्टि-ऋद्धि-वृद्धि-माङ्गल्योत्सवाः सदा प्रादु. भूतानि पापानि शाम्यन्तु दुरितानि, शत्रवः पराङ्मुखा भवन्तु स्वाहा । ___ श्रीमते शान्तिनाथाय, नमः शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्याऽमराधीशमुकुटाभ्यर्चिताप्रये ॥ १ ॥ शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान् , शान्ति दिशतु से गुरुः। शान्तिरेव सदा तेषां येषां शान्तिर्गहे गृहे ॥ . . Tona! Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं बृहच्छान्तिस्मरणम् । पृष्टरिष्ट-दुष्ट ग्रहगति दुःस्वप्न दुर्निमित्तादि । सम्पादितहितसम्पन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ॥ ३ ॥ श्रीसङ्घ-जगज्जनपद- राजाधिप- राजसन्निवेशानाम् । गोष्ठिक - पुरमुख्याणां व्याहरणैर्व्याहरेच्छान्तिम् ॥ ४ ॥ श्रीश्रमणसङ्घस्य शान्तिर्भवतु, श्रीपौरजनस्य शान्तिर्भवतु, श्रीजनपदानां शान्तिर्भवतु, श्रीराजाधिपानां शान्तिर्भवतु, श्रीराजसन्निवेशानां शान्तिर्भवतु, श्रीगोष्टिकानां शान्तिर्भवतु, श्रीपौरमुख्याणां शान्तिभवतु, श्रीब्रह्मलोकस्य शान्तिर्भवतु, ँ स्वाहा ँ स्वाहा ॐ श्रीपार्श्वनाथाय स्वाहा । एषा शान्तिः प्रतिष्ठा - यात्रा - स्नात्राद्यवसानेषु शान्तिकलशं गृहीत्वा कुङ्कुम-चन्दन- कर्पूरा-गरुधूप-वासकुसुमाञ्जलिसमेतः स्नात्रचतुष्किकायां श्रीसङ्घसमेतः शुचिशुचिवपुः पुष्प - वस्त्र-चन्दना - ऽऽभरणालङ्कृतः पुष्पमालां कण्ठे कृत्वा शान्तिमुद्घोषयित्वा शान्तिपानीयं मस्तके दातव्यमिति । नृत्यन्ति नित्यं मणिपुष्पवर्ष, सृजन्ति गायन्ति च मङ्गलानि । स्तोत्राणि गोत्राणि पठन्ति मन्त्रान्, कल्याण भाजो हि जिनाभिषेके ॥ १ ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥ २ ॥ ३३ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ . नवस्मरणादिसङ्घहे अहं तित्थयरमाया, सिवादेवी तुम्ह नयरनिवासिनी। अम्ह सिवं तुम्ह सिवं, असिवोवसमं सिवं भवतु॥३॥ स्वाहा। उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः। मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥४॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ५॥ इति नवस्मरणानि ॥ जयतिहुअणस्तोत्रम् । जय तिहुअणवरकप्परक्ख !जय जिण! धनंतरि ! जय तिहुअणकल्लाणकोस ! दुरिअकरिकेसरि!। तिहुअणजणअविलंधिआण ! भुवणत्तयसामिअ!, कुणसुसुहाई जिणेस!पास!थंभणयपुरद्विअ! ॥१॥ तइ समरंत लहंति झत्ति वरपुत्तकलत्तइ, धण्णसुवण्णहिरण्णपुण्ण जण भुंजइ रजइ।। पिक्खा मुक्ख असंखसुक्ख तुह पास ! पसाइण, इअ तिहुअणवरकप्परक्ख ! सुक्खइ कुण मह जिण ! जरजजर परिजुण्णकण्ण नट्ट सुकुहिण, चक्खुक्खीण खएण खुण्ण नरसल्लिय सूलिण। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयतिहुमणस्तोत्रम् । तुह जिण ! सरणरसायणेण लहु हुंति पुणण्णव, जयधनंतरि ! पास! महवि तुह रोगहरो भव ॥ ३ ॥ विजा-जोइस-मंत-तंत-सिद्धिउ अपयत्तिण, भुवणब्भुउ अविह सिद्धि सिज्झहि तुह नामिण । तुह नामिण अपवित्तओ वि जण होइ पवित्तउ, तं तिहुअणकल्लाणकोस! तुह पास ! निरुत्तउ ॥४॥ खुद्दपउत्तइ मंत-तंत-जंताइ विसुत्तइ, चर-थिरगरल-गहुग्गखग्गरिउवग्ग विगंजइ । दुत्थियसत्थ अणत्थपत्थ नित्थारइ दय करि, दुरिअइ हरउ स पासदेव दुरिअक्करिकेसरि ॥५॥ तुह आणा थंभेइ भीमदप्पुद्धरसुरवररक्खसजक्खफणिंदविंदचोरानलजलहर । जल-थलचारिरउद्दखुद्दपसुजोइणिजोइअ, इअतिहुअणअविलंघिआण!जय पास!सुसामि । पत्थियअत्थ अणत्थतत्थ भत्तिभरनिन्भर, रोमंचंचिअचारुकाय किन्नर-नर-सुरवर । जसु सेवहि कमकमलजुअल पक्खालिअकलिमलु, सो भुवणत्तयसामि पास मह मद्दउ रिउबलु ॥७॥ जय जोइअमणकमलभसल! भयपंजरकुंजर!, तिहुअणजणआणंदचंद ! भुवणत्तयदिणयर !। जय मइमेइणिवारिवाह ! जयजंतुपिआमह!, थंभणअहिअ ! पासनाह ! नाहत्तण कुण मह ॥८॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे बहुविहवन्नु अवन्नु सुन्नु वन्न छप्पन्निहि, मुक्खधम्मकामत्थकाम नर नियनियसत्थिहि । जं झायहि बहुदरिसणत्थ बहुनामपसिद्धउ, सो जो अमणकमलभसल सुहु पास पवद्धउ ॥ ९ ॥ भयविन्भल रणझणिरदसण थरहरियसरीरय, तरलियनयण विसरण सुण्ण गग्गिरगिर करुणया । तइ सहसन्ति सरंति हुंति नर नासियगुरुदर, मह विज्झवि सज्झसह पास ! भयपंजरकुंजर ! ॥ १० ॥ प पासिवि वियसंतनित्तपत्तंतपवित्तिय बाहपवाहपवूढरूढदुहदाह सुपुलइय । मण्णइ मण्णु सउण्णु पुण्णु अप्पाणं सुर-तर, इय तिहुअणआनंदचंद ! जय पास जिणेसर ! ॥ ११ ॥ तुह कल्लाणमहेसु घंटट कारवपिल्लिय, वल्लिरमल्ल महल्लभत्ति सुरवर गंजुल्लिय । हल्लुप्फलिय पवत्तयंति भुवणे वि मह्सव, इय तिहुअणआणंदचंद ! जय पास ! सुहुन्भव ! ॥ १२ ॥ निम्मलकेवल किरणनियरविहुरिअतमपहयर 1, दंसियमयलपयत्थसत्य ! वित्थरियपहाभर ! | कलिकलु सिअजणघूयलोयलोयणह अगोयर !, तिमिरह निरु हर पासनाह ! भुवणत्तयदिणयर ||१३|| - तुह समरणमलवरिससित माणवमइमेइणि, अवरावरसुहुमत्थषोहकंदलदल रेहणि । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयतिहु अणस्तोत्रम् | जायइ फलभरभरिय हरियदुहदाह अणोवम, इय मइमेइणिवारिवाह ! दिस पास ! मई मम । ॥ १४ ॥ कयअविकलकल्लाणवल्लि उल्लूरियदुहवणु, दावियसग्गऽपवग्गमग्ग दुग्गइगमवारणु । जयजंतुह जणएण तुल जं जणिय हियावहु, रम्मु धम्मु सो जयउ पास जयजंतुपियामहु ॥ १५ ॥ भुवणारण्णनिवास दरिय परदरिसणदेवय, जोइणि-पूअण - खितवाल - खुद्दासुर-पसुवय । तुह उत्त सुन सुट्ट अविसंटुलु चिट्ठहि, इय तिहुअणवणसीह ! पास ! पावाइ पणासहि ॥ १६ ॥ फणिफणफार फुरंतरयणकररंजिअनहयल !, फलिणीकंदलदल-तमाल - निलुप्पलसामल ! | कमठासुरउवसग्गवग्गसंसग्गअगंजिअ !, जय पच्चक्ख जिणेस ! पास ! थंभणयपुरट्ठिअ ! ॥ १७ ॥ मह मणु तरलु पमाणु नेय वाया वि विसंटुलु, न य तणुरवि अविणयसहावु आलसविहलंघलु । तुह माह पमाणु देव ! कारुण्णपवित्त, इय मइ मा अवहोरि पास ! पालिहि विलवंत ॥१८॥ किं किं कप्पिड ण य ? कलुणु किं किं व न जंपिउ ?, किं व न चिट्ठिउ कि देव !, दीणयमवलंबिउ ? | कासु न किय निष्फल्ल लल्लि अम्हेर्हि दुहन्तिहि ?, तह विन पत्त ताणु किं पिपई पहु ! परिचत्तिहि ॥ १९ ॥ ३७ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ नवस्मरणादिसङ्ग्र तुहु सामिउ तुहु माय बप्पु तुहु मित्त पियंकरु, तुहु गइ तुहु मह तुहु जि ताणु तुहु गुरु खेमंकरु | हउं दुहभरभारिउ वराउ राउल निग्भग्गह, लीणउ तुह कमकमलसरणु जिण ! पालहि चंगह ॥ २० ॥ पइ किवि कय नीरोय लोय किवि पाविय सुहसय, किवि महमंत महंत केवि किवि साहियसिवपय । किवि गंजियरिउवग्ग केवि जसधवलिअभूअल, मइ अवहीरहि केण पास ! सरणागयवच्छल ! १ ॥ २१ ॥ पच्चुवयारनिरीह ! नाह ! निष्पण्णपओअण !, तुह जिण ! पास ! परोवयारकरणिक्कपरायण ! | सत्तु[मित्तसमचित्तवित्ति ! नय-निंदयसममण !, मा अवहीर अजुग्गओ वि मई पास ! निरंजण ! ||२२|| हवं बहुविहदुहतत्तगत्तु तुह दुहनासणपरु, हउं सुयाह करुणिक्कठाणु तुहु निरु करुणायरु । हउं जिण! पास ! असामिसाल तुहु तिहुअणसामिअ, जं अवहीरहि मई झंखंत इय पास ! न सोहिय ॥ २३ ॥ जुग्गाजुग्गविभाग नाह ! न हु जोयहि तुह सम, भुवणुवयार सहावभाव करुणारससत्तम । समविसमहं किं घणु नियइ भुवि दाह समंतर, इय दुहिबंधव ! पासनाह ! मह पाल थुणंतउ ||२४| न य दीणह दीणय मुयवि अन्नुवि किवि जुग्गय, जं जोइवि उवयारु करहि उवयारसमुज्जय । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयतिहुअणस्तोत्रम् । दीणह दीणु निहीणु जेण तइ नाहिण चत्तउ, तो जुग्गउ अहमेव पास ! पालहि मइ चंगउ ॥२५॥ अह अन्नु वि जुग्गयविसेसु किवि मन्नहि दीणह, जं पासिवि उवयारु करहि तुह नाह! समग्गह । सुचिय किल कल्लाणु जेण जिण ! तुम्ह पसीयह, किं अनिण तं चेव देव ! मा मइ अवहीरह ॥२६॥ तुह पत्थण न हु होइ विहल जिण ! जाणउ किं पुण, हउं दुक्खिय निरु सत्तचत्त दुकहु उस्सुयमण। तं मन्नउ निमिसेण एउ एउ वि जइ लब्भइ, सचं जं भुक्खियवसेण किं उंबरु पच्चइ ? ॥२७॥ तिहुअणसामिय ! पासनाह ! मइ अप्पु पयासिउ, किजउ जनियरूवसरिसु न मुणउ बहु जंपिउ । अन्नु न जिण! जगि तुह समो वि दक्खिन्नदयासउ, जइ अवगण्णसि तुह जि अहह !कह होसुहयासउ ?॥२८ जइ तुह रूविण किण वि पेयपाइण वेलवियउ, तु वि जाणउ जिण पास ! तुम्हि हउं अंगीकिरिउ । इय मह इच्छिउ जं न होइ सा तुह ओहावणु, रक्खंतह नियकित्ति णेय जुजइ अवहीरणु ॥२९॥ एह महारिह जत्त देव ! इहु न्हवणमहूसउ, जं अणलियगुणगहण तुम्ह मुणिजणअणिसिद्धउ । एम पसीयसु पासनाह ! थंभणयपुरट्ठिय !, इय मुणिवरु सिरिअभयदेउ विण्णवइ अणिदिय॥३०॥ - Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ नवस्मरणादिसङ्कहे श्रीपार्श्वनाथस्य मन्त्राधिराजस्तोत्रम् । श्रीपार्श्वः पातु वो नित्यं, जिनः परमशङ्करः। नाथः परमशक्तिश्च, शरण्यः सर्वकामदः ॥१॥ सर्वविघ्नहरः स्वामी, सर्वसिद्धिप्रदायकः । सर्वसत्त्वहितो योगी, श्रीकरः परमार्थदः ॥२॥ देवदेवः स्वयंसिद्धश्चिदानन्दमयः शिवः। . परमात्मा परब्रह्म, परमः परमेश्वरः ॥ ३॥ जगन्नाथः सुरज्येष्ठो, भूतेशः पुरुषोत्तमः । सुरेन्द्रो नित्यधर्मश्च, श्रीनिवासः शुभार्णवः ॥४॥ सर्वज्ञः सर्वदेवेशः, सर्वदः सर्वगोत्तमः । सर्वात्मा सर्वदर्शी च, सर्वव्यापी जगद्गुरुः ॥५॥ तत्त्वमूर्तिः परादित्यः, परब्रह्मप्रकाशकः। परमेन्दुः परप्राणः, परमामृतसिद्धिदः ॥ ६ ॥ अजः सनातनः शम्भुरीश्वरश्च सदाशिवः । विश्वेश्वरः प्रमोदात्मा, क्षेत्राधीशः शुभप्रदः ॥७॥ साकारश्च निराकारः, सकलो निष्कलोऽव्ययः। निर्ममो निर्विकारश्च, निर्विकल्पो निरामयः ॥८॥ अमरश्चाजरोऽनन्त, एकोऽनन्तः शिवात्मकः । अलक्ष्यश्चाऽप्रमेयश्च, ध्यानलक्ष्यो निरञ्जनः ॥९॥ ॐकाराकृतिरव्यक्तो. व्यक्तरूपस्त्रयीमयः । ब्रह्मव्यप्रकाशात्मा, निर्भयः परमाक्षरः॥ १० ॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पार्श्वनाथमन्त्राधिराजस्तोत्रम् । दिव्यतेजोमयः शान्तः, परामृतमयोऽच्युतः । आद्योऽनाद्यः परेशानः, परमेष्ठी परः पुमान् ॥ ११ ॥ 'शुद्धस्फटिकसङ्काशः, स्वयम्भूः परमाच्युतः । व्योमाकारस्वरूपश्च लोकालोकावभासकः ॥ १२ ॥ ज्ञानात्मा परमानन्दः, प्राणारूढो मनःस्थितिः । मनः साध्यो मनोध्येयो, मनोदृश्यः परापरः ॥ १३ ॥ सर्वतीर्थमयो नित्यः सर्वदेवमयः प्रभुः । भगवान् सर्वतत्त्वेशः, शिवश्रीसौख्यदायकः ॥ १४ ॥ इति श्रीपार्श्वनाथस्य, सर्वज्ञस्य जगद्गुरोः । दिव्यमष्टोत्तरं नाम, शतमत्र प्रकीर्तितम् ॥ १५ ॥ पवित्रं परमं ध्येयं, परमानन्ददायकम् । भुक्तिमुक्तिप्रदं नित्यं, पठेच मङ्गलप्रदम् ॥ १६ ॥ श्रीमत्परमकल्याणसिद्धिदः श्रेयसेऽस्तु वः । पार्श्वनाथजिनः श्रीमान्, भगवान् परमः शिवः ||१७|| घरणेन्द्रफणच्छत्रालङ्कृतो वः श्रियं प्रभुः । दद्यात् पद्मावतीदेव्यां, समधिष्ठितशासनः ॥ १८ ॥ ध्यायेत् कमलमध्यस्थं, श्रीपार्श्व जगदीश्वरम् । ॐ ह्रीँ श्रीं हः समायुक्तं, केवलज्ञानभास्करम् ॥ १९ ॥ पद्मावत्याऽन्वितं वामे, धरणेन्द्रेण दक्षिणे । परितोऽष्टदलस्थेन, मन्त्रराजेन संयुतम् ॥ २० ॥ अष्टपत्रस्थितैः पञ्चनमस्कारैस्तथा त्रिभिः । ज्ञानाद्यैर्वेष्टितं नाथं, धर्मार्थकाममोक्षदम् ॥ २१ ॥ ४१ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसाहे शतषोडशदलारूढं, विद्यादेवीभिरन्वितम् । चतुर्विशतिपत्रस्थं, जिनं मातृसमावृतम् ॥ २२ ॥ मायावेष्टत्रयाग्रस्थं, नौकारसहितं प्रभुम् । नवग्रहावृतं देवं, दिक्पालैदशभिवृतम् ॥ २३ ॥ चतुष्कोणेषु मन्त्राद्यचतुर्बीजान्वितैर्जिनैः। चतुरष्टदशदित्रिद्विधाङ्कसंज्ञकैयुतम् ॥ २४॥ दिक्षु क्षकारयुक्तेन, विदिक्षु लाङ्कितेन च । चतुरस्रेण वज्राङ्कक्षितितत्त्वे प्रतिष्ठितम् ॥ २५ ॥ श्रीपार्श्वनाथमित्येवं, यः समाराधयेजिनम् । तं सर्वपापनिर्मुक्तं, भजते श्रीः शुभप्रदा ॥ २६ ॥ जिनेश! पूजितो भक्त्या, संस्तुतः प्रस्तुतोऽथवा । ध्यातस्त्वं यैः क्षणं वापि, सिद्धिस्तेषां महोदया ॥२७॥ श्रीपार्श्वमन्त्रराजान्ते, चिन्तामणिगुणास्पदम् । शान्तिपुष्टिकरं नित्यं, क्षुद्रोपद्रवनाशनम् ॥ २८ ॥ ऋद्धिसिद्धिमहाबुद्धिधृतिश्रीकान्तिकीर्तिदम् । मृत्युञ्जयं शिवात्मानं, जपनान्नन्दितो जनः ॥ २९ ॥ सर्वकल्याणपूर्णः स्याजरामृत्युविवर्जितः। अणिमादिमहासिद्धि, लक्षजापेन चाप्नुयात् ॥ ३० ॥ प्राणायाममनोमन्त्रयोगादमृतमात्मनि । त्वामात्मानं शिवं ध्यात्वा,स्वामिन् ! सिध्यन्ति जन्तवः Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रहशान्तिस्तोत्रम् । ४३ हर्षदः कामदश्चेति, रिपुनः सर्वसौख्यदः । पातु वः परमानन्दलक्षणः संस्मृतो जिनः ॥ ३२॥ तत्त्वरूपमिदं स्तोत्रं, सर्वमङ्गलसिद्धिदम् । त्रिसन्ध्यं यः पठेन्निन्यं, नित्यं प्रामोति स श्रियम् ॥३३॥ श्रीग्रहशान्तिस्तोत्रम् । जगद्गरं नसस्कृत्य, श्रुत्वा सद्रुभाषितम् । ग्रहशान्ति प्रवक्ष्यामि, लोकानां सुखहेतवे ॥१॥ जिनेन्द्रैः खेचरा ज्ञेयाः, पूजनीयाविधिक्रमात् । पुष्पैविलेपनैधूपैनैवेद्यैस्तुष्टिहेतवे ॥२॥ पद्मप्रभस्य मार्तण्डश्चन्द्रश्चन्द्रप्रभस्य च । वासुपूज्यस्य भूपुत्रो, बुधोऽप्यष्टजिनेषु च ॥३॥ विमलानन्तधर्माराः, शान्तिः कुन्थुमिस्तथा। वर्धमानस्तथैतेषां, पादपद्मे बुधं न्यसेत् ॥ ४ ॥ ऋषभाजितसुपाश्चिाभिनन्दनशीतलौ । सुमतिः सम्भवस्वामी, श्रेयांसश्चैषु गीष्पतिः ॥५॥ सुविधेः कथितः शुक्रः, सुव्रतस्य शनैश्चरः। नेमिनाथे भवेद् राहु, केतुः श्रीमल्लिपार्श्वयोः ॥६॥ जनाँल्लग्ने च राशौ च, पीडयन्ति यदा ग्रहाः। तदा सम्पूजयेद्धीमान् , खेचरैः सहितान् जिनान् ॥७॥ नवकोष्ठकमालेख्यं, मण्डलं चतुरस्रकम् । ग्रहास्तत्र प्रतिष्ठाप्या, वक्ष्यमाणाः क्रमेण तु ॥८॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसाहे मध्ये हि भास्करः स्थाप्यः, पूर्वदक्षिणतः शशी। दक्षिणस्यां धरासूनुर्बुधः पूर्वोत्तरेण च ॥९॥ उत्तरस्यां सुराचार्यः, पूर्वस्यां भृगुनन्दनः। पश्चिमायां शनिः स्थाप्यो, राहुर्दक्षिणपश्चिमे ॥१०॥ पश्चिमोत्तरतः केतुरिति स्थाप्याः क्रमाद् ग्रहाः । पट्टे स्थालेऽथवाऽऽग्नेय्यां, ईशान्यां तु सदा बुधैः ॥११॥ आदित्यसोममङ्गलवुधगुरुशुक्राः शनैश्वरो राहुः। केतुप्रमुखाः खेटा, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु ॥ १२ ॥ पुष्पगन्धादिभिधूपैनैवेद्यैः फलसंयुतैः । वर्णसदृशदानैश्च, वस्त्रैश्च दक्षिणान्वितैः ॥ १३ ।। जिननामकृतोचारा, देशनक्षत्रवर्णकैः। पूजिताः संस्तुता भक्त्या, ग्रहाः सन्तु सुखावहाः ॥१४॥ जिनानामग्रतः स्थित्वा, ग्रहाणां शान्तिहेतवे । नमस्कारसमं भक्त्या , जपेदष्टोत्तरं शतम् ॥ १५ ॥ एवं यथानामकृताभिषेकैरालेपनर्धपनपूजनैश्च । फलैश्च नैवेद्यवरैर्जिनानां, नान्ना ग्रहेन्द्रा वरदा भवन्तु ॥१६॥ साधुभ्यो दीयते दान, महोत्साहो जिनालये । चतुर्विधस्य सङ्घस्य, बहुमानेन पूजनम् ॥१७॥ भद्रबाहुरुवाचैवं, पश्चमः श्रुतकेवली। विद्याप्रवादतः पूर्वाद् , ग्रहशान्तिरुदीरिता ॥१८॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवज्रपारस्तोत्रम् । श्रीवज्रपञ्जरस्तोत्रम् । S CIS परमेष्ठिनमस्कारं, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वज्रपञ्जराभं स्मराम्यहम् ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं, अङ्गरक्षाऽतिशायिनी। ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोदृढम् ॥ ३॥ ॐ नमो लोए सव्वसाहणं, मोचके पादयोः शुभे । एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले ॥४॥ सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः । मंगलाणं च सवेसिं, खादिराङ्गारखातिका ॥५॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवह मंगलं । वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे ॥६॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा । तस्य न स्याद् भय व्याधिराधिश्वाऽपि कदाचन ॥८॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे श्री जिनपञ्जर स्तोत्रम् । श्रीँ अर्ह श्रीपरमात्मने नमः । ॐ नमः श्रीगुरुपदाम्बुजेभ्यो नमः । अर्हयो नमो नमः । ૪૬ हीँ श्रीँ अर्ह सिद्धेभ्यो नमो नमः । अ आचार्येभ्यो नमो नमः । उपाध्यायेभ्यो नमो नमः । अहं गौतमस्वामिप्रमुख सर्वसाधुभ्यो नमो नमः ॥ १ ॥ एष पञ्चनमस्कारः, सर्वपापक्षयङ्करः । मङ्गलानां च सर्वेषां प्रथमं भवति मङ्गलम् ॥ २ ॥ जये विजये, अर्ह परमात्मने नमः । कमलप्रभसूरीन्द्रो, भाषते जिनपञ्जरम् ॥ ३ ॥ एकभक्तोपवासेन, त्रिकालं यः पठेदिदम् । मनोऽभिलषितं सर्व, फलं स लभते ध्रुवम् ॥ ४ ॥ भूशय्या - ब्रह्मचर्येण, क्रोध लोभविवर्जितः । देवताग्रे पवित्रात्मा, षण्मासैर्लभते फलम् ॥ ५ ॥ अर्हन्तं स्थापयेन्मूर्ध्नि, सिद्धं चक्षुर्ललाटके । आचार्य श्रोत्रयोर्मध्ये, उपाध्यायं तु नासिके ॥ ६ ॥ साधुवृन्दं मुखस्याग्रे, मनःशुद्धिं विधाय च । सूर्य-चन्द्रनिरोधेन, सुधीः सर्वार्थसिद्धये ॥ ७ ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजिनपञ्जरस्तोत्रम् । दक्षिणे मदनद्वेषी, वामपार्श्वे स्थितो जिनः। । अङ्ग-सन्धिषु सर्वज्ञः, परमेष्टी शिवङ्करः ॥ ८॥ पूर्वाशां च जिनो रक्षेदाग्नेयीं विजितेन्द्रियः। दक्षिणाशां परं ब्रह्म, नैऋती च त्रिकालवित् ॥९॥ पश्चिमाशां जगन्नाथो, वायव्यां परमेश्वरः। उत्तरां तीर्थकृत् सर्वामीशानेऽपि निरञ्जनः ॥ १० ॥ पातालं भगवानहन्नाकाशं पुरुषोत्तमः। रोहिणीप्रमुखा देव्यो, रक्षन्तु सकलं कुलम् ॥११॥ ऋषभो मस्तकं रक्षेदजितोऽपि विलोचने । सम्भवः कर्णयुगलेऽभिनन्दनस्तु नासिके ।। १२ ॥ ओष्ठौ श्रीसुमती रक्षेद्, दन्तान पद्मप्रभो विभुः। जिह्वां सुपार्श्वदेवोऽयं, तालु चन्द्रप्रभाभिधः ॥ १३ ॥ कण्ठं श्रीसुविधी रक्षेद् , हृदयं जिनशीतलः। श्रेयांसो बाहुयुगलं, वासुपूज्यः करद्वयम् ॥ १४॥ अङ्गुलीविमलो रक्षेदनन्तोऽसौ नखानपि । श्रीधर्मोऽप्युदरास्थीनि, श्रीशान्ति भिमण्डलम् ॥१५॥ श्रीकुन्थुर्गुह्यकं रक्षेदरो लोमकटीतटम् । मल्लिरूरुपृष्ठमंशं, पिण्डिकां मुनिसुव्रतः ॥१६॥ पादाङ्गुलीनमी रक्षेच्छ्रीनेमिश्चरणद्वयम् । श्रीपार्श्वनाथः सर्वाङ्ग, वर्धमानश्चिदात्मकम् ॥ १७ ॥ पृथिवीजलतेजस्कवाय्वाकाशमयं जगत् । रक्षेदशेषपापेभ्यो, वीतरागो निरञ्जनः ॥१८॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे राजद्वारे श्मशाने च सङ्ग्रामे शत्रुसङ्कटे । व्याघ्र-चौरा - sग्नि-सर्पादि-भूत-प्रेतभयाश्रिते ॥ १९ ॥ अकाले मरणे प्राप्ते, दारिद्यापत्समाश्रिते । अपुत्रत्वे महादुःखे, मूर्खत्वे रोगपीडिते ॥ २० ॥ डाकिनी - शाकिनीग्रस्ते, महाग्रहगणार्दिते । नगुत्ताऽध्ववैषम्ये, व्यसने चाऽऽपदि स्मरेत् ॥ २१ ॥ प्रातरेव समुत्थाय यः स्मरेज्जिनपञ्जरम् । तस्य किञ्चिद् भयं नास्ति, लभते सुखसम्पदः ॥ २२ ॥ जिनपञ्जरनामेदं यः स्मरेदनुवासरम् । कमलप्रभसूरीन्द्रश्रियं स लभते नरः ॥ २३ ॥ प्रातः समुत्थाय पठेत् कृतज्ञो, यः स्तोत्रमेतज्जिनपञ्जरस्य । आसादयेत् सः कमलप्रभाख्यो, लक्ष्मीं मनोवाञ्छितपूरणाय ॥ २४ ॥ श्रीरुद्रपल्लीय वरेण्यगच्छे, देवप्रभाचार्यपदाब्जहंसः । वादीन्द्रचूडामणिरेष जैनो, जीयादसौ श्रीकमलप्रभाख्यः ॥ २५ ॥ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगौतमस्थाम्यष्टकम् । श्रीगौतमस्वाम्यष्टकम् । श्रीइन्द्रभूति वसुभूतिपुत्रं, पृथ्वीभवं गौतमगोत्ररत्नम् । स्तुवन्ति देवाऽसुरमानवेन्द्राः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ॥१॥ श्रीवर्धमानात् त्रिपदीमवाप्य, मुहूर्तमात्रेण कृतानि येन। अङ्गानि पूर्वाणि चतुर्दशाऽपि, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ॥२॥ श्रीवीरनाथेन पुरा प्रणीतं, मन्त्रं महानन्दसुखाय यस्य। ध्यायन्त्यमी सूरिवराः समग्राः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ॥ ३ ॥ यस्याभिधानं मुनयोऽपि सर्वे, गृह्णन्ति भिक्षाभ्रमणस्य काले मिष्टान्नपानाम्बरपूर्णकामाः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ॥४॥ अष्टापदाद्रौगगने स्वशक्त्या, ययौ जिनानां पदवन्दनाय । निशम्य तीर्थातिशयं सुरेभ्यः, स गौतमो यच्छतु वान्छितं मे ॥ ५॥ त्रिपश्चसङ्ख्याशततापसानां, तपाकृशानामपुनर्भवाय । अक्षीणलब्ध्या परमान्नदाता, स गौतमोयच्छतुवाञ्छितं मे ॥६॥ सदक्षिणं भोजनमेव देयं, साधर्मिकं सङ्घसपर्ययेति । कैवल्यवस्त्रं प्रददौ मुनीनां, स गौतमो यच्छतु वाच्छितं मे ॥ ७॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० नवस्मरणादिसङ्ग्रहे शिवं गते भर्तरि वीरनाथे, युगप्रधानत्वमिहैव मत्वा । पट्टाभिषेको विदधे सुरेन्द्रः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ॥ ८ ॥ त्रैलोक्यबीजं परमेष्ठिबीजं, सद्ध्यान वीजं जिनराजबीजम् । यन्नाम चोक्तं विदधाति सिद्धिं स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ॥ ९ ॥ श्रीगौतमस्याष्टकमादरेण प्रबोधकाले मुनिपुङ्गवा ये । पठन्ति ते सूरिपदं च देवानन्दं लभन्ते नितरां क्रमेण 11 20 11 श्रीशत्रुञ्जय तीर्थस्तोत्रम् | पूर्णानन्दमयं महोदयमयं कैवल्यचिद्दृङ्मयं, रुपातीतमयं स्वरूपरमणं स्वाभाविकी श्रीमयम् । ज्ञानोद्योतमयं कृपारसमयं स्याद्वादविद्यालयं, श्रीसिद्धाचलतीर्थराजमनिशं वन्देऽहमादीश्वरम् ॥ १ ॥ श्रीमद्युगादीश्वरमात्मरूपं, योगीन्द्रगम्यं विमलाद्रि संस्थम् । सज्ज्ञानसद्दृष्टिसुदृष्ट लोकं, श्रीनाभिसूनुं प्रणमामि नित्यम् ॥ २ ॥ राजादनाधस्तनभूमिभागे, युगादिदेवा‌ङ्घ्रिसरोजपीठम् । देवेन्द्रवन्द्यं सुरराजपूज्यं, सिद्धाचलाग्रस्थितमर्चयामि ॥ ३ ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीशत्रुञ्जयतीर्थस्तोत्रम् । आदिप्रभोर्दक्षिणदिग्विभागे, सहस्रकूटे जिनराजमूर्तीः। सौम्याकृतीः सिद्धततीनिभाश्च, शत्रुञ्जयस्थाः परिपूजयामि ॥ ४ ॥ आदिप्रभोर्वक्त्रसरोरुहाच, विनिर्गतां श्रीत्रिपदीमवाप्य । यो द्वादशाङ्गी:विदधे गणेशः, स पुण्डरीको जयताच्छिवाद्रौ ॥ ५। चउद्दसाणं सयसंखयाणं, बावण्णसहियाण गणाहिवाणं । सुपाउआ जत्थ विराजमाणा, सत्तुंजयं तं पणमामि णिचं ॥६॥ चत्तट्टकम्मा परिणामरम्मा, लद्धप्पधम्मा सुगुणेहिं पुण्णा । चत्तारि अट्ठा दस दुण्णि देवा, अट्ठावए ताण जिणाण वंदे ॥७॥ अणंतणाणीण अणंतदंसिणो, अणंतसुक्खाण अणंतवीरिणो । वीसं जिणा जत्थ सिवं पवण्णा, सम्मेअसेलं तमहं थुणामि ॥८॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे जत्थेव सिद्धो पढमो मुणिंदो, गणाहियो पुंडरिओ विसिहो । अगसाहू परिवारसंजुओ, तं पुंडरीयाचलमच्चयामि ॥ ९ ॥ विमलगिरिवतंसः सिद्धिगङ्गाम्बुहंसः, सकलसुखविधाता दर्शनज्ञानदाता । प्रणतसुरनरेन्द्रः केवलज्ञानचन्द्रः, सृजतु मुदमुदारां नाभिजन्मा जिनेन्द्रः ॥ १० ॥ ५२ पञ्चषष्टियन्त्रगर्भितं श्रीचतुर्विंशतिजिनस्तोत्रम् । वन्दे धर्मजिनं सदा सुखकरं चन्द्रप्रभं नाभिजं, श्रीमद्वीरजिनेश्वरं जयकरं कुन्थुं च शान्ति जिनम् । मुक्तिश्रीफलदाय्यनन्तमुनिपं वन्दे सुपार्श्व विभुं, श्रीमन्मेघनृपात्मजं च सुखदं पार्श्व मनोऽभीष्टदम् ॥ १ ॥ श्रीनेमीश्वरसुव्रतौ च विमलं पद्मप्रभं सांवरं, सेवे सम्भवशङ्करं नमिजिनं मलि:जयानन्दनम् । वन्दे श्रीजिनशीतलं च सुविधिं सेवेऽजितं मुक्तिदं, श्रीस बत पञ्चविंशतितमं साक्षादरं वैष्णवम् ॥ २ ॥ स्तोत्रं सर्वजिनेश्वरैरभिगतं मन्त्रेषु मन्त्रं वरं, एतत्सङ्गतयन्त्र एव विजयो द्रव्यैर्लिखित्वा शुभैः । पार्श्वे सन्ध्रियमाण एवं सुखदो माङ्गल्यमालाप्रदो, वामा वनिता नरास्तदितरे कुर्वन्ति ये भावतः ॥ ३ ॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चषष्टियन्त्रभितं स्तोत्रम् । प्रस्थाने स्थितियुद्धवादकरणे राजादिसन्दर्शने, वश्याथै सुतहेतवे धनकृते रक्षन्तु पार्चे सदा। मार्गे संविषमे दवाग्निज्वलिते चिन्तादिनि शने, यन्त्रोऽयं मुनिनेत्रसिंहकविना सङ्ग्रन्थितः सौख्यदः ॥४॥ पञ्चषष्टियन्त्रस्थापना - ३ २१ | १९ / १२ / १० पञ्चषष्टियन्त्रगर्भितं श्रीचतुर्विंशतिजिनस्तोत्रम् । आदौ नेमिजिनं नौमि, सम्भवं सुविधि तथा । धर्मनाथं महादेवं, शान्ति शान्तिकरं सदा ॥१॥ अनन्तं सुव्रतं भक्त्या, नमिनाथं जिनोत्तमम् । अजितं जितकन्दपे, चन्द्रं चन्द्रसमप्रभम् ॥ २॥ आदिनाथं तथा देवं, सुपाव विमलं जिनम् । मल्लिनाथं गुणोपेतं, धनुषां पञ्चविंशतिम् ॥ ३ ॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे अरनाथं महावीरं, सुमतिं च जगद्गुरुम् । श्रीपद्मप्रभनामानं, वासुपूज्यं सुरैर्नतम् ॥ ४॥ शीतलं शीतलं लोके, श्रेयांसं श्रेयसे सदा। कुन्थुनाथं च वामेयं, श्रीअभिनन्दनं जिनम् ॥५॥ जिनानां नामभिर्बद्धः, पञ्चषष्टिसमुद्भवः। यन्त्रोऽयं राजते यत्र, तत्र सौख्यं निरन्तरम् ॥६॥ यस्मिन् गृहे महाभत्त्या, यन्त्रोऽयं पूज्यते बुधैः। भूतप्रेतपिशाचादिभयं तत्र न विद्यते ॥७॥ सकलगुणनिधानं यन्त्रमेनं विशुद्धं, हृदयकमल को धीमतां ध्येयरूपम् । जयतिलकगुरुश्रीसूरिराजस्य शिष्यो, वदति सुखनिदानं मोक्षलक्ष्मीनिवासम् ॥८॥ पञ्चषष्टियन्त्रस्थापना. १९ २० २१/ २ / ८ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद् ऋषिमण्डलस्तोत्रम् । बृहद् ऋषिमण्डलस्तोत्रम् । आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं व्याप्य यत् स्थितम् । अग्निज्वालासमं नादबिन्दुरेखासमन्वितम् ॥ १॥ अग्निज्वालासमाक्रान्तं, मनोमलविशोधनम् । देदीप्यमानं हृत्पद्म, तत् पदं नौमि निर्मलम् ॥२॥ अहमित्यक्षरं ब्रह्म-वाचकं परमेष्ठिनः। . सिद्धचक्रस्य सदबीजं, सर्वतः प्रणिध्महे ॥३॥ ॐ नमोऽहंय ईशेभ्यः, ॐ सिद्धेभ्यो नमो नमः । ॐ नमः सर्वसूरिभ्यः, उपाध्यायेभ्य ॐ नमः ॥ ४ ॥ ॐ नमः सर्वसाधुभ्यः, ऊँ ज्ञानेभ्यो नमो नमः । ॐ नमः तत्त्वदृष्टिभ्यः, चारित्रेभ्यस्तु ॐ नमः ॥५॥ श्रेयसेऽस्तु श्रियेऽस्त्वेतत् , अहंदाद्यष्टकं शुभम् । स्थानेष्वष्टमु विन्यस्तं, पृथग्बीजसमन्वितम् ॥ ६॥ आद्य पदं शिखां रक्षेत्, परं रक्षेत् तु मस्तकम् । तृतीयं रक्षेद् नेत्रे द्वे, तुर्य रक्षेच्च नासिकाम् ॥७॥ पश्चमं तु मुखं रक्षेत्, षष्ठं रक्षेच्च घण्टिकाम् । नाभ्यन्तं सप्तमं रक्षेत्, रक्षेत् पादान्तमष्टमम् ॥ ८॥ पूर्व प्रणवतः सान्तः, सरेफो द्वयब्धिपञ्चषान् । सप्ताष्टदशसूर्याङ्कान् . श्रितोबिन्दुस्वरान् पृथक् ॥९॥ पूज्यनामाक्षरा आद्याः, पश्चातो ज्ञान-दर्शने । चारित्रेभ्यो नमो मध्ये, ही सान्तः समलंकृतः॥१०॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसले [मूलमन्त्रोद्धारः- हाँ हाँ हूँ हूँ हूँ हूँ हाँ हूःअसि आउ सा सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्रेभ्यो नमः।] जम्बूवृक्षधरो द्वीपः, क्षारोदधिसमावृतः। अहंदाद्यष्टकैरष्टकाष्ठाधिष्टैरलंकृतः ॥ ११ ॥ तन्मध्ये सङ्गतो मेरुः, कूटलरलंकृतः। उच्चरुच्चैस्तरस्तारः, तारामण्डलमंडितः ॥ १२॥ तस्योपरि सकारान्तं, बीजमध्यास्य सर्वगम् । नमामि बिम्बमार्हन्त्यं, ललाटस्थं निरंजनम् ॥ १३ ॥ अक्षयं निर्मलं शान्तं, बहुलं जाड्यतोज्झितम् । निरीहं निरहंकारं, सारं सारतरं धनम् ॥ १४ ॥ अनुद्धतं शुभं स्फीतं, सात्विकं राजसं मतम् । तामसं चिरसंबुद्धं, तैजसं शर्वरीसमम् ॥ १५॥ साकारं च निराकारं, सरसं विरसं परम् । परापरं परातीतं, परम्पर-परापरम् ॥ १६ ॥ सकलं निष्कलं तुष्टं, निवृतं भ्रान्तिवर्जितम् । निरंजनं निराकरं, निर्लेपं वीतसंश्रयम् ॥ १७॥ ईश्वरं ब्रह्मसंबुद्धं बुद्धं सिद्धं मतं गुरुम् । ज्योतिरूपं महादेवं, लोकालोकप्रकाशकम् ॥ १८ ॥ अर्हदाख्यस्तु वर्णान्तः, सरेको बिन्दुमण्डितः । तुर्यस्वरकलायुक्तो, बहुधा नादमालितः ॥ १९ ॥ एकवर्ण द्विवर्ण च, त्रिवर्ण तुर्यवर्णकम् । पञ्चवर्ण महावर्ण, सपरं च परापरम् ॥ २० ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद् ऋषिमण्डलस्तोत्रम् । अस्मिन् बीजे स्थिताः सर्वे, ऋषभाद्या जिनोत्तमाः। वर्गेनिजैनियुक्ताः, ध्यातव्याः तत्र सङ्गताः ॥ २१॥ नादः चन्द्रसमाकारो, बिन्दुर्नीलसमप्रभः । कलारुणसमा सान्तः, स्वर्णाभः सर्वतोमुखः ॥ २२ ॥ शिरः संलीन ईकारो विनीलो वर्णतः स्मृतः । वर्णानुसारसंलीनं तीर्थकृन्मण्डलं स्तुमः ॥ २३ ॥ चन्द्रप्रभ-पुष्पदन्तौ, नादस्थितिसमाश्रितो। बिन्दुमध्यगतौ नेमि-सुव्रतौ जिनसत्तमौ ॥ २४ ॥ पद्मप्रभ-वासुपूज्यौ, कलापदमधिष्ठितौ। शिर 'ई' स्थितिसंलीनी, पाच-मल्ली जिनोत्तमौ ॥ २५ ।। शेषाः तीर्थकृतः सर्वे, 'ह-र'स्थाने नियोजिताः। मायावीजाक्षरं प्राप्ता, चतुर्विशतिरहेताम् ॥ २६ ॥ ऋषभं चाजितं वन्दे, सम्भवं चाभिनन्दनम् । श्रीसुमति सुपार्श्व च, वन्दे श्रीशीतलं जिनम् ॥ २७ ॥ श्रेयांसं विमलं वन्देऽनन्तं श्रीधर्मनाथकम् । शान्ति कुन्थुमरार्हन्तं, नमि वीरं नमाम्यहम् ॥ २८ ॥ षोडशैवं जिनानेतान्, गाङ्गेयद्युतिसन्निभान् । त्रिकालं नौमि सद्भक्त्या, 'ह-राक्षरमधिष्ठितान् ॥२९॥ गतराग-द्वेषमोहाः, सर्वपापविवर्जिताः। सर्वदा सर्वकालेषु, ते भवन्तु जिनोत्तमाः ॥ ३० ॥ देवदेवस्य यचक्र, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु डाकिनी ॥ ३१ ॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्घहे देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु राकिनी ॥ ३२॥ देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु लाकिनी ॥ ३३ ॥ देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां माहिनस्तु काकिनी ॥३४॥ देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्गं, मां मा हिनस्तु शाकिनी ॥ ३५ ॥ देवदेवस्य यञ्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु हाकिनी ॥ ३६॥ देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु याकिनी ॥ ३७॥ देवदेवस्य यचक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु नागिनी ॥ ३८॥ देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु जाकिनी ॥ ३९ ॥ देवदेवस्य यचक्र, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु भाकिनी ॥४॥ देवदेवस्य यच्चक्र, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु योगिनी ॥४१॥ देवदेवस्य यच्चक्र, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु व्यन्तरी ॥४२॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद् ऋषिमण्डलस्तोत्रम् । देवदेवस्य यच्चक्र, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु मानवी ॥ ४३ ॥ देवदेवस्य यच्चक्र, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तुजृम्भिणी ॥४४॥ देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिनस्तु दैवं हि ॥४५॥ देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्गं, मां मा हिनस्तु जृम्भिका ॥ ४६ ॥ देवदेवस्य यचक्र, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु पन्नगाः ॥४७॥ देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वातं, मांमा हिंसन्तु गोनसाः ॥४८॥ देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्गं, मां मा हिंसन्तु दंष्टि गः॥४९॥ देवदेवस्य यचक्र, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु वृश्चिकाः ॥५० ।। देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु सिंहकाः ॥५१॥ देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्गं, मां मा हिंसन्तु चित्रकाः ॥ ५२ ॥ देवदेवस्य यच्चक्र, तस्य चक्रस्य या विभा। तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु हस्तिनः ॥५३ ॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० नवस्मरणादिसङ्ग्रहे * " देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु रेपलाः ॥ ५४ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग मां मा हिंसन्तु शूकराः ॥ ५५ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु ग्रामिणः ॥ ५६ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु शत्रवः ॥ ५७ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु हिंसकाः ॥ ५८ ॥ देवदेवस्य यच्चकं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु दुर्जनाः ॥ ५९ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु तस्कराः ॥ ६० ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु पाप्मानः ॥ ६१ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु तोयदाः ॥ ६२ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु वह्नयः ॥ ६३ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु व्याधयः ॥ ६४ ॥ , 9 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद् ऋषिमण्डलस्तोत्रम् | देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु शृङ्गिणः ॥ ६५ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु पक्षिणः ॥ ६६ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु देवताः ॥ ६७ ॥ दवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु व्यन्तराः ॥ ६८ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु किन्नराः ॥ ६९ ॥ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु खेचराः ॥ ७० ॥ देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु राक्षसाः ॥ ७१ ॥ देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु मुद्गलाः ॥ ७२ ॥ 9 देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु दानवाः ॥ ७३ ॥ ६१ देवदेवस्य यचक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु कुग्रहाः ॥ ७४ ॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग, मां मा हिंसन्तु भूमिपाः ।। ७५ ।। " देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा । तयाच्छादितसर्वाङ्ग सा मां पातु सदैव हि ॥ ७६ ॥ श्री गौतमस्य या मुद्रा, तस्या या भुवि लब्धयः । ताभिरभ्यधिकं ज्योतिः, अर्हन् सर्वनिधीश्वरः ॥ ७७ ॥ पातालवासिनो देवाः, देवाः भूपीठवासिनः । स्वर्वासिनोऽपि ये देवाः सर्वे रक्षन्तु मामितः ॥ ७८ ॥ " येsaधिलब्धयो ये तु, परमावधिलब्धयः । ते सर्वे मुनयो दिव्याः, मां संरक्षन्तु सर्वदा ॥ ७९ ॥ भवनेन्द्र-व्यन्तरेन्द्र - ज्योतिष केन्द्र-कल्पेन्द्रेभ्यो नमो नमः । श्रुतावधि - देशावधि परमावधि - सर्वावधि-बुद्धिऋद्धिप्राप्त सर्वैषधर्द्धिप्राप्त - अनन्तावध्यर्द्धिप्राप्त-तपऋद्धिप्राप्त रसद्धिप्राप्त वैक्रियद्धिप्राप्त क्षेत्राद्विप्राप्त अक्षीणमहानसद्धिप्राप्तेभ्यो नमः । ॐ ह्रीः श्रीश्च धृतिर्लक्ष्मीः, गौरी चण्डी सरस्वती । जयाऽम्बा विजया क्लिन्नाऽजिता नित्या मदद्रवा ॥ ८० ॥ कामाङ्गा कामबाणा च, सानन्दानन्दमालिनी । माया मायाविनी रौद्री, कला काली कलिप्रिया ॥ ८१ ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहद् ऋषिमण्डलस्तोत्रम् | एताः सर्वा महादेव्योः वर्त्तन्ते या जगत्त्रये । मह्यं सर्वाः प्रयच्छन्तु, कान्तिं कीर्त्तिधृतिं मतिम् ॥८२॥ विशेषकम् । दुर्जना भूत- वेतालाः पिशाचा मुद्गलास्तथा । ते सर्वेऽप्युपशाम्यन्तु देवदेवप्रभावतः ॥ ८३ ॥ दिव्यो गोप्यः सुदुष्प्रापः, श्रीऋषिमण्डलस्तवः | भाषितः तीर्थनाथेन, जगत्त्राणकृतेऽनघः ॥ ८४ ॥ रणे राजकुले वहौ, जले दुर्गे गजे हरौ । श्मशाने विपिने घोरे, स्मृतो रक्षति मानवम् ॥ ८५ ॥ राज्यभ्रष्टा निजं राज्यं, पदभ्रष्टा निजं पदम् । लक्ष्मीभ्रष्टा निजां लक्ष्मीं प्राप्नुवन्ति न संशयः ॥ ८६ ॥ भार्यार्थी लभते भार्या, सुतार्थी लभते सुतम् । वित्तार्थी लभते वित्तं नरः स्मरणमात्रतः ॥ ८७ ॥ विशेषकम् । स्वर्णे रौप्ये पटे कांस्ये, लिखित्वा यस्तु पूजयेत् । तस्यैवाष्टमहासिद्धिर्गृहे वसति शाश्वती ॥ ८८ ॥ भूर्जपत्रे लिखित्वेदं, गलके मूर्ध्नि वा भुजे । धारितं सर्वदा दिव्यं सर्वभीतिविनाशकम् ॥ ८९ ॥ भूतैः प्रेतग्रहैर्यक्षैः पिशाचैर्मुद्गलैर्मलैः । वातपित्तकफोद्रेकैः, मुच्यते नात्र संशयः ॥ ९० ॥ ६३ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे भूर्भुवःस्वस्त्रयीपीठवर्तिनः शाश्वता जिनाः । तैः स्तुतैर्वन्दितैष्टैर्यत् फलं तत् फलं स्मृतौ ॥ ९१ ॥ एतद् गोप्यं महास्तोत्रं, न देयं यस्य कस्यचित् । मिथ्यात्ववासिने दत्ते, बालहत्या पदे पदे ॥ ९२ ॥ आचाम्लादि तपः कृत्वा पूजयित्वा जिनावलीम् । अष्टसाहस्त्रिको जापा, कार्यः तसिद्धिहेतवे ॥ ९३ ॥ शतमष्टोत्तरं प्रातः, ये स्मरन्ति दिने दिने । तेषां न व्याधयो देहे. प्रभवन्ति न चापदः ॥ ९४ ॥ युग्मम्॥ अष्टमासावधि यावत्, प्रातः प्रातस्तु यः पठेत् । स्तोत्रमेतत् महातेजो, जिनबिम्बं स पश्यति ॥ ९५ ॥ दृष्टे सत्यहतो विम्बे, भवे सप्तमके ध्रुवम् । पदमाप्नोति शुद्धात्मा, परमानन्दसम्पदाम् ॥ ९६ ॥ युग्मम् । विश्ववन्द्यो भवेद ध्याता, कल्याणानि च सोऽश्नुते । गत्वा स्थानं परं सोऽपि, भूयस्तु न निवर्तते ॥ ९७ ॥ इदं स्तोत्रं महास्तोत्रं, स्तुतीनामुत्तमं परम् । पठनात् स्मरणाद जापाद् , लभते पदमव्ययम् ॥ ९८॥ ___ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नाकरपञ्चविंशिका | रत्नाकरपञ्चविंशिका | श्रेयः श्रियां मङ्गलकेलिसद्म !, नरेन्द्रदेवेन्द्रनाङ्घ्रिपद्म ! | सर्वज्ञ ! सर्वातिशयप्रधान !, चिरं जय ज्ञानकलानिधान ! ॥ १ ॥ जगत्रयाधार ! कृपावतार !, दुर्वारसंसारविकारवैद्य ! | श्रीवीतराग ! त्वयि मुग्धभावाद्, विज्ञ ! प्रभो ! विज्ञपयामि किञ्चित् ॥ २ ॥ किं बाललीलाकलितो न बालः, पित्रोः पुरो जल्पति निर्विकल्पः ? । तथा यथार्थ कथयामि नाथ !, निजाशयं सानुशयस्तचाऽग्रे ॥ ३ ॥ दत्तं न दानं परिशीलितं च, न शालि शीलं न तपोऽभितप्तम् । शुभो न भावोऽप्यभवद् भवेऽस्मिन्, विभो ! मया भ्रान्तमहो ! मुधैव ॥ ४ ॥ दग्धोऽग्निना क्रोधमयेन दष्टो, दुष्टेन लोभाख्यमहोरगेण । ग्रस्तोऽभिमानाजगरेण माया जालेन बद्धोऽस्मि कथं भजे त्वाम् ? ॥ ५ ॥ ६५ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे कृतं मयाऽमुत्र हितं न चेह, लोकेऽपि लोकेश ! खुखं न मेऽभूत् । अस्मादृशां केवलमेव जन्म, जिनेश ! जज्ञे भवपूरणाय || ६ || मन्ये मनो यन्न मनोज्ञवृत्तं, स्वदास्यपीयूषमयूख लाभात् । द्रुतं महानन्दरसं कठोर मस्मादृशां देव ! तदश्मतोऽपि ॥ ७ ॥ त्वत्तः सुदुष्प्रापमिदं मयाऽऽप्तं, रत्नत्रयं भूरिभवभ्रमेण । प्रमादनिद्रावशतो गतं तत्, कस्याग्रतो नायक ! पूत्करोमि ? ॥ ८ ॥ वैराग्यरङ्गः परवञ्चनाय, धर्मोपदेशो जनरञ्जनाय । वादाय विद्याध्ययनं च मेऽभूत्, किय ब्रुवे हास्यकरं स्वमीश ! ? ॥ ९ ॥ परापवादेन मुर्ख सदोषं, नेत्रं परस्त्रीजनवीक्षणेन । चेतः परापायविचिन्तनेन, कृतं भविष्यामि कथं विभोऽहम् ॥ १० ॥ विडम्बितं यत् स्मरघस्मरार्ति दशावशात् स्वं विषयान्धलेन । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नाकरपञ्चविंशिका | प्रकाशितं तद् भवतो हियैव, सर्वज्ञ ! सर्व स्वयमेव वेत्सि ॥ ११ ॥ ध्वस्तोsन्यमन्त्रैः परमेष्ठिमन्त्रः, कुशास्त्रवाक्यैर्निहतागमोक्तिः । कर्तु वृथा कर्म कुदेवसङ्गा दवाञ्छि ही नाथ ! मतिभ्रमो मे ॥ १२ ॥ विमुच्य दृग्लक्ष्यगतं भवन्तं, ध्याता मया मूढधिया हृदन्तः । कटाक्षवक्षोजगभीरनाभि कटीतटीयाः सुदृशां बिलासाः ॥ १३ ॥ लोलेक्षणावक्त्रनिरीक्षणेन, यो मानसे रागलवो विलग्नः । न शुद्धसिद्धान्त पयोधिमध्ये, धौतोऽप्यगात्तारक ! कारणं किम् ? ॥ १४ ॥ अङ्गं न चङ्गं न गणो गुणानां, न निर्मलः कोऽपि कलाविलासः । स्फुरत्प्रभा न प्रभुता च काऽपि, तथाऽप्यहङ्कारकदर्थितोऽहम् ॥ १५ ॥ आयुर्गलत्याशु न पापबुद्धि र्गतं वयो नो विषयाभिलाषः । यत्नश्च भैषज्यविधौ न धर्मे, स्वामिन्! महामोह विडम्बना मे ॥ १६ ॥ ६७ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे नात्मा न पुण्यं न भवो न पापं, मया विटानां कटुगीरपीयम् । आधार कर्णे त्वयि केवलार्के, परिस्फुटे सत्यपि देव ! धिङ् माम् ॥ १७ ॥ न देवपूजा न च पात्रपूजा, न श्राद्धधर्मश्च न साधुधर्मः । लब्ध्वाऽपि मानुष्यमिदं समस्तं, कृतं मयाऽरण्यविलापतुल्यम् ॥ १८ ॥ चक्रे मयाऽसत्स्वपि कामधेनुheya - चिन्तामणिषु स्पृहातिः । न जैनधर्मे स्फुटशर्मदेऽपि, जिनेश ! मे पश्य विमूढभावम् ॥ १९ ॥ सगोगलीला न च रोगकीला, धनागमो नो निधनागमश्च । दारा न कारा नरकस्य चित्ते, व्यचिन्ति नित्यं मयकाऽधमेन || २० || स्थितं न साधोर्हृदि साधुवृत्तात्, परोपकारान्न यशोऽर्जितं च । कृतं न तीर्थोद्धरणादि कृत्यं, मया सुधा हारितमेव जन्म ॥ २१ ॥ वैराग्यरङ्गो न गुरुदितेषु, न दुर्जनानां वचनेषु शान्तिः । Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नाकरपञ्चविशिका | नाsध्यात्मलेशो मम कोऽपि देव !, कार्यः कथङ्कारमयं भवाब्धिः ॥ २२ ॥ पूर्वे भवेऽकारि मया न पुण्यमागामिजन्मन्यपि नो करिष्ये । यदीदृशोऽहं मम तेन नष्टा, भूतोद्भवद्भाविभवत्रयीश ! ॥ २३ ॥ किं वा सुधाऽहं बहुधा सुधाभुक् पूज्य ! त्वदग्रे चरितं स्वकीयम् । जल्पामि ? यस्मात् त्रिजगत्स्वरूप frastrवं कियदेतदत्र १ || २४ || दीनोद्धारधुरन्धरस्त्वदपरो नास्ते मदन्यः कृपापात्र नात्र जने जिनेश्वर । तथाऽप्येतां न याचे श्रियम् । किं स्वर्हन्निदमेव केवलमहो ! सोधिरत्नं शिवं, श्रीरत्नाकर ! मङ्गलैकनिलय ! श्रेयस्करं प्रार्थये ॥ २५ ॥ ६९ श्रीशत्रुञ्जयलघुकल्पः । अइमुत्तकेवलिणा कहिअं सेतुंजतित्थमाहप्पं । नारयरिसिस्स पुरओ तं निसुणह भावओ भविआ ! ॥ १ ॥ सेतुंजे पुंडरीओ सिद्धो मुणिकोडीपंच संजुत्तो । चित्तस्स पुण्णिमाए सो भण्णइ तेण पुंडरिओ || २ || नमि विनमी रायागो सिद्धा फोडीहिं दोहिं साहूणं । तह दविड वारिखिल्ला य निव्बुआ दस य कोडीओ ॥३॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे पज्जुन्न - संवपमुहा अट्टाओ कुमारकोडीओ । तह पंडवा वि पंच य सिद्धिगया नारयरिसी य ॥४॥ थावच्चासुय सुय-सेलगाय मुणिणो वि तह य राममुणी । भरहो दसरह तो सिद्धा वंदामि सेतुंजे ॥५॥ अन्ने वि खवियमोहा उस भाइविसालवंससंभूआ | जे सिद्धा सेतुंजे तं नमह मुणी असंखिज्जा ॥ ६ ॥ पन्नास जोयणाई आसी सेत्तंजवित्थरो मूले । दस जोयण सिहरतले उच्चत्तं जोयणा अ ||७|| जं लहइ अन्नतित्थे उग्गेण तवेण बंभचेरेण । तं लहइ पयतेणं सेतुंजगिरिम्मि निवसंतो ॥८॥ जं कोडीए पुण्णं कामियआहार भोइया जे उ । तं लहइ तत्थ पुण्णं एगोवासेण सेतुंजे ॥९॥ जं किंचि नाम तित्थं सग्गे पायालि माणुसे लोए । तं सव्वमेव दिट्ठ पुंडरिए वंदिए संते ॥ १०॥ पडिला भंते संघ दिमदिट्ठे य साहु सेतुंजे । कोडिगुणं च अदिट्ठे दिट्ठे अ अनंतयं होइ ॥ ११ ॥ केवलनाणुपपत्ती निव्वाण आसि जत्थ साहूणं । पुंडरिए वंदिता सव्वे ते वंदिया तत्थ ||१२|| अट्ठावय सम्मेए पावा चंपाड उज्जयंतनगे । वंदित्ता पुण्णफलं सयगुणयं तं पि पुंडरिए ॥ १३ ॥ पूआकरणे पुण्णं एगगुणं सयगुणं च पडिमाए । जिणभवणेण सहस्सं णंतगुणं पालणे होइ ॥ १४ ॥ ७० Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीशत्रुअयलघुकल्पः। पडिमं चेइहरं वा सित्तंजगिरिस्स मत्थए कुणइ । भुतूण भरहवासं निवसइ सग्गे निरुवसग्गे ॥१५॥ नवकार पोरिसीए पुरिमड्ढेगासणं च आया। पुंडरियं च सरंतो फलकंखी कुणइ अभतटुं ॥१६॥ छट्ट-अट्ठम-दसम-दुवालसाण मासऽद्धमासखवणाणं । तिगरणसुद्धो लहई सित्तुजं संभरंतो अ॥१७॥ छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं तु सत्त जताई। जो कुणई सेत्तुंजे तइयभवे लहइ सो मुक्खं ॥१८॥ अज वि दीसइ लोए भत्तं चइऊण पुंडरीयनगे। सग्गे सुहेण वच्चइ सीलविहूणो वि होऊणं ॥१९॥ छत्तं-झयं-पडागं-चामर-भिंगार-थालदाणेणं । विजाहरो अ हवई तह चक्की होइ रहदाणा ॥२०॥ दस वीस तीस चत्ता पन्नासा पुप्फदामदाणेण। लहई चउत्थ-छ?-ऽट्ठम-दसम-दुवालसफलाइं ॥२१॥ धूवे पक्खुववासो मासक्खमणं कपूरधूवम्मि । कित्तिय मासक्खमणं साहू पडिलाभिए लहइ ॥२२॥ न वि तं सुवन-भूमी भूसणदाणेण अन्नतित्थेसु । जं पावइ पुण्णफलं पूआ-न्हवणेण सित्तुंजे ॥२३॥ कंतार-चोर-सावय-समुद्द-दारिद्द-रोग-रिउरुद्धा। मुच्चंति अविग्घेणं जे सेत्तुजं धरंति मणे ॥ २४ ॥ सारावलीपयनगगाहाओ सुअहरेण भणिआओ। जो पढइ गुणइ निसुणइ स लहइ सित्तुंजजत्तफलं ॥२५॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे श्रीसमवसरणस्तवः । थुणिमो केवलिवत्थं, वरविजाणंद्धम्मकित्तित्थं । देविंदनयपयत्थं, तित्थयरं समवसरणत्थं ॥१॥ पयडिअसमत्थभावो, केवलिभावो जिणाण जत्थ भवे । सोहंति सव्वओतहिं महिमाजोयणमनिलकुमरा ॥२॥ वरिसंति मेहकुमरा सुरहिजलं उउसुरा कुसुमपसरं । विरयंति वणा मणि-कणग-रयणचित्तं महिअलं तो ॥३॥ अम्भितर-मज्झ-बहि, तिवप्प मणि-रयण-कणय कविसीसा। रयण-उज्जुण-रुप्पमया, वेमाणिअ-जोइ-भवणकया ॥४॥ वम्मि दुतीसंगुलतित्तिसधणुपिहुल पणसयधणुचा । छद्धणुसयइगकोसंतरा य रयणमयचउदारा ॥५॥ चउरंसे इगधणुसयपिहुवप्पा सड्ढकोसअंतरिया। पढमबिआ बिअतइआ, कोसंतरपुव्वमिव सेसं ॥६॥ सोवाणसहसदस करपिहुच गंतुं भुवो पढमवप्पो । तो पन्नाधणु पयरो, तओ अ सोवाण पणसहसा ॥७॥ तो बियवप्पो पन्नधणु पयर सोवाण सहसपण तत्तो। तइओ वप्पो छस्सयधणुइगकोसेहिं तो पीढं ॥८॥ चउदार तिसोवाणं. मज्झे मणिपीढयं जिणतणुचं । दोधणुसयपिहु दीहं, सड्ढदुकोसेहिं धरणिअला ॥९॥ जिणतणुबारगुणुच्चो, समहिअजोअणपिहू असोगतरू । तयहो य देवछंदो, चउसीहासण सपयपीढा ॥१०॥ ___ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसमवसरणस्तवः। तदुवरि चउ छत्ततिआ, पडिरूवतिगं तहट्ट चमरधरा । पुरओ कणयकुसेसयठिअफालिअधम्मचकचउ ॥११॥ झयछत्तमयरमंगलपंचालीदामवेइवरकलसे । पइदारं मणितोरणतिअ धूवघडी कुणंति वणा ॥१२॥ जोयणसहस्सदंडा, चउज्झया धम्म-माण-गय-सीहा । ककुभाइजुया सव्वं, माणमिणं निअनिअकरेणं ॥१३॥ पविसिअ पुव्वाइ पहू, पयाहिणं पुव्वआसणनिविट्ठो। पयपीढठवियपाओ, पणमिअतित्थो कहइ धम्मं ॥१४॥ मुणि वेमाणिणि समणी, सभवणजोइवणदेविदेवति। कप्पसुरनरिस्थितिअं, ठंतिग्गेयाइविदिसासु ॥१८॥ चउदेविसमणि उहिआ निविट्ठा नरिस्थि सुरसमणा। इय पण सग परिस सुणंति देसणं पढमवप्पंतो ॥१६॥ इय आवस्सयवित्तीवुत्तं चुन्नीइ पुण मुणि निविट्ठा । दो वेमाणिणिसमणी, उड्ढा सेसा ठिआ उ नव ॥१७॥ बीअंतो तिरि ईसाणि देवछंदो अजाण तइअंतो। तह चउरंसे दु दु वावि कोणए वहि इकिका ॥१८॥ पीअ-सिअ-रत्त-सामा सुर-वण-जोइ-भवणारयणवप्पे। धणु-दंड-पास-गयहस्थ सोम-जम-वरुण-धणयक्खा ॥१९॥ जय-विजया-ऽजिय-अपराजिअ त्ति सिअ-अरुण-पीअ नीलाभा। बीए देवीजुअला, अभयं-कुस-पास-मगरकरा ॥२०॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे तइअ बहि सुरा तुंबरु, खगि-कवाल-जड-मउडधारी। पुवाइदारवाला, तुंबरुदेवो अ पडिहारो ॥२१॥ सामन्न समोसरणे, एस विही एइ जइ महिड्ढिसुरो। सव्वमिणं एगो वि हु, स कुणइ भयणेयरसुरेसु ॥२२॥ पुब्वमजायं जत्थ उ, जत्थेइ सुरो महिड्ढिमघवाई। तत्थोसरणं नियमा, सययं पुण पाडिहेराइं ॥२३॥ दुत्थिअसमत्थअत्थिअजणपत्थिअअत्थसत्थसुसमत्थो। इत्थं थुओ लहु जणं, तित्थयरो कुणउ सुपयत्थं ॥२४॥ अन्नायउंछकुलकम् । अन्नायउंछगहणे, कयचित्तो निक्खमिज वसहीए। को नाम नाणपमुहे, रयणे विकिज्ज पिंडत्थी ? ॥१॥ आहारे खलु सुद्धी, दुलहा समणाण समणधम्मम्मि । ववहारे पुण सुद्धी, गिहिधम्मे दुक्करा भणिआ॥२॥ अणहीआ खलु जेणं, पिंडेसण-सिज्ज-वत्थ-पाएसा। तेणाऽऽणिआणि जइणो, कप्पंति न पिंडमाईणि ॥३॥ पिंडं सिज्जं च वत्थं च, चउत्थं पायमेव य । अकप्पिन इच्छिज्जा, पडिगाहिज कप्पिअं॥४॥ पिंड असोहयंतो, अचरित्ती इत्थ संसओ नत्थि । चारित्तम्मि असंते, सव्वा दिक्खा निरस्थिआ ॥०॥ सिज्ज असोहयंतो, अचरित्ती इत्थ संसओ नत्थि । चारित्तम्मि असंते, सव्वा दिक्खा निरथिआ ॥६॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्नायउंछकुलकम् । ७५ वत्थं असोहयंतो, अचरन्ती इत्थ संसओ नत्थि । चारितम्मि असंते, सव्वा दिक्खा निरस्थिआ ||७|| पत्तं असोहयंतो, अचरिती इत्थ संसओ नत्थि । चारितम्मि असंते, सव्वा दिक्खा निरत्थिआ ||८|| समणत्तणस्स सारा, भिक्खायरिआ जिणेहिं पन्नत्ता | इत्थ परितप्यमाणं, तं जाणसु मंदसंवेगं ॥९॥ नाण चरणस्स मूलं, भिक्खायरिया जिणेहिं पन्नता । इत्थ य उज्जममाणं तं जाणसु तिव्वसंवेगं ॥ १० ॥ धम्मरुई अणगारो, सो नंद नंदिसेणसमणो वि । जे एसणाइ समिआ, पसंसिआ सक्कपमुहेहिं ॥ ११ ॥ पिंडेण अकप्पेण वि, पोसिजइ अहह ! एरिसो देहो । सुद्धेणं चिअ धीरा, पिंडं पिंडेण पोसंति ॥१२॥ जह अब्भंगण-लेवा, सगडक्ख-वणाण जुत्तिओ हुंति । इअ संजम भरवहणट्टयाए साहूण आहारो ॥१३॥ जो जहव तहव लद्धं, गिण्हइ आहार- उवहिमाईअं । समणगुणमुक्कजोगी, संसारपवडूढओ भणिओ ||१४|| निरवज्जाहारेणं, साहूणं निच्चमेव उववासो । उत्तरगुणवुढिकए, तहा वि उववासमिच्छंति ॥ १५ ॥ गहिअमसुद्धं केण वि, कारणजाएण भोअणावसरे । तं चयमाणो सुद्धो, भुंजतो लिप्पए नियमा ॥ १६॥ अविकिअवयणपमाणे, कवले बत्तीस साहु माहारं । भणिऊण नमोक्कारं, पयासदेसट्ठिओ जिमइ ||१७| Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे अद्धमसणस्स सव्वंजणस्स कुज्जा वस्स दो भाए । वाउपविआरणट्ठा, छब्भागं ऊणगं कुज्जा ॥ १८ ॥ सीओ उसिणो साहारणो य कालो तिहा मुणेअव्वो । साहारणम्मि काले, तत्थाहारे इमा मत्ता ॥ १९ ॥ सीए वस्स एगो, भत्ते चत्तारि अह व दो पाणे । उदिवस दोन्नि उ, तिन्नि व सेसा उ भत्तस्स ||२०|| कडपयरच्छेएणं, भोक्तव्यं अहव सीहखइएगं । एगेण अणेगेहि व, वजित्ता धूमइंगालं ॥ २१ ॥ बायाली से सण संकडम्मि गहणम्मि जीव ! नहु छलिओ । इहिं जह न छलिजसि, भुंजंतो राग-दोसेहिं ॥२२॥ जह इच्छसि भो साहू !, बारसविहत बकलं महाविउलं । तो मण-वय-काएहिं भोअणगिद्धिं विवज्जेसु ॥२३॥ असुरसुरं अचबचब, अअमविलंबिअं च आहारं । राग-दोस विमुक्को, जिमिज सायं अगिव्हंतो ॥२४॥ नो दाहिणाओ वामं न वामहणुआओ दाहिणं नेइ । पन्नगमिव आहारं, जावणमित्तं जई जिम ||२५|| सरसरसेहिं न तूसह, विरसविगंधेहिं जाइ न पओसं । सो रसचाई समणो, सुमणो सिद्धिं समल्लिइ ||२६|| तह परिसाडि विमुक्कं, जिमंति जइणो जिइंदिया निश्च । जह जिमिआजिमिआणं, ठाणविसेसो न लक्खिज्जा||२७|| तित्तगं च कडुअं च कसायं, अंबिलं च महुरं लवणं वा । एअ लद्धमन्नट्ट उन्तं, महुघयं व भुंजिज्ज संजए ||२८|| ७६ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्नायउंछकुलकम् । अरसं विरसं वा वि, सूइअं वा असृइअं । उल्लं वा जइ वा सुक्कं, मंथुकुम्मासभोअणं ॥ २९ ॥ उपपन्नं नाइहीलिज्जा, अप्पं वा बहु फासुअं । मुहालद्धं मुहाजीवी, भुंजिज्जा दोसवज्जिअं ॥ ३०॥ दुल्लहा उ मुहादाई, मुहाजीवी वि दुल्लहा । मुहादाई मुहाजीवी, दो वि गच्छति सुग्गई ॥३१॥ ति बेमि ॥ अल्पबहुत्व गर्भितं श्रीमहावीरस्तवनम् । जेण परुवियमेयं, दिसाणुवारण अप्पबहुठाणं । जीवाण बायराण य, थुणामि तं वद्धमाणजिणं ॥ १॥ सामन्नेणं जीवा, आऊ वण विगल तिरयपंचिंदी । पच्छिम थोवा अहिया, पुत्र्यदिसिं दाहिणुत्तरयो ॥२॥ मणुया सिद्धा तेऊ, सव्वत्थोवा य दाहिणुत्तरयो । पुवि संखा पच्छिम, अहिया कहिया तुमे नाह ! ॥३॥ वाऊ धोवा पुवि तत्तो अहिया य पच्छिमुत्तरयो । दाहिण ११ नारय थोवा, पुव्युत्तरपच्छिमासु समा ॥४॥ दाहिण असंख १२ पुढवी, दाहिण थोवा कमेण ७७ अहिया उ । उत्तरपुव्यावरदिसि तुज्झ नमो जेण निधिट्ठा १.३ ॥५॥ भवणवइ पुत्र्व पच्छिम, थोवा तुल्ला य उत्तर असंखा । दाहिण तओ असंखा १४, विंतर थोवा य पुण्य दिसि ॥ ६ ॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे पच्छिम उत्तर दाहिण, अहिया १५ थोवा य जोइसा तुल्ला। पुञ्चावरदिसि दाहिण, उत्तर अहिया कमा भणिया १६ ॥७॥ पढमचउकप्पदेवा, सव्वत्थोवा य पुत्र्वपच्छिमओ । उत्तर असंख दाहिण अहिया तुहमयविऊ बिंति ||८|| भाइ कप्पचउगे, पुव्युत्तरपच्छिमासु थोव समा । दाहिण संखा तत्तो, उवरिमदेवा य सम सव्वे १७ ॥९॥ धोवा पुग्गल उडूढं, अहिय अहे तह असंख तुल्ला य । उत्तरपुरच्छिमेणं, दाहिणपचच्छिमेण तओ ॥१०॥ दाहिणपुरच्छिमेणं, उत्तरपञ्चच्छिमेण अहिय समा । पुवि असंख अहिया, पच्छिम तह दाहिणुत्तरयो ॥ ११ ॥ अप्प बहुत्त सरूवं, इय दिहं केवलेण नाह ! तुमं । अह तह कुणसु पसायं, अहमवि पासेमि जह सक्ख ॥ १२॥ इय चउदिसासु भमिओ, तुह आणावज्जिओ य वीर ! अहं । गणिसमयसुंदरेहिं, थुणिओ संपइ सिवं देसु ॥१३॥ लध्वल्पबहुत्वम् । पे-पु-द-उकमसो जीवा जल-वण- विगला पंणिंदिया चैव । द-उ-पू-पासुं पुढवी, द- उसम तेऊ पु-पासु कमा ॥ १ ॥ १ प० - पश्चिमा दिक् । पु० पू० – पूर्वा दिक् । ६० -- दक्षिणा दिक् । उ०- -उत्तरा दिक् ॥ २ संजय संज्ञिपञ्चेन्द्रिया इत्यर्थः ॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लथ्वल्पबहुत्वम् । पू-प-उ-दासुं वाऊ, सत्तण्ह जमुत्तरेण माणसरं । पच्छिम गोयमदीवो, अहगामा दाहिणे झुसिरं ॥२॥ परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका । खित्तोगाहण व्वे भाव वाणा उ अप्पबहुअत्ते । थोवा असंखगुणिया, तिन्नि असेसा कहं नेया ? ॥१॥ खित्तामुत्तत्ताओ, तेण समं बंधपच्चयाभावा । तो पोग्गलाण थोवो, खित्तावट्ठाणकालो उ ॥२॥ अन्नक्खित्तगयस्स वि, तं चिअ माणं चिरं पि संचरइ । ओगाहणनासे पुण, खित्तन्नत्तं फुडं होई ॥३॥ ओगाहणावबद्धा, खित्तद्धा अकिआववद्धा य । न उ ओगाहणकालो, खित्तद्धामित्तसंबद्धो ॥४॥ जम्हा तत्थऽन्नत्थ य, स चिअ ओगाहणा भवे खित्ते । तम्हा खेत्तद्धाओऽवगाहणऽद्धा असंखगुणा ॥५॥ संकोअ-विकोएण व, उवरमिआएऽवगाहणाए वि । तित्तिअमित्ताणं चिअ,चिरं पि दव्वाणऽवत्थाणं ॥६॥ संघायभेयओ वा, दव्वोवरमे पुणाइ संखित्ते । निअमा तद्दव्योगाहणाह नासो न संदेहो ॥७॥ ओगाहद्धा दव्वे, संकोअविकोयओ अ अवबद्धा । न उ व्व संकोअणविकोअमित्तम्मि संबद्धं ॥८॥ जम्हा तत्थऽन्नत्थ व, दव्वं ओगाहणाइ तं चेव । दव्वद्धाऽसंखगुणा, तम्हा ओगाहणऽद्धाओ॥९॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसलहे संघायमेअओ वा, दव्योवरमे वि पज्जवा संति । तं कसिणगुणविरामे, पुणाइ दव्वं न ओगाहो ॥१०॥ संघायभेयबंधाणुवत्तिणी निचमेव दव्यद्धा । न उ गुणकालो संघायभेयमित्तद्धसंबद्धो ॥११॥ जम्हा तत्थऽन्नत्थ व, दव्वे खित्तावगाहणासुं च । ते चेव पजवा संति तो तदद्धा असंखगुणा ॥१२॥ आह अणेगंतोऽयं, व्योवरमे गुणाणऽवत्थाणं । गुणविप्परिणामम्मि अ, दव्वविसेसो अणेगंतो ॥१३॥ विप्परिणयम्मि दव्वे, कम्मिवि गुणपरिणई भवे जुगवं । कम्मि वि पुण तद्वत्थे वि होइ गुणविप्परीणामो ॥१४॥ भण्णइ सच्चं किं पुण, गुणबाहुल्ला न सव्वगुणनासो। व्वस्स तदन्नत्ते वि बहुतराणं गुणाण ठिई ॥१५॥ पुद्गलषट्त्रिंशिका। वुच्छं अप्पाबहुअं, दवा खित्तद्धभावओ वा वि। अपएस-सप्पएसाण पुग्गलाणं समासेणं ॥१॥ दव्वेणं परमाणू, खित्तेणेगप्पएसमोगाढा । कालेणेगसमइआ, अपएसा पुग्गला हुंति ॥२॥ भावेणं अपएसा, एगगुणा जे हवंति वण्णाई । ते चिअ थोवा जं गुणबाहुल्लं पायसो दव्वे ॥३॥ इत्तो कालाएसेण अप्पएसा भवे असंखगुणा । किं कारणं पुण भवे ? भण्णइ परिणामबाहुल्ला ॥४॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुद्गलपप्रिंशिका। भावेण अप्पएसा, जे ते कालेण हुंति दुविहा वि । दुगुणादओ वि एवं, भावेणं जावऽणतगुणा ॥६॥ कालापएसयाणं, एवं इक्किक्कओ हवइ रासी। इक्किक्के गुणठाणम्मि एगगुण कालयाईसु ॥६॥ आहाणंतगुणत्तणमेवं कालापएसयाणं ति । जमणंतगुणट्ठाणेसु हुति रासी वि हु अणंता ॥७॥ भण्णइ एगगुणाण वि, अणंतभागम्मि जं अणंतगुणा। तेणासंखगुण चिय, हवंति नाणंतगुणिकत्तं ॥८॥ एवं तो भावमिणं, पडुच्च कालापएसया सिद्धा । परमाणुपोग्गलाइसु, दवे वि हु एस चेव गमो ॥९॥ एमेव होइ खित्ते, एगपएसावगाहणाईसु । ठाणंतरसंकति, पडुच्च कालेण मग्गणया ॥१०॥ संकोअविकोअंपि हु, पडुच ओगाहणाइ एमेव । तह सुहुमबायरथिरेयरे य सद्दाइपरिणामं ॥११॥ एवं जो सम्वो वि अ, परिणामो पुग्गलाण इह समए । तं तं पडुच्च एसिं, कालेणं अप्पएसत्तं ॥१२॥ काणेण अप्पएसा, एवं भावापएसएहितो। हुंति असंखिजगुणा, सिद्धा परिणामबाहुल्ला ॥१३॥ इत्तो दवाएसेण अप्पएसा हवंतऽसंखगुणा । के पुणते ? परमाणू , कह ते बहुअ ?त्ति तं सुणसु॥१४॥ अणु-संखिजपएसिअ-असंख-ऽणंतप्पएसिआ चेव । चउरो चिअ रासी पुग्गलाण लोए अणंताणं ॥१५॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे तत्थाणतेहितो, सुतेऽतप्पएसिएर्हितो | जेण पएसद्वाए, भणिआ अणवो अनंतगुणा ॥१६॥ संखिज्जयमे भागे, संखिज्जपएसिआण वहंति । नवरमसंखिज्ज पएसिआण भागे असंख्यमे ॥ १७ ॥ सह वि असंखिजपएसिआण तेसिं असंख भागते । बाहुलं साहिजइ, फुडमवसे साहि रासीहिं ॥ १८ ॥ जेणिक्करासिणो चिअ, असंखभागे ण सेसरासीणं । तेणासंखिज्जगुणा, अणवो कालापएसेहिं ॥ १९ ॥ इतो असंखगुणिआ, हवंति खित्ता परसिआ समए । जं ते ता सव्वे चिअ, अपएसा खित्तओ अणवो ||२०|| दुपएसिआइएस वि, पएसपरिवढिएस ठाणेसु । लब्भइ इक्किको वि अ, रासी खिताप साणं ॥ २१ ॥ इत्तो खित्ताएसेण चैव सपएसया असंखगुणा । एगपएसोगाढे, मोतुं से सावगाहणया ||२२|| ते पुण दुपएसोगाहणाइआ सव्वपुग्गला सेसा । ते अ असंखिज्जगुणा, अवगाहणठाणबाहुल्ला ||२३|| दव्वेण हुंति इतो, सपएसा पुग्गला विसेसहिआ । कालेण य भावेण य, एमेव भवे विसेसहिआ ||२४|| भावाईआ वुड्ढी, असंखगुणिआ जमप्पएसाणं । तो सप्पएसयाणं खिताइ विसेसपरिवुड्ढी ||२५|| मीसाण संकर्म पर, सपएसा खित्तओ असंखगुणा । भणिआ सहाणे पुण, थोव चिअ ते गहेअव्वा ||२६|| ८२ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुद्गलपतिशिका। खित्तेण सप्पएसा, थोवा व्वद्ध भावओ अहिया । सपएसप्पाबहुअं, सहाणे अथओ एवं ॥२७॥ पढम अपएसाणं, बीयं पुण होइ सप्पएसाणं । तइयं पुण मोसाणं, अप्पबहू अथओ तिन्नि ॥२८॥ ठाणे ठाणे वडढइ, भावाईणं जमप्पएसाणं । तं चिअ भावाईणं, परिभस्सइ सप्पएसाणं ॥२९॥ अहवा खिसाईणं, जमप्पएसाण हायए कमसो। तं चिअ खित्ताईणं, परिवड्ढइ सप्पएसाणं ॥३०॥ अवरुप्परप्पसिद्धा, वुड्ढी हाणी अ होइ दुण्हं पि। अपएससप्पएसाण पुग्गलाणं सलक्खणओ ॥३१॥ ते चेव य ते चउहि वि,जमुवचरिजति पुग्गला दुविहा। तेण उ वुड्ढी हाणी, तेसिं अन्नोन्नसंसिद्धा ॥३२॥ एएसिं रासीणं, णिदरिसणमिणं भणामि पच्चक्वं । बुड्ढोए सव्वपुग्गल जावं तावाण लक्खो उ ॥३३॥ इकं च दो अ पंच य, दस य सहस्साइँ अप्पएसाणं । भावाईणं कमसो, चउण्ह वि जहोवइटाणं ॥३४॥ नउई पंचाणउई, अट्ठाणउई तहेव नवनउई । एवइयाइं सहस्साई सप्पएसाण विवरीअं ॥३॥ एएसि जहासंभवमत्थोवणयं करिज रासी। सम्भावओ अ जाणिज ते अणंते जिणाभिहिए ॥३६॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे निगोदषट्त्रिंशिका । लोगस्सेगपएसे, जहन्नयपयम्मि जियपएसाणं । उक्कोसपए य तहा, सव्वजियाणं च के बहुया ? ॥१॥ थोवा जहन्नयपए, जियप्पएसा जिया असंखगुणा । उकोसपयपएसा, तओ विसेसाहिआ भणिआ ॥२॥ तत्थ पुण जहन्नपयं, लोयंते जत्थ फासणा तिदिसिं । छदिसिमुक्कोसपयं समत्थगोलम्मि नऽन्नत्थ ॥३॥ उक्कोसमसंखगुणं, जहन्नयाओ पयं हवइ किं नु । नणु तिदिसिफुसणाओ, छद्दिसिफुसणा भवे दुगुणा॥४॥ थोवा जहन्नयपए, निगोयमित्तावगाहणा फुसणा। फुसणाऽसंखगुणत्ता, उकोसपए असंखगुणा ।।५॥ . उक्कोसपयममुत्तं, निगोयओगाहणाइ सव्वत्तो। निष्फाइज्जइ गोलो, पएसपरिवुड्ढिहाणीहि ॥६॥ तत्तो चिअ गोलाओ, उकोसपयं मुइत्तु जो अन्नो। होइ निगोओ तम्मि वि, अन्नो निप्फजई गोलो ॥७॥ एवं निगोयमित्ते, खित्ते गोलस्स होइ निप्फत्ती । एवं निष्फजंते, लोगे गोला असंखिजा ॥८॥ ववहारनएण इमं, उक्कोसपया वि इत्तिया चेव । जं पुण उक्कोसपयं, निच्छइयं होइ तं बुच्छं ॥९॥ बायरनिगोयविरगहगइयाई जत्थ समहिया अन्ने । गोला हुज्ज सुबहुया, निच्छइयपयं तदुक्कोसं ॥१०॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निगोदषट्त्रिंशिका। इहरा पडुच्च सुहुमे, बहुतुल्ला पायसो सगलगोला। तो बायराइगहणं, कीरइ उक्कोसयपथम्मि ॥११॥ गोला य असंखिज्जा, हुंति निओया असंखया गोले । इकिको य निगोओ, अणंतजीवो मुणेयन्वो ॥१२॥ लोगस्स य जीवस्स य, हुंति पएसा असंखया तुल्ला । अंगुलअसंखभागो, निगोयजियगोलगोगाहो ॥१३॥ जम्मि जिओ तम्मेव निगोओ तो तम्मि चेव गोलो वि । निष्फजइ जं खित्ते, तो ते तुल्लावगाहणया ॥१४॥ उक्कोसपयपएसे, किमेगजावप्पएसरासिस्स । हुज्जेगनिगोयस्स व, गोलस्स व किं समोगाढं? ॥१५॥ जीवस्स लोगमित्तस्स सुहमओगाहणावगाढस्स । इकिकम्मि पएसे, हुंति पएसा असंखिजा ॥१६॥ लोगस्स हिए भागे, निगोयओगाहणाइ जं लद्धं । उक्कोसपएऽतिगयं, इत्तियमिकिकजीवाओ ॥१७॥ एवं दव्वट्ठाए, सव्वेसि इकगोलजीवाणं। , उकोसपयमइगया होति पएसा असंखगुणा ॥१८॥ तं पुण केवइएणं, गुणियमसंखिजयं भविजा हि ? । भण्णइ दव्वट्ठाए, जावइया सव्वगोल त्ति ॥१९॥ किं कारणमोगाहणतुल्लत्ता जियनिगोयगोलाणं । गोला उक्कोसपएकजियपएसेहि तो तुल्ला ॥२०॥ गोलेहि हिए लोगे, आगच्छइ जं तमेगजीवस्स । उक्कोसपयगयपएसरासितुल्लं हवइ जम्हा ॥२१॥ ___ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૮૬ नवस्मरणादिसद्दे अहबा लोगपएसे, इक्किक्के ठवय गोलमिक्किकं । एवं उक्कोसपएक्कजियपएसेसु मायंति ||२२|| गोलो जीवो य समा, पएसओ जं च सव्वजीवा वि । हुति समोगाहणया, मज्झिमओगाहणं पप्य ॥२३॥ लेण फुडं चिय सिद्धं, एगपएसम्मि जे जियपएसा । ते सव्वजीवतुल्ला, सुणसु पुणो जह विसेसहिया ॥ २४ ॥ जं संति केइ खंडा, गोला लोगंतवत्तिणो अन्ने । बायरविग्गहिएहि य, उक्कोसपयं जमन्भहियं ॥ २५ ॥ तम्हा सव्वेर्हितो, जीवेर्हितो फुडं गहेयव्वं । उक्कोसपयपएसा. हुंति विसेसाहिया नियमा ||२६|| अहवा जेण बहुसमा, सुहुमा लोएऽवगाहणाए य । तेणिकिकं जीवं, बुद्धीए विरल्लए लोए || २७॥ एवं पिसमा जीवा, एगपएसगयजियपएसेहिं । बायर बाहुल्ला पुण, हुंति पएसा विसेसहिया ||२८|| तेसिं पुण रासीणं, निदरिसणमिणं भणामि पञ्चक्खं । सुहगहणगहणत्थं, ठवणारा सिप्पमाणेहिं ॥ २९ ॥ गोलाण लक्खमिकं, गोले गोले निगोयलक्खं तु । rish य निगोए, जीवाणं लक्खमिक्किकं ||३०|| कोडिसयमेगजीवप्पएसगाणं तमेव लोगस्स । गोलनिगोयजियाणं दस उ सहस्सा समोगाहो ॥ ३१ ॥ जीवस्सिक्किकस्स य, दस साहस्सावगाहिणो लोए । इक्किम परसे, पएसलक्खं समोगाढं ॥३२॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बन्धपत्रिशिका | जीवसयस्स जहणणे, पयम्मि कोडी जियप्पएसाणं । ओगाढा उक्कोसे, पयम्मि बुच्छं पएसग्गं ॥३३॥ कोडसहस्सजियाणं, कोडाकोडी दसप्पएसाणं । उक्कोसे ओगाढा, सव्वजिया वित्तिया चेव ॥ ३४ ॥ कोडी उपयम्म बायरजियप्पएसपक्खेवो । सोहणयमित्तियं चिय कायव्वं खंडगोलाणं ॥ ३५ ॥ एएसि जहासंभवमत्थोवणयं करिज्ज रासीणं । सम्भावओ य जाणिज्ज ते अनंता असंखा वा ॥ ३६॥ बन्धषत्रिशिका | ओराल सव्वबंधा, थोवा अब्बंधगा विसेसहिया । तत्तो अ देसबंधा, असंखगुणिआ कहं नेया ? ॥ १ ॥ पढमम्मि सव्वबंधो, समए सेसेसु देसबंधो उ । सिद्धाईण अबंधो, विग्गहगहआण य जियाणं ॥२॥ इह पुण विग्गहिए चिअ, पडुच्च भणिआ अबंधगा अहिआ। सिद्धा अनंतभागम्मि सव्वबंधाण वि भवंति ॥३॥ उजुआ य एगवंका, दुहओ वंका गई भवे तिविहा । पढमाइ सव्वबंधा, सव्वे बीआइ अद्धं तु ॥४॥ तइआइ तहअभागो, लब्भइ जीवाण सव्वबंधाणं । इति तिणि सव्वबंधा, रासी तिण्णेव य अबंधा ||५|| रासिप्पमाणओ ते, तुल्लाऽबंधा य सव्वबंधा य । संखापमाणओ पुण, अबंधगा सुण जहऽम्भहिआ ॥६॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे जे एगसमइआ ते, एगनिगोअम्मि छहिसि एंति । दुसमइआ तिपयरिआ तिसमहुआ सेसलोगाओ ||७|| तिरिआययं चउद्दिसि पयरमसंखप्पएस बाहल्लं । उडूढं पुव्वावर दाहिणुत्तरायया य दो पयरा ॥८॥ जे तिपयरिया ते छद्दिसिएहिंतो भवंतऽसंखगुंणा । सेसा वि असंखगुणा, खित्तासंखिज्जगुणियन्त्ता ||९|| एवं विसेस अहिआ, अबंधया सव्वबंध एहिंतो । तिसमइअविग्गहं पुण, पहुच सुत्तं इमं होइ ॥ १०॥ समयविग्गहे पुण, संखिज्जगुणा अबंधगा हुंति । एएसिं निदरिसणं, ठवणारासीहिं वोच्छामि ॥११॥ पढमो होइ सहस्से, दुसमयया दो वि लक्खमेक्केकं । तिसमइया पुण तिण्णि वि रासी कोडी भवेक्वेक्का ॥ १२ ॥ एएसिं जहसंभवमत्थोवणयं करिज्ज रासीणं । इतो असंखगुणिया, बुच्छं जह देसबंधा सिं ॥१३॥ एगो असंभागो, वह उच्चद्दणोववायम्मि | एगनिगोए निचं, एवं सेसेसु वि स एव ॥ १४ ॥ अंतोमुहृत्तमित्तं, ठिई निगोआण जं विणिद्दिट्ठा । पल्लहंति निगोआ, तम्हा अंतोमुहुत्ते || १५ || तेसिं ठिइसमयाणं, विग्गहसमया हवंति जहभागे । एवतिभागे सव्वे, विग्गहिया सेसजीवाणं || १६ || सव्वे वि अ विग्गहिआ, सेसाणं जं असंख भागम्मि तेणासंखगुणा देस बंधयाऽबंध रहितो ॥१७॥ ८८ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बन्धपत्रिशिका | वेव्वियआहारगते आकम्माइ पढिअसिद्धाई । तह वि विसेसो जो जत्थ तस्थ तं तं भणीहामि ॥ १८॥ asootosबंधा, थोवा जे पदमसमयदेवाई । तस्सेव देसबंधा, असंखगुणिआ कहूं ? के वा ? ॥ १९ ॥ तेसिं चिअ जे सेसा, ते सच्चे सव्वबंधए मोत्तुं । होति अबंधाऽणंता, तव्वज्जा सेसजीवा जे ॥ २० ॥ आहारसव्वगंधा, थोवा दो तिष्णि पंच वा दस वा । संखेज्जगुणा देसे ते उ पुहुन्तं सहस्साणं ॥ २१ ॥ तव्वज्जा सव्वजिआ, अबंधया ते हवंतऽणंतगुणा । थोवा अबंधगा तेअगस्स संसारमुक्का जे ||२२|| सेसा य देसबंधा, तव्वज्जा ते हवंतऽणंतगुणा । एवं कम्मगभेया वि णवरि णाणत्तमाउम्मि ||२३|| थोवा आउअबंधा, संखिज्जगुणा अबंधया होंति । तेआकम्माणं सव्वबंधगा नत्थि णाइत्ता ||२४|| आह असंखिज्जगुणाउगस्स किमबंधगा न भण्णंति । जम्हा असंखभागो, उब्वहइ एगसमएणं ||२५|| भण्णइ एगसमइओ, कालो उब्वट्टणाइ जीवाणं । बंधणकालो पुण आउगस्स अंतोमुहुत्तो उ ॥ २६ ॥ जीवाण ठिईकालो, आउअबंधद्धभाइए लद्धं । एवइए भागे आउबंधया सेसजीवाणं ||२७|| जं संखिज्जइभागो, ठिकालस्साउबंधकालो उ । तम्हा संखगुणा से, अबंधया बंधएर्हितो ॥२८॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणाविसकहे संजोगप्पाबहुअं, आहारगसव्वबंधगा थोवा । तस्सेव देसबंधा, संखगुणा ते अ पुव्युत्ता ॥२९॥ तत्तो वेउव्विअसव्वबंधगा दरिसिआ असंखगुणा । जमसंखा देवाई, उववजंतेगसमएणं ॥३०॥ तस्सेव देसबंधा, असंखगुणिआ हवंति पुव्वुत्ता। तेअगकम्माऽबंधा, अणंतगुणिआ य ते सिद्धा ॥३१॥ ततो उ अणंतगुणा, ओरालिअ सव्वबंधगा हुंति । तस्सेव तओऽबंधा य देसबंधा य पुवुत्ता ॥३२॥ तत्तो तेअगकम्माण देसबंधा भवे विसेसहिआ। ते चेवोरालिअदेसबंधगा हुंति मेवऽण्णे ॥३३॥ जे तस्स सव्वबंधा, अबंधगा जे अ नेरइअदेवा । एएहिं सहिआ ते पुणाइ के ? सव्वसंसारी ॥३४॥ वेउव्वियस्स तत्तो, अबंधगा साहिआ विसेसेणं । ते चेव य नेरड्याइविरहिया सिद्धसंजुत्ता ॥३५॥ आहारगस्स तत्तो, अबंधगा साहिया विसेसेणं । ते पुण के ? सव्वजिया, आहारगलद्धिए मुत्तुं ॥३६॥ पुद्गलपरावर्तस्तोत्रम् । श्रीवीतराग! भगवंस्तव समयालोकनं विनाऽभूवन् । द्रव्ये क्षेत्रे काले, भावे मे पुदगलावर्ताः ॥१॥ मोहप्ररोहरोहान्नट इव भवरङ्गसङ्गतः स्वामिन् ! । कालमनन्तानन्त, भ्रान्तः षट्कायकृतकायः ॥२॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुद्गलपरावर्तस्तोत्रम् । औदारिकवैक्रियतैजसभाषानप्राणचित्तकर्मतया। सर्वाणुपरिणतेमे, स्थूलोऽभूत् पुद्गलावतः ॥३॥ तत्सप्तकैककेन च, समस्तपरमाणुपरिणतर्यस्य । संसारे संसरतः, सूक्ष्मो मे जिन ! तदावतः ॥४॥ निःशेषलोकदेशान् , भवे भवे पूर्वसम्भवैमरणैः । स्पृशतः क्रमोत्क्रमाभ्यां, क्षेत्रे स्थूलस्तदावतः ॥५॥ प्राग मृत्युभिः क्रमेण च, लोकाकाशप्रदेशसंस्पर्शः। मम योऽजनि स स्वामिन् !, क्षेत्रे सूक्ष्मस्तदावतः ॥६॥ मम कालचक्रसमयान् , संस्पृशतोऽतीतमृत्युना नाथ !। अक्रमतः क्रमतश्च, स्थूलः काले तदाऽऽवतः ॥७॥ क्रमतस्तानेव(स्तान् वा) समयान् , प्राग्भूतैर्मृत्युभिः प्रभूतैर्मे। संस्पृशतः सूक्ष्मोऽर्हन् ! स्यात् कालतः( कालात्) पुदगलावतः ॥८॥ अनुभागबन्धहेतून् , समस्तलोकप्रदेशपरिसङ्घयान् । म्रियते क्रमोत्क्रमाभ्यां, भावे स्थूलस्तदावत्तः ॥९॥ प्राग मरणैः सर्वेषामपि तेषां यः क्रमेण संश्लेषः। भावे मे सूक्ष्मोऽभूजिनेश ! विश्वत्रयाधीश! ॥१०॥ नानापुद्गलपुद्गलावलिपरावर्ताननन्तानहं, पूरंपूरमियचिरं कियदशं बाढं दुदं नोढवान् । दृष्ट्वा दृष्टचरं भवन्तमधुना भक्त्याऽर्थयामि प्रभो!, तस्मान्मोचय रोचय स्वचरणं श्रेयाश्रियं प्रापय ॥११॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे श्रावकत्रत भङ्गप्रकरणम् । पणमिअ समत्थ परमत्थवत्युवित्थारदेसगं वीरं । बुच्छामि सावयाणं वयभंगयभेअपरिसंखं ॥ १ ॥ दुविहा अट्ठविहा वा बत्तीसविहा व सत्तपणतीसा । सोलस य सहस्स भवे अट्ठसयट्टुत्तरा वइणो ॥ २॥ दुविहा विरया विरया दुविहंतिविहारण हा हुति । वयमेगेगं छविहगुणिअं दुगमिलिअ बत्तीसं ॥ ३॥ तिन्निति तिन्नि दुया तिन्निक्किका य हुंति जोगेसु । तिदुकं तिदुकं तिदुकं चेव करणाई ||४|| मणवयकाइयजोगे करणे कारावणे अणुमईए । इक्कगदुगतिगजोगे सत्ता सत्तेव इगुवन्ना ॥५॥ पढमिको तिन्नि तिआ दुन्नि नवा तिन्नि दो नवा चेव । कालतिगेण य सहिया सीआलं होइ भंगसयं ॥६॥ पंचाणुत्र्वयगुणिअं, सीआलसयं तु नवरि जाणाहि । सत्तसया पणतीसा, सावयवयगहणकालम्मि ||७|| सीआलं भंगसयं, जस्स विसुद्धीइ होइ उवलद्धं । सो खलु पञ्चक्खाणे, कुसलो सेसा अकुसला य ॥८॥ दुविहतिविहाह छ चिय, तेसिं भेया कमेणिमे हुंति । पढमिको दुन्नि तिआ, दुगेगदो छक्क इगवीसं ॥९॥ एगवए छ भंगा, निद्दिट्ठा सावयाण जे सुते । ति चिअ पयवुड्ढीए, सत्तगुणा छज्जुआ कमसो ॥ १०॥ ९२ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रावकव्रतभङ्गप्रकरणम् । इगवीसं खलु भगा, निद्दिट्ठा सावयाण जे सुत्ते ति चिअ बावीसगुणा, इगवीसं पक्खिवेयव्या ॥ ११ ॥ एगवए नव भंगा, निद्दिद्वा सावयाण जे सुत्ते । ति चिअ दसगुण काउं, नव पक्खेवम्मि कायव्वा ॥ १२ ॥ इगुवन्नं खलु भंगा, निद्दिट्ठा सावयाण जे सुन्ते । ति चिअ पंचासगुणा, इगुवन्नं पक्खिवेयव्वा ॥ १३॥ सीयालं भंगसयं, वयवुड्ढडयालसयगुणं काउं । सीयालसएण जुयं सव्वग्गं जाण भंगाणं ॥ १४ ॥ गाई एगुत्तर, पत्तेयपयम्मिं उवरि पक्खेवो । इक्किकहाणि अवसाणसंख्या हुंति संजोगा || १५ || उभयमुहं रासिदुगं, हिट्टिल्लाणंतरेण भय पढमं । लद्धहरासिविभत्ते तस्सुवरि गुणिन्तु संजोगा ॥ १६ ॥ अहवा पयाणि ठविडं, अक्खे घित्तूण चारणं कुज्जा । इक्कगदुगाइ जोगा भंगाणं संख कायव्वा ॥ १७ ॥ बारस छावडी विअ, वीसहिआ दो य पंच नव चउरो । दो नव सत्त य च दुन्नि नवय दो नवय सत्तेव ॥ १८ ॥ पण नव चउरो वीसा य दुन्नि छावट्ठि बारसिक्को य । सावयभंगाणमिमे सव्वाण वि हुंति गुणकारा ॥ १९ ॥ छ चैव य छत्तीसा, सोलदुगं चैव छनवदुगइकं । छस्सत्तसत्तसत्तय, छप्पन्न छसट्ठि चउछट्टे ||२०| छत्तीसा नवनउई, सत्तावीसा य सोल छन्नउई । सन्त य सोलस भंगा, अट्टमठाणे विआणाहि ॥ २१ ॥ ९३ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्घ छाणउई बावन्तरि, सन्तदुसुन्निक हुंति नवमम्मि । छावसरि इगसट्ठी, छायाला सुन्न छ चैव ॥ २२॥ छप्पन्न सुन्नसत्तय, नवसतावीस तह य छत्तीसा । छत्तीसा तेवीसा, अडहत्तरि छहतरिगवीसा ||२३|| दुविहतिविहेण पढमो, दुविहं दुविहेण बीअओ होइ । दुविहं एगविणं, एगविहं चेव तिविहेणं ||२४|| एगविहं दुविणं, इकविण छट्टओ होइ । उत्तरगुण सत्तमओ, अट्ठमओ अविरओ होइ ||२५|| पंचहमणुवयाणं, इक्कगदुगतिगचउक्कपणगेहिं । पंचगदसदसपणइको अ संजोग नायव्वा ॥ २६॥ छ चैव य छत्तीसा, सोलदुगं चेव छनवदुगइकं । छगसत्तसत्तसत्तय, पंचन्ह वयाण गुणणपयं ||२७|| वयक संजोगाण हुंति पंचण्ड तीसई भंगा। दुगसंजोगाण दसह तिन्नि सहा सया हृति ॥ २८ ॥ तिगसंजोग दसहं, भंगसया इक्कवीसई सट्ठा । संजोगपणगे, चउससियाणि असियाणि ॥२९॥ सतत्तरीसयाई, छंसतराई तु पंचगे हुंति । उत्तरगुण-अविरयमेलिआण जाणाहि सव्वग्गं ॥ ३० ॥ सोलस वेव सहस्सा, अट्ठसया चेव हंति अट्ठहिआ । एसो वयपिंडत्थो, दंसणमाई उ पडिमाओ ॥३१॥ पाणिवह मुसावाए अदन्त मेहुण परिग्गहे चेव । दिसि भोग दंड समइय देसे तह पोसह विभागे ॥ ३२ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रावकवतमङ्गप्रकरणम् । पढमवए छन्भंगा, अडयालीसा य बीअवयभंगे। बायाला तिनि सया, तिगवयजोगम्मि नायव्वा ॥३३॥ चउत्थे चउवीससया भंगाणं धीरपुरिसपन्नत्ता। अट्ठसया य छडुत्तर सहसा सोलस य पंचमए ॥३४॥ छट्टे वयम्मि सावय, अडयाला छस्सया उ नायव्वा । तह सतरं सहस्सा, भंगाणं लक्खमेगं तु ॥३५॥ सत्तमए बायाला, पंचसया हुँति सहस तेवीसं । तह अट्ठेव य लक्खा , भंगाणं हुंति नायव्वा ॥३६॥ अट्ठमवयम्मि सावय, अट्ठ सयाइं तु सहस चउसट्ठी। सासवन्नं लक्खा, भंगाणं हुंति नायव्वा ॥३७॥ नवमे छसय छउत्तर, सहस्स तेवन तिनि लक्खा उ । चत्तारि अ कोडीओ, भंगाणं हुंति नायब्वा ॥३८॥ दसमे दोअडयाला, सहस्स पणहत्तरी य बोधव्वा । चउवीसं पुण लक्खा, अट्ठावीसं तु कोडीओ ॥३९॥ सत्त सया बायाला सहस्स छन्वीस तिहत्तरी लक्खा। सत्तनवइकोडीओ, कोडिसयं दसमअहिअम्मि ॥४०॥ तेरसकोडिसयाई चुलसीइजुयाइँ बारस य लक्खा । सत्तासी य सहस्सा, दो अ सया तह दुरग्गा य ॥४१॥ इअ सावयाण छन्नवइगवीसेगूणवनगुणिएण । बारसक्याण संजोगवित्थरं नाउमुज्जमह ॥४२॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणाविसङ्ग गाङ्गेयभङ्गप्रकरणम्। वंदित्तु बद्धमाणं, गंगेअसुपुट्ठभंगपरिमाणं । इगजोगे सगभंगा, दुगजोगे भंग इगवीसा ॥१॥ तिगचउजोगे पत्तेअ भंग पणतीस पंचसंजोए । इगवीस य छज्जोए, सगभंगा सत्तए एगो ॥२॥ एकपवेसे सत्त य, दुपवेसे सत्त ते असंजोगे। दुगसंजोगो, एगो, भंगगुणा जोग कायव्वा ॥३॥ तिपवेसे इगजोगे, सत्त य भंगा इमेव सव्वत्थ । दुगजोगे संजोगा, दो चेव हवंति नायव्वा ॥४॥ तिगसंजोगे एगो, चउण्ह य पवेसि तिणि दुअजोगा। तियजोगा तिन्नेव य, चउसंजोगो भवे एगो ॥५॥ पंचपवेसि दुजोए, संजोगा इह हवंति चत्तारि । तिगजोए छज्जोआ, चउसंजोगा य चत्तारि ॥६॥ इग पंचगसंजोगो, छपवेसे पंच हुंति दुगजोगा। तिगजोगा दस चेव य, चउकसंजोग दस एव ॥७॥ पणसंजोगा पंच य, छस्संजोगो अ होइ इगु चेव । सत्तपवेसि दुजोए, संजोगा इत्थ छ चेव ॥८॥ तिगसंजोगा पणरस, वीसा पुण हुँति चउक्कसंजोगा। पणसंजोगा पणरस, छज्जोगा इंति छ चेव ॥९॥ सगजोगे इग भंगो, अट्ठपवेसे दुजोग सत्तेव । तिगजोगे इगवीस य, चउजोगे हुंति पणतीसा ॥१०॥ 11111111111111111 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाङ्गेयभङ्गप्रकरणम् । पणजीए पणतीसा, इगवीस छजोग सत्त सगजोए । नवपविसि अड दुजोगा, तिगसंजोगाय अडवीसा ॥ ११ ॥ छप्पन्ना चउजोगे, सत्तरि हवई अ पंच संजोए । छप्पन्ना छजोए, अडवीसा सत्तसंजोआ ॥ १२ ॥ दसगपवेसे नव दुगसंजोगा तिन्निजोग छत्तीसा । चउसंजोगा चुलसी पणजोग सयं च छव्वीसं ॥ १३ ॥ छजोगे १२६ छब्वीसं, सत्तगजोगे हवंति चुलसीई । एवं भंगपरूवण, कहिआ तेलोकसी हिं ॥ १४॥ भंगा अहोमुहा खलु, चारेअव्वा य अग्गअग्गओ चेव । संजोगा उड्ढमुहा दुतिचउचाइ पि चैव ॥ १५ ॥ दुगजोगे एगेगो, तिजोगि हुंति अ इगाइ अहंता । चउजोगि इगति छ इस पणरस इगवीस अडवीसा ॥ १६ ॥ च दस वीस पणतीसा, छप्पन्न पणजुगि छ - सगजोआ । पण पणरस पणतीसा, सयरि छ इगवीस छप्पन्ना ||१७|| संजोगगुणिअ भंगा, कायव्वा सव्वमेव परिमाणं । उत्तरभंगाणं इह दिट्ठा य कायव्वा ॥ १८ ॥ नहंकाउ य भंगे, सोहिज्जा जत्थ बहुअरा भंगा। संजोगेहिं हर तर्हि, लद्वे मुण मूलभंगे अ ॥ १९ ॥ उद्धरिए संजोगे, जाणिज्जा अहव अंतिपडिआ य । साहारणसंजोगा भंगा जइ इगदुगतिगाई ॥ २०॥ ते तम्मज्झा कड्डिअ, उद्धरिए मिलिअभंग भइआ य । जाणिज्जा संजोगे, सेसे वि अ जाण भंगे अ ॥ २१ ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मरणादिसङ्घये उद्वि तीअभंगा, संजोगगुणा य सहिअ संजोगा । भंगसंखा, इअ कहिआ धीरपुरिसेहिं ॥ २२ ॥ जड़ भंगयसाहारण संजोगा जे अ तेहिं गुणिऊण । सेसे भंगे मेलिअ एगीकाऊण सव्वग्गं ॥२३॥ इय भंगियसुअभणणे, नासंति अ घोररोगउवसग्गा । पावंति अ सुहसंपय, सिवं च देवत्तणं एई ॥ २४ ॥ सिरिमेहनामपंडिअसीसेण सिरिविजयनामधेएण | रहयं एयं सुतं, निसरण परेसिं हिअम ||२५| सिद्धपञ्चाशिका | सिद्धं सिद्धस्थसुआं, नमितं तिहुअणपपासयं वीरं । सिरिसिद्धपाहुडाओ, सिद्धसरूवं किमवि वुच्छे ॥१॥ संतपयपरूवणया, दव्वपमाणं च खित्त फुसणा यः । कालो अ अंतरं तह, भावो अप्पाबहू दारा ॥२॥ एहिँ अनंतर सिद्धा, परंपरा सन्निकरिसजुत्तेहि । तेहिं विआरणिजा, इमेसु पनरससु दारेषु ॥३॥ खित्ते काले गइ वेअ तित्थ लिंगे चरित बुद्धे य । नाणोगाहुकस्से, अंतरमणुसमयग्रणणअप्पबहू ॥४॥ खिति मिलोगे १ काले, सिजति अरेसुः छसु वि संहरणा । अवसन्मणिः उशसम्पिणि दुतिअरगे जम्मु विदुछ सिवां २ ॥१८ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिचाशिकाः। चउगइआगम नरमइठिय सिव ३ वेपलिंग ४ विह तिथे वि५ । गिहि- अन्न-सलिंगेसु अ ६ चरणे अहवाह वहंता ॥६॥ ति चड पण पुग्वि तिचरण, जिणा ७ सयं-बुद्धि-बुद्ध-पत्तेया ८ । दु-ति-चाणा ९ लड्डु तणु, दुहत्थ गुरु पणधणुसया उ १० ॥ ७॥ कालमणंतमसंखं, संखं चुअसम्म अचुअसम्मत्ता ११ । लहु गुरु अंतर समओ, छमास १२ अडसमय अव्वहिआ १३ ॥८॥ जहनिअर इक्क अडसय १४, अणेग एगा य थोक संखगुणा १५ । चउ उड्ढ नंदण जले वीसपहुत्तं अहोलोए ॥९॥ इगविजय वीस अडलय, पत्तेयं कम्मभूमि तिरिलोए । दुदु जलहि पंडगवणे, अकम्ममहि दस य संहरणा १ ॥१०॥ ति चउत्थ अरे अडसय, पंचमए वीस दस दस य सेसे र । नरगतिग भवण-वण- नर जोक्स- तिरि-तिरिक्खिणी दसगं ॥ ११ ॥ वेमाणिअ अट्ठसयं, हरिय छ ऊ कमल चडरो। वाणिलिपी, कीलं भवाषवबधी पणगं ३ ॥ १२ ॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० नवस्मरणादिसाहे वीसिथि दस नपुंसग, पुरिसट्ठसयं नरा नरुव्वद्या । इय भंगे अट्ठसयं, दस दस सेसहभंगेसु ४॥१३॥ तित्थयरी जिण पत्तेअवुद्ध संबुद्ध दुचउ दस चउरो५। चउ दस अडसय गिहि पर सलिंग ६ परिहार विणु ओहो ॥१४॥ दस परिहारजुए ७ बुद्धिबोहिथी वीस जीव वीसपहू८। चउ मइसुअ महसुअमणनाणे दस सेसदुगि ओहो ९ ॥१५॥ मज्झ गुरु लहुवगाहण ___ अडसय दुग चउर अट्ट जवमज्झे १०। चुअणंतकालसम्मा, अडसय चउ अचुअ दस सेसा १११२॥१६॥ अड १०८ दुरहिअ १०२ सय छनुई, चुलसी दुगसयरि सहि अडयाला। बत्तीस इक दुति चउ, पण छग सग अड निरंतरिया १२ ॥१७॥ लोअग्ग ठिआ सिद्धा, इह बुंदिचइय पडिहय अलोए ३। फुसइ अणंते सिद्धे, सव्वपएसेहि सो सिद्धो ४ ॥१८॥ जत्थष्ट्ठसयं सिज्झइ, अट्ठ उ समया निरंतरं तत्थ । वीस-दसगेसु चउरो, दु.सेसि जवमज्झि चत्तारि ५ ॥१९ A Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धपञ्चाशिका | १०१ जंबुद्दीवे धायइ, ओह विभागे यतिसु विदेहेसु । वास पहुत्तं अंतर, पुक्खरदुविदेह वासहियं १ ॥२०॥ भरहेरवर जम्मा, कालो जुगलीण संखसमसहसा । संहरण नरयतिरिए, समसहसा समसयपहुतं ॥२१॥ तिरिई सुरनरनारी सुरीहिँ उबएससिद्धिलद्वीए । वासहिअंतर अह सयबोहीओ संखसमसहसा ||२२|| सयमुवएसा भूजलवणसुहमीसाणपढमदुगनरया ३ । थोकीबेसुं भंगगे असंखिज्जसमसहसा ||२३॥ नरवेअ पढमभंगे, वरिसं ४ पत्ते अजिणजिणी सेसा । संखसमसहस पुव्वासहसपिहूऽणंतहि अवरिसं ५ ॥ २४ ॥ संखसमसहस गिहिअन्नलिंगऽहिअवरिस तिचरण सलिंगे । सेसचरिते जुअली ६-७, बुहबोहिअपुरिस वरिसहिअं ||२५|| संखसम सहससेसा, पुत्र्वसहस्सप्प हुत्त संबुद्धे ८ । मइसुअ पलिय असंखो, भागोहिजुएऽहिअं वरिसं ॥ २६ ॥ सेसदुभंगे संखा, समसहसा ९ गुरुलहूइ जवमज्झे । सेढीअसंखभागो, मज्झवगाहे वरिसमहिअं १० ॥२७॥ अचुअ असंखंसुअही, अनंतहिअवास सेस संखसमा ११ । संतर १२ अनंतरं १३ इग, अणेग १४ समसहस संखिज्जा ||२८|| Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयारणादिन इअ गुरु श्रेलरमुत्तं, लहु समओ ६ भावु सव्वहिं खइओ ७॥ चउ दस बीसा वीसप्पहुत अहस्सयं कमसो ॥२९॥ सम थोव समा संखागुणिआ इय भणिअणंतरा सिद्धा। अह उ परंपरसिद्धा, अप्परहुं मुत्तु भणिअस्था ॥३०॥ सामुद्द दीय जल थल, थोवा संखगुण थोव संखगुणा। उड्ड अह तिरिअलोए, थोवा दुन्नि पुण संखगुणा॥३१॥ लवणे कालोअम्मि य, जंबुद्दीवे अ धायईसंडे । पुक्खरबरदीवड्ढे, कमलो थोवा उ संवगुणा ॥३२॥ हिमवंते हेमवए, महहिमवे कुरुसु हरि निसड भरहे। संखगुणा य विदेहे, जंबुद्दीवे समा सेसे ॥३३॥ बुल्ल महहिमव निसढे, हेम कुरू हरिसु भारह विदेहे। चउ छटे साहीया, धायइ सेसा उ संखगुणा ॥३४॥ मुक्खरवरे वि एवं, चउत्थठाणम्मि नवरि संखगुणा। एसुं संहरणेणं, सिझंति समा य समगेसु ॥३५॥ जंधु निसहत मीसे जे भणि पुषमहिअ बीअहिमे। दुति महहिम हिमवंते, निसढ महाहिमव विमहिमवे ॥३६॥ तिअनिसहे विअकुरुसुं हरिसु अ तह सइअहेम-कुरु-हरिसु। दुदु मंख एग अहिआ, कम भरह विदेहतिग संखा १ ॥३७॥ ___ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुसम दुसमाइ धोवा, दूसम संखगुण सुसमदुसमाए । अस्संखा पण छट्ठे, अहिआ तुरिअम्मि संखगुणा ॥३८॥ अवसप्पिणि अरएसुं, एवं उस्सप्पिणीह मीसे वि । परमवसप्पिणि दुस्सम, अहिआ सेसेसु दुख विसमा २ ॥३९॥ । थी १ नर २ नस्य ३ तिरित्थी ४, तिरि ५ देवी ६ देव ७ थोव १ संखगुणा ६ । इग १ पणिदि २ थोव १ संखा २, तरु १ भू २ जल ३ तसिहि ४ संखगुणा ||४०|| च १ ति २ दुग ३ नरय तरु ४ महि ५, जल ६ भवण ७-८ वर्णिद ९-१० जोइदेविसुरा ११-१२। नारी १३ नर १४ रयणाए १५, तिरिई १६ तिरि १७ णुत्तरा १८ दुपडमदिवदेवि ३०-३१ सुरा ३२-३३, afer नर ४ हिननिअलिंगे ५ । तित्थयरि तित्थि पत्ते, तित्ययर तित्थि पत्ते, य १९ सुरा २०-२९ ॥४१॥ समणी मुणि कमिण संखगुणा ॥४२॥ समणी मुणिऽणंत संखऽसंखगुणा ६ । परिहार चउण पणगे, छेय ति चउ सेंसचरणम्मि ॥४३॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे संख असंख दु संखा ७, सं पत्ते बुद्धि बुद्ध संखगुणा ८ । मणजुअ थोवा महसुअ, संख च असंख तिग संखा ९ ॥ ४४ ॥ अडसमयसिद्ध थोवा, संखिजगुणा उ सत्तसमयाई १० | अचुअ चुअतीसु धोवा, असंख संखा असंखा य ११ ॥ ४५ ॥ एगो जा जवमज्झ, संखगुण परा उ संखगुणहीणा । छम्मासंता १२ लहु गुरु, मज्झतणू थोव दु असंखा १३ ॥ ४६ ॥ अट्ठसय सिद्ध थोवा, सत्तऽहिअ अणंतगुणिअ जा पन्ना । जा पणवीसमसंखा, एगंता जाव संखगुणा १४ ||४७ || उम्मंधिअ उद्घट्ठिअ, उक्कडि वीरासणे निउंजे य । पाल्लिग उत्ताणग, सिद्धा उ कमेण संखगुणा १५ ॥ ४८ ॥ पणवीस पन्न अडसय, पण दस वीसा यति पण दसगं च । संख असंख अणंत य, गुणहाणि चउट्ठआइंता ॥ ४९ ॥ इग दुग इग दुग चउ बहुणंत बहु असंखणंतगुणहीणा । इय सिद्वाण सरूवं, लिहिअं देविंदसूरोहिं ॥५०॥ सिद्धदण्डिकास्तवः । जं सहकेवलाओ, अंतमुहुत्तेण सिवगमो भणिओ । जा पुरिसजग असंखा, तत्थ इमा सिद्धदंडीओ ॥ १ ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धदण्डिकास्तवः। सतुंजयसिद्वा भरहवंसनिवई सुबुद्धिणा सिट्ठा। जह सगरसुआणऽट्ठावयम्मि तह कित्तिअंथुणिमो ॥२॥ आइच्चजसाइ सिवे, चउदसलक्खा य एगु सव्वढे । एवं जा इकिका, असंख इय दुगतिगाई वि ॥३॥ जा पन्नासमसंखा, तो सबटुम्मि लक्खचउदसगं। एगो सिवे तहेव य, अस्संखा जाव पन्नासं ॥४॥ तोदोलक्खामुक्खे,दुलक्ख सव्वढि मुक्खि लक्खतिगं। इय इगलवुत्तरिआ, जालक्ख असंख दोसु समा॥५॥ तो एगु सिवे सव्वहि दुन्नि ति सिवम्मि चउर सव्वतु । इय एगुत्सरवुड्ढी जाव असंखा पुढो दोसु ॥६॥ इक्को मुक्खे सव्वढि तिन्नि पण मुक्खि इअ दुरुत्तरिआ। जा दोसु वि अ असंखा, एमेव तिउत्तरा सेढी ॥७॥ विसमुत्तरसेढीए, हिटुवरि ठविअ अउणतीसतिआ। पढमे नत्थि क्खेवो, सेसेसु सया इमो खेवो ॥८॥ दुग पण नवगं तेरस, सतरस बावीस छच्च अटेव । बारस चउदस तह अडवीसा छब्बीस पणवीसा ॥९॥ एगारस तेवीसा, सीयाला सयरि सत्तहत्तरिआ। इग दुग सत्तासीई, इगहत्तरिमेव बासट्ठी ॥१०॥ अउणतरि चउवीसा, छायाला तह सयं च छन्वीसा। मेलित्तु इगंतरिआ सिद्धीए तह य सवढे ॥११॥ अंतिल्लअंकआई, ठविउं बीआइखेवगा तह य । । एवमसंखा नेआ, जा अजिअपिआ समुप्पन्नो ॥१२॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिस अस्संखकोडिलक्खा, सिद्धा सव्वगा य तह सिद्धा । एगभवेणं देविंदवंदिआ दिंतु सिद्धिसुहं ॥ १३॥ १०६ भावप्रकरणम् । आनंदभरिअनयणो, आणंद पाविऊण गुरुवयणे । आणंदविमलसूरिं, नमिदं वच्छामि भावे अ ॥ १ ॥ धम्माऽधम्माssगासा, कालो पुग्गल य कम्मगइजीवा । एएस अ दारेसु अ, भणामि भावे अ अणुकमसो ||२|| मिच्छे सासण मीसे, अविरय देसे पमत्त अपमन्ते । निअहि अनियहि सुहुमुवसम खीण सजोगि अजोगि गुणा ॥३॥ उबसम खइओ मीसो, उदओ परिणाम सन्निवाओ अप सव्वे जीवट्ठाणे, परिणामुदओ अजीवाणं ॥४॥ केवल नाणंदंसण खइअं सम्मं च चरण दाणाई । नव खइआ लद्धीओ, उवसमिए सम्म चरणं च ॥५॥ नाणा चउ अण्णाणा, तिण्णि य दंसणतिगं च गिहिधम्मो । वेअग सवचारितं, दाणाइग मिस्सगा भावा ॥ ६ ॥ अन्नाणमसिद्धत्ताऽसंजमलेसाकसायगइवेया । मिच्छं तुरिए भव्वाभव्वन्तजियत्त परिणामे ||७|| आइमचउदारेसु य, भावो परिणामगो य णायब्बो । पुग्मलि परिणामुदओ, पंचविहा हुंति मोहम्मि ||८|| Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विप्रकरणम्। १०७ दंसणनाणावरणे, विग्वे विणुवसम हुंति चत्तारि । वेयाsssनामगोए, उवसममीसेण रहिआ उ ॥९॥ चउसु वि इसुं पण पण, खाइअ परिणाम हुंति सिद्धीए । अह जीवेसु अ भावे, भणामि गुणठाणख्वेसु ॥१०॥ मीसोदयपरिणामा, एए भावा भवंति पढमतिगे । अग्गे अट्ठसु पण पण, ज्वसम विणु हुंति खीणम्मि ॥ ११ ॥ खइयोदयपरिणामा, तिन्नि अ भावा भवंति चरमदुगे । एसि उत्तरभेआ, भणामि मिच्छाइगुणठाणे ॥१२॥ मिच्छे तह सासाणे, खओवसमिया भवंति दस भेया । दाणाइपण चक्खु य, अचक्खु अन्नाणतिअगं च ॥ १३॥ मिस्से मिस्सं सम्मं, तिस दाणाइपणग नाणतिगं । तुरिए बारस नवरं, मिस्सचाएण सम्मत्तं ॥१४॥ सम्मुत्ता ते बारस, विरइक्वेवेण तेर पंचमए । छट्ठे तह सत्तमए, चउदस मणनाणखेवि कए || १५ || अट्ठम नवमे दसमे, विणु सम्मतेण होइ तेरसगं । उवसंतस्त्रीणमोहे, चरित्तरहिआ य बार भवे ॥ १६ ॥ अन्नाणाऽसिद्धत्तं, लेसाऽसंजमकसायगइवेया । मिच्छत्तं मिच्छन्त्ते, भेया उदयस्स इगवीसं ॥ १७॥ बियए मिच्छ विणा ते, वीसं भेया भवंति उदयस्स । तइए तुरिए दस नव, विणु अन्नाणेण णायव्वा ॥ १८ ॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ नवस्मरणादिसले देसे सतरस नारगगइ-देवगईणऽभावओ हुंति। तिरिगइ-असंजमा उ, उदए छट्ठस्स न भवंति ॥१९॥ आइतिलेसाऽभावे, बारस भेया भवंति सत्तमए। तेऊ-पम्हाऽभावे, अट्टम नवमे य दस भेया॥२०॥ आइमकसायतियगं, वेयतिग विणा भवंति चत्तारि । दसमे उवरिमतियगे, लोभ विणा हुंति तिन्नेव ॥२१॥ चरमगुणेऽसिद्धत्तं, मणुआण गई तहा य उदयम्मि । तुरिआओ उवसंतं, उवसमसम्मं भवे पवरं ।।२२।। नवमे दसमे संते, उवसमचरणं भवे नराणं च । खाइगभेए भणिमो, इत्तो गुणठाणजीवेसु ॥२३॥ खाइगसम्मत्तं पुण, तुरियाइगुणट्ठगे सुए भणियं । खीणे खाइगसम्मं, खाइगचरणं च जिणकहिअं॥२४॥ दाणाइलद्धिपणगं, केवलजुअलं समत्त तह चरणं । खाइगभेआ एए, सजोगि चरमे य गुणठाणे ॥२०॥ जीवत्तमभव्वत्तं, भव्वत्तं आइमे अ गुणठाणे । सासण जा खीणतं, अभव्ववज्जा य दो भेया ॥२६॥ चरमे दुअगुणठाणे, भव्वत्तं वजिऊण जीवत्तं । एए पंच वि भावा, परूविआ सव्वगुणठाणे ॥२७॥ चउतीसा बत्तीसा, तित्तीसा तह य होइ पणतीसा। चउतीसा तित्तीसा, तीसा सगवीस अडवीसा ॥२८॥ बावीस वीस एगूणवीस तेरस य बारस कमेण । एए असन्निवाइअ भेया सव्वे य गुणठाणे ॥२९॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योनिस्तवः । १०९ सिरिगुरु आणंद विमलसूरिसिस्सेण विजयविमलेणं । लिहियं पगरणमेयं, रम्माओ पुग्वगंथाओ ॥३०॥ योनिस्तवः । देविंदनयं विजानंदमयं धम्मकित्सिकुलभवणं । अणुभूयजोणिजाई, वीरजिणं विन्नवेमि अहं ॥ १ ॥ सुरनरएस अचित्ता, सचित्त चित्ता उ सन्नितिरिमणुए। विगलअसन्निइगिंदिसु, सचित्ताऽचित्तमीस तिहा ॥२॥ सीआ उसिणा मीसा, तिह भूजलऽनिलअसन्निविगलवणे । सीओसिण सुरगन्भे, सीआ उसिणा दुहा नरए ॥३॥ उसिणा य तेकाए, संबुडजोणी इगिंदिसुरनिरए । विगलासन्निसु विडा, संवुडवियडा य गभम्मि ||४|| कुम्मुन्नयाह उत्तमनर वंसीपत्तजोणि सेसनरा । नियमा गन्भविणासी, संखावत्ता उ थीरयणे ||५|| मुच्छंडजराउग्भिअसंसेउववाय पोअरसयतसा । मूलग्ग पोरखंधा बीयरुहा मुच्छ वणजोणी ॥६॥ चउदस मणुअनिगोए भूजलपवणग्गि जोणि सगलक्खा। उ तिरिअनारयसुरे, दु दु विगले दस परिप्तवणे ॥७॥ चुलसीइ लक्खजोणिसु, इअ समवन्नाइ जोणि बहुलक्खे। इकिकाओ भमिओ, कुलकोडीलक्ख पूरंतो ॥८॥ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे कुलकोडिलफ्ख तिनिउ, जलणम्मि वर्णाम्मि अट्ठवीसा उ सन्त जले सग पवणे, अद्धतेरस जलयरेसु ॥९॥ बारस भूनरपक्खिसु, बितिचउरिंदीसु सत्त अट्ठ नव । नव भुअपरिसप्पेसुं, दस सप्प चउप्पएस पुढो ॥ १० ॥ नरपसु पन्नवीसा, छव्वीस सुरेस सव्वओ भमिओ । इगकोडिकोडिसड्ढा सगनउईलक्ख कुलकोडी ॥११॥ मायपि भाइ भयणी भज्जा असुण्हवअमाइने । भमिओ मि धम्मघोसं, अलहंतो जोणिगहणम्मि ॥ १२॥ ता तह पसीअ सामिअं !, संपइ निअदंसणप्पयाणेण । जह लहु होमि सया इं, अजोणिकुलसंभवो भगवं । ॥ १३ ॥ ११० विचारसप्ततिका | पडिमा मिच्छा कोडी, चेहअ पासाय रविकरप्पसरो । पज्जन्ति किन्ह वलया, नंदी गिहिकिरिअ गुणठाणा ॥ १ ॥ उस भाईजिणपडिमं, इक्कं पि न्हवंतपूअयंतेहिं । चितेअव्वं एयं भव्वेहिं विवेगमंतेहिं ॥२॥ भवणवईभवणे, कप्पाहविमाण तह महीषलए । सासयपडिमा पनस्स, कोडिसय पिचकोडीओ ||३|| लक्खः पाबिस, सहसा पंच य सवाई चालीसा। तह वगरे साथिया पुत्रा असं ॥४॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरसप्ततिहा। तह चेव जंबुदीवे, धायइसंडे य पुक्खरद्धे अ। भाहेरवयविदेहे, गामागरनगरमाईसु॥५॥ सुरमणुएहि कयाओ, चेहअगिहचेइएसु जा पडिमा। उकोस पंच धणुसय, जाव य अंगुठ्ठपव्वसमा ॥६॥ बहुकोडिकोडिलकखा, ताओ चिय भावओ अहं सव्वा। समगं चिय पणमामि, न्हवेमि पूएमि झाएमि ॥७॥ चउदसपय अडचत्ता, तिमहिअतिसई सयं च अडनउअं। चउगइ दसगुण मिच्छा, पण सहसा छ सय तीसाय ॥८॥ नेरइआ सत्सविहा, पजअपनत्तणेण चउदसहा । अडचसाई संखा, तिरिनरदेवाण पुण एवं ॥९॥ भूदग्मिवाउणंता, कीसं सेसतर विमल अटेव । गन्मेयर पज्जेयर, जलथलनहउरभुआ वीसं ॥१०॥ पारस तीस छपन्ना, कम्माकम्मा तहतरद्दीवा। गम्मा पन्ज अपजा, मुच्छ अपज्जा तिसय तिन्नि ॥११॥ भवणा परमा जंभय, वणयर दस पनर दस य सोलसगं। गइ टिइजोइस दसगं, किब्बिस तिग नव य लोगंता॥१२॥ कम्पा गेविजणुत्तर, बारस नव पण पजत्तमपजत्ता। अडनउअसयं अभियवत्तियमाईहि दसगुणिआ॥१३॥ अभिहयपयाइ दहगुण, पण सहसा छ सयलीसई भेआ। ते सगदोसागुणा, कारस सहस दोसया सही ॥१४॥ मणासकाए मुणिमा सित्तीस.सहसा सत्तसयसीम। करकारवाहाहर लाख सहसो तिसयामला ॥१॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे कालतिगेणं गुणिआ, तिलक्ख च सहस वीसमहिआ य । अरिहंतसिद्ध साहूदेवयगुरु अप्पस खोहिं ॥ १६ ॥ अट्ठारस लक्खाई, चडवीस सहस्स एगवीसहिआ । इरिआमिच्छादुक्कडपमाणमेअं सुए भणिअं ॥ १७॥ जोयण पिलायामा दसन्नपव्वयसमीव कोडिसिला । जिणछक्कतित्थसिद्धा, तत्थ अणेगा उ मुणिकोडी ॥ १८ ॥ पढमं संतिगणहरो, चक्काउह गसाहुपरियरिओ । बत्तीसजुगेहिं तओ, सिद्धा संखिज्ज मुणिकोडी ॥ १९ ॥ संखिना मुणिकोडी, अडवीसजुगेहिँ कुंथुनाहस्स । अरजिण चडवीसजुगा, बारस कोडीओ सिद्धाओ ॥२०॥ मल्लिस्स वि बीसजुगा, छकोडि मुणिसुव्वयस्स कोडितिगं । नमितित्थे इगकोडी, सिद्धा तेणेव कोडिसिला ॥ २१ ॥ छत्ते सिरम्मि गोवा, वच्छे उयरे कडीह ऊरूसु । जाणू कहमवि जाणू, नीया सा वासुदेवेहिं ॥ २२ ॥ इक्कारअहिअपणसय, सासयचेइअ नमामि महिवलए । तीसं वासहरेसु, वेयड्ढेसुं च सयरिसयं ॥ २३॥ वीसं गयतेसुं कुरुदुमदसगे तहेव नउई अ । वक्खारगिरिसु असिई, पणसीई मेरुपणगम्मि ||२४|| इसुमणुकुंडलरुअगे, चर चर वीसं च नंदिसरि दीवे । अड-वीस नंदि-कुंडलिरुअगे सयपन्न बासयरी ॥ २५ ॥ " Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विचारसंपतिका / छत्तीस दीहपिहुउच्चा । अट्ठाराहिय दुसई, पनमाणस- इसु-गयदंतय- वक्खार - वासहरमेरूनुं ॥ २६ ॥ पणसहिअहिअ सयदुग, संपुष्णं कोसमद्ध देसृणं । दीहे पिहू उच्चते, कुरुदुमवेअड्ढचूलासु ॥ २७ ॥ पासाया ईसाणे, सुहमा सिद्धोववाय हरए अ । अभिसे अलंकारा, ववसाए नंदि बलिपीढं ॥ २८ ॥ मुहमंड पिच्छमंडव, धूभं चेइअ झओ अ पुक्खरिणी । जम्मुत्तरपुव्यासुं, जिणभवणसभासु पत्तेअं ॥२९॥ ओआरियलयणम्मि अ, पहूणो पणसीइ हुंति पासाया । तिसय इगचत्त कत्थय, कत्थवि पणसट्ठि तेरसया ॥ ३०॥ मुहपासाओ चउदिसि, चउहिं ते सोलसेहिं सोला वि । सीए सा विय, छप्पन्नेहिं दुहि सएहिं ॥ ३१ ॥ ते विअ पुण सहसेणं, चउवीसहिएण हुंति परिअरिया । मूलुचत्तपुहुत्ता, अद्वे पण वि पंतीओ ||३२|| तेरससय पणसट्टा, इअ पणपंताहिँ हुंति पासाया । पणसी पंतितिगेणं, तिसई इगचत्त चउहिं तु ॥ ३३ ॥ पणसी एगवीसा, पणसी पुण एगचन्त तिसईए । तेरससय पणसट्टा, तिसई इगचत पइककुहं ||३४|| पिट्ठे पुवा पुरओ, अवरा वलए भमंत सूरस्स । दाहिणकरम्मि मेरु, वामकरे होइ लवणोही ॥३५॥ सगचत्तसहस दुसई, तेवट्ठा तहिगवीससट्ठसा । पुव्वावर करपसरो, कक्के सूरा अनुत्तरओ ॥ ३६ ॥ ८ ११३ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसमुदै असिईसऊणसहसा, पणयालीसाऽह जम्मओ दीवे । असिइसयं लवणे विअ, तित्तीससहस्स सतिभागा ॥३७॥ इगतीससहस अडसय, इगतीसा तह य तीससट्ठसा । मयरे रविरस्सीओ, पुव्ववरेणं अह उदीणे ॥ ३८ ॥ लवणे तिसई तीसा, दीवे पणचत्तसहस अह जम्मे । लवणम्मि जोअणतिगं, सतिभागसहस्स तित्तीसा ॥ ३९ ॥ मयरम्मि वि कक्कम्मि वि, हिट्ठा अट्ठारजोअणसयाई । जोयणसयं च उड्ढं, रविकर एवं छसु दिसासु ॥ ४० ॥ पइदिणमवि जम्मुत्तर, अडसतरिसहस सहसत अंसो । उड्ढह गुणवीससया, अठिया पुव्वावरा रस्सी ॥ ४१ ॥ आहारसरीरिंदियऊसासवओमणो छ पज्जन्ती । चड पंच पंच छप्पिअ, इगविगलाऽमणसमणतिरिए ॥ ४२॥ गन्भयमणुआणं पुण, छ प्पि अ पज्जन्ति पंच देवेसु । जं तेसि वयमणाणं, दुवे वि पज्जत्ति समकालं ||४३|| उरलविउब्वाहारे, छन्ह वि पज्जत्ति जुगवमारंभो । तिन्ह वि पढमिगममए, बीआ पुण अंतमोहत्ती ||४४ || पिहू पिहू असंखसमहअअंतमुहुत्ता उराल चउरो वि । पिहु पिहू समया चउरो वि हुंति वेउव्विआहारे ||४५ || छन्ह वि सममारंभे, पढमा समए विअंतमोहन्ती । ति तुरिअ समए समए, सुरेसु पण छट्ठ इगसमए ॥ ४६ ॥ बंभे रिट्ठे तहअम्मि पत्थडे अट्ठ कण्हराईओ । इंदयचसु दिसासुं, अक्वाडगसंठिआ दिग्घे ||४७|| ११४ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विचारसप्ततिका | ११५ जोअण असंख पोहत्ति संख ईसाणि अचि अचिमाली । वइरोअणं पहंकर, चंदाभं सूरिअ सुकाभं ॥४८॥ सुपट्ठामं रिद्वं, मज्झे वह बहिं विचित्त । तेसिंह सारस्यपमुहा तद्दुदुगपरिवारा ॥ ४९ ॥ सत्तसय सत्त चउदस, सहसा चउदहिअ सगसहससत्त । नव नवसय नव नवहिअ, अव्वाबाहागिञ्चरिट्ठेसु ॥ ५०॥ सारस्सय माइच्चा, वही वरुणा य गद्दतोया य । तुसिआ अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ॥ ५१ ॥ पुव्वंतर जम्मबर्हि, पुट्ठा जम्मंतरा बहिं वरुणं । तम्मज्झत्तर बाहिं, उईणमज्झा बहिं पुव्वं ॥ ५२ ॥ पुव्वावरा छलंसा, तंसा पुण दाहिणुत्तरा बज्झा । अभंतर चउरंसा, सव्वा वि अ कण्हरांईओ ॥ ५३ ॥ पुक्खरिगारस तेरेव, कुंडले रुअगि तेर ठारे वा । मंडलिआचल तिन्नि उ, मणुउत्तर कुंडलो रुअगो ॥ ५४ ॥ सत्तरस य इगवीसा, बायालसहस्स चुलसि सहसुच्चा । चउसय तीसा कोसं, सहसं सहसं च ओगाढा ॥ ५५ ॥ भुवि दससय बावीसा, मज्झे सत्त य सया उ तेवीमा । सिहरे चत्तारि सया, चडवीसा मणुअकुंडलगा ॥ ६६ ॥ दस सहसा बावीसा, भुवि मज्झे सगसहस्स तेवीसा । सिहरे चउरो सहसा, चवीसा रुअगसेलमि ॥ ५७ ॥ अगे सिहरे चउदिसि बिअसहसेगिंग चउत्थ अट्ठट्ठ । विदिसि चऊ इअ चत्ता, दिसिकुमरी कूड सहसंका ॥५८॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ मधस्मरणादिसङ्ग्रहे पढमो सीहनिसाई, अद्धजवनिभो अ चउदिसिं सिहरे । पन्नाई चउ जिणगिहो, सयाइ च चेइआ दुन्नि ॥५९॥ तेव कोडिसयं, लक्खा चुलसीइ वलयविक्खंभो । नंदिसरट्ठमदीवो, चउदिसि चड अंजणा मज्झे ॥ ६० ॥ गोपुच्छा अंजणमय, चुलसीसहसुच्च सहसमोगाढा । समभुवि दस सहसपिह सहस्रवरिं तेसिं चउदिसिसु ॥ ६१ ॥ लक्वंतरि च चउ, बावी दस दस य जोअणुव्विद्धा । लक्खं दीह-पित्ते, तम्मज्झे दहिमुहा सोल ॥ ६२ ॥ सहसोगाढा चउसठिसहसुच्चा दससहस्स पिहुला य । सव्वत्थ समा पल्लयसरिसा रुप्पामया सच्वे ॥ ६३ ॥ अंजण-दहिमुहचेइअ, वीसं चउदार दोह-पिहु-उच्चा । सय-पन्ना- बावन्तरिजोअण ठाणंगि जिअभिगमे ॥ ६४ ॥ नंदी विदिसिं चउरो, दसिगसहस्सा पिहुच पाओऽहे । झल्लरिसरिस अचेइअ रहकर ठाणंगि सुन्तम्मि ||६५ || नंदीसर व्व उडूढं, पन्नासाई य असुरजिणभवणा । तयअर्द्ध नागाइ, वंतरनगरेसु तयअद्धं ॥ ६६ ॥ मन्नह जिणाण आणं, मिच्छं परिहरह धरह सम्मतं । छव्विहआवसयम्मि अ, उज्जुत्ता होह पइदिअहं || ६७|| पत्र्वेस पोसहवयं, दाणं सीलं तवो अ भावो अ । सज्झाय नमुक्कारो, परोवयारो अ जयणा य ॥६८॥ जिणपूआ जिणथुणणं, गुरुथुइ साहम्मिआण वच्छलं । बहारस्स य सुद्धी, रहजन्ता तित्थजन्ता य ॥ ६९ ॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विचारसप्ततिका। संघोवरि बहुमाणो, धम्मिअमिती पभाषणा तित्थे। नवखिसे धणबवणं, पुत्थयलिहणं विसेसेण ॥७॥ परिगहमाणाऽभिग्गह, इकारस सड्ढपडिमफासणया। सव्वविरईमणोरह, एमाई सड्ढकिचाइं ॥७१॥ अह चउदससुगुणेसुं, कालपमाणं भणामि दुविहं पि१। न मरइ मरइ व जेसुं २, सह परभवु जेहिँ नो जेहिं ३ ॥७२॥ मिच्छं अणाइनिहणं, अभव्धे भव्वे वि सिवगमाजुग्गे। सिवगइ अणाइसंतं, साईसंतं पि तं एवं ॥७३॥ लहु अंतमुहू गुरु, देसूणमवड्ढपुग्गलपरहें । सासाणं लहु समओ, आवलिछक्कं च उक्कोसं १७४।। अजहन्नमणुकोसं, अंतमुहू मीसगं अह चउत्थं । समहिअतित्तीसयरे, उक्कोसं अंतमुहु लहुअं ॥७॥ देसूणपुव्वकोडी, गुरु लहुअंच अंतमुहु देखें। छट्ठाइगारसंता, लहु समया अंतमुहु गुरुआ॥७६॥ अंतमुहुत्तं एगं, अलहुकोसं अजोगिखीणेसु । देसूणपुवकोडी, गुरु लहु अंतमुहु जोगी ॥७७॥ मीसे खीणसजोगी, न मरंत मरंतिगारसगुणेसु । तह मिच्छ-साण-अविरइ, सह परभवगान सेसट्ठा ।।७८॥ उवसंतिजिणा थोवा, संखिजगुणा उ खीणमोहिजिणा। सुहमनिअहिअनियहि, तिन्नि वि तुल्लाविसेसहिआ॥७९॥ ___ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ नवस्मरणादिसरे जोगि अपमत्त इयरे, संखगुणा देस सासणा मिस्सा। अविरय अजोगि मिच्छा, चउर असंखा दुवे गंता ॥८॥ चउदसगुणसोवाणे, इअ दुहरोहे कमेण रुहिऊणं । नरसुरमहिंदवंछिअसिवपासाए सया वसह ॥८॥ विचारपश्चाशिका। वीरपयकयं नमिउं, देवासुरनरबिरेफसेविअयं । जिणसमयसमुदाओ, वियारपंचासियं वुच्छं ॥१॥ ओरालिय वेउब्विय, आहारग तेय कम्मुणं भणियं । एयाण सरीराण, नवहा भेयं भणिस्सामि ||२|| बायरपुग्गलबद्धं, उरालिय उयारमागमे भणियं । सुहुमसुहुमेण तत्तो, पुग्गलबंधेण भणियाणि १ ॥३॥ ओरालिए अणंता, तत्तो दोसुं असंखगुणिया उ। तत्तो दोसु अणंता पएससंखा सुए भणिया २॥४॥ तिरिअनराणमुरालं, वेउव्वं देवनारगाणं च । तिरियनराणं पि तहा, तल्लद्धिजुयाण तं भणियं ॥५॥ चउदसपुग्विजईणं, होई आहारगं न अन्नेसि। तेअं कम्मण भणिअं, संसारत्थाण जीवाणं ३ ॥६॥ ओरालियस्स विसओ, तिरियं विजाहराणमासज्ज । आ नंदीसर गुरुओ, जंघाचरणाण आ रुयगो ॥७॥ उड्ढे उभयाणंपिय, आ पंडगवण सुए सया भणिओ वेउब्वियस्स विसओ, असंख दीवा जलहिणो य॥ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विचारपश्चाशिका | ११९ आहारस्स विदेहा, तेयाकम्माण सव्वलोगो य ४ । ओरालियस्स कज्ळं, केवलधम्माइयं भणियं ॥ ९ ॥ थूलसुहुमं च रूवं, एगअणेगाइ कज्जयं कहियं । asव्वयस्स आहारगस्स संदेहविच्छेयं ॥ १० ॥ तेजससरीरकज्जं, आहारपयं सुए समक्खायं । सावाणुरगहणं पुण, कम्मणस्स भवंतरे गइयं ५ ॥ ११ ॥ ओरालियं सरीरं, जोयणदससयपमाणओ अहियं । वेडव्वियं च गुरुअं, जोयणलक्खं समहियं वा ॥ १२ ॥ आहारगं सरीरं, हत्थपमाणं सुए समक्वायं । तेयसकम्मणमाणं, लोयपमाणं सया भणियं ६ ॥१३॥ अस्संखपएसठियं, ओरालिययं जिणेण वज्जरियं । इत्तो य बहुयरेसुं चवियं वेडव्वियसरीरं ॥ १४॥ एहिंतो अप्पम्मी, परसवग्गे तईय वज्जरियं । सव्वे लोगागासे, तेयसकम्माणुगाहणयं ७ ॥१५॥ अंतोमुहुत्त लहुयं, ओरालियआउमाण संगहियं । गुरुयं तिपल्लमुत्तं, वेउव्वे अह भणिस्सामि ॥ १६ ॥ दसवरिससहस्साई, उक्कोसं सागराणि तित्तीसं । उत्तरवेउव्वम्मी, लहुय मुहुत्तं गुरुयमेवं ॥ १७॥ अंतोमुहुत्त नरएसु होइ चत्तारि तिरियमणुसु । देवेसु अद्धमासो, उक्कोसविउठवणे कालो ॥१८॥ अहारगस्स कालो, अंतमुत्तं जहन्नमुक्किट्टो | तेयसकम्मणरूवे, सव्वेसिमणाइए भणिए || १९ ॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० प्रवस्मरणाहिल भव्वे सपज्जबसिए अजबसिए असबजीबेसु । अप्पबहुसं भणिमो, एगं दो वा जहनेणं ॥२०॥ उक्कोस नव सहस्सा, आहारसरीरगा हवंति सुए । अंतरमस्स जहन्नं, समयं छम्मास गुरु भणियं ॥ २१॥ इतो असं उब्वियाणि हुंति य सरीरमाणि जए । ततो असंखगुणिया, ओरालियदेहसंघामा ||२२|| ततो तेयसकम्मण, हुंति सरीराणि णंतगुणियाणि । विस्वरभेयवियारो, णेयब्वो सुयसमुद्दाओ ९ ॥२३॥ नरसंखाउयगमणं, रयणाए भवण जाव ईसाणे । ताण तणु जहन्नेणं, परिमाणं अंगुलपहतं ||२४|| ताण ठिह जहनेणं, मासपहुतं ति होइ नायव्वा । उक्कोस पुचकोडी, जेतणू पंचधणुहस्यं ॥ २५ ॥ सक्कर- सणाइए, मणुयाणं तणु जहन्नओ होइ । रयणिपत्तं णेयं, उक्कोसं पुत्र्वभणियं तु ॥ २६३ ॥ ताण ठिह जहनेणं, वासपहुतं तु होइ णायव्वा । उक्कोसा पुवं पिव, आगममाणस्स एमेव ||२७|| धम्माऽधम्माssगासा, जीवा कालो य खायगं चैव । सासायण उवसमियं, अपुग्गलाई तु एयाइं ||२८|| ओरालिय वेडव्विय, आहारग तेयसं झुणी य मणो । उस्सास निस्सास, कम्मण-कम्माणि छाय तमो ॥ २९ ॥ वग्गणअनंत आयव, मिस्सक्खंधो अचित्तमहखंधो । der स्वाओवसमं, उज्जोय पुग्गल सुए भणियं ॥ ३० ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 14. . . निधारपवाशिकार नेरझ्यदेवअगणीघाउ य धजिय असंखजीवी उ। सेसा सव्वे वि जिया, मुच्छिममणुएसु गच्छंति ॥३१॥ नेरझ्यदेवजुयला, वज्जिय सेसेसु जीवठाणेसु । मुच्छिमनराण गमणं, सव्वे वि अ पढमगुणठाणी ॥३२॥ आहारसरीरिदिय, उसासे बय मणे छ पज्जत्ती। चउपंच पंच छप्पि य, इगविगलामणसमणतिरिए॥३३॥ गब्भयनरनरएसु, छ प्पि य पजत्ति पंच देवाणं । जं तेसि वयमणाणं, दोण्ह वि पजत्ति समकालं ॥३४॥ उरलविउव्वाहारे, छण्ह वि पज्जत्ति जुगवमारंभो। तिण्हं पढमिगसमए, बीआ अंतोमुहुत्तिआ हवइ ॥३५॥ पिहु पिहु असंखसमइअ अंतमुहुत्ता उरालि चउरो वि। पिहु पिह समयाचउरो वि हुंति वेउब्वियाऽऽहारे ॥३६॥ छण्ह वि सममारंभो, पढमा समएण अंतमुहु बीया। तितुरिय समए समए, सुरेसु पण छ? इगसमए ॥३७॥ सो लद्धिऍ पज्जत्तो, जो य मरह पूरिउ सपज्जत्ति । लद्धिअपज्जत्तो पुण, जो मरई ता अपूरित्ता ॥३८॥ नज वि पूरेइ परं, पुरिस्सइ स इह करणअपजत्तो। सो पुण करणपजत्तो, जेणं ता पूरिया हुंति ॥३९॥ नर नेरइया देवा, सिद्धा तिरिया कमेण इह होति । थोव असंख असंखा, अणंतगुणिया अणंतगुणा ॥४०॥ नारीनरनेरइया, तिरित्थिसुरदेविसिद्धतिरिया य । थोच असंखमुणा चउ, संखगुणाऽणंतगुण दुन्नि ॥४१॥ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ नवस्मरणादिसावे पण चउ ति दुयअणिदिअ, एगिदिय सेंदिया कमाहुति। थोवातिअत्ति अहिया, दोऽणंतगुणा विसेसहिआ॥४२॥ तस तेउ पुढवि जल वाउकाय अकाय वणस्सइसकाया। थोव असंखगुणाऽहिय, तिन्नि उदोऽणंतगुण अहिआ॥४३॥ जीवा पुग्गल समया, दव्व पएसा य पजवा चेव । थोवाऽणताऽणंता, विसेसमहिया दुवेऽणंता ॥४४॥ दव्वे खित्ते काले, भावे अपएस पुग्गला चउहा। सपएसा वि य चउहा, अप्पबहुत्तं च एएसि ॥४५॥ दव्वेणं परमाणू, खित्तेणेगप्पएसमोगाढा। कालेणेगसमइया, भावेणेगगुणवण्णाई ॥४६॥ अपएसगा उ एए, विवरिय सपएसगा सया भणिया। भा-का-द-खि-अपएसा,थोवा तिनि य असंखगुणा॥४७॥ खित्ते अपएसगा उ, खित्ते सपएस असंखगुणिया उ। दव्व-क-भा-सपएसा, विसेससहिया सुए भणिया ॥४८॥ कड तेउए य दावर, कलिउय तह संहवंति जुम्मा उ। अवहीरमाण चउ चउ, चउ ति दुगेगा उचिट्ठति ॥४९॥ धं-ज-व-स-परिव-वि-ति-च-समुन पणथ-ख-ज-न-भ-व-र-वि-न-सु-स-पमुति अ। १५०-धरा, ज०-जल, व०-वह्नि, स०-समीरणवायु, परिव.प्रत्येकवनस्पति, बि०-द्वीन्द्रिय, ति•-त्रीन्द्रिय, च०-चतुरिन्द्रिय, समुन.सम्मूर्छिमनर, पणथ०-पञ्चेन्द्रियस्थलचर, ख०-खचर, ज०-जलचर, नर-नारक, म.-भवनपति, व०-व्यन्तर, र०-रवि, वि०-विधु-चन्द्र, न.नक्षत्र, सु० -सुरवैमानिक स०-समुद्र, पमुति -पश्चेन्द्रियसम्मूर्छिमतियश्च, Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालसप्ततिका | जगनभप-ध-अ- इगजिप-ट्ठिअ-नि सि-नि- वजि-स-पु-अ-भ-अ-पर-वणका ॥५०॥ इय सुत्ताओ भणिया, वियारपंचासिया य सपरकए । मुणिसिरिआणंदविमलसूरिवराणं विणेएण ॥ ५१ ॥ १२३ कालसप्ततिका । देविंदणयं विज्जाणंदमयं धम्मकित्ति कुलभवणं । नमिऊण जिणं बुच्छं, कालसरूवं जहासुत्तं ॥१॥ सुहुमद्वायरद सकोडिकोडिछअराऽवसप्पिणुसपिणी । ता दुन्नि कालचकं, वीसायरकोडिकोडीओ ॥२॥ मुंडियइगाइसगदिणकुरुनरकेसचिअमनिलजलगणिणो । अविसयमुसेहजोयणपिहुच पल्लमिह पलिओमं ॥३॥ पजथूलकुतणुतणुसमअसंखदल के सहर सुहुमथूले । अद्धुद्वारे खित्ते, पएस वाससयसमयसमया ॥४॥ अस्संख संखवासा, असंखुसप्पिणि कमा सुहुममाणं । थूलाण संखवासा, संखसमसप्पिणि असंखा ||५|| काला गाइ अद्धा, दीवादुद्धारि खित पुढवाई | सुमेण मिणसु दसकोडिकोडिपलिए हिँ अयरं तु ॥ ६॥ अ० - असंख्यात; जगनभप ० - जगन्नभः प्रदेश = लोकाकाशप्रदेश, ध०-धर्मास्तिकाय प्रदेश, अ० - अधर्मास्तिकाय प्रदेश, इगजिप० - एकजीवप्रदेश, डिअ०स्थित्यध्यवसायस्थान, नि०- निगोद । सि० - सिद्ध, नि० - निगोदजीव, वजि० - वनस्पतिजीव स० - समय, पु०- पुद्गल, अ० - अभव्य, भ० - भव्य, अ०अलोक, पर०- परवडिया = पतित, वणका० - वनस्पतिकायस्थिति, एतान्यनन्तानि ॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न सुसमसुसमा य सुसमा, सुसमदुसमा प दुसमसुसमा य । दुसमा य दुसमदुसमावसप्पिणुस्सप्पिणुक्कमओ ||७|| सागरकोडाकोडी, चउतिदुइमसमदुचत्तसहस्रणा । वाससहसेगवीसा, इगवीस कमा अयरमाणं ॥ ८ ॥ इह तिदुइको सुच्चा, तिदुगपलिआउ अरतिगम्मि कमा । तूअरिबोरामलमाण भोअणा तिदुइगदिणेहिं ॥ ९ ॥ तह दुछबन्ना अडवीससयगु चउसट्ठिपिट्ठयकरंडा । गुणबन्ना चउसठ्ठी गुणसी दिणपालणा य नरा ॥ १० ॥ अवि सव्वजीवजुअला, निअसमहीणाउ सुरगई तह य । थोवकसाया नवरं, सव्वारयथलयरामिणं ॥ ११ ॥ मणुआउसम गयाई, चउरंस हया अजाह अहंसा । गोमहिसुखराई, पणंस साणाइ दसमंसा ॥ १२॥ उरभुअग पुब्वकोडी, पलिआसंखंस खयर पढमारे । कोसपुत्तं भुअगा, उरगा जोअणसहस्स तणू ॥ १३ ॥ पक्खीसु धणुपत्तं, गयाइ छक्कोस छट्टमाहारो । तो कमहाणिविसेसो नेओ सेसारएस सुआ || १४ || पाणं भायण पिच्छण, रविपह दीव पह कुसुम आहारो भूसण हि वत्थासण, कप्पदुमा दसविहा दिति ॥ १५ ॥ ते मत्तंगा भिंगा, तुडिअंगा जोइदीवचित्संगा । चित्तरसा मणिअंगा, गेहागारा अणिअणा य ॥ १६ ॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ कालसप्ततिका। तहआरे पलिओवमअडंसि सेसम्मि कुलगरुप्पत्ती । जम्मद्धभरहमज्झिमतिभागनइसिंधुगंगतो ॥१७॥ पलिओवमदसमंसो, पढमस्साऊ तओ कमेणूणा । पंचसु असंखपुवा, पुव्वा नाभिस्स संखिजा ॥१८॥ पढमंसो कुमरत्ते, चरिमदसंसो अ बुड्ढभावम्मि । मज्झिल्लदसंसेसु जाण कालं कुलगराणं ॥१९॥ धणुसय नव अड सग सड्ढ छ छ सड्ढपण पण पणीसुच्चा । कुलगरपिया वि कुलगरसमाउदेहा पिअंगुनिभा॥२०॥ सविमलवाहण चक्खुम, जसमं अभिचंदओ पसेणइ अ। मरुदेव नाभिकुलगर, तियअरगंते उसह भरहो ॥२१॥ चउथे अजिआइजिणा, तेवीस इगार चक्कि तहिँ सगरो। मघव सणकुमर संती, कुंथु अर सुभूम महपउमा ॥२२॥ हरिसेण जओ बंभु त्ति नव बला अयल विजय भद्दा य । सुप्पह सुदंसणाऽऽणंद नंदणा राम बलभद्दा ॥२३॥ विण्हु तिविटु दुविठू, सयंभु पुरिसुत्तमे पुरिससीहे। तह पुरिसपुंडरीए, दत्ते लक्खमण कण्हे अ ॥२४॥ आसग्गीवे तारय, मेरय महुकेढवे निसुंभे अ। बलि पहराए रावण, जरसिंधू नव पडिहरि त्ति ॥२५॥ एवं जिणचउवीसं, चक्की बार नव बल-हरी तयरी। नवनारएहि बिसयरि, सिलागपुरिसा तह इहाई ॥२६॥ ___ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ नवस्मरणादिसङ्घडे नर फुवकोडिआऊ, पंचसयधणुच्च सनयववहारा । पुव्वं च वासकोडी, सत्तरिलक्खा छपनसहसा ||२७|| अजवमज्झमुस्सेहमंगुलं ते उ हत्थि चडवीसं । चउकर धणु धणुदुसहस, कोसो कोसचर जोयणयं ॥ २८ ॥ दुदुतिगकुलगरनीई हम धिक्कारा तओ विभासाई । चउहा सामाईया, बहुहा लेहाइववहारो ॥ २९ ॥ गुणनवइपक्खसेसे, इह वीरो निव्वुओ चउत्थारे । उस्सप्पिणितइयारे, गए उ एवं पउमजम्मो ||३०|| कालदुगे तिचउत्थारगे एगूणनवइपक्खे | सेस - गएसुं सिज्यंति हुंति पढमंतिमजिनिँदा ॥ ३१ ॥ वीरपउमंतरं पुण, चुलसीसहस सगवास पणमासा । पंचम अरयनरा सगकरुच्च वीससयवरिसाऊ ||३२|| सुहमाइदुपसता, तेवीसुद्एहिँ चउजुअदुसहसा । जुगपवरगुरू तस्सम, इगारलक्खा सहस सोल ||३३|| एगवयारि सुचरणा, समयविउ पभावगा य जुगपवरा । पावयणियाइदुतिगाइवरगुणा जुगपहाणसमा ॥ ३४ ॥ बारवरिसेहि गोमु, सिद्धो वीराउ वीसहिँ सुहम्मो | चउसट्ठीए जंबू बुच्छिन्ना तत्थ दस ठाणा ॥ ३५॥ मणपरमोहिपुलाए, आहारगखवगउवसमे कप्पे । संज मतियकेवलिसिज्झणा य जंबुम्मि बुच्छिन्ना ||३६|| सिजंभवेण विहिअं, दसयालिय अट्ठनवइवरिसेहिं । सत्तरिसएहिँ थक्का, चउपुत्र्वा भहबाहुम्मि ||३७|| Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालसप्ततिका। तुहिंसु थूलभद्दे दोसयपनरेहिँ पुव्वअणुओगो। सुहुम-महापाणाणि अ, आइमसंघयण-संठाणा ॥३८॥ पणचुलसीइसु वयरे, दसपुवा अद्धकीलिसंघयणं । छस्सोलेहि अ थका, दुब्बलिए सड्ढनव पुव्वा ॥३९॥ छन्वाससएहिँ नवुत्तरेहिं सिद्धिं गयस्स वीरस्स । रहवीरपुरे नयरे, खमणा पासंडिआ जाया ॥४०॥ तेणउअनवसएहिं, समक्तेहिँ वद्धमाणाओ। पज्जोसवणचउत्थी, कालगसूरीहिं तो ठविआ॥४१॥ वीरजिणा पुन्वगयं, सव्वं पि गयं सहस्सवरिसेहि। सुन्नमुणिवेअजुत्तो, विक्कमकालो उ जिणकाला ॥४२॥ तेरससएहिं वीरा, होहंति अणेगहा मइ(य)विभेआ। बंधंति जेहिं जीवा, बहुहा कंखाइमोहणियं ॥४३॥ वीरजिणा गुणवीसंसएहिँ पणमासबारवरिसेहि। चंडालकुले होही, पाडलिपुरि समणपडिकूलो ॥४४॥ चित्तमिविद्विभवो, ककी रुद्दो चउम्मुह तिनामा । अट्ठार-ऽटारस-पन्नवरिस सिसु-दिसिविजय-रज्जे ॥४५॥ तं मुणिभिक्खछलंसं, मग्गंतं हणिय विप्पख्वहरी । तस्सुअदत्तं रजे, पइदिणचेइअकरं ठविही ॥४६॥ गुणवीसा सोलेहिं य गहियसोरट्टखप्परकुरजे । सो काही बहुवच्छरअपुजसित्तुंजओद्धारं ॥४७॥ तस्सुअजिणदत्ताई निवा नमिस्संति पाडिवयमाई। तइया कहं पि होही, तह जाइसरोहिनाणाई ॥४८॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे जिणभत्तनिवा उ इगारसलक्खा सोलसहंस होर्हिति । वीससहसेहिं वीरजिणा ॥४९॥ इयं वरिसस तह सग्गचुओ सूरी, दुप्पसहो साहुणी अ फग्गुसिरी । नाइल सड्ढो सड्ढी, सव्वसिरी अंतिमो संघो ॥५०॥ एगो साहू एगा य साहुणी सावओ य सड्ढी वा । आणाजुत्तो संघो, सेसो पुण असिंघाओ ॥ ५१ ॥ दसयालियजिअकप्पाऽऽवस्सयअणुओगदारनंदिधरो । सययं इंदाइनओ, छडुग्गतवो दुहत्थतणू ॥५२॥ गिहिवयगुरुत्तवारस, चर चर वरिसो कयट्टमो अंते । सोहम्मि सागराऊ, होइ तओ सिज्झिही भरहे ॥५३॥ सुअसूरि संघधम्मो, पुव्वण्हे छिज्जिही अगणि सायं । निवविमलवाहणो सुहममंति नयधम्ममज्झण्हे ॥ ५४ ॥ तो खारग्गिविसंबिलविज्जुघणा सगदिणा पिहु कुपवणा । वरिसिय बहुरोगि जलं, कार्हिति समं गिरिथलाई ॥ ५५ ॥ 'गालछार मुम्मुरहाहाभूया तणोइरहिय मही । होहिंति बीयमित्तं वेयड्ढाइस खगाई वि ॥ ५६ ॥ छट्टअरे दुकरुचा, वीसंवरिसाउ मच्छयाहारा । बिलवासी कुगइगमा, कुवन्नरूवा नरा कूरा ॥ ५७॥ निल्लज्जा निव्वसणा, खरवयणा पियसुआइठिहरहिया । छवरिसगन्भा इत्थी, सुदुक्खपसवा बहुसुआ य ॥ ५८ ॥ बहुमच्छचक्कवहगंगसिंधुपासेसु नव नव बिलाई । बेयड्ढेाभयपासे, बिस्यूरि बहुरोगिनरठाणा ॥ ५९ ॥ १२८ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालसातविका। अग्गिमअराइमाणं, पुन्वअरंते इहं तु छदंते । हत्थतणु सोलवरिसाउ अन्नहुस्सप्पिणी नवरं ॥६॥ पुक्खलखीरघयामयरसमेहा वरिसिहिति पढ़मंते। भूसीयलन्ननेहोसहिरसया सत्त सत्त दिणे ॥३१॥ बीए उ पुराइकरो, जाइसरो विमलवाहण सुदामो। संगम सुपास दत्तो, सुमुहो सम्मइ कुलगर त्ति ॥६२॥ तइयाइसु उड्ढगई जिणनारयबल दुहागई चक्की। अहरगइ हरिपडिहरी, चउत्थअरयाइसु अजुअला ॥६॥ पउमाभ सूरदेवो, सुपास सयंपभ सव्वअणुभूई। देवसुअ उदय पेढिल पुहिल सयकित्ति सुवयऽममा ॥६॥ निकसाय-निप्पुलय-निमम-चित्तगुत्ता समाहि-संवरिया। जसहर विजओ मल्लो, देवोऽणंतविरि भद्दकरो ॥६६॥ सड्ढदुसय सहसा पउणचुलसिया लक्खपण छ चउपन्ना। समकोडिसहस तेणूणपलिअचउभाग पलिअद्धं ॥६६॥ पउणपलिऊण तिअयर चउ नव तीस चउपन्न इगकोडी। छन्वीससहसछावहिलक्खवासायरसऊणा ॥१७॥ नवकोडि नवइकोडी, नवसयकोडी य नबसहसकोडी। कोडिसहसनवई नव-दस-तीस-पन्नकोडिलक्खा ॥२८॥ बल-वेजयंत-अजिआ, धम्मो सुप्पह-सुदंसणा-ऽऽणंदा। नंदण-पउमा हलिणु त्ति चकिणो दीदंतो अ॥६९॥ तह गढ़दंतओ सुद्धदंत सिरिदंत सिरिभुई सोमो । पउम महपउम दसमो, विमल विमलवाहण अरिहो॥७॥ ___ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० नवस्मरणादिसङ्ग्रहे नंदी अ नंदिमित्तो, सुंदरबाहु महबाहु अइबलओ । महबल बलो दुविट्ट, तिविट्ट इय भावि नव विहू ॥ ७१ ॥ भाविपडिविण्डुणो तिलय लोहजंघो अ वयरजंधो अ । केसरि-बलि- पल्हाया, अपराइय- भीम- सुग्गीवा ॥ ७२ ॥ इय बारसारचक्कं कप्पो तेऽणंतपुग्गलपरहो । तेऽणता तीअद्धा, अणागयद्वा अनंतगुणा ॥७३॥ सिरिदेविंद मुणीसरविणेअसिरि धम्मघोससूरीहिं । अप्पपरजाणणट्टा, कालसख्वं किमवि भणिअं ||७४ || 19 क्षुल्लकभवावलिप्रकरणम् । वंदिता सिरिवीरं, देविंदनरिंदमहियकमकमलं । खुड्डूभवाण सरूवं, आवलियाणं च वृच्छामि ॥ १ ॥ गयमुक्कसन्तसासा, थोवो सो सगगुणो लवो भणिओ । सो सतहत्तरगुणो, मुहुत्त सो तीसगुण दिवसो || २ || एगम्मि मुहुत्तम्मि उ सगतीससया तिहुत्तरुस्सासा । तेरसहस्सा लक्खं, नउयसयं ते अ दिवसम्मि ||३|| पुढवाइ भवेहिंतो, अइलहुआ तेण हुंति खुड्डुभवा । सतरभवा इगुसासे, अंसा पुण जाण सुत्तुत्ता ||४|| सत्तरसभवग्गहणा, खुड्डागा हुंति एगपाणम्मि । तेरस चेब सयाई, पणनवई चेव अंसाणं ||५|| एगूसासस्स भवा, सत्तगुणा काउ तह य तस्संसा । सगतीससयतिहुत्तरहरिया थोवस्स खुड्डागा ॥६॥ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षुल्लकभवावलिप्रकरणम् । १३१ अह थोवे खुड्डागा, इगसयमिगवीस सुअहरा बिंति । सेसंसा तत्थ इमे, बावीससया इगुणवीसा ||७|| थोवस्स उ खुड्डागा. अंसेहिं समं तु सगगुणा विहिया । पुच्चि व तओ हरिया, एगलवे हुंति खुड्डभवा ॥८॥ अडसय मेगावन्ना, नाणीहिँ लवे खुड्डुभवा दिट्ठा । असाणं तु पमाणं, चउसयमिगचत्तमन्भहिया || ९ || अह सत्तहुत्तरगुणा, विहिया एगलवखुड्डुभवअंसा । हरिया पुच्वं व तओ, हुति इगमुहुत्तखुड्डागा ॥१०॥ पणसद्विसहसपणसयछत्तीसा इगमुहुत्तखुड्डूभवा । एगोणवी सलक्खा, छासट्ठिसहस्स असिइ दिने ॥ ११ ॥ ऊसासंभवा दोसयछपन्नगुणिया तहेव तस्संसा । सगतीससयतिहुत्तर भइए ऊसास आवलिया ॥ १२ ॥ ऊसासे चउचत्तासयछायाला तहेव सेसंसा । चवीस सयडवन्ना, थोवतया सुत्ति न हि भणिया ॥ १३ ॥ इक्को य आणपाणू. चोआलीसं तहेव छायाला । आवलिअपमाणेणं, अनंतनाणीहिं निहिडो ॥ १४॥ एगूसासावलिआ, सत्तगुणा विहिय तह य तस्संसा । जाया थोवावलिया, मुहुत्तऊसासअवहरिया ॥ १५ ॥ थोवम्मि उ आवलिआ, इगतीस सहस्सइगसयछवीसा । इगवीससया चउदसअन्भहिया जाण सेसंसा ||१६|| अह थोवस्सावलिआ, तह अंसा सगगुणा उ काऊणं । पुत्र्वं व हरिय नूणं, कायव्वा इगलवावलिया ॥१७॥ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे दोलक्खसतरसहसा, अडसयपणसी लवस्स आवलिआ । तत्थ इमे सेसंसा, चउतीससया इगुणसीई ॥ १८ ॥ एगलवावलिअंसा, काऊणं सत्तहुत्तरगुणा य । पुव्वं व हरिय कुज्जा, आवलिआ इगमुहुत्तम्मि ॥ १९ ॥ अहव मुहुत्तावलिआ, आणेयव्वा मुहुत्तखुड्रागा । एगभवावलिआणं, पमाणगुणिया समयभणिया ॥ २० ॥ एगा कोडी सतसद्विलक्ख सतहत्तरीसहस्सा य । दो अ सया सोलहिया, आवलियाणं मुहुत्तम्मि ॥ २१ ॥ ताओ, पुण सीसगुणा, पन्नाकोडी अ लक्ख तित्तीसा । सोलसहस्सा चसय, असीइ अहिआ अहोरन्ते ॥ २२॥ अहवा जह ऊसासे, असेहि समं हवंति खुड्डागा । दोसयछप्पन्नेहिं, गुणिया हरिआ य आवलिया ॥ २३ ॥ तह थोवाइसु नेया, नियनियखुडगा तहेव सेसंसा । एगभवावलिगुणिया, हरिया विय नियनियावलिया॥२४॥ खुड्डागावलिआणं, जं किंपि सरूव नणु मए भणियं । तं जड़ अन्नहभूयं, सोहेयव्वं सुयहरेहिं ॥ २५ ॥ १३२ देहस्थितिस्तवः । देविंद महिअ ! सामिअ ! वरविज्जाणंधम्मकिन्ति । मह । अवधारय जह भमिओं, अफलतणू जिण ! असेवाए ॥ १ ॥ ईसाणतसुरेस अ, सगहत्थतणू इकिक्कहाणि तओ । चउछअडबारसमकप्पुवरिमगेविज सम्बट्टे ||२|| Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिम्त CN . . १३३ गुरुलहुठिईइ विवरे, इगउणिएगारभत्तिगारंसे । पुव्वतणूचयठिअसेसिगाहिहाणि पइअयर तणू ॥३॥ तिगअडपनरिगुणिसतेवीसदुतीसाइसागराउतणू। उकराइ कमूणा चउछतित्तिगऽद्विगइगारंसा ॥४॥ सत्तधणुतिकरछंगुलरयणाइतणू अहो दुदुगुणातो। उवरि गुरू हिहि लहू, तिकराईए पढमपयरे ॥५॥ बियपयराइ करंगुलदुसड्ढअडतितिगसगगुणीसद्धं । वीसा वीस बिसही, बार खिवे करदुसयपन्ना ॥६॥ लहुसुम निरयतणुठिइ, इगूगनियपयरभइअलर्मो वा । बिअपयराइसु वुड्ढी, पयरगुणा लहुअआ जिहा ॥७॥ जोअण बार बिइंदिअपजसख तिइंदि गुम्मि कोसतिगं। चउरिदि भमरु जोअण, सनिअरखगा धणुपुहुत्तं ॥८॥ गम्भभुयमुच्छचउपय, कोसपहुत्तियर चउपय छकोसा। मुच्छुरगभुअग जोअणपुहुत्त गन्भयनर तिकोसा ॥९॥ सनिअरमच्छगब्भयउरगा जोअणसहस्स तरु अहियं । कोसपुहुत्तं तिरिए, तणुत्तरविउवि उक्कोसा ॥१०॥ निरय गुरु सतणुदुगुणा,दुहा विअंगुलअसंखभागऽनिले। गेविजऽणुत्तरविणा, गुरु जोअणलक्ख सुरनरए ॥११॥ अपंज दुहा पज लहुतणु, सव्वस्थ वि मुच्छनरलहुगुरू वि। अपरित्तिगिदिपजतणु,गुरू वि अंगुलअसंखंसो॥१२॥ सुहुमा पञ्जनिगोए, लहुतणु अंगुलअसंखभागि तओ। नवसु असंखगुणासुहम अपजपवणग्गिजलमहिसु॥१३॥ पलपवण -- - ज Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ नवस्मरणाविसङ्घहे थूलअपजानिलानलजलभूऽणंतेसु तस्सम परित्ते। सुहुमनिगोए पजलहु, असंख अपजपजगुरु अहिआ॥१४॥ सुहुमानिलपजलहुतणु,अपजपजुक्कोसतणु विसेसहिआ। सुहुमग्गिपजलहुतणु, असंख अपजपजगुरु अहिआ॥१५॥ इह सुहुमजले तह सुहुमपुढवि थूलानिले अ थूलग्गी। थूलजले थूलमही, थूलनिगोए अ तणुमाणं ॥१६॥ पत्तेअपज्जलहुतणु, अपज्जगुरुतणु कमा असंखगुणा। चउगइलहुविउवुत्तर, अंगुलसंखं समारंभे ॥१७॥ इअतणुअतणू तणुठिइ, अहलगया बहुस पहु!ससेवाए। तह सहलीकुरु अहुणा, जह होमि दुहावि अतणुठिई॥१८॥ कायस्थितिस्तोत्रम् । जह तुहदंसणरहिओ, कायठिईभीसणे भवारन्ने । भमिओ भवभयभंजण!जिणिद! तह विन्नविस्सामि॥१॥ अव्यवहारियमज्झे, भमिऊण अणंतपुग्गलपरहे। कह वि ववहाररासिं, संपत्तो नाह ! तत्थ वि य ॥२॥ उक्कोसं तिरियगई-असन्नि-एगिदि-वण-नपुंसेप्नु । भमिओ आवलियअसंखभागसमपुग्गलपरहा ॥३॥ ओसप्पिणि सुहुमत्ते, असंखलोगप्पएससम ओहे। भमिओ तह पिहु सुहमे, पुढवीजलजलणपवणवणे ॥४॥ ओहेण बायरत्ते, तह बायरवणसईसु ताउ पुणो। अंगुलअसंखभागे, दोसड्ढ परदृय निगोए ॥५॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काय स्थितिस्तोत्रम् | बायरपुढवी जलजलणपवणपत्तेयवणनिगोएसु । सत्तरिकोडाकोडी, अयराणं नाह ! भमिओ हं ॥ ६ ॥ संखिज्जवास सहसे, बितिचउरिंदीसु ओह ओ अ तहा । पज्जत्तबारे गिंदिभूजलानिलपरितेसु ॥७॥ बायरपजग्गिबितिचउरिंदिसु संखदिणवासदिणमासा । संखिजवासअहिया, तसेसु दो सागरसहस्सा ||८|| अयरसहस्सं अहियं, पणिदिसु तितीसअयर सुरनरए । सन्नि तह पुरिसेसुं, अयरसयपहृत्तमन्भहियं ॥९॥ गन्भयतिरियन रेसु य, पल्लतिगं सत्त पुव्वकोडीओ । दसहियपलियसयं थीसु पुव्वकोडीपुहुत्तअं ॥१०॥ इत्थिनपुंसे समओ, जहन्नु अंतोमुहुत्त सेसेसु | अपजेसुक्कोसं पि य, पजसुहुमे थूलणंते वि ॥ ११॥ विन्नत्ता कार्याठि त्ति कालओ नाह ! जह भमियपुव्वा । भवसंवेणिहि, तु विन्नविस्सामि सामिपुरो ॥ १२ ॥ परभवतन्भवआउं, लहुगुरुचउभंगि सन्निनरतिरिओ । नरयछगे उक्को, इगंतरं भ्रमइ अट्टभवे ॥१३॥ भवणवणजोइ कप्पट्टगे वि इअ अडभवा उ दु जहन्ना । सग सत्तमी तिरिओ, पण पुन्नाउसु य ति जहन्ना ॥ १४ ॥ गेविज्ञान यचउगे, सग पणणुत्तरचउकि ति जहन्नं । पज्जनरोति सवट्ठे, दुहा दुभव तमतमाइ पुणो ॥ १५ ॥ दुह जुगलितिरिअमणुआ, दुभवा भवणवणजोह कप्पदुगे । रयण पहभवणवणे, दुह दुभव असन्निपजतिरिओ ॥ १६ ॥ १३५ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A.. .... नवस्मरणादिसङ्ग्रहे पजसन्नितिरिनरेसु य, सहसारता सुरा य छन्निरया। अडभव सत्तमनिरया, तिरिए छभव चउ पुन्नाऊ ॥१७॥ पेजसन्निनरे छभवा, गेविजाण य चउक्कदेवा य । चउणुत्तरा चउभवा, दु जहन्न दुहा विंदु सवठ्ठा ॥१८॥ भूजलवणेसु दुभवा, दुहा वि भवणवणजोइसदुकप्पा। अमियाउ तिरिनरे तह, मिह सन्नियरतिरिसन्निनरा॥१९ भूजलपवणग्गी मिह, वणा मुवाइसुवणेसु य भुवाई। पूरंति अमंखभवे, वणा वणेसुय अणंतभवे ॥२०॥ पण पुढवाइसु विगला, विगलेसु भुवाइ विगल संखभवे। गुरुआउतिभंगे पुण, भवट्ठ सव्वत्थ दुजहन्ना ॥२१॥ मिह सनियरतिरिनरा,विगलभुवाइसु य नरतिरिसु एए अट्ठभवा चउ भंगे; दुह पवणग्गिसु नरा दुभवा॥२२॥ परतम्भवाउमाणा, इह पहु ! संवेहओऽणुबंधठिई। कित्तिउ विनविउमलं, चउभंगि जहन्नुकोसकमा ॥२३॥ इह कायठिई भमिओ, सामिय!तुह दंसणं विणा बहुसो दिहोसि संपयं ता, अकायपयसंपर्य देसु ॥२४॥ ... ........ .. लोकनालिद्वात्रिंशिका। जिंणदेसणे विणा जे, लोअं पूरंत जम्ममरणहिं। भमई जिंओऽणंतभवे; तस्स सरूवं किमवि वुच्छं ॥१॥ वसाहठाणठिअपयकडिस्थकरजुगनरागिई लोओ। - A पाक्तनासा Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोकना लिद्वात्रिंशिका | १३७ केविन कभी न घओऽणाहारों नहठिओं सर्वसिद्धी । अहमुहम हमलगठिअलमल्लगसंपुड सरिच्छी ॥३॥ पयतलि सग मज्झेगा, पण कुप्परि सिरतलेग रज्जुपिहू । सो चउदसरज्जुचो. माघवइतलाओ जा सिद्धी ||४|| सगरज्जु मघवइतला, परसहाणीइ महिअले एगा । तो वुड्ढि बंभ जा पण, पुण हाणी जा सिवे एगा ॥ ५ ॥ सरावन्नरेह तिरिंअं, ठवसु पशुढं च रज्जु चउसे । इमरज्जुवित्थरायय, चउदसरज्जुच्च तसनाडी ॥ ६ ॥ उड्ढे तिरियं चउरो, दोसु छ दुसु अट्ठ दस य इधिके । बारस दोसुं सोलस, दोसुं वीसा य चउसु पुढो ॥७॥ पुणरवि सोलस दोसुं, बारस दोसुं च तिसु दस तिसु । छंदुसु दुसु च खंडुअ, सव्वें चउरुत्तरा तिसया ॥८॥ ओअरिय लोअमज्झा, चउचउठाणेसु सत्तपुढवीसु । चंडर दस सोल वीसा, चउवीस छवीस अडवीसा ॥९॥ अह पणसयवारुत्तर, खंडुअ सोलहिअ अहसय सच्वे । धम्माई लोगमज्झं, जोयणअस्संखकोडीहिं ॥१०॥ This संगरज्जु जोयणस्याहारस ऊणसगरज्जुमाण इहं । अहतिरिअ उढलोआ, निरयनरसुराइ भावुल्ला ॥ ११ ॥ अहलीइ निरयअसुरा, वंतरनरतिरिअजोइ सतरुग्गी । दीदी तिरिलोए, सुरसिद्धा उडदलअम्मि ॥ १२॥ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे इक्विकरज्जु इकिकनिरय सगपुढवि असुर पढमंतो। तह बंतर तदुवरि नरगिरिमाई जोइसा गयणे ॥१३॥ छसु खंडगेसु अ दुगं, चउसु दुगं छसु अ कप्प चत्तारि । चउसु चऊ सेसेसु अ, गेविजणुतरसिद्धंते ॥१४॥ भणितं चसोहम्मम्मि दिवड्ढा, अड्ढाइज्जा य रज्जु माहिंदे। चत्तारि सहस्सारे, पणऽच्चुए सत्त लोगंते ॥१५॥ तथा चाऽऽगमेसम्मत्तचरणसहिआ, सव्वं लोगं फुसे निरवसेसं । सत्त य चउदसभाए, पंच य सुअ देसविरईए ॥१६॥ अडवीसा छब्बीसा, चउवीसा वीस सोल दस चउरो। सुइरज्जु सत्तपुढविसु, चउचउभइआ उ पयर घणा ॥१७॥ अडवीससयं छसयरि, अह उडढं चउजुआ दुसय सव्चे। सुइरज्जु पयररज्जू, दुतीस गुणवीस इगवन्ना ॥१८॥ घणरज्जु अट्ट हिडा, पउणपणुड्ढे उभे पउणतेर । घणपयरसूइरज्जू, खंडुअ चउसहि सोल चऊ ॥१९॥ यवग्गसंगुणे पुण, बिसयगुआला हवंति घणरज्जू। ड्ढपणहत्तरिसयं, सड्ढतिसट्ठी अहुड्ढ कमा ॥२०॥ उगुणिअ पयररज्जू , सत्तदुरुत्तरय दुसयचउपण्णा । ह उड्ढ नव छपन्ना, सवे चउगुणिअसुइरज्जू ॥२१॥ ___ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोकना लिद्वात्रिंशिका | १३९ अडवीससय अडत्तर, दससोला अद्वतीसचउवीसा । इअ संवग्गियलोए, तिह रज्जू खंडुआ उ इमे ॥ २२ ॥ ए गारसह सदुसया, बत्तीसा चउरसहसच उसट्ठी । अह उडूढं सव्वे पनरससहसा दुसयछन्नउआ ||२३|| अड छ चवीस वीसा, सोलस दस चउ अहुड्ढ चउ छट्ट । दस बार सोल वीसा सरिसंकगुणाउ चउहि गुणे ॥२४॥ च अडवीसा छप्पण्ण पयर सरिसंकगुणिअ पिहू मिलिए । समदीह पिव्वेहा, उड्ढमहो खंडुआ नेया ॥ २५ ॥ दाहिणपासि दुखंडा, उडूढं वामे ठविज्ज विवरीआ । नाडीसहिअतिरज्जू, पिहू जाया सत्त दीहुचे ||२६|| हिट्ठा उ वामखंडं, दाहिणपासे ठविज्ज विवरीअं । उवरिमतिरज्जुखंडं, वामे ठाणे अहो दिजा ॥२७॥ इअ संवणलोगो, बुद्धिकओ सत्तरज्जुमाणघणो । सगरज्जुअहिअ हिट्ठा, गिव्हिअ पासाइँ पूरिज्जा ||२८|| घणरज्जु तिसयतेआल तेरबावत्तरा पयरसूई । चउपन्न अडसि खंडुअ, सहसिगवीसा नवदुपण्णा ॥ २९ ॥ सगवग्गे सगचउतिगगुणिए उभय अह उडूढ खंडघणा । छन्नउअ सय सियाला, चउगुणिए पयरसुइअंसा ॥ ३० ॥ सगचुलसी पणअडसी, इगतीसछतीस तिविसावण्णा । पणचउआलजुआ बारसहस चउणउअसयऽडहिआ ॥ ३१ ॥ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० नवस्मरणादिसङ्ग्रहे इअं पयरलिहिअवग्गिअसंवहिअलोगसारमुवलग्भं । सुअधम्मकित्तिअं तह, जयह जहा भ्रमह न इह भिसं ||३२|| श्री गौतम गणधरस्तोत्रम् | जयसिरिविलासभवणं वीरजिणिंदस्स पढमसीसवरं । सयलगुणलद्धिजलहिं सिरिगोयमगणहरं वंदे ॥ १ ॥ ॐ सह नमो भगवओ जगगुरुणो गोयमस्स सिद्धस्स । बुद्धस्स पारगस्स य अक्खीणमहाणसस्स सया || २ || अवतर अवतर भगवन् !, ? मम हृदये भास्करीं श्रियं विभृहि । ज्ञानादि, वितरतु तुभ्यं नमः स्वाहा ||३|| वसई तुह नाममंतो, जस्स मणे सयलवंछिअं दिंतो । चिंतामणि- सुरपायव- कामघडाईहि किं तस्स ? ॥४॥ सिरिगोयम ! गणनायग !, तिहुअणजणसरण ! दुरियदुहहरण ! | भवतारण ! रिउवारण ! होसु अणाहस्स मह नाहो ॥५॥ मेरुसिरे सिंहासणकणयमहासह सपत्तकमलठिअं । सूरिगणझाणविसयं, ससिप्पहं गोयमं वंदे || ६ || सव्वसुहलद्धिदाया, सुमरियमित्तो वि गोयमो भयवं । पइठिअगणहरमंतो, दिजा मम बंछियं सयलं ||७|| इय सिरिगोयम ! संधुआ !, मुणिसुंदरथुइपर्यं मए वि तुमं । देहि मह सिद्धिसिवफलयं भुवणकप्पतरुवरस्स ||८|| Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नदीसूत्रमङ्गलगाथाः। नन्दीसूत्रमङ्गलगाथाः । जयइ जगजीवजोणीवियाणओ जगगुरू जगाणंदो । जगणाहो जगबंधू जयइ जगपियामहो भयवं ॥१॥ जयइ सुयाणं पभवो तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ। जयइ गुरू लोयाणं जयइ महप्पा महावीरो ॥२॥ भदं सव्वजगुज्जोयगस्स भदं जिणस्स वीरस्स। भई सुरा-ऽसुरनमंसियस्स भदं धुयरयस्स ॥३॥ गुणभवणगहण ! सुयरयणभरिय ! दसणविसुद्धरच्छागा!। संघणगर ! भई ते अखंडचारित्तपागारा! ॥४॥ संजम-तवतुंबा-रस्स णमो सम्मत्तपारियल्लस्स । अप्पडिचक्कस्स जओ होउ सया संघचक्कस्स ॥५॥ भई सीलपडागूसियस्स तव-णियमतुरगजुत्तस्स । संघरहस्स भगवओ सज्झायसुणंदिघोसस्स ॥६॥ कम्मरयजलोहविणिग्गयस्स सुयरयणदीहनालस्स । पंचमहव्वयथिरकण्णियस्स गुणकेसरालस्स ॥७॥ सावगजणमहुयरिपरिवुडस्स जिणसूरतेयबुद्धस्स । संघपउमस्स भदं समणगणसहस्सपत्तस्स ॥८॥ तव-संजममयलंछण ! अकिरियराहुमुहदुद्धरिस ! णिचं। जय संघचंद ! णिम्मलसम्मत्तविसुद्धजुण्हागा! ॥९॥ परतित्थियगहपहणासगस्स तवतेयदित्तलेसस्स । णाणुजोयस्स जए भई दमसंघसूरस्स ॥१०॥ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे भधिवेलापरिगयस सज्झायजोगमगरस्स । अक्खोभस्स भगवओ संघसमुद्दस्स रुंदस्स ॥११॥ सम्मदंसणवइरदढरूढगादावगाढपेदस्स | धम्मवररयणमंडियचामीयर मेहलागस्स ॥ १२॥ नियमूसियकणयसिलायलुज्जलजलंतचित्तकूडस्स । णंदणवणमणहरसुरभिसीलगंधद्धमायस्स ॥१३॥ जीवदयासुंदरकंदरुद्दरियमुनिवर मदइण्णस्स । हे उसयधा उपगलं तर त्तदित्तोस हिगुहस्स || १४॥ संवरवरजलपगलियउज्झरपविर | यमाणहारस्स । सावयजणपउररवंतमोरणचंतकुहरस्स ||१५|| विणयणयपवरमुणिवर कुरंत विज्जुज्जलंत सिहरस्स । विविहगुणकप्परुक्खगफल भर - कुसुमाउलवणस्स ||१६|| १४२ णाणवररपण दिष्पंत कंतवे रुलियविमलचूलस्स । वंदामि वियपणओ संघ महामंदरगिरिस्त ||१७| वंदे उस अजियं संभवमभिणंदणं सुमति सुप्पभ सुपासं । ससि पुष्कदंत सीयल सिजंसं वासुपुज्जं च ॥ १८ ॥ विमलमणतइ धम्मं संति कुंथुं अरं च मलि च । मुणिसुन्वय णमि णेमिं पासं तह वद्धमाणं च ॥ १९ ॥ पढमेत्थ इंदभूई बीओ पुण होइ अग्गिभूइति । तहए य वाउभूई तओ वियत्ते सुहम्मे य ॥ २० ॥ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नन्दीसूत्रमङ्गलगाथाः। १४३ मंडिय-मोरियपुत्ते अकंपिए चेव अयलभायो य । मेयजे य पभासे य गणहरा हुंति वीरस्स ॥२१॥ चुइपहसासणयं जयइ सया सव्वभावदेसणयं । कुसमयमयणासणयं जिणिंदवरवीरसासणयं ॥२२॥ सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जंत्रूणामं च कासवं । पभवं कचायणं वंदे, वच्छं से जंभवं तहा ॥२३॥ जसभदं तुंगियं वंदे, संभूयं चेव माढरं । भद्दबाहुं च पाइण्णं, थूलभदं च गोयमं ॥२४॥ एलावचसगोत्तं वदामि महागिरि सुहत्थि च। तत्तो कोसियगोत्तं बहुलस्स सरिव्वयं वंदे ॥२६॥ हारियगोत्तं साइं च बंदिमो हारियं च सामज । वंदे कोसियगोत्तं संडिल्लं अजजीयधरं ॥२६॥ तिसमुदखायकित्ति दीव-समुद्देसु गहियपेयालं । वंदे अजसमुदं अक्खुभियसमुद्दगंभीरं ॥२७॥ भणगं करगं झरगं पभावगं णाण-दसणगुणाणं । वंदामि अजमंगुं सुयसागरपारगं धीरं ॥२८॥ णाणम्मि दंसम्मि य तव विणए णिचकालमुजुत्तं । अजाणंदिलखमणं सिरसा वंदे पसण्णमणं ॥२९॥ वड्ढउ वायगवंसो जसवंसो अजणागहत्थीणं । वागरण-करण-भंगिय-कम्मप्पयडीपहाणाणं ॥३०॥ जच्चंजणधाउसमप्पहाण मुद्दीय-कुवलयनिहाणं । वड्ढउ वायगवंसो रेवइणक्खत्तणामाणं ॥३१॥ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98 नवस्मरणादिसङ्घ । अयलपुरा क्खिते कालियसुयआणुओसिए धीरे । बभीवग सी वायगपयमुत्तमं पत्ते ॥ ३२ ॥ जेसि इमो अणुओगो पयरह अज्जावि अटभरहमि । बहुनगरनिग्मयजसे लं वंदे खंदिलायरिए ||३३|| तत्तो हिमवंतमहंतविकमं धीपरक्कमम्रणतं । सज्झायमणंतधरं हिमवतं बंदिमो सिरसा ॥३४॥ कालियसुयअणुओगस्स धारए धारए य पुत्र्वाणं । हिमवतखमासमणे वंदे णागज्जुणायरिए ||३५|| मिड-मद्दवसंपणे अणुपुवि वायगत्तणं पत्ते । ओहसुयसमायरए णागज्जुणवायए वंदे ॥ ३६ ॥ वरणगतविय चंपय-विमउलवर कमलगभसरिवण्णे । भवियजगहिययदइए दयागुणविसारए धीरे ||३७|| अड्ढ भरहप्पहाणे बहुविहसज्झायसुमुणियपहाणे । अणुओइयवरवसहे णाइलकुलवंसणंदिकरे ॥ ३८|| भूअयिपगमे वंदे हं भूयदिण्णमायरिए । भवभयवोच्छेयकरे सीसे नागज्जुणरिसीणं ॥ ३९ ॥ सुमुणियणिच्चाऽणिचं सुमुणियसुत्तस्थधारयं णिचं । वंदे हैं लोहिचं सम्भावुभावणातचं ॥४०॥ अत्थ-महत्थक्खाणी सुसमणवक्खाणकहणणेव्वाणी । पतीए महरवाणी पयओ पणमामि दूसगणी ॥४१॥ सुकुमालकोमलतले तेसिं पणमामि लक्खणपसत्थे । पादे पावयणीणं पाडिच्छ्गस एहिं पणिवहए || ४२॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चपरमेष्ठिनमस्कार। पञ्चपरमेष्ठिनमस्कारः । (आचार्यप्रवरउद्योतनसूरिकृतकुवलयमालाकथान्तर्गतः) एस करेमि पणामं अरहताणं विसुद्धकम्माणं । सव्वातिसयसमग्गा अरहंता मंगलं मज्झ ॥१॥ उसभाईए सव्वे चउवीसं जिणवरे णमंसामि। . होहिंति जे वि संपइ ताणं पिकओ णमोकारो ॥२॥ ओसप्पिणि तह अवसप्पिणीसु सव्वासुजे समुप्पण्णा। तीता-ऽणागय-भूया सव्वे वंदामि अरहते ॥३॥ भरहे अवरविदेहे पुम्वविदेहे य तह य एरवए। पणमामि पुक्खरद्धे धायइसंडे य अरहंते ॥४॥ अच्छंति जे वि अज वि णर-तिरए देव-णरयजोणीसु। एगाणेयभवेसु य भविए वंदामि तित्थयरे ॥५॥ तित्थयरणामगोत्तं वेएंते बद्धमाण-बद्धे य । बंधिसु जे वि जीवा अजं चिय ते वि वंदामि ॥६॥ विहरंति जे मुणिंदा छउमत्था अहव जे गिहत्था वा। उप्पण्णणाणरयणा सव्वे तिविहेण वंदामि ॥७॥ जे संपइ परिसत्था अहवा जे समवसरणमज्झत्था। देवच्छंदगया वा जे वा विहरंति धरणियले ॥८॥ साहेति जे वि धम्म जेवण साहेति छिण्णमयमोहा। वंदामि ते वि सव्वे तित्थयरे मोक्खमग्गस्स ॥९॥ तित्थयरीओ तित्थंकरे य सामे य कसिण गोरे य। मुत्ताहल-पउमाभे सव्वे तिविहेण वंदामि ॥१०॥ ___ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मवस्मरणादिसले उज्झियरजे अहवा कुमारए दारसंगहसणाहे। सावचे गिरवच्चे सव्वे तिविहेण चंदामि ॥११॥ भव्वाण भवसमुद्दे णिषुड्डमाणाण तरणकजम्मि । तित्थं जेहिं कयमिण तित्थयराणं णमो ताणं ॥१२॥ तित्थयराण पणामो जीव तारेइ दुक्खजलहीओ। तम्हा पणमह सव्वायरेण ते चेय तित्थयरे ॥१३॥ लोयगुरूण ताणं तित्थयराणं च सव्वदरिसीणं । सवण्णूणं एयं णमो णमो सव्वभावेणं ॥१४॥ अरहंतणमोकारो जई कीरइ भावओ इह जणेणं। ता होइ सिद्धिमग्गो भवे भवे बोहिलाभाए ॥१५॥ अरहंतणमोकारो तम्हा चिंतेमि सव्वभावेण । दुक्खसहस्सविमोक्खं अह मोक्खं जेण पामि ॥१६॥ सिद्धाण णमोकारो करेमु भावेण कम्मसिद्धाण । भवसयसहस्सबद्धं धंतं कम्मिघणं जेहिं ॥१७॥ सिझंति जे वि संपइ सिद्धा सिझिसु कम्मखइयाए ताणं सन्वाण णमो तिविहेणं करणजोएण ॥१८॥ जे केइ तित्थसिद्धा अतित्थसिद्धा व एकसिद्धा वा। अहवा अणेगसिद्धा ते सव्वे भावओ वंदे ॥१९॥ जे वि सलिंगे सिद्धा गिहिलिंगे कह चि जे कुलिंगे वा तित्थयरसिद्धसिद्धा सामण्णा जे वि ते वंदे ॥२०॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचपरमेहिनमारः। इत्थीलिंगे सिद्धा पुरिसेण णपुंसएण जे सिद्धा। पत्तेयबुद्धसिद्धा बुद्ध-सयंबुद्धसिद्धा य ॥२१।। जेवि णिसण्णा सिद्धा अहव णिवण्णाठिया व उस्सग्गे। उत्ताणयपासेल्ला सत्वे वंदामि तिविहेण ॥२२॥ णिसि-दियस-पदोसे वा सिद्धा मज्झण्ह-गोसकाले वा। कालविवक्खासिद्धा सब्वे वंदामि भावेण ॥२३॥ जोव्वणसिद्धा बाला थेरा तह मज्झिमा य जे सिद्धा। दीव-ऽण्णदीवसिद्धा सव्वे तिविहेण वंदामि ॥२४॥ दिव्वावहारसिद्धा समुद्दसिद्धा गिरीसु जे सिद्धा। जे केइ भावसिद्धा सव्वे तिविहेण वंदामि ॥२५॥ जे जत्थ केइ सिद्धा काले खेत्ते य दब्व भावे वा। ते सव्वे वंदे हं सिद्धे तिविहेण करणेण ॥२६॥ सिद्धाण णमोकारो जह लगभइ आगए मरणकाले। ता होइ सुगइमग्गो अण्णो सिद्धिं पि पावेह ॥२७॥ सिद्धाण णमोकारो जइ कीरइ भावओ असंगहि । रुभइ कुगईमग्गं सग्गं सिद्धिं च पावे ॥२८॥ सिद्धाण णमोकारं तम्हा सव्वायरेण काहामि । छेत्तूण मोहजालं सिद्धिपुरि जेण पाबेमि ॥२९॥ पणमामि गणहराणं जिणवयणं जेहिं सुखबंधेणं। बंघेऊण तह कयं पत्तं अम्हारिसा जाव ॥३०॥ ___ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ नवस्मरणादिसन्हे चोदसपुव्वीण णमो, आयरियाणं तहणपुवीण। वायगवसहाण णमो, णमो य एगारसंगीणं ॥३१॥ आयारधराण णमो धारिज्जइ जेहिं पवयणं सयलं । णाणधराणं ताणं आयरियाणं पणिवयामि ॥३२॥ णाणायारघराणं दसण-चरणे विसुद्धभावाणं । तव-विरियधराण णमो आयरियाणं सुधीराणं ॥३३॥ जिणवयणं दिप्पंतं दीवंति पुणो पुणो ससत्तीए । पवयणपभासयाणं आयरियाणं पणिवयामि ॥३४॥ गूढं पवयणसारं अंगोवंगे समुद्दसरिसम्मि। अम्हारिसेहिं कत्तो तं णजह थोयबुद्धीहिं ? ॥३५॥ तं पुण आयरिएहिं पारंपरएण दीवियं एत्थ । जह होंति ण आयरिया को तं जाणेज सारमिणं ?॥३६॥ सूयणमेत्तं सुत्तं, सूइज्जइ केवलं तहिं अत्थो । जं पुण से वक्खाणं तं आयरिया पयाति ॥३७॥ बुद्धीसिणेहजुत्ता आगमजलणेण सुटु दिपंता। कह पेच्छउ एस जणो सूरिपईवा जहिं त्थि ? ॥३८॥ चारित-सीलकिरणो अण्णाणतमोहणासणो विमलो। चंदसमो आयरिओ भविए कुमुए व्व बोहेइ ॥३९॥ दसणविमलपयावो दसदिसपसरंतणाणकिरणिल्लो। जत्थ ण रवि व्व सूरी मिच्छत्ततमंधओ देसो॥४०॥ उज्जोयओ व्व सूरो फलओ कप्पदुमो व्व आयरिओ। चितामणि व्व सुहओ जंगमतित्थं च, पणओ हं॥४१॥ वताना Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चपरमेष्ठिनमस्कारः। काठनमस्कारः। १४९ जे जत्थ केइ खेत्ते काले भावे व सव्वहा अस्थि । तीता-ऽणागय-भूया ते आयरिए पणिवयामि ॥४२॥ आयरियणमोकारो जइ लन्भइ मरणकालवेलाए । भावेण कीरमाणो सो होहिइ बोहिलाभाए ॥४३॥ आयरियणमोकारो जइ कीरइ तिविहजोगजुत्तेहिं । ता जम्म-जरा मरणे छिदइ बहुए, ण संदेहो ॥४४॥ आयरियणमोकारो कीरंतो सल्लगत्तणं होइ । होइ णरा-ऽमरसुहओ अक्खयफलदाणदुल्ललिओ॥४५॥ तम्हा करेमि सव्वायरेण सूरीण हो ! नमोकारं। कम्मकलंकविमुको अइरा मोक्खं पि पावेस्सं ॥४६॥ उवझायाणं च णमो संगोवंगं सुयं धरेताणं । सिस्सगणहियट्ठाए झरमाणाणं तयं चेव ॥४७॥ सुत्तस्स होइ अत्थो, सुत्तं पाति ते उवज्झाया। अज्झावयाण तम्हा पणमह परमेण भावेण ॥४८॥ सज्झायसलिलणिवहं झरंति जे गिरियड व्व तदियहं । अज्झावयाण ताणं भत्तीऍ अहं पणिवयामि ॥४९॥ जे कम्मखयहाए सुत्तं पाढेति सुद्धलेसिल्ला। ण गणेति णिययदुक्खं पणओ अज्झावए ते हं ॥५०॥ अज्झावयाण तेसि भई जे णाण-दसणसमिद्धा । बहुभवियबोहजणयं झरंति सुत्तं सयाकालं ॥५१॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसा अज्झावयस्स पणमह जस्स पसारण सव्वसुत्ताणि । णजति पढिजति य पढम चिय सव्वसाधूहि ॥१२॥ उवझायणमोकारो कीरंतो मरणदेसकालम्मि । कुगई रंभइ सहसा सोग्गइमग्गम्मि उवणेइ ॥५३॥ उवझायणमोकारो कीरंतो कुणइ बोहिलाभ तु । तम्हा पणमह सव्वायरेण अज्झावयं मुणिणो! ॥५४॥ उवझायणमोकारो सुहाण सव्वाण होइ तं मूलं । दुक्खक्खयं च काउंजीयं ठावेइ मोक्खम्मि ॥५५॥ साहूण णमोकारं करेमि तिविहेण करणजोएण। जेण भवलक्खबद्धं खणेण पावं विणासेमि ॥५६॥ पणमह तिगुत्तिगुत्ते विलुत्तमिच्छत-पत्ससम्मत्ते । कम्मकरवत्तपत्ते उत्तमसत्ते पणिवयामि ॥७॥ पंचसु समिईसु जए तिसल्लपडिपेल्लणम्मि गुरुमल्ले। चाविकहापम्मुक्के मय-मोहविवज्जए धीरे ॥२८॥ पणमामि सुद्धलेसे कसायपरिवजिए जियाण हिए। छज्जीवकायरक्खणपरे य पारंपरं पत्ते ॥१९॥ चउसण्णाविप्पजढे दढव्वए क्यगुणेहिँ संमुत्ते । उत्तमसत्ते पणओ अपमत्ते सव्वकालं पि ॥६॥ परिसहबलपडिमल्ले उपसग्गसहे पहम्मि मोक्खस्स । विकहापमायरहिए सहिए वदामि समणे हैं ॥३१॥ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चपरमेष्ठिनमस्कारः। समणे सुयणे सुमणे समणे य पायपंकस्स सेवए। सवए सुहए समए य सचए साहु अह वंदे ॥३२॥ साहण णमोकारो जइ लगभइ मरणदेसकालम्मि । चिंतामणि पि लद्धं किं मग्गसि कायमणियाई? ॥६॥ साहूण णमोकारो कीरंतो अवहरेज जे पावं । पावाण कत्थ हियए णिवसइ एसो अउण्णाण? ॥१४॥ साहण णमोकारो कीरंतो भावमेत्तसंसद्धो। सयलसुहाणं मूलं मोक्खस्स य कारणं होई ॥१५॥ तम्हा करेमि सव्वायरेण साहूण तं णमोकारं । तरिऊण भवसमुहं मोक्खयदीवं च पावेमि ॥६६॥ एए जयम्मि सारा पुरिसा पंचेव ताण जोकारो। एयाण उवरि अण्णो को वा अरिहो पणामस्स? ॥३७॥ सेयाण परं सेयं मंगल्लाणं च परममंगल्लं । पुण्णाण परं पुण्णं फलं फलाणं च जाणेजा ॥६॥ एयं होइ पवित्तं वरयरयं सासयं तहा परमं । सारं जीयं पारं पुव्वाणं चोदसण्हं पि ॥६९॥ एयं आराहे किं वा अण्णेहिं एस्थ कज्जेहिं । पंचणमोकारमणो अवस्स देवत्तणं लहह ॥७॥ चारित पिण वइ णाणं णो जस्स परिणयं किंचि। पंचणमोकारफलं अवस्स देवत्तण तस्स ॥७१। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे एवं दुह्रसयजलयरतरंगरंगंत भासुरावत्ते । संसारसमुद्दम्मिं कयाइ रयणं व णो पत्तं ॥ ७२ ॥ एयं अब्भुरुहुलं, एयं अप्पत्तपत्तयं मज्झ । एयं परमभयहरं चोलं कोडुं परं सारं ||७३ || विज्झइ राहा वि फुडं, उम्मूलिज्जइ गिरी वि मूलाओ । गम्मड़ गयणयलेणं, दुलहो एसो णमोकारो ॥ ७४ ॥ जलणो व्व होज्ज सीओ, पडिवहहुतं वहेज सुरसरिया । ण णाम ण देज्ज इमो मोक्खफलं जिणणमोकारो ॥ ७५ ॥ णूर्ण अलद्धउवो संसारमहोहिं भमंतेहिं । जिणसाहुणमोक्कारो तेण वि जम्म-मरणाई ||७६ || जइ पुण पुच्वं लद्धो तो कीस ण होड़ मज्झ कम्मखओ ? | दावाणलम्मि जलिए तणरासी केचिरं ठाउ ? ॥७७॥ अहवा भावेण विणा दव्वेणं पाविओ मए आसि । जाव ण गहिओ चिंतामणि त्ति ता किं फलं देह ? || ७८ || ता संपइ पत्तो मे आराहेव्वर मए पयतेणं । जइ जम्मण-मरणाणं दुक्खाणं अंतमिच्छामि ॥७९॥ प्रवचनमङ्गलसारः । ( आचार्यप्रवर उद्योतनसूरिकृत कुवलयमालाकथान्तर्गतः ) अरहंते णमिणं सिद्धे आयरिय सव्वसाहू य । पवयणमंगलसारं वोच्छामि अहं समासेण ॥१॥ पढमं णमह जिणाणं, ओहिजिणाणं च णमह सव्वाणं । परमोहिजिणे पणमह, अनंतओहीजिणे णमह ||२|| Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रवचनमङ्गलसारः। वंदे सव्वोहिजिणे, पणमह भावेण केवलिजिणे य।। णमह य भवत्थकेवलिजिणणाहे तिविहजोएण ॥३॥ णमह य उज्जुमईण, विउलमईणं च णमह भत्तीए। पण्णासमणे पणमह, णमह य तह बीयबुद्धीणं ॥४॥ पणमह य कोहबुद्धी, पयाणुसारीण णमह सव्वाण । पणमह य सुयधराण, णमह य संभिण्णसोयाणं ॥५॥ वंदे चोदसपुव्वी, तह दसपुव्वी य वायए वंदे। एयारसंगसुत्त-ऽत्थधारए णमह आयरिए ॥६॥ चारणसमणे पणमह, तह जंघाचारणे य पणमामि । वंदे विजासिद्ध आगासगमे य जिणकप्पे ॥७॥ आमोसहिणो वंदे, खेलोसहि-जल्लोसहिणो णमह । सव्वोसहिणो वंदे, पणमह आसीविसे तह य ॥८॥ पणमह दिट्ठीविसिणो, वयणविसे णमह तेयलेसिल्ले। वंदामि सीयलेसे, विप्पोसहिणो य पणमामि ॥९॥ खीरासविणो णमिमो, महुस्सवाणं च वंदिमो चलणे । अमयस्सवाण पणमह, अक्खीणमहाणसे वंदे ॥१०॥ पणमामि विउव्वीणं जलहीगमणाण भूमिसज्जीणं । पणमामि अणुयरूए, महल्लख्वे य पणमामि ॥११॥ मणवेगिणोय पणमह, गिरिरायपडिच्छिरे य पणमामि। दिस्सा-दिस्से णमिमो, णमह य सव्वढिसंपण्णे॥१२॥ पणमह पडिमावण्णे तवोविहाणेसु चेय सव्वेसु । पणमामि गणहराणं, जिणजणणीणं च पणमामि॥१३॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसाहे केवलगाणं पणमामि दंसणं तह य सव्वणाणाई। चारितं पंचविहं तेसु य जे साहुणो सब्वे ॥१४॥ चकं उस रयणं झओ य चमराई दुंदुहीओ य । सीहासण कंकेल्ली पणमह घाणी जिणिदस्स ॥१५॥ वंदामि सवसिद्धे पंचाणुत्तरणिवासिणो जे य । लोयतिए य देवे बंदह सव्वे सुरिंदे य ॥१६॥ आहारयदेहधरे उवसामगसेढिसंठिए वंदे । सम्मद्दिटिप्पभुई सब्वे गुणठाणए वंदे ॥१७॥ संती कुंथू य अरो एयाणं आसि णव महाणिहिओ। चोइस रयणाई पुणो छण्णउई गाम कोडीओ ॥१०॥ बल-केसवाण जुयले पणमह अण्णे य भव्वठाणेसु। सव्वे वि वंदणिज्जे पवयणसारे पणिवयामि ॥१९॥ ओ मे भवग्गवग्गू सुमणे सोमणस होंतु महुमहुरा। किलिकिलियघडीचकाहिलिहिलिदेवीओसव्वाओ॥२०॥ इय पवयणस्स सारं मंगलमेयं च पूइयं एत्थ । एयं जो पढइ परो सम्मदिही य गोसग्गे ॥२१॥ तद्दियसं तस्स भवे कल्लाणपरंपरा सुविहियस्स। जं जं सुहं पसत्यं मंगल्लं होइ तं तं च ॥२२॥ चतुःशरणप्रकीर्णकम् । सावजजोगविरई, उक्त्तिण गुणवओ अ पडिवत्ती। खलियस्स निंदणा वणतिगिच्छ गुणधारणा चेव ॥१॥ ___ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुःशरणप्रकीर्णकम् । चारित्तस्स विसोही, कीरह सामाइएण किल इहयं । सावजेयरजोगाण बजणासेवणतणओ ॥२॥ दसणयारविसोही, चउवीसायथएण किचड य। अचम्भुयगुणकित्तणरूवेणं जिणवरिंदाणं ॥३॥ नाणाईआ उ गुणा, तस्संपन्नपडिवत्तिकरणाओ। वंदणएणं विहिणा, कीरइ सोही उ तेसिं तु ॥४॥ खलिअस्स य तेसि पुणो, विहिणा जे निदणाइ पडिकमणं । तेण पडिकमणेणं, तेसि पि य कीरए सोही ॥५॥ चरणाइयाझ्याणं, जहकमं वणतिगिच्छरूवेणं । पडिकमणासुद्धाण, सोही तह काउसग्गेणं ॥६॥ गुणधारणरूवेणं, पच्चक्खाणेण तवइआरस्स। विरिआयारस्स पुणो, सव्वेहि वि कीरए सोही ॥७॥ गय-वसह-सीह-अभिसेअ-दाम-ससि-दिणयरं झयं कुंभ। पउमसर-सागर-विमाणभवण-रयणुचय-सिहिं च ॥८॥ अमरिंद-नरिंद-मुणिंदवंदियं वंदिउं महावीरं। कुसलाणुबंधिबंधुरमज्झयणं कित्तइस्सामि ॥९॥ चउसरणगमण-दुक्कडगरहा-सुकडाणुमोयणा चेव। एस गणो अणवरयं, कायव्यो कुसलहेउ त्ति ॥१०॥ अरिहंत सिद्ध साहू, केवलिकहिओ सुहावहो धम्मो। एए चउरो चउगइहरणा सरणं लहइ धन्नो ॥११॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे अह सो जिणभत्तिभरुच्छरंतरोमंचकंचुअकरालो । पहरिसपणउम्मीसं, सीसम्मि कयंजली भणइ ||१२|| राग-दोसारीणं, हंता कम्मट्ठगाइअरिहंता । विसयकसायारीणं, अरिहंता हुतु मे सरणं ॥ १३॥ रायसिरिमवकसित्ता, तवचरणं दुच्चरं अणुचरिता । केवलसिरिमरहंता, अरहंता हुंतु मे सरणं ॥ १४॥ थुइवंदणमरहंता, अमरिंद-नरिंदपूअमरहंता । सासयसुहमरहंता, अरहंता हंतु मे सरणं ॥ १५ ।। परमणगयं मुणंता, जोइंद- महिंदझाणमरहंता । धम्मकहं अरहंता, अरहंता हुंतु मे सरणं ॥ १६॥ सव्वजिआणमहिंसं, अरहंता सच्चवयणमरहंता । बंभव्वयमरहंता, अरहंता हुंतु मे सरणं ॥ १७॥ ओसरणमवसरित्ता, चउतीसं अइसए निसेविता । धम्मकहं च कहंता, अरहंता हुंतु मे सरणं ॥ १८ ॥ एगाइ गिराणेगे, संदेहे देहिणं समं छित्ता | तिहुअणमणुसासंता, अरहंता हुंतु मे सरणं ॥ १९ ॥ वयणामएण भुवणं, निव्वावंता गुणेस ठावंता । जिअलोअमुद्धरंता, अरहंता हुंतु मे सरणं ॥ २० ॥ अच्चन्भुअगुणवंते, नियजसस सहरपसाहिअदिअंते । निययमणाइअणंते, पडिवन्नो सरणमरहंते ||२१|| उज्झियजर - मरणाणं, समत्तदुक्खत्तसत्तसरणाणं । तिहुअणजणसुहयाणं, अरहंताणं नमो ताणं ||२२|| । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ चतुःशरणप्रकीर्णकम् । अरहंतसरणमलसुद्धिलद्धसुविसुद्धसिद्धबहुमाणो। पणयसिररइयकरकमलसेहरो सहरिसं भणइ ॥२३॥ कम्मलुक्खयसिद्धा, साहाविअनाण-दंसणसमिद्धा। सव्वट्ठलद्धिसिद्धा, ते सिद्धा हुँतु मे सरणं ॥२४॥ तिअलोअमत्थयत्था, परमपयत्था अचिंतसामत्था। मंगलसिद्धपयत्था, सिद्धा सरणं सुहपसत्था ॥२५॥ मूलुक्खयपडिवक्खा, अमूढलक्खा सजोगिपञ्चक्खा। साहाविअत्तसुक्खा, सिद्धा सरणं परममुक्खा ॥२६॥ पडिपिल्लिअपडिणीआ, समग्गझाणग्गिदड्ढभवबीआ। जोईसरसरणीआ, सिद्धा सरणं समरणीया ॥२७॥ पाविअपरमाणंदा, गुणनीसंदा विदिन्नभवकंदा। लहुईकयरवि-चंदा, सिद्धा सरणं खविअदंदा ॥२८॥ उबलद्धपरमबंभा, दुल्लहलंभा विमुक्कसंरंभा। भुवणघरधरणखंभा, सिद्धा सरणं निरारंभा ॥२९॥ सिद्धसरणेण नयबंभहेउसाहुगुणजणिअअणुराओ। मेइणिमिलंतसुपसत्थमत्थओ तत्थिम भणइ ॥३०॥ जिअलोअबंधुणो कुगइसिंधुणो पारगा महाभागा। नाणाइएहिं सिवसुक्खसाहगा साहुणो सरणं ॥३१॥ केवलिणो परमोही, विउलमई सुअहरा जिणमयम्मि । आयरिय-उवज्झाया, ते सव्वे साहुणो सरणं ॥३२॥ चउदस-दस-नवपुब्बी, दुवालसिकारसंगिणो जे अ। जिणकप्पा-ऽहालंदिअ-परिहारविसुद्धिसाहू अ ॥३३॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयस्मरणापिसारे खीरासव महुआसव, संभिन्नस्सोअ कुबुद्धी । चारण-उब्धि-पयाणुसारिणो साहुणो सरणं ॥३४॥ उझियवहरविरोहा, निश्चमदोहा पसंतमुहसोहा । अभिमयगुणसंदोहा, हयमोहा साहुणो सरणं ॥३॥ खंडिअसिणेहदामा, अकामधामा निकामसुहकामा। सुपुरिसमणाभिरामा, आयारामा मुणी सरणं ॥३६॥ मिल्हिअविसयकसाया, उज्झिअघर-घरणिसंगसुहसाया। अकलिअहरिस-विसाया, माहू सरणं गयपमाया ॥३७॥ हिंसाइदोससुन्ना, कयकारुना सयंभुरुप्पन्ना । अजरा-ऽमरपहखुन्ना, साहू सरणं सुकयपुन्ना ॥३८॥ कामविडंबणचुका, कलिमलमुक्का विमुकचोरिका । पावरयसुरयरिका, साहुगुणरयणचिच्चिका ॥३९॥ साहत्तसुहिआ जं, आयरियाई तओ अ ते साह। साहुभणिएण गहिआ, तम्हा ते साहुणो सरणं ॥४॥ पडिवन्नसाहुसरणो, सरणं काउं पुणो वि जिणधम्म । पहरिसरोमंचपवंचकंचुअंचिअतणू भणइ ॥४१॥ पवरसुकएहि पत्तं, पत्तेहि वि नवरि केहि वि न पत्तं । तं केवलिपनत्तं, धम्म सरणं पवन्नो हं॥४२॥ पत्रोण अपत्तेण य, पत्ताणि य जेण नर-सुरसुहाई। मुक्खमुहं पुण पत्तेण नवरि धम्मो स मे सरणं ॥४३॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुशरणप्रकीर्णकम् । १५९ निदलिअकलुसकम्मो, कयसुहजम्मो खलीकयअहम्मो। पमुहपरिणामरम्मो, सरणं मे होउ जिणधम्मो ॥४४॥ कालत्तए वि न मयं, अम्मण-जर-मरण-चाहिसयसमयं । अमयं व बहुमयं जिणमयं च सरणं पवन्नो हं ॥४५॥ पसमिअकामपमोहं, दिहा-दिहेसु न कलियविरोहं । सिवसुहफलयममोहं, धम्मं सरणं पवनो है ॥४६॥ नरयगइगमणरोहं, गुणसंदोहं पवाइनिक्खोहं । निहणियवम्महजोहं, धम्म सरणं पवनो है ॥४७॥ भासुरसुवन्नसुंदररयणालंकारगारवमहग्छ । निहिमिव दोगश्चहरं, धम्मं जिणदेसिअं वंदे ॥४८॥ चउसरणगमणसंचिअसुचरिअरोमंचअंचिअसरीरो । कयदुकडगरिहाअसुहकम्मखयकंखिरो भणइ ॥४९॥ इहभविअमनभविअं, मिच्छत्तपवत्तणं जमहिगरणं । जिणपवयणपडिकुटुं, दुटुं गरिहामि तं पावं ॥२०॥ मिच्छत्ततमंधेणं, अरिहंताइसु अवनवयणं जं। अनाणेण विरइअं, इन्हि गरिहामि तं पावं ॥५॥ सुअधम्म-संघ-साहुसु, पावं पडिणीअयाइ जं रइ। अन्नेसु अ पावेसुं, इन्हि गरिहामि तं पावं ॥५२॥ अन्नेसु अ जीवेसुं, मित्ती करुणाइगोअरेसु कयं । परिआवणाइ दुक्ख, इन्हि गरिहामि तं पावं ॥५३॥ जं मण-बय-काएहिं, कय-कारिअ-अणुमईहिं आयरि। धम्मविरुद्धमसुद्धं, सब्वं गरिहामि तं पावं ॥५४॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० नवस्मरणादिसङ्ग्रहे अह सो दुक्कडगरिहादलिउडकडो फुडं भणइ । सुकाणुरायसमुहन्नपुन्नपुलयंकुरकरालो ॥५५ ॥ अरिहंतं अरिहंतेसु जं च सिद्धत्तणं च सिद्धेसु । आयारं आयरिए, उवझायत्तं उवज्झाए ॥ ५६ ॥ साहूण साहुचरिअं, देसविरहं च सावयजणाणं । अणुमन्ने सव्वेसिं, सम्मत्तं सम्मदिट्ठीगं ॥५७॥ अहवा सव्वं चिप बीअरायवयणाणुसारि जं सुकडं । कालत्तए वि तिविहं, अणुमोएमो तयं सव्वं ॥ ५८ ॥ सुहपरिणामो नि, चउसरणगमाइ आयरं जीवो । कुसलपयडी बंधइ, बद्धाउ सुहाणुबंधाओ ॥५९॥ मंदणुभावा बद्धा, तिव्वणुभावा उ कुणइ ता चेव । असुहाउ निरणुबंधाउ कुणइ तिव्वाउ मंदाओ ॥ ६० ॥ ता एवं कायव्वं, बुहेहि निचं पि संकिलेसम्म । होइ तिकालं सम्मं, असंकिलेसम्म सुकयफलं ॥ ६१॥ चउरंगो जिणधम्मो, न कओ चउरंगसरणमवि न कयं । चउरंगभवच्छेओ, न कओ हा ! हारिजो जम्मो ॥६२॥ इय जीवपमायमहारिवीर भदंतमेयमज्झयणं । झासु तिसंझमवंझकारणं निव्युइसुहाणं ॥ ६३॥ आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् । देसिक्कदेसविरओ, सम्मद्दिट्ठी मरिज्ज जो जीवो । तं होइ बालपंडियमरणं जिणसासणे भणियं ॥ १ ॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भातुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम्। ११ पंच य अणुव्वयाई, सत्त उ सिक्खाउ देसजइधम्मो। सव्वेण व देसेण व, तेण जुओ होइ देसजई ॥२॥ पाणवह-मुसावाए-अदत्त-परदारनियमणेहिं च । अपरिमिइच्छाओ वि य, अणुव्वयाई विरमणाई ॥३॥ जं च दिसावेरमणं, अणत्थदंडाओ जं च वेरमणं । देसावगासियं पि य, गुणव्वयाइं भवे ताइं ॥४॥ भोगाणं परिसंखा, सामाइय अतिहिसंविभागो य । पोसहविही उ सम्बो, चउरो सिक्खाउ वुत्ताओ॥५॥ आसुकारे मरणे, अच्छिन्नाए य जीवियासाए। नाएहि वा अमुको, पच्छिमसंलेहणमकिच्च ॥६॥ आलोइय निस्सल्लो, सघरे चेवारुहित्तु संथारं । जह सरइ देसविरओ, तं वुत्तं बालपंडिअयं ॥७॥ जो भत्तपरिन्नाए, उबक्कमो वित्थरेण निदिहो। सो चेव बालपंडियमरणे नेओ जहाजुग्गं ॥८॥ वेमाणिएसु कप्पोवगेसु नियमेण तस्स उववाओ।। नियमा सिज्झइ उक्कोसएण सो सत्तमम्मि भवे ॥९॥ इय बालपंडियं होइ मरणमरिहंतसासणे दिटुं। इत्तो पंडियपंडियमरणं वुच्छं समासेणं ॥१०॥ . इच्छामि भंते ! उत्तमढे पडिकमामि, अइयं पडिकमामि, अणागयं पडिकमामि, पच्चुप्पन्नं पडिकमामि, कयं पडिकमामि, कारियं पडिकमामि, अणुमोइयं पडिकमामि, मिच्छत्तं पडिकमामि, असंजमं पडिक Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसलहे मामि, कसायं पडिकमामि, पावपओगं पडिकमामि, मिच्छादंसणपरिणामेसु वा इहलोगेसु वा परलोगेसु वा सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा पंचसु इंदियत्थेसु वा अन्नाणंझाणे १ अणायारंझाणे २ कुदंसणंझाणे ३ कोहंझाणे ४ माणंझाणे ५ मायंझाणे ६ लोहंझाणे ७ रागंझाणे ८ दोसंझाणे ९ मोहंझाणे १० इच्छंझाणे ११ मिच्छंझाणे १२ मुच्छंझाणे १३ संकंझाणे १४ कंखंझाणे १५ गेहिंझाणे १६ आसंझाणे १७ तन्हंझाणे १८ छुहं. झाणे १९ पंथंझाणे २० पंथाणंझाणे २१ निबंझाणे २२ नियाणंझाणे २३ नेहंझाणे २४ कामंझाणे २५ कलुसंझाणे २६ कलहंझाणे २७ जुज्झंझाणे २८ निजुझंझाणे २९ संगंझाणे ३० संगहंझाणे ३१ ववहारंझाणे ३२ कयविक्कयंझाणे ३३ अणत्थदंडंझाणे ३४ आभोगंझाणे ३५ अणाभोगंझाणे ३६ अणाइल्लंझाणे ३७ वेरंझाणे ३८ वियक्कंझाणे ३९ हिंसंझाणे ४० हासंझाणे ४१ पहासंझाणे ४२ पओसंझाणे ४३ फरसंझाणे ४४ भयंझाणे ४५ रुवंझाणे ४६ अप्पपसंसंझाणे ४७ परनिंदंझाणे ४८ परगरिहंझाणे ४९ परिग्गहंझाणे ५० परपरिवायंझाणे ५१ परदूसणंझाणे ५२ आरंभंझाणे ५३ संरंभंझाणे ५४ पावाणुमोयणंझाणे ५५ अहिगरणंझाणे ५६ असमाहिमरणंझाणे ५७ कम्मोदयपच्चयंझाणे ५८ इढिगारवं.. झाणे ५९ रसगारवंझाणे ६० सायागारवंझाणे ६१ अवे Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आतुरस्यास्यानप्रकीर्णकम् । रमणंझाणे ६२ अमुत्तिमरणंझाणे ६३ । पसुत्तस्स वा पडिबुद्धस्स वा जो मे कोइ देवसिओ राइओ उत्तमठ्ठे अइक्कमो वइकमो अइयारो अणायारो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । एस करेमि पणामं, जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स । सेसाणं च जिणाणं, सगणहराणं च सव्वेसिं ॥११॥ सव्वं पाणारंभ, पच्चक्खामि त्ति अलियवयणं च । सव्वमदिन्नादाणं, मेहुन्न परिग्गहं चैव ॥ १२॥ सम्मं मे सव्वभूएस, वेरं मज्झ न केणइ । आसाओ वोसिरित्ताणं, समाहिमणुपालए ॥१३॥ सव्वं चाहार विहिं, सन्नाओ गारवे कसाए य । सव्वं चैव ममत्तं चएमि सव्वं खमावेमि || १४ || हुज्जा इमम्मि समए, उवक्कमो जीविअस्स जइ मज्झ । एयं पञ्चक्खाणं, विउला आराहणा होउ || १५॥ सव्वदुक्ख पहीणाणं, सिद्धाणं अरहओ नमो । सद्दहे जिणपन्नत्तं पञ्चक्खामि य पावगं ॥ १६ ॥ नमो त्थु धुअपावाणं, सिद्धाणं च महेसिणं । संथारं पडिवज्जामि, जहा केवलिदेसियं ॥ १७ ॥ 9 जं किंचि विदुच्चरियं तं सव्वं वोसिरामि तिविहेणं । सामाइयं च तिविहं, करेमि सव्वं निरागारं ॥१८॥ बज्झं अभितरं उवहिं, सरीराइ सभोयणं । मणसा वयकाएहि सव्वं भावेण वोसिरे ॥ १९ ॥ १६३ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे सव्वं पाणारंभ, पञ्चक्खामि त्ति अलियवयणं च । सव्वमदिन्नादाणं, मेहुन्न परिग्गहं चेव ||२०|| सम्मं मे सव्वभूएस, वेरं मज्झ न केणइ । आसाओ वोसिरिताणं, समाहिमणुपालए ||२१|| रागं बंधं पओसं च, हरिसं दीणभावयं । उस्सुगत्तं भयं सोगं, रई अरई च वोसिरे ॥२२॥ ममत्तं परिवज्जामि, निम्ममत्तं उबओि । आलंबणं च मे आया, अवसेसं च वोसिरे ||२३|| आया हु महं नाणे, आया मे दंसणे चरिते य । आया पच्चक्खाणे, आया मे संजमे जोगे ||२४|| एगो बच्चइ जीवो, एगो चेबुववज्जए । एगस्स चैव मरणं, एगो सिज्झइ नीरओ ||२५|| एगो मे सासओ अप्पा, नाणदंसणसंजुओ । सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा ॥ २३ ॥ संजोगमूला जीवेण, पत्ता दुक्ख परंपरा । तम्हा संजोग संबंधं, सव्वं तिविहेण वोसिरे ||२७|| मूलगुणे उत्तरगुणे, जे मे नाराहिया पमन्तेण । तमहं सव्वं निंदे, पडिक्कमे आगमिस्साणं ॥ २८॥ सत्त भए अट्ठ भए, सन्ना चत्तारि गारवे तिन्नि । आसायण तित्तीसं, रागं दोसं च गरिहामि ||२९|| अस्संजममन्नाणं, मिच्छन्तं सव्वमेव य ममत्तं । जीवेसु अजीवेसु अ, तं निंदे तं च गरिहामि ||३०|| Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् | १६५ निंदामि निंदणिज्नं, गरिहामि अजं च मे गरहणिलं । आलोएमि अ सव्वं, अभितरबाहिरं उवहिं ॥३१॥ जह बालो जपतो, कजमकजं च उज्जु भणइ । तं तह आलोइज्जा, मायामयविप्पमुको य ॥३२॥ नाणम्मि दसणम्मि य, तवे चरित्ते य चउसु वि अकंपो। धोरो आगमकुसलो, अपरिस्सावी रहस्साणं ॥३३॥ रागेण व दोसेण व, जंभे अकयन्नुआपमाएणं । जो मेकिंचि वि भणिओ, तमहं तिविहेण खामेमि॥३४॥ तिविहं भणंति मरणं, बालाणं बालपंडियाणं च । तइयं पंडियमरणं, जं केवलिणो अणुमरंति ॥३५।। जे पुण अट्ठमईया, पयलियसन्ना य वकभावा य । असमाहिणा मरंति, न हु ते आराहगा भणिया ॥३६॥ मरणे विराहिए देवदुग्गई दुल्लहा य किर बोही। संसारो य अणंतो, हवइ पुणो आगमिस्साणं ॥३७॥ का देवदुग्गई ? का अ बोहि ? केणेव बुज्झई मरणं ?। केण अणतं पारं, संसारं हिंडई ? जीवो ॥३८॥ कंदप्पदेवकिविसअभिओगा आसुरी य सम्मोहा । ता देवदुग्गईओ, मरणम्मि विराहिए हुंति ॥३९॥ मिच्छादंसणरत्ता, सनियाणा किन्हलेसमोगाढा। इह जे मरंति जीवा, तेसिं दुलहा भवे बोही ॥४०॥ सम्मइंसणरता, अनियाणा सुकलेसमोगाढा । इह जे मरंति जीवा, तेसि सुलहा भवे बोही ॥४॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ , नवस्मरणाविसमाहे जे पुण गुरुपडिणीया, बहुमोहा ससबला कुसीला य। असमाहिणा मरंति, ते हंति अणंतसंसारी ॥४२॥ जिणवयणे अणुरत्ता, गुरुवयणं जे करंति भावेणं । असबलअसंकिलिट्ठा, ते हुंति परित्तसंसारी ॥४३॥ बालमरणाणि बहुसो, बहुआणि अकामगाणि मरणाणि। मरिहिंति ते वराया, जे जिणवयणं न याति ॥४४॥ सत्थरगहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसो अ। अणयार-भंडसेवी, जम्मणमरणाणुबंधीणि ॥४५॥ उड्ढमहे तिरियम्मि वि,मयाणि जीवेण बालमरणाणि । दसणनाणसहगओ, पंडियमरणं अणुमरिस्सं ॥४६॥ उव्वेयणयं जाई, मरणं नरएस वेअणाओ य । एआणि संभरंतो, पंडियमरणं मरसु इन्हि ॥४७॥ जइ उप्पजइ दुक्खं, तो दट्ठन्वो सहावओ नवरं । किं किं मए न पत्तं, संसारं संसरंतेणं?॥४८॥ संसारचक्कवाले, सव्वे वि य पुग्गला मए बहुसो। आहारिया य परिणामिआ य न य हं गओ तत्ति ॥४९॥ तणकटेहि व अग्गी, लवणजलो वा नईसहस्सेहि। न इमो जीवो सक्को, तिप्पेउं कामभोगेहिं ॥५०॥ आहारनिमित्तेणं, मच्छा गच्छति सत्तमि पुढविं । सच्चित्तो आहारो, न खमो मणसा वि पत्थेउं ॥५१॥ पुब्धि कयपरिकम्मो, अनियाणो जहिऊण मइबुद्धिं । पच्छामलिअकसाओ, सज्जो मरणं पडिच्छामि ॥५२॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णकम् । अकंडेऽचिरभाविय, ते पुरिसा मरणदेसकालम्मि । पुण्वक कम्मपरिभावणाई पच्छा परिवर्डति ॥५३॥ तम्हा चंद्गविज्झं, सकारण उज्जुएण पुरिसेण । जीवो अविर हियगुणो, कायव्वो मुक्खमग्गमि ॥ ५४|| बाहिर जोगविरहिओ, अग्भितरझाणजोग मल्लीणो । जह तम्मि देसकाले, अमूढसन्नो चयइ देहं ॥५७॥ हेतूण रागदोसं, छिन्तु य अटुकम्मसंघायं । जम्मणमरणरहहं, छित्तूण भवा विमुचिहिसि ॥५६॥ एवं सखुवएस, जिणदिद्वं सद्दहामि तिविहेणं । तस्थावरखेमकरं पारं निव्वाणमग्गस्स ॥५७॥ न हि तम्मि देसकाले, सक्को बारसविहो सुअक्खंधो । सवो अणुचिंतेडं, धणियं पि समत्थचित्तेणं ||५.८ || एगम्मि वि जम्मि पए, संवेगं वीरायमग्गस्मि । गच्छइ नरो अभिक्खं, तं मरणं तेण मरियव्वं ॥ ५९ ॥ | ता एवं पिसिलोगं, जो पुरिसो मरणदेसकालम्मि । आराहणोवउत्तो, चिंतंतो राहगो होइ ॥ ६० ॥ आराहणवतो, कालं काऊण सुविहिओ सम्मं । उक्कोसं तिन्नि भवे, गंतृणं लहइ निव्वाणं ॥ ६१ ॥ समणु ति अहं पढमं, बीयं सव्वत्थ संजओ मिति । सव्वं च वोसिरामि, एयं भणियं समासेणं ॥ ६२॥ लद्धं अलद्वपुव्वं, जिणवयणसुभासियं अमयभूअं । हिओ सुग्गइमग्गो, नाहं मरणस्स बीहेमि ॥ ६३|| Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे धीरेण वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं । दुन्हं पि हु मरिअव्वे, वरं खु धीरन्तणे मरिडं ||३४|| सीलेण वि मरियव्वं, निस्सीलेण वि अवस्स मरियवं । दुन्हं पि हु मरिअव्वे, वरं खु सीलत्तणे मरिउं ॥ ६५ ॥ नाणस्स दंसणस्स य, सम्मत्तस्स य चरित्राजुतस्स । जो काही उवओगं, संसारा सो विमुविहिसि ॥ ६६ ॥ चिरउसिय बंभयारी, पफोडेऊण सेसयं कम्मं । अणुपुब्बीह विसुद्धो, गच्छइ सिद्धिं धुयकिलेसो ॥६७॥ निक्कसायरस दंतस्स, सूरस्स ववसाइणो । संसारपरिभी अस्स, पच्चक्खाणं सुहं भवे ॥६८॥ एयं पञ्चक्खाणं, जो काही मरणदेसकालम्मि । धीरो अमूढसन्नो, सो गच्छइ उत्तमं ठाणं ॥ ६९ ॥ धीरो जरमरणविऊ, धीरो विन्नाणनाणसंपन्नो । लोगस्सुज्जोअगरो, दिसउ खयं सव्वदुक्खाणं ॥ ७० ॥ प्रभुस्तुति प्रभु माहरा प्रेमथी नमुं, मूर्ति ताहरी जोइने ठरुं । अरर ओ प्रभु पाप में कर्या, शुं थशे हवे माहरी दशा । माटे प्रभुजी तमने वीनवुं, तारजो हवे जिनजीने स्तनुं ॥१॥ दीनानाथजी दुःख कापजो, भविकजीवने सुख आपजो । पार्श्वनाथजी स्वामि माहरा, गुण गाउं हुं नित्य ताहरा ॥२॥ * Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगौडी पार्श्वजिनवृद्धस्तवन । आवा उभा कुं द्वारे प्रभु दर्शन देशो क्यारे । अंतरनी अभिलाषा प्रभु पूरी करशो क्यारे ? ॥ आवी० ॥२॥ सळगी रह्यो धुं आजे संसार केरा तापे । शीतळ तमारी छाया प्रभु मुजने धरशो क्यारे ? भक्ति करुं न भावे शक्ति वृथा गुमावुं । युक्ति न कोई फावे प्रभु संकट हरशो क्यारे ! || आवी० ॥२॥ ॥ आवी० ॥३॥ दृष्टि न दूर पहोंचे सृष्टि आ arrar उरमा प्रभु उज्ज्वल भवोभव भमीने आव्यो तुमारे शरणे । सूना सूना जीवनमां प्रभु आवी मळशो क्यारे ? || आवी० ||५|| श्रीगोडीपार्श्वजिनवृद्धस्तवन । ( दोहा ) वाणी ब्रह्मावादिनी, जागै जगविख्यात । शून्य भासे | करशो क्यारे ? || आवी ० ||४|| १६९ पास तणा गुण गावतां, मुज मुख वसज्यो मात ॥१॥ नारंगे अणहिलपुरै, अहमदाबाद पास । गौडीनो धणी जागतो, सहुनी पूरे आस ॥२॥ शुभ वेला शुभ दिन घडी, महुरत एक मंडाण । प्रतिमा ते इहां पासनी थई प्रतिष्ठा जाण ॥३॥ ( ढाल ) गुणहिं विशाला मंगलिक माला, वामानो सुत साचो जी । पण कण कंचण मणि माणक दे, गौडीनो धणी जाचो जी || गु० || ४ || Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० नवस्मरणादिलकु अणहिलपुर पाटण मांहे प्रतिमा, तुरकतणें घर हुंती जी । अश्वनी भूमि अश्वनी पीडा, अश्वनी वालि विगूती जी ||गु० ||५|| जागंतो जक्ष जेहने कहियै, सुहणौ तुरकनै आपे जी । पास जिनेसर केरी प्रतिमा, सेवक तुझ संतापै जी ॥ गु०॥६॥ ग्रह ऊठीने परगट करजे, मेघा अधिको म लेजे ओछो म लेजे, टक्का पांच सै लेजे जी ॥ गु०॥७॥ नहीं आपिस तो मारिस मुरडिस, मोरबंध बंधास्ये जी । गोठीने देजे जी । पुत्र कलत्र धन हय हाथी तुझ, लच्छि घगी घर जास्ये जी ॥ गु०॥८॥ मारग पहिलो तुझने मिलस्यै, सारथवाह जे गोठी जी । निलवट टीलो चोखा चोढया, वस्तु वहै तसु पोठी जी ॥० ॥ ९ ॥३॥ ( दोहा ) मनसुं बहनो तुरकडो, माने वचन प्रमाण । बीबी ने सुहणा तणो, संभलावे सहिनाण ॥ १० ॥ बीबी बोले तुरकने, बड़ा देव है कोय | अब संताव परगट करो, नहींतर मारे सोय ॥ ११ ॥ पाछली रात परोढीयै, पहली बांधै पाज । सुहणा माहें सेठने, संभलावै ( ढाल ) एम कही यक्ष आयो राते, सारथवाहने पास तणी प्रतिमा तुं लेजे, लेतां सिर मत धूणे जी ॥ ९० ॥ १३ ॥ पांच सै टक्का तेहने आपे, अधिको म आपीस वारे जी । जक्षराज ॥ १२॥ सुहणें जी । जतन करी पहुँचाडे थानिक, प्रतिमा गुण संभारे जी || ए० ॥ १४ ॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगौडीपार्वजिनवृद्धस्तवन । तुझने होसी बहुफलदायक, भाई गोठी ते सुणजे जी । पूजीस प्रणमीस तेहना पाया, प्रह ऊठीने थुणजे जी ॥ए०॥१५॥ सुहणो देईने सुर चाल्यो, आपणे थानक पहुंतो जी। पाटण माहे सारथवाहु, हीडे तुरकने जोतो जीए०॥१६॥ तुरकै जातां दीठो गोठी, चोखा तिलक लिलाडै जी। संकेत पहुतो साचो जाणि, बोलावै बहु लाडे जी ॥ए०॥१७॥ मुझ घर प्रतिमा तुझने आपुं, पास जिणेसर केरी जी। पांच सै टक्का जो मुझ आपै, मोल न मागु फेरी जी ॥ए०॥१८॥ नाणो देई प्रतिसा लेई, थानक पहुंतो रंगै जी। केसर चंदन मृगमद घोली, विधिसुं पूजे चंगै जी ॥ए०॥१९॥ गादी रूडी रूनी कीधी, ते माहे प्रतिमा राखै जी। अनुक्रम आव्या परिकर मांहे, श्री संघ ने सुर साखै जी ए०॥२०॥ उच्छव दिन दिन आधिका थाये, सत्तर भेद सनात्रो जी। ठाम ठाम ना दरसण करवा, आवै लोक प्रभातो जी ए०॥२१॥ (दोहा) इकदिन देखे अवधिसुं, परिकरपुरनो भङ्ग । जतन करूं प्रतिमा तणो, तीरथ अछे अभंग ॥२२॥ सुहणो आपै सेठने, थल अटवी ऊजाड । महिमा थास्यै अति घगी, प्रतिमा तिहां पहुँचाड ।।२३।। कुशल क्षेम तिहां अछ, तुझने मुझने जाण । संका छाडी काम कर, करतो म करीस काण ॥२४॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ नवस्मरणादिसङ्गहे (दाल) पास मनोरथ पूरा करे, वाहण एक बृषभ जोतरे । परिकरथी परियाणो करे, एक थल चढि बीजे ऊतरे ॥२५॥ बारै कोस आव्या जेतलै, प्रतिमा नवि चालै तेतले।। गोठी मनह विमासण थई, पासभुवन मंडावू सही ॥२६॥ आ अटवी किम करूं प्रयाण, कटको कोई न दिसे पाहाण । देवल पास जिनेसर तणो, मंडावु किम गरथे विणो ॥२७॥ जल बिन श्री संघ रहस्यै किहां, सिलावटो किम आवै इहाँ । चिंतातुर थयो निद्रा लहे, यक्षराज आवीने कहे ॥२८॥ गुंहली ऊपर नाणो जिहां, गरथ घणो जाणीजे तिहां । स्वस्तिक सोपारी सहिनाण, पाहण तणी ऊलटस्यै खाण ॥२९॥ श्रीफल सजल तिहां किल जूओ, अमृतजल नीसरसी कूओ। खारा कूवा नो इह सहिनाण, भूमि पड्यो छै नीलो झाण ॥३०॥ सिलावटो सीरोही वसै, कोढपराभवियो किस मिसै । तिहां थकी तूं इहां आणजे, सत्य वचन माहरो मानजे ॥३१॥ गोठीनो मन थिर थापियो, सिलावटने सुहणो दियो। रोग गमाऊं ने पूरूं आस, पास तणो मंडे आवास ॥३२॥ सुपन माहे मान्यो ते वेण, हेमवरण देखाड्यो नेण । गोठी मनह मनोरथ हुआ, सिलावटने गया तेडवा ॥३३॥ सिलावटो आवै सूरमो, जिमें खीर खांड घृत चूरमो। घडै घाट करे कोरणी, लगन भले पाया रोपणी ॥३४॥ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगोडीपार्वजिनवृद्धस्तवन । १७३ थंभ थंभ कीधी पूतली, नाटक कौतुक करती रली । रंगमंडप रलियामणो रचै, जोतां मानवनो मन वसै ॥३५॥ नीपायो पूरो प्रासाद, स्वर्ग समो मंडे आवास । दिवस विचारी इण्डो घडयो, ततखिण देवल ऊपर चड्यो ॥३६॥ शुभ लगन शुभ वेला वास, पव्वासण बैठा श्रीपास । महिमा मोटी मेरुसमान, · एकलमल वगडे रहैवान ॥३७॥ वात पुराणी मैं सांभली, तवन मांहि सूधी सांकली। गोठी तणा गोतरिया अछ, यात्रा करीने परणे पछै ॥३८॥ (दोहा) विधनविडारन यक्ष जग, तेहनो अकल सरूप । प्रीत करै श्रीसंघने, देखाडे निज रूप ॥३९॥ गिरुओ गौडी पास जिन, आपै अरथभंडार । सानिध करें श्रीसंघने, आशा पूरणहार ॥४०॥ नील पलाणै नील हय, नीलो थइ असवार । मारग चूका मानवी, वाट दिखावणहार ॥४१॥ (ढाल) वरण अढार तणो लहै भोग, विघन निवारै टालै रोग। पवित्र थई समरे जे जाप, टालै सगला पाप संताप ॥४२॥ निरधनने घर धननो सूत, आपै अपुत्रीयाने पुत्र । कायरने सूरापण धरै, पार उतारे लच्छी वरै ॥४३॥ दोभागीने दै सोभाग, पग विहूणाने आपै पग । ठाम नहीं तेहने यै ठाम, मन वञ्छित पूरे अभिराम ॥४॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसलहे निराधारने द्यै आधार, भवसागर ऊतारै पार । आरतियानी आरतभंग, धरै ध्यान ते लहै सुरंग ॥४५॥ समर्या सहाय दीयै यक्षराज, तेहना मोटा अछै दिवाज । बुद्धि हीगने बुद्धि प्रकाश, गूंगाने 2 वचनविलास ॥४६॥ दुखियाने सुखनो दातार, भयभंजण रंजण अवतार । बंधन तूटै बेडी तणा, श्रीपार्श्वनाम अक्षर समरणा ॥४७॥ (दोहा) श्रीपार्श्वनाम अक्षर जपै, विश्वानर विकराल । हस्तियूथ दूरे टलै, दुर्द्धर सिंह सियाल ॥४८॥ चोरतणा भय चूकवे, विष अमृत उडकार । विषधरनो विष ऊतरै, संग्रामे जयजयकार ॥४९॥ रोग सोग दालिद्र दुख, दोहग दूर पुलाय । परमेसर श्रीपासनो, महिमा मन्त्र जपाय ॥५०॥ (कडखानी चाल) ॐ जितुं 3 जि तुं ॐ जि उपशम धरी, 3 ही श्री पार्श्व अक्षर जपते। भूत ने प्रेत झोटिंग व्यंतरसुरा, उपसमै वार इकवीस गुणते ।०॥५१ दुर्द्धरा रोग सोगा जरा जंतु ने, ताव एकांतरा दुत्तपंतै । गर्भबंधन त्रणं सर्प विच्छू विषं, बालिका बाल मेवा झखंते नि॥५२॥ साइणी डाइगी रोहिणी रंधणी, फोटका मोटका दोष हुँते । दाढं ऊंदरतगी कोल नोला तणी, स्वान सीयाल विकराल दंते ॥॥५३॥ धरणेंद्र पद्मावती समर शोभावती, वाट आघाट अटवी अटतै । लक्ष्मी-लीला मिलै सुजस वेला वलै, सयल आशा फलै मन हसंतेनि०॥५४ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसीताजीनी सज्झाथ । १७५ महामय हरै कानपist टलै, ऊतरे सूल सीसग भणतै । बदतः वरप्रीतसुं प्रीतिविमल प्रभु, श्रीपासजिन नाम अभिराम मन्तै । ॐ ० ॥ ५५ ( कलश ) सपगच्छ नायक शिवसुख दायक श्रीहीरविजय सूरीश्वरो, तसु पट्ट उदयाचले उदयो श्री विजयसेन सुगणधरो । इम स्क्तव्यों गौडी पास जिनवर प्रीतिविमल प्रीतै भणै, जे भ भावे लहे सम्पत शाश्वता सुख तेह लहे ||१|| श्रीसीताजीनी सज्झाय । ढाल - पहेली । रे मानो एला कंथजी, सीता शीदने लइ आग्या । रे वारे राजा रामजी, घणुं रोशे भराशे ॥ क ० ॥ २१ ॥ मा ते रज ऊडे घणी, महोल दीसे छे झांखा । B सवारथ साधतां वेर कीधां छे मोटां ॥ कह्युं ० || २ || घट चोळी पीडा करी, मंदिर महेलमा हेर्या । सीताजीने लइने सामा जाओ, शाने थया छो घेला || कां ० || ३ || निमित्तिआए जोश ते जोइआ, दर प्रथमथी ज एवा । o सीताना हरणथी मरण पामशे, ते दिन आवीने मळियो || कां ० ॥ ४ ॥ चोथावतनी आखडी, परस्त्रीना पच्चक्खाण । " देवगुरुनी साखे कर्यां व्रत लेइ मत भांजो || क ु० ||२५|| पाणीमां पाळ बांधी करी, रामचंद्रजी आव्या । लश्कर तो दीसे घणुं, घगा राय नमाव्या ॥ क ०||६|| Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ नबस्मरणादिस रामचंद्रजीना दळ थकी, नगरी थइ छे बेरी । चउदिशे लश्कर विस्तयु, लंका लीधी छे घेरी ॥कमु०॥७॥ स्वामी मने स्वप्नुं लाधीयु, जाणे लंका प्रजाळी । रामचंद्रजीए बाण सांधीयुं, त्यारे हुं तो झबकीने जागी ॥कमु०॥८॥ छुट्यां ते मंदिर माळीयां, लूटी सारी बजार । महेल लूंट्या रावण तणा, लंटी मंदोदरी राणी ॥कह्यु०॥९॥ स्वामी आपणुं ते कोइ नहीं, नहीं ऊगरवानो आरो। राणीजीनां वचन सुणी करी, बीभीषण राय उदासी ॥का ॥१०॥ हनुमंत सुग्रीवराय वीरा हता, रामचंदजी राजा । अनंता बहु जोरा थयां, कर्म कीयां छे काचां ॥कमु०॥११॥ बिभीषणे कयुं सुणो राजवी, सीता जगतनी माता । शियल थकी चूके नहीं, क्रोड होशे रे वातां ।।का०॥१२॥ स्वामी हुं तो कहुं छं तुम भणी, सीता आपोने पाछी। जस रे कीर्ति वाधे घणी, वात होशे ज आछी ॥कडं०॥१३॥ रावण कहे सुण मंदोदरी, आपणे सहुथी अहंकारी । कुंभकर्ण सरीखो बांधवो, शुं करशे दशरथनो छैयो ।कह्यु०॥१४॥ का न माने लंकापति, एना कर्म कठोर । पण कोइनुं माने नहीं, शुं कहे वारंवार ॥का ०॥१५॥ दळ लश्कर लेइ करी, राजा रावण आव्यो । लक्ष्मणे रावणने मारीओ, पहोच्यो नरक मोझार धन धन लक्ष्मण बंधवा ॥१६॥ बिभीषणने राज्य सोपी करी, सीता लेइ घर आल्या । अयोध्यामां हर्ष वधामणी, घेर घेर मंगळमाळा ॥धन०॥१७॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसीताजीनी समाय। जसडंको देइ करी, रामचंद्रजी आव्या । अयोध्यामां हर्ष वधामणां, मोतीडे वधाव्या ॥धन०॥१८॥ सासुजीने पाय लागी करी, सासुजीए दीधी आशिष । दोय पुत्र जणजो पदमणी, कुळना हितकारी ॥धन०॥१९॥ छोड्यां ते मंदिर माळीयां, छोड्या गरथ भंडार । सीताजीए संयम आदयों, पहोंच्यां बारमे देवलोक ॥धन०॥२०॥ नव गाथा पूरवे हती, बार कीधीरे बीजी। कर जोडी पद्मविजय वीनवे, प्रभु मने पार ऊतार ॥धन०॥२१॥ ढाल-बीजी। (सुण गोवालणी-राग) अहो राणाजी कयुं मानो तो अभिमान सर्व टाळीए । अहो राणाजी रघुपति केरा चरण कमळ धोइ पीजीए । अहो राणाजी नाना छे पण ते नर मोटा कहेवाय छ । अहो राणाजी एना दर्शनथी काइ मनोरथ सर्व पूराय छे । एना दशरथ सरखा पिता छे, एनी कौशल्याजी माता छ । एना लक्ष्मण सरीखा भ्राता छ, . अहो राणाजी०॥ एना भरत शत्रुघ्न भाई छे, एने सुग्रीव तो सखाई छ । एने हनुमान सदा सुखदाई छे, अहो राणाजी०॥ दाल-त्रीजी। सुणि मंदोदरी नारायण नमवाने मारे नेम छे, सुणि मंदोदरी आदिने अंते ते मारे नेम छे, मारे कुंभकर्ण सरीखा भाई छे, मारे गढने फरती खाई छे, मारे सवालाख जमाई छे, सुणि०॥१॥ १२ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मवस्मरणादिसहे मारे गढ कांगरा बहु भारी छे, मारे बेठक तो बहु सारी छे, मारे अक्षौहिणी लश्कर भारी छे, सुणि०॥२॥ मारे ऐरावण आकाश वसे, मारे बलभद्र पाताल क्से, मारे नितनित राक्षसिणी खबर करे, सुणि०॥३॥ मारे वा वासीदं काढे छे, मारे जम तो पाणी ताणे छे, मारे चंद्र सूर्य दोय छत्र धरे, सुणि०॥४॥ विद्याधरनी बातो जाणीने, में नवग्रह बांध्या ताणीने, हरी लाग्यो राषवराणीने, सुणि०॥५॥ दाल - चोथी। रावण कहे सुणो मंदोदरी, मत है९ हार । सोनाना गढने कोट छे, नहीं जीते दशरथनो छइयो । राणीजी दृढ मन राखीए । कुंभकर्ण सरीखा बांधवा, ईन्द्रजीत सरीखा पुत्र । समरथ सेना मारे घणी, नहीं जीते दशरथनो पुत्र ॥१॥ रावण कहे सुण मंदोदरी, हुं युद्ध करुं तुं जोजे । ए छे वनना भीलडा, मारी झपाट न झीले ॥२॥ रावण कहे सुण मंदोदरी, आपणे अभिमानी छीए । लीधी वात नवि मूकीए, पग पाछा नवी दइए ॥३॥ मंदोदरी कहे अहंकारथी, चक्रवर्ती वासुदेव जेवा । पस्तावो करी नरके गया, जुओ दुःख पाम्या केवा ॥४॥ सुतो सिंह जगाडीयो, छंछेड्यो काळो नाग । सीताने लेइ घेर आवीया, प्रगट्यां पूर्वनां पाप ॥५॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसीताजीनी समाय। मदोदरी कहे आपनो, ऊगरवानो आरो काई। . एवी वाणी राणी कहे, आज्या बिभीषण भाई ॥६॥ भाई सीताने दीजीए, बेन करीने पाछी। रामचंद्रजीसुं हेते रहीए, जगमा वात लागे आछी ॥७॥ बिभीषण कहे सुणो तातजी, सीता जगतनी माता । सत्य शोयलथी चूके नहीं, जो करो कोडी ज वाता ॥८॥ हनुमंतवीर विरोधीया, सुग्रीव हता बहु सारा । ते पण तारी अनीतिथी, तें कर्म कयाँ बहु कारा ॥९॥ ते कुळने कलंक लगाड़ीयो, तारे मारी छे छांय । हजीय कहुं छु बे कर जोडीने, मानी ल्यो मुज भाई ॥१०॥ का रे न माने लंकापति, लेख लख्या विधाता । कर्मगति एनी बांकडी, घणुं कर्तुं शिरनामी ॥११॥ हाक मारीने ऊठीयो, जा तुं नजरथी दूर । नहीं तो तुजने हाथे हणुं, जा तुं रामने हजूर ॥१२॥ त्यांथी बिभीषण चालीया, चाल्या रामनी पास । विगत सर्वे संभळावीने, रह्या रामनी पास ॥१३॥ किष्किंधाथी लश्कर ऊपडयुं, पछी को लंकामां एलाण। षट्मासे लगे जूझीया, पछे गया रावणना प्राण ॥१४॥ लडतां लक्ष्मण जीतीया, वयों जयजयकार । सीताजीने घेर लेइ आवीया, अयोध्या नगरी मोझार ॥१५॥ धन्य धन्य सती सीताने, धीरज धरी संजम लीधो । बारमे देवलोके ईन्द्र थया, राम ज्ञानीए कीधो॥ धन्य धन्य सती सीताने ॥१६॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्गहे दिन दिवाळीनो गाजीयो, अयोध्या नगरी मोझार । धोळाजीमां जूठो एम कहे, गुण गाय श्रीरामचंद्रजीना धन्य धन्य धन्य श्रीरामने ॥१७॥ प्रभातमां भाववानी भावना। आबु अष्टापद गढ गिरनार, समेतशिखर शेव॒जो सार । पंच तीरथ उत्तम ठाम, सिद्धि वर्या तेन कर प्रणाम ॥१॥ श्री सिद्धाचलने विषे आदीश्वर भगवान पूर्व नवाणुं वार समोसर्या, तेने मारी क्रोडकोडवार वंदना होजोजी ॥१॥ पुंडरिकस्वामि पांच कोड मुनि साथे सिद्धिपदने वर्या तेने मारी क्रोड०॥२॥ राम भरत त्रण क्रोड साथे सिद्धि वर्या तेने मारी क्रोड०॥३॥ नारदजी एकागुं लाख साथे सिद्धि वर्या तेने मारी क्रोड०॥४॥ वसुदेवनी पांत्रीस हजार स्त्री सिद्धि वरी तेने मारी क्रोड०॥५॥ ए गिरिराजने विषे शांतिनाथ प्रभुए मुनिराज साथे चोमासु कीधुं तेने मारी क्रोड०॥६॥ थावच्चा पुत्र एक हजार साथे सिद्धि वर्या तेने मारी क्रोड०||७|| सुभद्र मुनि सातसें साथे सिद्धि वर्या तेने मारी क्रोड०॥८॥ नमि विनमि विद्याधर बे क्रोड मुनि साथे सिद्धि वर्या तेने मारी क्रोड०॥९॥ द्राविड अने वारिखिल्लजी, दश क्रोडी साथे सिद्धि वर्या तेने मारी क्रोड०॥१०॥ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभातमा भाववानी भावना। १८१ शांब प्रद्युम्न साडा आठ क्रोडि साथे सिद्धि वर्या तेने मारी कोह०॥११॥ देवकीना षट् पुत्रो साथे सिद्धि वर्या तेने मारी क्रोड०॥१२॥ वली ए गिरिराजने विषे अनंता सिद्धि पदने वर्या तेने मारी कोड०॥१३॥ गिरनारजीने विषे श्री नेमिनाथ भगवान बालब्रह्मचारीपणे आ संसार, दुख रुप, दुखे भरेलो, दुखनी खाण, हलाहल विष जेवो जाणीने, राजीमती ने छोडी सहेसावन जइ दीक्षा लेइ केवलज्ञान पामी मोक्षपदने पाम्या तेने मारी क्रोड०॥१४॥ वली गिरनारजीने विषे मूलनायक श्री नेमिनाथजी आदि जिनेश्वर भगवाननी अनेक प्रतिमाओ छे तेने मारी क्रोड०॥१५॥ ___ आबुजी उपर आदीश्वर भगवानना तथा नेमिनाथजीना देरां घणा ज सुंदर छे तेमां कोरणी कारीगरोए घणी ज उत्तम करेली छे तथा देराणी जेठाणोना करावेला गोखला छे जेमा घणी ज नाना कदनी प्रतिमाओ छे तेने मारी क्रोड ०॥१६॥ ___ तथा अचलगढ उपर चौदसो ने चुमालीस मणनी सोनानी चौद प्रतिमा छे तेने मारी क्रोड०॥१७॥ समेतशिखरजीने विषे वीस तीर्थकर मोक्षपदने पाम्या ते वीसे जिनेश्वरभगवानना पगलां छे तेने तथा तेमां रहेली जिनेश्वर भगवाननी प्रतिमाजीने मारी क्रोड०॥१८॥ ___ अष्टपदजी उपर आदीश्वर भगवान दशहजार मुनियो साथे सिद्धि वयां तेने मारी क्रोड०॥१९॥ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणाविसबहे भरत राजाए सोनानो प्रासाद कराव्यो तेमां रत्नमयी प्रतिमा चोवीस तीर्थंकरोनी भरावी तेने मारी क्रोड०॥२०॥ ____ गौतमस्वामिए प्रभुनी आज्ञा लेइ पोतानी लब्धिए करी अष्टापदनी यात्रा करी तथा तिर्यगजुंभक देवताने प्रतिबोध करीने पंदरसें तापसोने खीरनां पारणां कराव्यां, ते पण फक्त एक ज पात्रामां थोडी खीर वहोरी लाव्या, पण ते पात्रामा पोतानो अंगुठो राख्यो तेथी तेनी लब्धिए करीने एटला बधा तापसोने खीरथी तृप्त कर्या अने ते तापसोने एवं आश्चर्य जोई खीर भोजन करतां तेमांना पांचसोने केवलज्ञान थयुं, तथा प्रभु पासे आवां रस्तामां भावना भावतां बाकीना पांचसोने केवलज्ञान थयुं, बाकीना तापसोने प्रभुनुं समवसरण जोतांज केवलज्ञान थयु. माटे एवा लब्धिवंत गौतमस्वामि तथा पंदरसे तापसोने मारी क्रोड०॥२१॥ ____गोखले गभारे जालीए मालीए जलमां मोतीमां माणिकमां पानामां पुस्तकमां धातुमां काष्ठमां चित्रामणमां परवालामा भोंयमां, भंडारमा ऊर्ध्व अधो तिर्छा लोकने विषे अंगुठाथी मांडी पांचसें धनुष्यप्रमाण जे कोइ जिनेश्वर भगवाननी नानी मोटी प्रतिमा होय तेने मारी क्रोड०॥२२॥ चोसठ इंद्रना पूजनीक, बार गुण सहित, चोत्रीस अतिशयें करी विराजमान, पांत्रीस गुणयुक्त, वाणीए करी भविक जीवोने प्रतिबोधे, सर्वत्र सर्व वस्तुना देखणहार, त्रिभुवनमा मांगलिकदायक, कल्पवृक्षसमान सात भयथी रहित, त्रिभुवन गुरु, परम ठाकुर, दयावंत, जगतना बांधव, संसार समुद्रमां द्वीप समान, त्रणे भुवनमां दीपक समान, जगतमां चिंतामणिरत्नसरिखा, त्रिभुवनमा मुगट सरिखा जिनराज, मोक्षमार्गने Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभातमां भाववानी भावना । ૨૮૩ विषे रथसमान, अशरणना शरणभूत, भवसंसारना भयटालक, भाविक कोकोने प्रीति भोजन समान, आठ कर्मरूप अगाध समुद्रतारण वहाणसमान, समग्र क्रिया अनुष्ठानादिक गुणनी मंजूषासमान, जयवंता, विषम जे कदर्प तेना जे बाग तेने वारवाने सन्नाहसमान, एवा जे श्री अरिहंत भगवान तेने मारी क्रोड ० ||२३|| हुं धन्य, हुं पुण्यवंत पवित्र थयो, मारो मनुष्य भव सफल थयो, जे कारणे, श्री वीतरागना चरण कमलनी भेट थई ए दिवस धन्य कृतार्थ, ए प्रहर सुमुहूर्त सुपवित्र जाणवो जे वेला जगद्गुरु जिनराजने हुं भेट्यो, आज मारे रत्नचिंतामणि कल्पवृक्ष कामधेनु कामकुंभ ए सर्व सुलभ थयां, आजे मने अपूर्व वस्तु मली, मारा मोटा भाग्यनो उदय थयो, अढारदोषरहित होय तेने तीर्थंकर कहिए, आठ कर्मना मंथनहार, मोक्ष नगरना सार्थवाह, कर्मपीडारहित, एवा जगन्नाथने स्तवुं कुं, भरतक्षेत्रे अतीत चोवीशीमां प्रथम तीर्थंकर अने केवलज्ञानी निर्वाणी आदि तथा वर्तमान चोविशीमां, प्रथम ऋषभदेव प्रमुख चोवीश तीर्थंकरने तथा अनागत चोविशीमां श्रीपद्मनाभ श्रीश्रेणीक राजानो जीव आदि, त्रण चोवीशीनां बहोंतरे तीर्थंकर वीस विहरमान चार शाश्वता तीर्थंकर मली छन्नु जिन ए सर्वेने मारी क्रोड० ॥ २४ ॥ श्री अरिहंत भगवान तथा श्री सिद्ध भगवान, तथा श्री आचार्यजी, तथा श्री उपाध्यायजी तथा श्री साधु मुनिराज, ए पंच परमेष्ठिने मारी क्रोड० ||२५|| ॥ इति भावना संपूर्ण || Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणाविसहे सीमंधरजिनआलोयणस्तवन । आलोयण हो बोल बे कर जोडी ने, सुणो श्रीसीमंधर देव जगजीवना। प्रभु साखे हो मिच्छामि दुक्कड तेह जो, वली होजो तुम पाय सेव जगजीवना ॥१॥ भव माहे भमतां इणे जीवे, कीधा करम अनंत जगजीवना । जीभे करी हो कहेतां पार न पामही, ते तुंजाणे भगवंत जगजीवना ॥२॥ प्रभु आगे हो कपट कीसुं राखीए, कपटे न छूटे करम जगजीवना। कीधां पातक पंचेन्द्री तणे वसे, तुं जाणे ते मर्म जगजीवना ॥३॥ षुढवी अप तेउ वाउ वनस्पति, वली छट्ठी त्रसकाय जगजीवना । भवोभव हो तेहनी कीधी विराधना, लाख चोरासी मांहि जगजीवना ॥४॥ क्रोध लोभे हो भये तथा हसवे करी, में बोल्या मृषावाद जगजीवना। अदत्तादान हो लीधां में लोभे करी, वली मैथुन ने उन्माद जगजीवना ।।५॥ नवविधनो परिग्रह मेलो कारमो, जिहां पाप तणो नहिं पार जगजीवना । मनरंगे हो रात्रिभोजन में कार्यों, वली अभक्ष्य भख्यां बहु वार जगजीवना ॥६॥ ज्ञान दर्शन चारित्र जे में विराधियां, वली कीधा व्रतमंग जगजीवना । द्वेष धरी धर्मनी निंदा करी, सात व्यसन सेव्यां मनरंग जगजीवना ||७|| सुवावडे रांधण लिंपणे, बोल्या बहु आरंभ जगजीवना । करमे करी ने हो गुरुमुखे आलोयां नहीं, मन मांहि राख्यो दंभ जगजीवना ॥८॥ विषये करी कपटकला केलवी, ते कहेतां आवे लाज जगजीवना । चोथे व्रत दूषण लाग्यां जे मुने, ते तो जाणो छो जिनराज जगजीवना ।।९।। ___ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीमंधरजिनआलोयणस्तवन । बहु विधना हा करम उपायां जे जिहां, में तो जाणे अजाणे तेह जगजीवना । में सेव्यां पापस्थान अढार जे, प्रभु आलोउं छु तेह जगजीवना ॥१०॥ में मलीने हो मित्रसुं कीधी वंचना, वली कीधा विश्वास जगजीवना। में परनो हो द्वेषपणे द्रोह चिंतव्यो, एम केता कहुं अवदात जगजीवना ॥११॥ छाना छपना हो करम करसे करी, में तो मूढपणे महाराज जगजीवना। तुम साखे हो सांभरे न सांभरे, ते तो आलोउं छु आज जगजीवना ॥१२॥ मातपिता पुत्र कलत्र तणे मोहे, वली सगपण ने संबंध जगजीवना । साधारण हो करम कोधां बहुभातिनां, निबिड जेहना दृढ बंध जगजीवना ॥१३॥ जिम कसतां हो कुंदन अधिक शोभा लहे, जेम ओखद जाये रोग जगजीवना । साबुजले जेम वस्त्र उज्ज्वल होवे, तिम पाप टले गुरुयोग जगजीवना ॥१४॥ मनशुद्धे हो मेली मननो आंतरो, गुरुसाखे सुविचार जगजीवना । मालोतां हो उदयरत्न कहे आतमा, निर्मल होय निरधार जगजीवना ॥१५॥ ॥ इति उदयरत्नकृतं श्रीसीमंघरजिनआलोयणस्तवन ॥ - खामणां सज्झाय । (झुमखडानी देशी) पंचपरमेष्ठि ध्याईए रे गुण तेहना संभार करो भवि खामणां । सीस नामीने खामणा रे साधवी पण गुणधार करो भवि खामणां ॥१॥ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ मवस्मरणादिसङ्घहे जे गुणि जीवने ऊपरे रे कीधो जेह कषाय करो भवि खामणां । विनय करी तस भक्तिथी रे दोष सवि ते खमाय करो भवि खामणां ॥२॥ गुणद्वेषे मत्सर धर्यो रे आ भव परभव जेह करो भवि खामणां । पाय लागी त्रिविधे करी रे तास खमा तेह करो भवि खामणां ॥३॥ चोरासीलाख योनिमां रे वसीयो वार अनंत करो भवि खामणां । वैर विरोध कर्या तिहां रे खामुं ते थइ शांत करो भवि खामगां ॥४॥ सर्व जीव खमजो तुमे रे मारो जे अपराध करो भवि खामणां । मैत्री करुं सवि जीवसुं रे तरुं संसार अगाध करो भवि खामणां ॥५॥ क्रोध करी खामे नहीं रे नरक निगोद आवास करो भवि खामणां । चोखे चित्ते खामतां रे स्वर्ग मुक्तिमां वास करो भवि खामणां ॥६॥ जेह खमे खामे वली रे ते आराधक थाय करो भवि खामणां । जेह खमे नहीं खामतां रे आराधना तस जाय करो भवि खामणां ॥७॥ कूरगडू चउ तप करी रे खामतां केवलनाण करो भवि खामणां । चंदनबाला तिम वली रे मृगावती सुजाण करो भवि खामणां ॥८॥ चंडप्रद्योतने दीधलो रे राज्य लीधो जे तास करो भवि खामणां । पडिकमणुं उदायीए रे त्यार पछे कयु खास करो भवि खामणां ॥९॥ तेणे खमजो खमावजो रे चित्त करी निरमाय करो भवि खामणां । म करो कुंभारनी परे रे, वैर विरोध खमाय करो भवि खामणां ॥१०॥ समवसरणमां जिनवरे रे उत्तम पर्षदा मांय करो भवि खामणां । पद्मविजय कहे भाषीयो रे सहयो भवि उच्छाहि करो भवि खामणां ॥११॥ ॥ इति स्वामणां सज्वाय ॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चार शरणां। चार शरणां मुजने चार शरण हजो, अरिहंत सिद्ध सुसाधु जी। केवलीधर्म प्रकाशीयो, रत्न त्रण अमुलख लाधो जी ।।मु०॥१॥ चउगतितणां दुःख छेदवा, समर्थ शरणां एहो जी। पूर्वे मुनिवर जे हुआ, तेणे कीधां शरणां तेहो जी ।मु०॥२॥ संसारमाही जीवने, समरथ शरणां चारो जी। गणी समयसुंदर एम कहे, कल्याण मंगलकारो जी ।मु०॥३॥ लाख चोरासी जीव खमावीए, मन धरी परम विवेक जी। मिच्छामि दुकडं दोजीए, जिनवचने लहीए टेक जी ॥ला०॥१॥ सात लाख क्षुद्र गति तेउ वाउना, दश चौदे वनना भेदो जी । खट विगल सुर तिरी नारकी, चउ चउ चउदे भेदो नरना जी॥ला०॥२॥ जीवाजोनी ए जाणीने, सउसु मित्र संभावो जी। गणी समयसुंदर एम कहे, पामीये पुन्य प्रभावोजी ला०॥३॥ (३) पाप अढारे जीव परिहरो, अरिहंत-सिद्धनी साखे जी । आलोव्यां पाप छूटीओ, भगवंत एणी पेरे भाखे जो ॥पा०॥१॥ आश्रव कषाय दो य बंधना, वळी कलह अभ्याख्यान जी । रति अरति पैशुन निंदना, माया मोह मिथ्यात जी पा०॥२॥ मन वच कायाए जे का, मिच्छामि दुकडं तेहो जी । गणी समयसुंदर एम कहे, जैन धर्मनो मर्म एहो जी ॥पा०॥३ ___ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धन धन ते दिन मुज कदी होस्ये, हुं पामीश संजम सुद्धो जी। पूर्वऋषिपंथे चालशु, गुरु वचने प्रतिबुद्धो जी ॥धन०॥१॥ अंत पंत भिक्षा गोचरी, रणवणे काउस्सग्ग करशुं जी। समता शत्रु मित्र भावसुं, संवेग सूधो धरशुं जी ॥धन०॥२॥ संसारना संकट थकी, हुं छूटीश अवतारो जी। धन धन समयसुंदर ते घडी, तो हुँ पामीश भवनो पारो जी॥धन०॥३॥ पद्मावती आराधना। हवे राणी पद्मावती, जीवराशी खमावे । जाणपणुं जगते भलं, इण वेळा आवे ते मुज मिच्छामि दुक्कडं॥१॥ ते मुज मिच्छामि दुक्कडं, अरिहंतनी शाख । जे में जीव विराधीया, चउराशी लाख ते मुज०॥२॥ सात लाख पृथ्वीतणा, साते अपकाय । सात लाख तेउ कायना, साते वळी वाय ॥ते मुज०॥३॥ देश प्रत्येक वनस्पति, चउदह साधारण । बि त्रि चउरिंद्रि जीवना, बे बे लाख विचार ।।ते मुज०॥४॥ देवता तिर्यंच नारकी, चार चार प्रकाशी। चहुदह लाख मनुष्यना, ए लाख चोराशी ॥ते मुज०॥५॥ इण भव परभवे सेवीया, जे पाप अढार । त्रिविध त्रिविध करी परिहरं, दुर्गतिना दातार ॥ते मुज०॥६॥ हिंसा कीधी जीवनी, बोल्या मृषावाद । दोष अदत्तादानना, मैथुन उन्माद ॥ते मुज०॥७।। ___ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद्मावती आराधना। परिग्रह मेल्यो कारमो, कीधो क्रोध विशेष । मान माया लोभ में कीधां, वळी रागने द्वेष ॥ते मुज०॥८॥ कलह करी जीव दूहव्या, कीघां कूड कलंक। निंदा कीधी पारकी, रति अरति निःशंक ॥ते मुज०॥९॥ चाडी कीधी चोतरे, कीधो थापण मोसो। कुगुरु कुदेव कुधर्मनो, भलो आण्यो भरोसो ॥ते मुज खाटकीने भवे में कीया, जीव नाना विध घात । चीडीमारभवे चरकलां, मायाँ दिन रात ते मुज०॥११॥ काजी मुल्लांने भवे, पढी मंत्र कठोर । जीव अनेक जम्भे कीया, कीधां पाप अघोर ॥ते मुज०॥१२॥ माछीने भवे माछलां, झाल्यां जळ वास । धीवर भील कोळी भवे, मृग पाड्या पास ॥ते मुज०॥१३॥ कोटवाळने भवे में कीया, आकरा कर दंड । बंदीवान मरावीया, कोरडा छडी दंड ॥ते मुज०॥१४॥ परमाधामीने भवे, कीधां नारकी दुःख । छेदन भेदन वेदना, ताडन अति तिक्ख ॥ते मुज०॥१५॥ कुंभारने भवे में कीया, नीमाह पचाव्या ।। तेलीभवे तिल पीलीया, पापे पिंड भराव्या ते मुज०॥१६॥ हालीभवे हळ खेडीयां, फाड्यां पृथ्वीनां पेट । सुड निंदण घणां कीधां, दीघां बळद चपेट ॥ते मुज०॥१७॥ माळीने भवे रोपीयां, नानाविध वृक्ष । मूळ पत्र फल फूलना, लाग्यां पाप ते लक्ष ॥ते मुज०॥१८॥ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्क अधोवाइआने भवे, भर्या अधिक भार । पोठी पुंठे कीडा पड्या, दया नाणी लगार ते मुज०॥१९॥ छीपाने भवे छेतर्या, कीधा रंगण पास। . अमि आरंभ कीधा घणा, धातुर्वाद अभ्यास ते मुज०॥२०॥ शूरपणे रण जूझतां, मार्या माणसवृंद । मदिरामांस माखण भख्यां, खाधां मूळ ने कंद ॥ते मुज०॥२१॥ खाण खणावी धातुनो, पाणी ऊलेच्यां । आरंभ कीधा अति घणा, पोते पाप ज संच्या ॥ते मुज०॥२२॥ कर्म अंगार कीया वळी, घरमें दव दीधा । सम स्वाधा वीतरागना, कुडा कोस ज कीधा ॥ते मुज०॥२३॥ बिल्लीभवे उंदर लीया, गीरोली हत्यारी । मूद गमार तणे भवे, में जू लीख मारी ॥ते मुज०॥२४॥ भाडमुंजा तणे भवे, एकेंद्रिय जीव । ज्वारी चणा गहुं शेकीया, पाडता रीव ॥ते मुज०॥२५॥ खांडण पीसण गारना, आरंभ अनेक । रांधण इंधण अमिनां, कीयां पाप उदेक ॥ते मुज०॥२६॥ विकथा चार कीधी वळी, सेव्या पांच प्रमाद । इष्ट वियोग पाड्या कीया, रुदन विषवाद ।।ते मुज०॥२७॥ साधु अने श्रावकतणां, वृत लहीने भांग्यां । मूळ अने उत्तर तणां, मुज दूषण लाग्यां ॥ते मुज०॥२८॥ साप वींछी सिंह चीबरा, शकरा ने समळी । हिंसक जीव तमे भवे, हिंसा कीधी सबळी ते मुज०॥२९॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण्यप्रकारानु स्तवन । सुवावढी दूषण पणां, वळी गर्भ गळाव्या । जीवाणी पोळ्यां घणां, शीळ व्रत भंजाव्यां ॥ते मुज०॥३०॥ भव अनंत भमतां थकां, कीधा देह संबंध । विविध त्रिविध करी वोसीरं, तीणशुं प्रतिबंध ।।ते मुज०॥३१॥ भव अनंत भमतां थकां, कीधां परिग्रह संबंध । त्रिविध त्रिविध करी वोसीरु, तीणशुं प्रतिबंध ॥ते मुज०॥३२॥ भव अनंत भमतां थकां, कीयां कुटुंब संबंध । विविध त्रिविध करी वोसीरं, तीणशुं प्रतिबंध ॥ते मुज०॥३३॥ इणि परे इह भब परभवे, कीयां पाप अखत्र । त्रिविध त्रिविध करी वोसीरु, करुं जन्म पवित्र ॥ले मुज०॥३४॥ एणि विधे ए आराधना, भवि करशे छेह । समयसुंदर कहे पापथी, वळी छूटशे तेह ॥ते मुज०॥३५॥ राग वेराडी जे सुणे, एह त्रीजी ढाल । समयसुंदर कहे पापथी, छूटे तत्काळ |ते मुज०॥३६॥ पुण्यप्रकाशनुं स्तवन । (दोहा) सकळ सिद्धिदायक सदा, चोवीसे जिनराय । सद्गुरु स्वामिनी सरसती, प्रेमे प्रणमुं पाथ ॥१॥ त्रिभुवनपति त्रिसला तणो, नंदन गुणगंभीर । शासन नायक जग जयो, वर्धमान बडवीर ।।२।। एक दिन वीर जिर्णदने, चरणे करी प्रणाम । भाषिक जीवना हित भणी, पूछे गौतम स्वाम ॥३॥ ___ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ नवस्मरणादिसलहे मुक्ति मारग आराधीए, कहो किण परे अरिहंत । सुधासरस तव वचन रस, भाखे श्री भगवंत ॥४॥ १ अतिचार आलोइए, २ व्रत धरीए गुरुशाख । ३ जीव खमावो सयल जे, योनि चोराशी लाख ॥५॥ ४ विधिशुं वळी वोसराविए, पापस्थानक अढार । ५ चार शरण नित्य अनुसरो, ६ निंदो दुरित आचार ॥६॥ ७ शुभकरणी अनुमोदिए, ८ भाव भलो मन आण । ९ अणसण अवसर आदरी, १० नवपद जपो सुजाण ॥७॥ शुभ गति आराधन तणा, ए छे दस अधिकार । चित्त आणिने आदरो, जेम पामो भव पार ॥८॥ ढाल १ ली (कुमतीए छेडी कीहां राखी-ए देशी) ज्ञान दरिसण चारित्र तप वीरज, ए पांचे आचार । एह तणा एह भव परभवना, आलोइए अतिचार रे प्राणी ज्ञान भणो गुणखाणी । वीरवदे एम वाणी रे प्राणी ज्ञान भणो गुणखाणी॥१॥ (ए आंकणी) गुरु ओळवीए नहीं गुरु विनय, काळे धरी बहु मान । सूत्र अरथ तदुभय करी सुधां, भणिए वही उपधान रे ॥ प्रा० ज्ञा० ॥२॥ ज्ञानोपगरण पाटी पोथी, ठवणी नोकारवाली । तेह तणी कीधी आशातना, ज्ञानभक्ति न संभाली रे । प्रा० ज्ञा० ॥३॥ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण्यप्रकाशनुं स्तवन । इत्यादिक विपरीतपणाथी, ज्ञान विराध्यु जेह । आ भव परभव वळी रे भवोभव, मिच्छामि दुक्कडं तेह रे ।। प्राणी समकित ल्यो शुद्ध जाणी ॥४॥ वीर वदे एम वाणी रे प्राणी समकित ल्यो शुद्ध जाणी ।। जिनवचने शंका नवि कीजे, नवि परमत अभिलाख । साधु तणी निंदा परिहरजो, फल संदेह म राख रे ।। प्रा० स० ॥५॥ मूढपणुं छंडो परशंसा, गुणवंतने आदरिए । साहमिने धर्मे करी थिरता, भक्ति प्रभावना करिए रे ।। प्रा० स० ॥६॥ संघ चैत्य प्रासाद तणो जे, अवर्णवाद मन लेख्यो। द्रव्य देवको जे विणसाड्यो, विणसंतो ऊवेख्यो रे ॥ प्रा० स० ॥७॥ इत्यादिक विपरीतपणाथी, समकित खंडचु जेह । आ भव परभव वळी रे भवोभव, मिच्छा मि दुक्कडं तेह रे ॥ प्राणी चारित्र ल्यो चित्त आणी ॥८॥ वीर वदे एम वाणी रे प्राणी चारित्र ल्यो चित आणी ॥ पंच समिति त्रण गुप्ति विराधी, आठे प्रवचन माय । साधु तणे धरमे परमादे, अशुद्ध वचन मन काय रे ।। प्रा० चा० ॥९॥ श्रावकने धर्मे सामायिक, पोसहमां मन वाळी। जे जयणापूर्वक ए आठे, प्रवचन माय न पाळी रे ॥ प्रा० चा० ॥१०॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसाहे इत्यादिक विपरीतपणाथी, चारित्र डोहोळ्यु जेह । आ भव परभव वळी रेभवोभव, मिच्छा मि दुक्कडं तेह रे ।। प्रा० चा० ॥११॥ बारे भेदे तप नवि कीधो, छते जोगे निज शकते । धर्मे मन वच काया वीरज, नवि फोरविउं भगते रे ॥ प्रा० चा० ॥१२॥ तप वीरज आचार एणी परे, विविध विराध्या जेह । आ भव परभव वळी रे भवोभव, मिच्छा मि दुक्कडं तेह रे ॥ प्रा० चा० ॥१३॥ वळी य विशेषे चारित्र केरा, अतिचार आलोइए। वीरजिणेसरवयण सुणीने, पाप मेला सवि धोइए रे ।। प्रा० चा० ॥१४॥ ढाल २ जी (पामी सुगुरु पसाय. ए देशी) पृथ्वी पाणी तेउ, वायु वनस्पती; ए पांचे थावर कह्यां ए ॥१॥ करी करसण आरंभ, खेत्र जे खेडीयां; कुवा तळाव खणावीयां ए ॥२॥ घर आरंभ अनेक, टांकां भोयरां; मेडी माळ चणावीआं ए ॥३॥ लींपण गुंपण काज, एणी परे परे परे; पृथ्वीकाय विराधीया ए॥४॥ धोयण नाहण पाणी, झीलण अपकाय, छोति धोति करी दूहन्या ए ॥५॥ भाठीगर कुंभार, लोह सुवनगरा; भाडभुंजा लीहालागरा ए ॥६॥ तापण शेकण काज, वस्त्र निखारण; रंगण रांधण रसवती ए ॥७॥ एणी परे कर्मादान, परे परे केलवी; तेउ वायु विराधीया ए ॥८॥ वाडी वन आराम, वावी वनस्पती; पान फूल फळ चुंटीयां ए॥९॥ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण्यप्रकाशनुं स्तवन । १९५ पोहोंक पापडी शाक, सेक्यां सूकव्यां; छेद्यां छुद्यां आथीयां ए॥१०॥ अळशीने एरंडा, घाणी घालीने, घणा तिलादिक पीलीया ए ॥११॥ घाली कोल माहे, पीली सेलडी; कंदमूल फल वेचीयां ए ॥१२॥ एम एकेंद्री जीव, हण्या हणावीया; हणतां जे अनुमोदिया ए ॥१३॥ आ भव परभव जेह, वळी य भवोभवे; ते मुज मिच्छा मि दुकडं ए॥१४॥ कृमि चरमीया कीडा, गाडर गंडोला; इअळ पुरा ने अलसीयां ए ॥१५॥ वाळा जळो चुडेल, विचलित रस तणा; वळी अथाणां प्रमुखनां ए ॥१६॥ एम बेइंद्री जीव, जेह में दूहव्या; ते मुज मिच्छा मि दुक्कडं ए ॥१७॥ उधेही जू लीख, मांकड मंकोडा; चांचड कीडो कुंथुआ ए ॥१८॥ गद्दहिआं घीमेल, कानखजूरीआ, गीगोडा धनेरीयां ए ॥१९॥ एम तेइंद्री जीव, जेह में दूहव्या; ते मुज मिच्छा मि दुक्कडं ए ॥२०॥ माखी मच्छर डांस, मसा पतंगीया; कंसारी कोलियावडा ए ।।२१॥ ढींकण वींछु तीड, भमरा भमरोयो; कोतांबग खडमांकडी ए ॥२२॥ एम चउरिंद्री जीव, जेह में दूहव्या; ते मुज मिच्छा मि दुक्कडं ए॥२३॥ जळमां नांखी जाळ, जळचर दूहन्या; वनमां मृग संतापीया ए ॥२४॥ पीड्या पंखी जीव, पाडी पासमां; पोपट घाल्या पांजरे ए ॥२५॥ एम पंचेंद्री जीव, जे में दूहन्या; ते मुज मिच्छा मि दुकडं ए ॥२६॥ ढाल ३ जी (वाणी वाणी हितकारीजी. ए देशी) क्रोध लोभ भय हास्यथी जी, बोल्यां वचन असत्य । कूड करी धन पारकां जी, लीघां जेह अदत्त रे जिनजी मिच्छा मि दुकडं आज। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसडहे तुम साखे महाराज रे जिनजी, देई सारं कान रे जिनजी मिच्छा मि दुक्कडं आज । ए आंकणी ॥१॥ देव मनुष्य तियंचनां जी, मैथुन सेव्यां जेह । विषयारस लंपटपणे जी, घj विडंब्यो देह रे जिनजी० ॥२॥ परिग्रहनी ममता करी जी, भवे भवे मेली आथ । जे जिहां ते तिहां रह्यु जी, कोई न आवे साथ रे जिनजी० ॥३॥ रयणीभोजन जे कयाँ जी, कीयां भक्ष अभक्ष । . रसनारसनी लालचे जी, पाप कयों प्रत्यक्ष रे जिनजी० ॥४॥ वत लेई वीसारीयां जी, वळी भाग्यां पञ्चखाण । कपट हेतु किरिया करी जी,कीधां आप वखाण रे जिनजी० ॥५॥ त्रण ढाळे आठे दुहे जी, आलोया अतिचार । शिवगतिआराधन तणो जी, ए पहेलो अधिकार रे जिनजी मिच्छा मि दुकडं आज ॥६॥ हाल ४ थी (साहेलडीनी देशी) पंच महाव्रत आदरो साहेलडी रे, अथवा ल्यो व्रत बार तो। यथाशक्ति व्रत आदरी साहेलडी रे, पाळो निरतिचार तो ॥१॥ व्रत लीधां संभारीए सा०, हैडे धरीए विचार तो। शिवगतिआराधन तणो सा०, ए बीजो अधिकार तो ॥२॥ जीव सवी खमावीए सा०, योनि चोराशी लाख तो। मन शुद्ध करि खामणां सा०, कोइशु रोष न राख तो ॥३॥ सर्व मित्र करि चितवो सा०, कोई न जाणो शत्रु तो। राग द्वेष एम परिहरो सा०, कीजे जन्म पवित्र तो ॥४॥ ___ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण्यप्रकारानुं स्तवन । स्वामि संघ खमाविए सा०, जे उपनी अप्रीत तो। सज्जन कुटुंब करि खामणां सा०, ए जिनशासनरीत तो ॥५॥ खमिए ने खमाविए सा०, एह ज धर्मनो सार तो । शिवगतिआराधन तणो सा०, ए त्रीजो अधिकार तो ॥६॥ मृषावाद हिंसा चोरी सा०, धनमूर्छा मैथुन तो। क्रोध मान माया तृष्णा सा०, प्रेम द्वेष पैशुन्य तो ॥७॥ निंदा कलह न कीजिए सा०, कूडां न दीजे आळ तो। रति अरति मिथ्या तजो सा०, माया मोह जंजाळ तो ॥८॥ त्रिविध त्रिविध वोसराविए सा०, पापस्थान अढार तो । शिवगतिआराधन तणो सा०, ए चोथो अधिकार तो ॥९॥ ढाल ५ मी (हवे निसुणो इहां आवीया. ए देशी) जनम जरा मरणे करी ए, आ संसार असार तो। कर्या कर्म सहु अनुभवे ए, कोइ न राखणहार तो ॥१॥ शरण एक अरिहंतन ए, शरण सिद्ध भगवंत तो । शरण धर्म श्री जैननो ए, साधु शरण गुणवंत तो ॥२॥ अवर मोह सवि परिहरी ए, चार शरण चित्त धार तो। शिवगति आराधन तणो ए, ए पांचमो अधिकार तो ॥३॥ आ भव परभव जे कयों ए, पाप कर्म केइ लाख तो । आतमसाखे ते निदिए ए, पडिकमिए गुरुसाख तो ॥४॥ मिथ्यामति वाविया ए, जे भाख्यां उत्सूत्र तो।। कुमति कदाग्रहने वशे ए, जे उत्थाप्यां सूत्र तो ॥५॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्घहे घड्यां घडाव्यां हे घणां ए, घरटी हळ हथिआर तो। भव भव मेली मूकियां ए, करतां जीवसंहार तो ॥६॥ पाप करीने पोषिया ए, जनम जनम परिवार तो। जनमांतर पोहोत्या पछी ए, कोणे न कीधी सार तो ॥७॥ आ भव परभव जे कर्यां ए, एम अधिकरण अनेक तो। त्रिविध त्रिविध वोसराविए ए, आणि हृदय विवेक तो ॥८॥ दुष्कृत निंदा एम करी ए, पाप करो परिहार तो। शिवगतिआराधन तगो ए, ए छट्ठो अधिकार तो॥९॥ ढाल ६ डी (आधे तुं जोयने जीवडा. ए देशी.) धन धन ते दिन माहरो, जीहां कीधो धर्म । दान शीयळ तप भावना, टाळ्यां दुष्कृत कर्म । धन० ॥२॥ शेर्बुजा दि क तीर्थ नी, जे कीधी जात्र । जुगते जिनवर पूजीया, वळी पोष्यां पात्र ।। धन ॥२॥ पुस्तक ज्ञान लखावीयां, जिणहर जिनचैत्य । संघ चतुर्विध साचव्या, ए साते खेत्र ॥ धन० ॥३॥ पडिक्कमणां सुपरे कयाँ, अनुकंपा दान । साधु सूरि उवझायने, दीघां बहु मान ॥ धन० ॥४॥ धर्म काज अनुमोदिए, एम वारोवार । शिवगति आराधन तणो, ए सातमो अधिकार ॥ धन० ॥५॥ भाव भलो मन आणीए, चित्त आणी ठाम । समताभावे भाविए, ए आतमराम ।। धन० ॥६॥ ___ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण्यप्रकाशनुं स्तवन । सुख दुःख कारण जीवने, कोइ अवर न होय । कर्म आप जे आचर्या, भोगबीए सोय || धन० ॥७॥ समता विण जे अनुसरे प्राणी पुण्यनुं काम । छार ऊपर ते लींपणुं, झांखर चित्राम ॥ धन० ॥८॥ भाव भली परे भावीए, ए धर्मनो सार । शिवगति आराधन तणो, ए आठमो अधिकार || धन० ||९|| दाल ७ मी ( रैवतगिरि हुआ, प्रभुना त्रण कल्याण. ए देशी. ) हवे अवसर जाणी, करी अणसण आदरिये, पञ्चखी ललुता सवि मूकी छांडी खेले, ए आतम गति चारे कीधा, आहार अनंत निशंक; पण तृप्ति न पाम्यो, जीव लालचिओ रंक | दुल्हो ए वळी वळी, अणसणनो परिणाम; एहथी पामीजे, शिवपद सुरपद ठाम ॥२॥ धन धना शालिभद्र, खंधो मेघकुमार; अणसण आराधी, पाम्या भवनो पार । शिवमंदिर जाशे, करी एक अवतार; आराधन केरो, केरो, ए. नवमो अधिकार ॥३॥ दशमे श्रधिकारे, महामंत्र मनथी नवि मूको, शिवसुखफलसहकार । नवकार; संलेखण सार; चारे आहार । ममता अंग; समताज्ञानतरंग ॥१॥ १९९ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૦ एह जपतां दुर्गतिदोषविकार; नवस्मरणादिसङ्ग्रहे जाये, सुपरे ए समरो, चौदपुरनो सार ॥४॥ जनमांतर जातां, जो पामे नवकार; तो पातिक गाळी, पामे सुरअवतार । ए नवपद सरिखो, मंत्र न कोई सार; इहभव ने परभवे, सुख संपत्ति दातार ||५|| ज्युं भील भीलडी, राजा राणी थाय; राजसिंह नवपद महिमाथी, राणी रतनवती बेहु, पाम्यां छे शिववधू वर एक भव पछी लेशे, श्रीमतीने ए वली, महाराय । सुरभोग; मंत्र फल्यो तत्काल; प्रगट थई फुलमाळ । फणिधर फीटीने, शिवकुमरे जोगी, सोबनपुरिसो कीध; 1 एम एणे मंत्रे, काज घणांनां सिद्ध ||७|| ए दश अधिकारे, वीर जिणेसर भाख्यो; आराधन केरो विधि, जेणे चित्त मांहि राख्यो । तेणे पाप पखाळी, भवभय दूरे नांख्यो; जिनविनय करंतां, सुमति अमृतरस चाख्यो || ८ || ढाल ८ मो ( नमो भवि भावशुं ए देशी . ) सिद्धारथरायकुळतिलो ए, त्रिसला मात अवनितले तमे अवतर्या ए करवा संजोग ||६॥ 1 माल्हार अम उपकार जयो जिन वीरजी ए ॥१॥ तो 1 Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण्यप्रकाशन स्तवन २०१ में अपराध घणा कर्या ए, कहेतां न लहुं पार तो।। तुम चरणे आव्या भणी ए, जो तारे तो तार जयो० ॥२॥ आश करीने आवीयो ए, तुम चरणे महाराज तो। आव्याने ऊवेखशो ए, तो केम रहेशे लाज जयो० ॥३॥ करम अल्लूजण आकरां ए, जन्म मरण जंजाल तो।। हुँ छु एहथी ऊभगो ए, छोडव देव दयाल जयो० ॥४॥ आज मनोरथ मुज फळ्या ए, नाठां दुःखदंदोल तो । तूठो जिन चोवीसमो ए, प्रगट्या पुण्यकल्लोल जयो० ॥५॥ भवे भवे विनय तुमारडो ए, भाव भक्ति तुम पाय तो।। देव दया करि दीजिए ए, बोधिबीज सुपसाय जयो० ॥६॥ कलश इह तरण तारण सुगतिकारण, दुखनिवारण जग जयो । श्रीवीरजिनवर चरण थुणतां, अधिक मन उल्लट थयो ॥२॥ श्रीविजयदेवसुरिंदपटधर, तिरथ जंगम एणि जगे। तपगच्छपति श्रीविजयप्रभसूरि, सूरितेजे झगमगे ॥२॥ श्रीहीरविजयसूरिशिष्य वाचक, कीर्तिविजय सुरगुरुसमो। तस शिष्य वाचक विनयविजये, थुण्यो जिन चोवीसमो ॥३॥ सय सतर संवत ओगणत्रीशे, रही रांदेर चोमास ए। विजयदशमी विजयकारण, कियो गुणअभ्यास ए ॥४॥ नरभव आराधन सिद्धिसाधन, सुकृत लील विलास ए। निर्जराहेते स्तवन रचियु, नामे पुन्यप्रकाश ए ॥५॥ पुन्यप्रकाशनुं स्तवन संपूर्ण ॥ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे श्री गौतमस्वामिनो रास । ( भाषा) वीरजिणेसर चरणकमलकमलाकयवासो, पणमवि पभणिशुं सामिसाल गोयमगुरुरासो । मण तणु वयण एकंत करवि निसुणो भो भविया, जिम निवसे तुम देहगेह गुणगणगहगहिया ॥१॥ जंबूदीव सिरिभरहखित्त खोगीतलमंडण, मगध देस सेणिय नरेस रिउदलबलखंडण । धणवर गुब्बर गाम नाम जिहां गुणगणसज्जा, विप्प वसे वसुभूइ तत्थ जसु पुहवी भज्जा ॥ २॥ ताण पुत्त सिरि इंदभूइ भूवलय पसिद्धो, उदह विना विविहरूव नारी रस विद्धो (लुद्रो) । विनय विवेक विचार सार गुणगणह मनोहर, सात हाथ सुप्रमाण देह रूपे रंभावर || ३ || नयण वयण कर चरण जिणवि पंकज जळे पाडिय, तेजे तारा चंद सूर आकाश भमाडिय । रूवे मय अनंग करवि मेल्हिओ निरघाडिय, धीरम मेरु गंभीर सिंधु चंगमचयचाडिय ||४|| पेखवि निरुवम रूव जास जण जंपे किंचिय, एकाकी कलि भीत इत्थ गुण मेहल्या संचिय | अहवा निश्चय पुव्वजम्म जिणवर इणे अंचिय, रंभा पउमा गोरी गंग रति हा ! विधि वंचिय ॥ ५ ॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगौतमस्वामिनो रास। २०३ नवि बुध नवि गुरु कवि न कोइ जसु आगळ रहियो, पंचसया गुणपात्र छात्र हीडे परवरियो । करे निरंतर यज्ञकर्म मिथ्यामति मोहिय, इण छळ होशे चरण नाण दंसणह विसोहिय ॥६॥ (वस्तु छंद) जंबूदीवह जंबूदीवह, भरहवासंमि, खोणीतलमंडन मगधदेस सेणिय नरेसर, वर गुब्बर गाम तिहां, विप्प वसे वसुभुइ सुंदर । तसु भजा पुहवि सयल, गुणगणरूवनिहाण । ताण पुत्त विजानिलओ, गोयम अतिहि सुजाण ||७|| (भाषा) चरम जिणेसर केवलनाणी, चउविह संघ पइट्ठा जाणी। पावापुरी स्वामी संपत्तो, चउविह देवनिकाये जुत्तो ॥८॥ देव समवसरण तिहां कीजे, जिण दीठे मिथ्यामति खीजे । त्रिभुवनगुरु सिंहासण बइठ्ठा, ततखिण मोह दिगंते पइट्टा ॥९॥ क्रोध मान माया मद पूरा, जाये नाठा जिम दिन चोरा । देवदुंदुहि आकाशे वाजे, धर्म नरेसर आव्या गाजे ॥१०॥ कुसुम वृष्टि विरचे तिहां देवा, चोसठ इंद्र जसु मागे सेवा । चामर छत्र शिरोवरि सोहे, रूपहि जिणवर जग सहु मोहे ॥११॥ उवसमरसभरभरी वरसंता, जोजन वाणी वखाण करता। बाणवि वर्धमान जिण पाया, सुर नर किन्नर आवे राया ॥१२॥ कांतिसमूहे झलझलकंता, गयण विमाणे रणरणकंता । पेखवि इंदभूइ मन चिंते, सुर आवे अम्ह यज्ञ होते ॥१३॥ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे तौर तरंडक जिम ते वहता, समवसरण पुहता गहगहता। तो अभिमाने गोयम जपे, इणि अवसरे कोपे तणु कंपे ॥१४॥ मूढ लोक अजाणियुं बोले, सुर जाणंता इम कांड डोले । भू आगळ को जाण भणीजे, मेरु अवर किम उपमा दीजे ॥१५॥ (वस्तु छंद ) वीर जिणवर वीर जिणवर, नाणसंपन्न, पावापुरी सुरमहिय, पत्त नाह संसार तारण, तहिं देवेहिं निम्मविय, समवसरण बहुसुखकारण । जिणवर जगउज्जोयकर, तेजे करि दिनकार । सिंहासणे सामिय ठव्यो, हुओ सुजयजयकार ॥१६॥ तो चढियो घण मानगजे, इंदभूइ भूदेव तो, हुंकारो करि संचरीयो, कवण सु जिणवर देव तो । जोजन भूमि समोसरण, पेखवी प्रथमारंभ तो, दह दिसि देखे विबुधवधू, आवंती सुररंभ तो ॥१७॥ मणिमय तोरण दंड धजा, कोसीसे नव घाट तो, वैरविवर्जित जंतुगण, प्रातिहारज आठ तो। सुरनर किन्नर असुरवर, इंद्र इंद्राणी राय तो, चित्ते चमक्किय चिंतवे ए, सेवंता प्रभु पाय तो॥१८॥ सहसकिरण सम वीरजिण, पेखवी रूप विसाळ तो, एह असंभव संभवे ए, साचो ए इंद्रजाळ तो। तो बोलावे त्रिजगगुरु, इंदभूइ नामेण तो, श्रीमुख संशय सामि सवे, फेडे वेदपएण तो ॥१९॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगौतमस्वामिनो रास । मान म्हेली मद ठेली करी, भगते नामे सीस तो, पंचसयासुं व्रत लीयो ए, गोयम पहेलो सीस तो। बंधव संजम सुणवि करी, अगनिभूइ आवेइ तो, नाम लेइ आभास करे, ते पण प्रतिबोधेइ तो ॥२०॥ इणि अनुक्रमे गणहर रयण, थाप्या वीर अग्यार तो, तो उपदेशे भुवनगुरु, संजमशुं व्रत बार तो। बिहुं उपवासे पारणुं ए, आपणपे विहरंत तो, गोयम संजम जग सयल, जयजयकार करंत तो ॥२१॥ (वस्तु छंद) इंदभूई इंदभूई, चढीय बहुमान, हुंकारो करी संचरीयो, समवसरण पुहतो तुरंत, अह संसा सामी सवे, चरम नाह फेडे फुरंत । बोधिबीज संजाय मने, गोयम भवह विरत्त । दिक्ख लेइ सिक्खा सहिय, गणहर पय संपत्त ॥२२॥ (भाषा) आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिम पुण्य भरो, दीठा गोयमसामी, जो नियनयणे अमियभरो । सिरि गोयम गणहार, पंच सया मुनि परिवरिय, भूमिय करीय विहार, भवियण जण पडिबोह करे । समवसरण मझार, जे जे संसा उपजे ए, ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनिपवरो ॥२३॥ ___ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ नवस्मरणादिसङ्ग्रहे जिहां जिहां दीजे दिक्ख, तिहां तिहां केवल उपजे ए, आप कन्हे अणहुंत, गोयम दीजे दान इम । गुरु उपर गुरुभत्ति, सामिय गोयम उपनीय, इण छळ केवळ नाण, राग ज राखे रंग भरे ॥२४॥ जो अष्टापद शैल, वंदे चढी चउवीस जिण, आतमलब्धिवसेण चरमसरीरी सोइ मुनि । इअ देसण निसुणेवि, गोयम गणहर संचलियो, तापस पनरसएण, तो मुनि दीठो आवतो ए ॥२५॥ तवसोसिअ निय अंग, अम्ह शक्ति नवि उपजे ए, किम चढशे दृढकाय, गज जिम दीसे गाजतो ए। गिरुए एणे अभिमान, तापस जां मन चिंतवे ए, तां मुनि चढियो वेग, आलंबवि दिनकरकिरण ॥२६॥ कंचण मणि निष्फन दंड, कलस धजवड सहिय, पेखवि परमाणंद, जिणहर भरहेसरविहिय । निय निय काय प्रमाण, चउदिसि संठिय जिणह बिंब, पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिय ॥२७॥ वयरसामिनो जीव, तिर्यग्जंभक देव तिहां, प्रतिबोधे पुंडरीक-कंडरीक अध्ययन भणी। वळता गोयमसामी, सवि तापस प्रतिबोध करे, लेइ आपणे साथ, चाले जेम यूथाधिपति ॥२८॥ खीर खांड घृत आणी, अमिअवूठ अंगुठ ठवे, गोयम एकण पात्र, करावे पारणुं सवे । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगौतमस्वामिनो रास । पंचसया शुभ भाव, उज्ज्वळ भरियो खीर मिसे, साचा गुरु संजोग, कवळ ते केवळ रूप हुआ ॥२९॥ पंचसया जिणनाह, समवसरण प्राकार त्रय, पेखवि केवळनाण, उपन्नो उज्जोयकर । जाणे जिणवि पीयूष गाजंती घण मेघ जिम, जिणवाणी निसुणेइ, नाणी हुआ पंच सया ॥३०॥ (वस्तु छंद) इणे अनुक्रमे इणे अनुक्रमे, नाणसंपन्न, पन्नरह सय परवरिय, हरिय दुरिय जिणनाह वंदइ, जाणवि जगगुरु वयण, तिह नाण अप्पाण निदइ। चरम जिणेसर इम भणइ, गोयम म करीस खेउ । छेही जइ आपण सही, होसुं तुल्ला बेउ ॥३१॥ (भाषा) सामीओ ए वीरजिणंद, पूनिम चंद जिम उल्लसिअ, विहरिओ ए भरहवासंमि, वरिस बहोतेर संवसिअ । ठवतो ए कणय पउमेसु, पाय कमळ संघहि सहिम, आवीओ ए नयणाणंद, नयर पावापुरी सुरमहिय ॥३२॥ पेखियो ए गोयम सामी, देवशर्मा प्रतिबोध करे, आपणो ए त्रिशलादेवी-नंदन पहोतो परमपए । वळतां ए देव आकास, पेखवि जाणीय जिण समे ए, तो मुनि ए मन विखवाद, नादभेद जिम उपनो ए ॥३३॥ कुण समे ए सामिय देखी, आप कन्हें हुं टालिओ ए, जाणतो ए तिहुअणनाह, लोकविवहार न पालिओ ए। Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवस्मरणादिसङ्कहे अति भलु ए कीधलं सामी, जाणिउं केवळ मागशे ए, चिंतविउं ए बाळक जिम, अहवा केहे लागशे ए ॥३४॥ हुं किम ए वीरजिणंद, भगते भोळो भोळव्यो ए, आपणो ए अविहड नेह, नाह न संपे साचल्यो ए। साचो ए तुही वीतराग, नेह न जेने लालिओ ए, इण समे ए गोयम चित्त, राग वैरागे वाळिओ ए ॥३५॥ आवतुं ए जे उलट्ट, रहेतुं रागे साहिउं ए, केवळु ए नाण उप्पन्न, गोयम सहेजे उम्माहिओ ए । तिहुअण ए जय जयकार, केवळमहिमा सुर करे ए, गणहर ए करिय वखाण, भवियण भव जिम निस्तरे ए ॥३६॥ (वस्तु छंद) पढम गणहर पढम गणहर, वरस पचास, गिहिवासे संवसिय, तीस वरिस संजम विभूसिय, सिरि केवळनाण पुण, बार वरिस तिहुयण नमंसिअ । रायगिहि नयरीहिं ठविभ, बाणु वय वरिसाओ । सामी गोयम गुणनिलो, होशे शिवपुर ठाओ ॥३७॥ (भाषा) जिम सहकारे कोयल टहुके, जिम कुसुमह वने परिमल महके, जिम चंदन सुगंध निधि । जिम गंगाजळ लहेरे लहके, जिम कणयाचल तेजे झळके, तिम गोयम सौभाग्यनिधि ॥३८॥ जिम मानससर निवसे हंसा, जिम सुरवरसिरि कणयवतंसा, जिम महुयर राजीववने । Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगौतमस्वामिनो रास । बम रयणायर रयणे विलसे, जिम अंबर तारागण विकस, तिम गोयम गुणकेलिवने ||३९|| यूनिभनिसि जिम ससहर सोहे, सुरतरुमहिमा जिम जग मोहे, पूरव दिसि जिम सहसकरो । पंचानन जिम गिरिवर राजे, नरवइघर जिम मयगल गाजे, तिम जिनशासन मुनिपवरो ॥४०॥ जिम सुरतरुवर सोहे शाखा, जिम उत्तम मुख मधुरी भाषा, जिम वन केतकी महमहे ए । जिम भूमिपति भुयबल चमके, जिम जिनमंदिर घंटा रणके, तिम गोयम लब्धे गहगहे ए ॥ ४१ ॥ चितामणि कर चढियो आज, सुरतरु सारे वंछित काज, कामकुंभ सविवश हुओ ए । कामगवी पूरे मन कामिय, अष्ट महासिद्धि आवे धामि य, सामिय गोयम अणुसरो ए ॥ ४२ ॥ पणवक्खर पहेलो पभणीजे, मायाबीज श्रवण निसुणीजे, श्रीमती शोभा संभवे ए । देवह धुरि अरिहंत नमीजे, विनयप्पह उवज्झाय धुणीजे, इण मंत्रे गोयम नमो ए ॥४३॥ पुर पुर वसतां कांइ करीजे, देश देशांतर कांइ भमीजे, कवण काज आयास करो । ग्रह ऊठी गोयम समरीजे, काज समग्गह ततखण सीझे, नव निधि विलसे तास घरे ॥ ४४ ॥ १४ २० Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० नवस्मरणादिसङ्ग्रहे चउदह सय बारोत्तर वरसे, गोयम गणहर केवळ दिवसे, किउं कवित्त उपगार परो । भादिहि मंगल एह भगीजे, परम महोच्छव पहिलो लीजे, ऋद्धि वृद्धि कल्याण करो ||४५ ॥ धन्य माता जिणे उदरे धरिया, धन्य पिता जिण कुल अवतरिया, धन्य सहगुरु जिणे दिक्खिया ए । विनयवंत विद्याभंडार, जस गुण कोइ न लब्भे पार, विद्यावंत गुरु वीनवे ए ॥ ४६ ॥ गौतमस्वामितणो ए रास, भणतां सुणतां लीलविलास, सासय सुखनिधि संपजे ए । गौतम स्वामिनो रास भणीजे, चउविह संघ रलियायत कीजे, ऋद्धि वृद्धि कल्याण करो || ४७ ॥ क्षेमवर्धनकृत मंगलपचीशी । चोपाई सरसती माता सारज करो, अमृत वचन मुझ हिडे धरो । पंच परमेष्ठिने करो प्रणाम, वळि संभारो सहगुरुनाम ॥ १॥ मंगलिक चार कह्यां जिनराय, तस समरण कीजे चित्त लाय । अतीत अनागत ने वर्तमान, बहोतेर जिननुं घरजो ध्यान ||२|| विहरमान विचरे जिन वीरा, तस नामे सवि फळे जगीस । शाश्वता जिन समरो चार, सरवाळे छन्नुं निरधार ॥३॥ ए जिनवर गुणग्राम, प्रभात समे नित्य लीजे नाम । वे बीजो मंगलिक ए सार, पुंडरीक आदे गणधार || ४ || Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षेमवर्धनकृत मंगलपचीशी। २१. चरम तिर्थकर ए प्रधान, श्रीगोयम वरलब्धिनिधान । सूत्र सिद्धांतमा संख्या एह, चौदसे बावन गुणगेह ॥५॥ बीजो मंगलिकमां निर्गथ, धर्म तणा जे साधे पंथ । सत्तर भेद संयमना पाल, परिषह सहे थई उजमाल ॥६॥ ज्ञानसहित किरिया करे रंग, सत्तावीस गुण धरिया अंग। विषय कषाय तणो परिहार, दोषरहित लिए शुद्ध आहार ॥७॥ बेसी कनककमल विचाल, आगम वयण वदे कृपाल । जंगम तीरथ कहीए एह, पर उपगारी रविशशिमेह ॥८॥ एवा गुरु सेवो थई सावधान, तारण तरण जहाज समान । अढी द्वीपमा जे अणगार, थूलभद्र आदे तेह संभार ॥९॥ मंगलिक चोथो श्री जैनधर्म, तेथी क्षय थाये अष्ट कर्म । धर्मतणा जे चार प्रकार, दान शियळ तप भावना सार ॥१०॥ जैनधर्मनो महीमा घणो, संक्षेपे कहिस्युं ते भवि सुणो । धर्मथकी होय नवे निधान धर्मथकी लहीए बहुमान ॥११॥ धर्मथकी सजनसंयोग, धर्मथकी लहीए बहु भोग। धर्मथकी सवि आरति टले, धर्मथकी मनवंछित फले ॥१२॥ धर्मथकी लखमी अपार, धर्मथकी घर रुडी नार । धर्मथकी सघळे जय वरे, धर्मथकी चिंते ते करे ॥१३॥ धर्मथकी कीर्ति विस्तरे, धर्मथकी आठे भय हरे । मर्मथकी वैरी वश होय, धर्मथको सुखिया सौ होय ॥१४॥ धर्मथकी सुरनर करे सेव, धर्मथकी मंगल नित्यमेव । धर्मथकी सेना चतुरंग, धर्मथकी मंदिर उत्तंग ॥१५॥ . . . Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ नवस्मरणाविसङ्ग्रहे धर्मथकी मानव अवतार, धर्मथकी उत्तम कुल सार । धर्मथकी काया नीरोग, धर्मथकी सद्गुरुसंयोग ॥१६॥ धर्मथकी लहे लीलविलास, धर्मथकी शिवसुख होय खास । धर्मथकी तिथंकर होय, श्रीसिद्धांत संभाळी सोय ॥१७|| दुलहो दशदृष्टांते सार, श्रावककुल पाम्यो अवतार । हवे अहिलेइ म हारिस भाय, करो धरम भवदुख मिट जाय ॥१८॥ मंगलिक चार तणां ए नाम, चित्तमां घरमा तीरथठाम । श्रीसिद्धाचलने गिरनार, आबू तारंगो मनोहार ॥१९॥ समेतशिखर वंदु जिन वीश, अष्टापद समरो निशदोश । पारकरमा गोडी जिनराय, वरण अढारे सेवे पाय ॥२०॥ वढीयारे शंखेश्वर धणी, तस कीर्ति छे जगमा घणी। ए आदी तीरथ विशाल, ते संभारो थई उजमाल ॥२१॥ शाश्वती अशाश्वती प्रतिमा जेह, स्वर्ग मृत्यु पाताले तेह । नानी मोटी प्रतिमा कही, भवियण भावे प्रणमो सही ॥२२॥ शासननायक वीरजिणंद, मुख सोहे पूनम जिम चंद । करजोडीने मागुं एह, मुजने कहीई म देस्यो छेह ॥२३॥ सिद्धि-वेद-नाग-शशिसहि( १८४८), संवत्सर ए संख्या कही। इंद्रभूतिकेवलदिन जाण, मंगलपचीशी थई परमाण ॥२४॥ भणसे गणसे जे प्रभात, मंगलमाला लहे सुखसात । हीरवर्धन सुगुरु पसाय, खेमवर्धन नित्य नित्य गुण गाय ॥२५॥ ॥ इति मंगलपचीशी॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ જાન્યુઆરી સૂર્યોદય સૂર્યાસ્ત નવકારસી તા. ક. મિ. કે. મિ. | ક. મિ. ૧ ૭-૨૨ ૧૮-૫ ૮-૧૦ ૨૦ ૭૨૨ |૧૮-૫| ૮-૧૦ ૭૨૩ ૧૮—} ૮-૧૧ ૪ ૭-૨૩ ૧૮-૭ ૮-૧૧ ૭–૨૩ ૧૮-૭ (૧૧ ૮-૧૧ } ૭–૨૩ ૧૮-૮ ૭ ૭-૨૪ |૧૮-૯ ૮–૧૨ ૮-૧૨ ૮ –૨૪ ૧૮-૯ ૯ ૩૨૪ ૧૮-૧૦ ૮-૧૨ ૧૦ ૭–૨૪ ૧૮-૧૧ ૮૧૨ ૧૧ ૭–૨૪|૧૮-૧૧ ૮–૧૨ ૧૨, ૭–૨૫ ૨૧૮૧૨| ૮-૧૩ ૧૩ ૭–૨૫ ૧૮-૧૩| ૮–૧૩ ૧૪ ૭૨૫૧૮-૧૩ ૮-૧૩ ૧૫ ૭–૨૫ ૧૮-૧૪ ૮–૧૩ ૧૬ ૭–૨૫૨૧૮-૧૫, ૮–૧૩ ૧૭ ૭-૨૫|૧૮–૧૬ ૮-૧૩ ૧૮ ૭-૨૪ ૧૮-૧૭ ૮-૧૨ ૧૯ ૭–૨૪૧૮–૧૮ ૮–૧૨ ૨૦૬ ૭–૨૪ (૧૮–૧૮ | ૯–૧૨ ૨૧ ૭૨૪ ૧૮-૧૯ | ૮–૧૨ ૨૨ ૭–૨૪ ૯૧૮–૧૯ ૮–૧૨ ૨૩, ૭-૨૪|૧૮-૨૦ | ૮-૧૨ ૨૪ ૭૨૪ ૧૮-૨૧, ૮–૧૨ ૨૫ ૭–૨૪ ૧૮-૨૧ ૮૧૨ ૨૬ ૭–૨૩ ૧૮૨૨ | ૮–૧૧ ૨૦૦૭–૨૩ ૧૮-૨૩ | ૮–૧૧ ૨૮ ૭–૨૩ ૧૮-૨૩ ૮–૧૧ ૨૯:૩૨૩ ૧૮૨૪ ૮-૧૧ ૩૦ ૭–૨૨ |૧૮-૨૫, ૮-૧૦ ૩૧ ૭–૨૨ |૧૮-૨૬ ૮-૧૦ २१३ પેરિસી સાઢપારસી પુરિમ અવ⟩ ક. મિ. કુ. મિ. ક. મિ. ક. મિ. ૧૦-૩ ૧૧-૨૪|૧૨-૪૪૨૧૫-૨૫ ૧૦-૩ ૧૧-૨૪|૧૨-૪૪ ૧૫-૨૫ ૧૦૩૪ ૧૧–૨૫૦૧૨-૪૫ ૧૫-૨ ૧૦-૪ | ૧૧-૨૫ ૧૨-૪૫ ૧૫-૨૬ ૧૦–૪ | ૧૧૨૫ ૧૨-૪૫ ૧૫–૨૬ ૧૦~૧ | ૧૧-૨૬, ૧૨-૪૬ ૧૫-૨૭ ૧૦-૬ | ૧૧–૨૭ ૧૨-૪૭ ૧૫૨૮ ૧૦–૬ | ૧૧-૨૭| ૧૨-૪૭૧૫૨૮ ૧૦–} ૧૧–૩૭ ૧૨૪૭૧૫-૨૯ ૧૦૬ | ૧૧-૨૭ ૧૨-૪૮ ૧૫-૩૦ ૧૦-૬ ૧૧–૨૭ ૧૨-૪૮ ૧૫-૩૦ ૧૦૭ ૧૧–૨૮ | ૧૨-૪૯ ૧૫-૩૧ ૧૦–૭ ૧૧ ૨૮ ૧૨-૪૯ ૧૫-૩૧ ૧૧-૨૮ ૧૨૪૯ ૧૫-૩૧ ૧૧ ૨૯ ૧૨-૫૦ ૧૫-૩૨ ૧૦-૮ ૧૧-૩૦ | ૧૨-૫૦ ૧૫-૩૩ ૧૦-૮ ૧૧-૩૦ | ૧૨-૫૧ ૧૫-૩૪ ૧૦-૮ ૧૧-૩૦ | ૧૨-૫૧ ૧૫-૩૪ ૧૧-૩૦ | ૧૨-૫૧ ૧૫-૩૫ ૧૦–૮ ૧૧-૩૦ | ૧૨-૫૧ | ૧૫-૩૬ ૧૦–૮ | ૧૧-૩૦ | ૧૨–૫૨ ૧૫૩૬ ૧૦-૮ ૧૧-૩૦ | ૧૨–૫ર | ૧૫-૩૬ ૧૦-૮ ૧૧–૩૦ | ૧૨-૫૨ ૧૫૩૬ ૧૦૯ ૧૧૩૧, ૧૨-૫૩ ૧૫૩૭ ૧૦૯ | ૧૧–૩૧ | ૧૨-૫૩ ૧૫૩૭ ૧૦-૮ ૧૧૩૧ | ૧૨-૫૩ ૧૫-૩૮ ૧૦-૮ ૧૧–૩૧ | ૧૨-૫૩, ૧૫-૩૮ ૧૦-૮ |૧૧–૩૧ ૧૨-૫૩૦૧૫૩૮ ૧૦-૮ |૧૧૩૧|૧૩-૫૪ | ૧૫-૩૯ ૧૦૮ ૧૧–૩૧ | ૧૨–૫૪ ૧૫-૪૦ ૧૧–૩૧ | ૧૨-૫૪ | ૧૫-૪૦ ૧૦-૮ 90-6 ૧૦–૭ ૧૦૮ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ * * * * * * * ૫ ર ર ર ર ર ફેબ્રુઆરી સૂર્યોદય સૂર્યાસ્ત નવકારસી પોરિસી સાપરિસી પુરિમઠું અવડું તા. ક. મિ. કે. મિ. ક.મિ. | ક.મિ. ક. મિ. | કમિ. | ક.મિ. ૧ ૭–૨૧ | ૧૮–૧૭ | ૮–૯ ૧૦–૮ ૫ ૧૧–૩૧ ૧૨–૫૪, ૧૫-૪૧ ૨ ––૨૧ ૧૮-ર૭[ ૮-૯ ૧૦-૮] ૧૧–૩૧ ૧૨–૫૪ ૧૫-૪૧ ૩ ૭–૨૦ ૧૮–૨૮ ૮-૮ [ ૧૦–૭ ૧૧–૩૧ ૧૨-૫૫ ૧૫–૪ર ૪ – ૨૦ ૧૮–૨૮ ૮-૮ ? ૧૦–૭ ૧૧-૩૧ ૧૨-૫૫ ૧૫-૪૨ ૭–૧૯ ૧૮–૨૯ ૮–૭ { ૧૦–૭! 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૯–૩૭ ! ૧૧-૧૦] ૧૨-૪ | ૧૫-૨૦ ૫ ૬-૩૦ ૧૮૫૬ ૭–૧૮ ૯-૩૭ [ ૧૧-૧૦ | ૧૨-૪૩ ૧૫-૨૦ ૬ ૬–૨૯ ]૧૮-૫૬ –૧૭ ૯-૩૬ , ૧૧-૧૦ ૧૨–૪૩૧૫–૫૦ ૭ ૬–૨૮ ૧૮-૫૭ ૭-૧૬ | ૯-૩૬ ૧૧-૧૦ ૧૨-૪૩ ૧૫–૫૦ ૮ ૬-૨૭૫ ૧૮૫૭ ૭–૧૫ ૦-૩૫ | ૧૧-૯ | ૧૨-૪૩ ૧૫–૫૦ ૧૮-૫૭ ૭–૧૫ -૩૫ ૧૧-૯ ૧૨-૪૩ ૧૫–૫૦ ૧૦ ૬-૨૬ ૧૪–૧૭ –૧૪ ૯-૩૪ : ૧૧-૮ | ૧૨-૪૨ ૧૫–૫૦ ૧૧) ૬–૨૫ | ૧૮–૧૮ ૭–૧૩ | ૯-૩૪ ૧૧-૮ ૫ ૧૨-૪૨ ૧૫–૫૦ ૧૨ ૬–૨૪ | ૧૮-૫૮ ૭–૧૨ ૯-૩૩ | ૧૧-૮ | ૧૨-૪૨. ૧૫–૫૦ ૧૩ ૬–૨૩ | ૧૮–૧૮ ૭–૧૧ ૯-૩૨ ૧૨-૪૧૧૫-૨૦ ૧૪ ૬-૨૨ | ૧૮–૧૯ ૭–૧૦ | ૯-૩૨ ૧૧–૭ | ૧૨-૪૧ ૧૫–૫૦ ૧૫ ૬–૨૧ ! ૧૯-૦ | ૭–૨ | ૯-૩૧ | ૧૧-૬ ! ૧૨–૪૧ ૧૫–૫૦ ૧૬ ૬–૨૦ | ૧૯-૦ | G–૮ | ૯-૩૦ ૧૧–૫ | ૧૨-૪૦ ૧૭ ૬–૧૯ | ૧૯-૧ | –૭ | ૯-૩૦ | ૧૧૫ | ૧૨-૪૦ ૧૫–૫૧ ૧૮ ૬-૧૮ | ૧૯-૧ ૮–૨૯ ૧૧-૫ | ૧૨-૪૦] ૧૫-૫૧ ૧૯ ૬-૧૮ | ૧૯-૧ –૨૯ | ૧૧-૫ ૧૨-૪૦ ૧૫–૫૧ ૬–૧૭ | ૧૦–૨ ૭–૫ –૨૯. ૧૧-૫ ૧૨-૪૦ ૧૫–૫૧ ૬–૧૬ ૧૯-૨ –૪ ૯-૨૮ ૧૧-૪ ૧૨-૪૦ [૧૫–૫૧ ૨૨ ૬–૧૫ | ૧૯-૨ ૭િ–૩ ૯-૨૭ ૧૧-૩ ૧૨–૩૯ ૧૫–૫૧ ૨૩ ૬-૧૫ { ૧૯-૩ ૭–૩. ૧૧-૩ ૧૨–૩૯ ૧૫–૫૧ ૨૪ ૬–૧૪ ૧૯–૪ ૭–૨ ૯-૨૭] ૧૧-૩ ૧૨–૩૯ ૧૫–૫૧ ૨૫ ૬–૧૩ ૧૯-૪ ૭–૧ ૯-૨૬ ૧૧–૩ : ૧૨-૩૯. ૧૫-૫૧ ૨૬ ૬-૧૨ { ૧૯-૪ –૦ | ૯-૨૫ ! ૧૧–૨ ૧૨–૩૮ ૧૫–૫૧ ૨૭ ૬–૧૧ ૧૯-૫ ૬-૫૯ ] ૨–૨૫ [૧૧-૨ ૧૨–૩૮ ૧૫–૫૧ ૨૮ ૬-૧૦ ૧૯-૫ ૬-૫૮ '૯-૨૪ [ ૧૧–૧ ૧૨-૩૮ ૧૫–૫૧ | ૬-૫૭ –૨૩ : ૧૧-૦ ૧૨-૩૭ ૧૫–૫૧ ૬-૫૭ –૨૩૧૧–૦ ૧૨-૩૭ ૧૫–પર Iiiiiiiiiiiiiiiiiiiii ૧૯-૫ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ –૪ સૂર્યોદય સૂર્યાસ્ત નવકારસી પોરિસી સાઢપોરિસી પુરિમ અવ ક. મિ. ક. મિ. ક. મિ. ક. મિ. . મિ. ક.મિ. ક. મિ. ૧ ૬-૮ ] ૧૯-૬ | ૬-૫૬ { ૯-૨૩ | ૧૧-૦ ૧૨-૩૭ ૧૫–૫૨ { ૧૯-૬ ૬-૫૬૯-૨૩ ૧૧–૦ ૧૨-૩૭] ૧૫–૫ર ૧૯-૭ ૬-પપ ! ૯-૨૨ [૧૧–૦ | ૧૨-૩૭ ૧૫–૫૨. ૬-૫૫ | હે–૨૨ ૧૧-૦ ) ૧૨–૩૭ ૧૫–૫રે ૬-૬ | ૧૯-૮ ! ૬-૫૪ ૯-૨૨ | ૧૧-૦ ૫ ૧૨–૩૭ ૧૫–૫૩ –૫ ૧૯-૮ ૬-૫૩ ટ-૨૧ | ૧૦–૧૯ ૧૨-૩૭ ૧૫–૫૩ –૫ ૧૯- ૬–૫૩ ૯-૨૧ ) ૧૦–૫૯ ૧૨-૩૭ ૧૫–૫૩ ૧૯-૧૦૬પર ૯-૨૧ ૧૦–૧૯ ૧૨-૩૭ | ૧૫–૫૪ ૧૯–૧૦૫ –૫૧ ૯-૨૦ [૧૦-૫૯ ૧૨-૩૭] ૧૫–૫૪ ૧૯-૧૧ ૬-૫૦ ટ-૧૮ [૧૦–૧૮૧૨–૩૭ ૧૫–૫૪ ૧૯-૧૧ ૬-૫૦ ૯-૧૯ ૧૦-૫૮, ૧૨-૩૭] ૧૫–૫૪ ૧૯-૧૧ ૬-૪૯ ૯-૧૯ ૧૦–૧૮૧૨–૩૭૧૫–૫૪ ૧૯-૧૨ ૬-૪૯ / ૯-૧૦ ૧૦–૫૮ ૧૨-૩૭ ૧૫–૫૫ ! ૧૯-૧૨, ૬-૪૯ ! ૯-૧૮ | ૧૦–૧૮ ૧૨–૩૭ ૧૫–૫૫ ૧૫ ૬-૦ ૧૯-૧૨ ૬-૪૮ | ૯-૧૮ ૧૦–૧૮૧૨–૩૭ ૧૫–૫૫ ૧૬ ૬–૦ | ૧૯–૧૩ ૬-૪૮ | ૯-૧૮ : ૧૦–૧૮ | ૧૨-૩૭ ૧૫–૫૫ ૧૭ ૫–૫૯ - ૧૯–૧૩ ૬-૪૭ ૯-૧૮ [૧૦–૧૮૧૨–૩૭ ૧૫–૫૫ ૧૮૫–૫૯ ૧૯–૧૪ ૬-૪૭ | ૯-૧૮ | ૧૨–૫૮ ૧૨–૩૭ ૧૫–૫૫ Re ૫–૫૯ ૧૯–૧૪ ૬-૪૭ ! ૯–૧૮ [૧૦-૫૮ ૧૨-૩૭ ૧૫-૫૬ ર૦ ૫–૫૮ ૧૯-૧૫ ૬-૪૬ | ૯-૧૮ | ૧૦–૧૮૧૨–૩૭ ૧૫–૫૬ ર૧ ૫–૫૮ ! ૧૯-૧૬ ૬-૪૬ ] ૯-૧૮ | ૧૦-૫૮] ૧૨-૩૭ ૧૫-૫૬ ૨૨ -૫૭] ૧૯-૧૬, ૬-૪૫ ૯-૧૭ ૧૦–૧૮ ! ૧૨-૩૭ ૧૫–૫૬ ૫–૫૭ [૧૯–૧૭ ૬-૪૫ ૯-૧૭ ! ૧૦–૧૮૧૨–૩૭ ૧૫–૫૭ ૫–૫૬ ! ૧૯-૧૭ ૬-૪૪ ૯–૧૭ ૧૦–૧૮) ૧૨-૩૭ ૧૫–૫૭ ૫–૫૬ | ૧૯-૧૭ ૬-૪૪ ૯-૧૭ | ૧૦-૫૭૧૨–૩૭ ૧૫-૧૭ ૫–૫૬ ૧૯-૧૮ ૬-૪ ૯-૧૭ { ૧૦–૧૭ ૧૨–૩૭ ૧૫-૫૮ ૨૭ ૫–૫૬ ૧૯–૧૮૫ ૬-૪૪ | -૧૭ ! ૧૦-૫૭ ૧૨-૩૭ ૧૫-૫૮ ૨૮ ૫–૫૫ ૧૧૯–૧૯ ૬-૪૩- ૯–૧૭ | ૧૦-૫૭૧૨–૩૭ ૧૫–૫૮ ૨૯ ૫–૫૫ / ૧-૧૯ ૬-૪૩ | ૯-૧૭ ૧૦–૧૭ ૧૨–૩૭ ૧૫–૫૮ ૩૦ ૫-૫૫ ! ૧૯-૨૦ ૬-૪૩ | ૯-૧૭ ! ૧૦–૧૮ | ૧૨-૩૮ ૧૫–૫૯) ૬૧ ૫-૫૫ ૧૯-૨૦ કે ૬-૪૩ | ૯–૧૭ | ૧૦–૧૮૧૨–૩૮ ૧૫–૫૯ IIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૨૮ જુન સૂર્યોદય સૂર્યાસ્ત નવકારસી પરિસી સાપેરિસી પરિમ અવડું તા. ક. મિ. | ક.મિ. | ક.મિ. | ક.મિ. . મિ. . મિ. ક. મિ. ૧ ૫–૫૫ ૧૦–૨૦, ૬-૪૩ ૯–૧૭ ૧૦–૧૮૧૨–૩૧૫-૫૯ ૨ ૫–૫૫ ૧૦–૨૧૬–૪૩ ૯૧૭ ૧૦–૧૮૧૨–૩૮૧૬–૦ ૩ ૫–૫૫ ૧૦–૨૧ ૬–૪૩ | ૯–૧૭ ૧૦–૧૮૧૨–૩૮૧૬–૦ ૪ ૫–૫૫ ૧૯–૨૧ ૬–૪૩ | ૯–૧૭ ૧૦–૧૮૧૨ – ૩૮૧૬–૦ ૫ ૫–૫૪ ૧૯- ૨૨ ૬-૪૨ ૯ - ૧૭ ૧૦ – ૫૮૧૨– ૩૯૧૬૧ ૬૫–૫૪ ૧૦–૨૨ ૬–૪૨ – ૧૭ ૧૦–૧૮૧૨–૩૯૧૬–૧ ૭૫–૫૪ ૧૯–૨૩ ૬–૪૨ ૯ - ૧૭ ૧૦–૧૯૧૨–૨૦૧૬-૨ ૮ ૫–૫૪ ૧૯-૨૩ ૬–૪૨ ૯–૧૭૧૦ – ૫૯૧૨ – ૪૦૧૬– ૨ ૯ ૫–૫૪ ૧૯-૨૪ ૬-૪૨ | ૯–૧૭ ૧૦ – ૫૯૧૨- ૪૦૧૬–૨ ૧૦ ૫–૫૪ ૧૯–૨૫ ૬–૪ર ૮–૧૭૧૦–૧૯૧૨ - ૪૦૧૬ ––૨ ૧૧ ૫–૫૪ ૧૯–૧૫૬–૪૨ ૪–૧૭ ૧૦–૧૯૧૨–૪૦૧૬ – ૨ ૧૨ ૫–૫૪ ૧૯–૧૫ ૬ ૨ ૯ - ૧૭૧૨–૫૧૨–૪૦૧૬ - ૨ ૧૩ ૫–૫૪ ૧૯–૨૬ ૬–૪ર ૮–૧૭ ૧૦–૧૯૧૨–૨૦૧૬–૩ ૧૫–૫૪ ૧૦–૨૬ ૬–કર – ૧૭ ૧૦-૫૧૨–૪૦૧૬ – ૩ ૧૫ ૫–૫૪ ૧૦–૨૬ ૬–૪૨ ૯–૧૭ ૧૦–૧૯૧૨૪૦૧૬–૩ ૧૬ ૫–૫૪ ૧૦–૨૬ ૬–૪ર | –૧૭/૧૦–૧૯૧૨–૪૦૧૬–૩ ૫–૫૪ ૧૯-૨૭ ૬-૪૨૯–૧૮૧૧ ૧૨ - ૪૧૧૬–૪ | ૫–૫૪ ૧૯-૨૭ ૬ – ૪ર ૮–૧૮૧૧-૦ ૧૨–૪૧૧૬–૪ | પ પપ ૧૦–૨૭ ૬–૪૩ ૯–૧૮ ૧૧–૦ ૧૨-૪૧૧૬-૪ ૫-૫૫ ૧૦–૨૭ ૬-૪૩ ૯–૧૮ ૧૧–૦ ૧૨–૧૧–૪ રિલ પ–પપ ૧૦–૨૮ ૬–૪૩ –૧૯૧૧–૧ ૧૨-૪૨૧૬-૫ રિ૨ ૫–૫૫ ૧૦–૨૮૬–૪૩ ૯–૧૯ ૧૧–૧ ૧૨-૪૨૧૬–પ ૫–૫૬ ૧૦–૨૮ ૬-૪જી -- ૧૯ ૧૧-૧ ૧૨-૪૨૧૬–૧ | રિ૪ ૫–૫૬ ૧૦–૨૮ ૬---૪૪ ૯–૧૯ ૧૧–૧ ૧૨–૨૧૬–પ ર૫ ૫–૫૬ ૧૯૨૮ ૬–૪૪૯–૧૯ ૧૧ –-૧ ૧૨–૪૨૧૬–૫ ર૬ ૫–૫૬ ૧૮–૨૯ ૬–૪૪૯-૨૦૧૧–૧ ૧૨–૩૧૬ પ–પ૭૧૮–૨૯ ૬-૪૫ ૦–૨૦૧૧–૧ ૧૨–૩૧૬– ૬ ૫–૫૭૧૮–૨૯ ૬–૪૫ ૯-૨૦૧૧–૧ ૧૨– ૪૩૧૬– ૬ ૫–૫૭]૧૯–૧૯૬–૪૫૮–૨૦૧૧–૧ ૧૨ ૪૩૧૬– ૦ ૫-૫૩ ૭૧૯–૧૯૬–૪૫ ૮–૨૦૧૧–૧ ૧૨–૩૧૬ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ જુલાઈ સૂર્યોદય સૂર્યાસ્ત નવકારસી પેરિસી સાઢપેરિસી પુરિડે અવ⟩ २१९ ક. મિ. ૩. મિ. ૩. મિ. તા.” ક. મિ. ક. મિ. ક. મિ. ક. મિ. ૧ ૫-૫૮ | ૧૯-૨૯૦ ૬-૪૬ ૯ ૨૧૦ ૧૧—૨ ૧૨-૪૩ ૧૬-} ૨૫-૫૮ ૧૯-૨૯૬-૪૬ ૯૨૧ ૧૧-૩ ૧૨-૪૪ ૧૬-૭ ૩ ૫-૫૮ ૧૯-૨૯, ૬-૪૬ ૯—૨૧ ૧૧-૩ ૧૨-૪૪ ૧૬-૭ ૪ ૫-૫ ૧૯–૨૯ | ૬-૪૭૯-૨૨ ૧૧-૩ ૧૨-૪૪ ૧૬-૭ ૫ ૫-૫૯ ૧૯-૨૯ ૬-૪૭૯-૨૨, ૧૧-૩ ૧૨૪૪ ૧૬-૭ ૫-૫ | ૧૯૨૯ ૬૪૭૯-૨૨/૧૧૩ ૧૨૪૪ ૧૬-૭ ૧૯૨૯ | ૬-૪૮ | ૯-૨૩૨ ૧૩-૪ ૧૨-૪૫ ૧૬-૩ ૧૯૨૮ ૬-૪૯ | ૯-૨૩ ૧૧-૪ ૧૨-૪૫ ૧૬-૭ ૧૯-૨૮ ૬-૪૯ | ૩-૨૩ ૧૧-૪ ૧૨-૪૫ ૧૬-૭ ૧૯-૨૮, ૬-૫૦ ૯-૨૪ ૧૧-૫ ૧૨ -૪૫ ૧૬-૭ ૧૯–૮ | ૬ ૫૦ ૯ ૨૪ ૧૧-૫ | ૧૨-૪૫ ૧૬-૭ ૧૯૨૮ ૬ -૫૦ ૯૨૪ ૧૧ ~ ૫ ૧૨ ૪૫ ૧૬-૭ ૧૯૨૮ – ૬ - ૫૧ ૯—૨૫ ૧૧ - ૬ | ૧૨-૪૬ ૧૬-૭ ૧૯–૨૮ ૬-૫૧ ૯—૨૫ ૧૧ -૬ ૧૨-~૪૬ ૧૬-૭ ૧૯૦૨૮ ૬-૫૨ ૯—૨૫ ૧૧ - ૬ | ૧૨-૪૬ ૧૬-૭ ૧૯-૨૭૬-૫૨ ૯—૨૫ ૧૧ - ૬ | ૧૨-૪૬ ૧૬-૭ ૧૯-૨૭, ૬—પર ૯—૨૫ ૧૧-૬ ૧૨-૪૬ ૧૬-૭ ૧૯–૨૭ | F -૫૩ ૯ - ૨૬ | ૧૧-૬ ૧૨-૪૬ ૧૬-૭ ૧૯-૨૭, ૪ -૫૩ ૯૨૬ ૧૧-૬, ૧૨-૪૬ ૧૬-૭ ૧૯૨૭ ૬-૫૩ ૯—૨૬૧૧-૬ ૧૨-૪૬ ૧૬-૭ ૧૯-૨૬ | ૬ -૫૪, ૯-૨૬ | ૧૧-૬, ૧૨-૪૬ ૧૬-૬ ૧૯૨૬ ૬ ~~૫૪ ૯૧૨૬ | ૧૧-૬, ૧૨-૪૬ ૧૬-૬ ૧૯-૨૫ | ૬-૫૫ ૯-૨૭ ૧૧-૭-૧૨-૪૬ ૧૬-૬ ૧૯-૨૪ ૬-૫૫ -૨૭ ૧૧૭ ૧૨-૪૬ ૧૬-૫૧૦-૨૪, ૬-૫૬ -૨૭ ૧૧-૭-૧૨-૪૬ ૧૬-૫ ૧૯-૨૪ ૬-૫૭ ૮-૨૮ ૧૧-૮ ૧૨-૪૬ ૧૬-૫ ૧૯-૨૩૨ ૬-૫૭, ૯—૨૮ ૧૧-૦૮ ૧૨-૪૬, ૧૬-૫ ૧૯૨૩ ૬-૫૭ ૯—૨૮ ૧૧-૮ ૧૯-૨૩ ૬-૫૮ ૯૨૮ ૧૯૨૨ ૬-૫૮ ૯—૨૮ ૧૯–૨૨ | ૬—૧૮૦૯—૨૮, ૧૧-૮ ૧૧૦૮ ૧૧૮ ૧૨-૪ ૧૬-૫ ૧૨ ૪૬ ૧૬-૫ ૧૨-૪૬ ૧૬-૪ ૧૨-૪૬, ૧૬-૪ ૭ ૬-૦ ૬-૧ ૬-૧ ૧૦ ૧૧ ૬-૨ ૧૨ ૬૨ ૧૩ ૬-૩ ૧૪ ૧૫ ૬-૪ |૧}} ૩-૪ ૧૭ ૬-૪ ૧૮ -૫ ૧૯ ૬-૫ ૨૦૦૬-૫ ર૧ ૬-૬ ૧૨ ૪-૬ ૨૩ ૬૭ ર૪ ૬-૭ વર્ષા ૬-૮ ર૬ ૯ ૨૭-૯ R4 S-E Re}-૧૦ ૩૦૨ ૧૦ ૩૧ ૬–૧૦ 1 ; Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० ગદ સૂર્યાસ્ત નવકારસી પેરિસી સાઢપેારિસી પુરિમગ્ન અવ⟩ ૩. મિ. ક. મિ. ક. મિ. ક. મિ. ક. મિ. | ક. મિ. ૬ -૫૯ ૪--૫૯ ૧ ૬ - ૧૧ | ૧૯- -૨૧ ૬-૧૧ | ૧૯~~૨૧ ૩ }—૧૨ ૧૯-૨૦ F-૦ ૪ ૬-૧૨| ૧૯-૨૦ ૭—૦ ૫ - ૧૩ ૧૯ ૧૯ ૭–૧ }/ }~૧૩ | ૧૯ ૧૮ ૭-૧ ૭ }—૧૪|૧૯–૧૭ —ર ૮ ૬ ૧૪ ૧૯-૧૭ ૭-૨ ૪ }-૧૫ ૧૯-૧૬ ૭-૩ ૧૦ ૧૫ ૧૯-૧૫ ૭-૩ ૧૧ ૬. -૧૫ ૧૯ – ૧૫ ૫-૩ ૧૨ ૬ - ૧૬ | ૧૯ – ૧૪ ૭૪ ૧૩ ૬–૧૬ | ૧૯ .૧૩ ૭-૪ ૧૪ ૬ - ૧૬ | ૧૯.૧૩ ૭૧૫ ૬ ૧૭ ૧૯-૦૧૨ ૭. ૫ ૧૬ ૬. ૧૭ | ૧૯-૧૧ ૭ ૧૫ . ૧૭ ૧૯ ૧૧ ૭૫ ૧૮ ૬ ૧૮ ૧૯ ૧૦૦ ૭૧૯ ૬ ૧૮ ૧૯-~~ ૨૦ ૬—૧૮ | ૧૯ ૯ ૧૯૨ ૧૯ ૧૯ ૧૯— } ૨૦૧૯–– ૫ તા. R રર સૂર્યોદય ક. મિ. ૨૭ ૨૮ Re ૩૦ ૬-૨૭ ૩૧ ૨૧:૧૨ ૧ ૮. ૧૯ ૪ ૭-૮ ૧૯ ૪ ૭-— 2 ૧૯ ૩ ૭૯ ૭ ૭ ૧૧-૮ ૧૧-૮ ૧૧૮ ૧૧-૮ ૧૧-૮ ૧૧-૮ ૯ ૩૦ ૧૧-૮ ૧૧-૮ ૧૧-૮ ૯-૩૦ -૩૧ ૯-૩૧ ૧૧-૮ ૯-૩૧ ૧૧-૮ ૯-૩૧ ૧૧-૮ ૯-૩૧ ૧૧-૮ ૯-૩૧ ૧૧-૮ ૯-૩૧ ૧૧-૮ ૯-૩૧ ૧૧-૮. ૯-૩૧ ૧૧-૮ ૯-૩૧ ૧૧૮ ૯-૩૧ ૧૧-૭ ૯-૩૧ ૧૧-૭ ૯-૩૧ ૧૧-૭ ૯૩૧ ૧૧-૫ ૯-૩૨ ૧૧-૭ ૯-૨૨ ૧૧-૫ ૯૩૨ ૧૧-૭ ૯૩૨ ૨૦૦૭--૯ ૯ ૩૨ ૧ ૭ ૯ 6-32 ૯૩૨ ૨| U-૧૦ -૫૯ ૭-૧૧| ૯૩૨ ૫૮ ૭-૧૧ ૩૨ ૯-૨૯ ૯-૨૯ ૯ ૨૯ ૯-૨૯ ૯-૩૦ ૯-૩૦ ૧૧-૭ ૧૧-૩ ૧૧-૭ ૧૧-૭ ૧૧-૭ ૧૧-૭ ૧૨-૪૬ ૧૬-૪ ૧૨-૪૬ ૧૬-૪ ૧૨-૪૬ ૧૬-૩ ૧૨-૪૬ ૧૬-૩ ૧૨-૪૬ ૧૬-૩ ૧૨-૪૬ ૧૬-૨ ૧૨-૪૬ ૧૬-૨ ૧૨-૪૬ ૧૬-૨ ૧૨-૪૬, ૧૬-૧ ૧૨-૪૫ ૧૬-૦ ૧૨-૪૫ ૧૬-૦ ૧૨-૪૫ ૧૬-૦ ૧૨-૪૫ ૧૫-૫૯ ૧૨-૪૫ ૧૫-૫૯ ૧૨-૪૫ ૧૫-૫૯ ૧૨-૪૪ ૧૫-૫૮ ૧૨-૪૪ ૧૫-૫૮ ૧૨૪૪ ૧૫.પણ ૧૨૪૪ ૧૫ પા ૧૨૪૩ ૧૫-૫૬ ૧૨-૪૩ ૧૫.૫૫ ૧૨-૪૩, ૧૫-૫૫ ૧૨-૪૩ ૧૫-૫૪ ૧૨-૪૨ ૧૫-૫૩૭ ૧૨-૪૨ ૧૫-૫૩ ૧૨-૪૨ ૧૫-૫૩ ૧૨-૪૨ ૧૫-પુ ૧૨-૪૧૬ ૧૫-૫૧ ૧૨-૪૧ ૧૫-૫૧ ૧૨-૪૧ ૧૫–૫ ૧૨-૪૧ ૧૫-૫ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સપ્ટેમ્બર २२१ સૂર્યોદય સૂર્યાસ્ત નવકારસી પેારસી સાઢપેારિસી પુરિમટ્ટુ અવ⟩ ક. મિ. ક. મિ. ક. મિ. .. મિ. ક.મિ. ક. ભિ. હું ક.મિ. -- -૨૩ ૧૮ – ૫૭ ૧૧ ૯- –૩૨ ૧૧ -૬ ૧૨-૪૦ ૧૫—૪૯ —૨૩ ૧૮-૫૬ ૭~~~૧૧ ૯૦૩૨ ૧૧-૬ ૧૨-૪૦૧૫૪૮ ~ ૨૩ ૧૮-૫૫૭-૧૧ ૯૩૨ ૧૧-૫ ૧૨~૩૯૧૫૪૭ }~૨૪૧૮૫૪૭-૧૨ ૯૦૩૨ ૧૧-૫ ૧૨ -૩૯ ૧૫ – ૪૭ ૬-૨૪ ૧૮-૫૩ ૭-૧૨ ૯૩૨ ૧૧૫ ૧૨-૩૯ ૧૫-૪૬ -૨૪ ૧૮ – ૫૨ ૭-૧૨ ૯–૩૨ ૧૧-૫ ૧૨૩૮ ૧૫-૪૫ ૬-૨૫ ૧૮૫૧ ૭૧૩ | ૯ ૩૨ ૧૧ -૫ ૧૨ - ૩૮ ૧૫-૪૫ ૨૬ ૧૮-૫૦ ૭ ૧૪ ૯ ૩૨ ૧૧-૫ ૧૨-૩૮ ૮ ૧૫ -૪૪ }~૨૬ ૧૮—૪૯ ૭-૧૪ ૯-૩૨ ૧૧-૫ ૧૨- -૩૮ ૧૫-- ૪૪ ૬૨૬ ૧૮૪૮૭-૧૪૯-૩૨ ૧૧-૫ ૧૨ - ૩૭૧૫—૪૩ }~૨૬ ૧૮-૪૭૭-૧૪, ૨૯-૩૨ ૧૧–૪ ૧૨ – ૩૭૧૫—૪૨ }~૨૬ ૧૮-૪૬ ૭-૧૪ ૯-૩૨/૧૧૯૪ ૧૨~૩૬ ૧૫-૪૧ -૨૭ ૧૮-૪૫ ૭-૧૫ ૯૩૨ ૧૧-૦૪ ૧૨-૩૬ ૧૫-૪૧ -૨૭ ૧૮-૪૪ ૭-૧૫૮-૩૨ ૧૧ ૪ ૧૨-૩૬ ૧૫-૪૦ ૧૫૬૨૭ ૧૮-૪૩ ૭-૧૫ ૯ ૩૨ ૧૧૩ ૧૨~~૩૫૧૫-૩૯ ~૨૭ ૧૮-૪૨૬૭- ૧૫ ૯ ~૩૨ ૧૧-૩ ૧૨-૩૫૧૫-૩૯ ૬-૨૮ ૧૮-૪૧૭૧૬૯-૩૨ ૧૧૩ ૧૨-૩૫૧૫~૩૮ ૧૮ ૬-૨૮ ૧૮-૪૭-૦૧૬ | ૯૦૩૨ ૧૧૩ ૧૨-૩૪૧૫-૩૭ ~૨૮ ૧૮૩૯ ૭-૧૬ ૮-૩૨ ૧૧૩ ૧૨-૩૪ ૧૫-૩૭ ૨૦ ૬—૨૯ ૧૮-૩૮ ૭-૧૭ ૯૦૩૨૧૧ ૩ ૧૨-૩૪૧૫ ૩૬ ૧૧-૩ ૧૨---૩૩ ૧૫- - ૩૫ ૧૧૩ ૧૨ ૩૩૭૧૫- ૩૫ ૧૩~૨ ૧૨૩૩ ૧૫-૩૪ ૧૧-૨ ૧૨ - ૩૨ ૧૫--૩૩ ૧૧~૨ ૧૨ – ૩૨૧૫-૩૩ ૧૧–—૨ ૧૨-૩૨ ૧૫-૩૨ ૧૩~૨ ૧૨-૩૧ ૧૫ - ૩૧ ૧૧–૧ ૧૨~૩૧૧૫ - ૩૧ ૧૧-૧ ૧૨–૩૧ ૧૫-૩૦ ૧૧--૧ ૧૨-૩૦૧૫-૨૯ ૧૯ ૨૧ ૨૯ ૧૮—૩૭ ૭-૧૭ ૮-૩૨ ૨૬ -૩૦ ૧૮૩૬૭-૧૮ | ૯ - ૩૨ ૨૩ ૬ ~૩૦ ૧૮-૩૫ ૭-૧૮ | ૯–૩૨ ૨૪ ૬~૩૦ ૧૮ – ૩૪ ૭–૧૮ | ૯-૩૨ ૩૫ ૩૦ |૧૮ - ૩૩૭૧૮ | ૯~૩૨ ૩૬૬૬~૩૧ ૧૮-૩૨૭-૧૯ ૮-૩૨ ૨૭ ર -૩૧ ૧૮-૩૧ ૭-૧૯| - ૩૨ - -૩૧ ૧૮-૩૦ ૭-૧૨| ૯ ૩૨ ૨૬-૩૨ ૧૮-૨૯ ૭૨૦૨૯-૩૨ ૩૦ ૩૨ ૧૯—૨૮ ૭ ૨૦ ૯-૩૧ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૯ + 2 જ છે " ? २२२ ઓકટોબર સૂર્યોદય સૂર્યાસ્ત નવકારસી પિરિસી સાઢપેરિસી પુરિમ અવ તા. કમિ. કમિ. ક.મિ. | કમિ. કે. મિ. ક.મિ. કમિ. ૧ ૬-૩૩ ૧૮-ર૭ | ૭–૨૧ ૬ ૯-૩ર ! ૧૧–૧ ૧૨-૩૦ ૧૫–૨૯ ૨ ૬-૩૩ ૧૮-૨૬ ૭–૨૧ ૯-૩૨ ૧૧–૧ ૧૨-૩૦ ૧૫–૨૮ ૩ ૬-૩૩ ! ૧૮-૨૫ ૭–૨૧ ૯–૩૨ ૧૧–૦ ૧૨–૨૯ ૧૫–૨૭ ૪ ૬–૩૩ { ૧૮–૨૪ ૭-૨૧ ૯-૩ર : ૧૧-૦] ૧૨-૨૯ ૧૫–૨૭ ૫ ૬-૩૪ ( ૧૮–૨૩ ૭–૨૨ ૯-૩૨ { ૧૧–૦ ૧૨–૨૯ ૧૫–૧૬ ૬–૩૪ { ૧૮–૨૨ ૭–૨૨ ૯-૩૨ { ૧૧-૦ { ૧૨–૨૮ ૧૫-૨૫ ૬–૩૪ ૧૮-૨૨! ૭–૨૨ ૯-૩૨ ૩ ૧૧-૦ ) ૧૨–૨૮૧૫–૨૫ ૬-૩૪ ૧૮-૧૧ ૭–૨૨ -૩ ૧૧–૦ ( ૧૨-૨૮ ૧૫–૨૫ ૧૮–૨૦ ૭-૨૩ { ૯-૩૨ ૧૧-૦ ૧૨-૨૮ ૧૫-૨૪ ૧૦ ૬-૩૫ ૧૮-૧૯ ૭-૨૩ ૯-૩૨ | ૧૧-૦ 1 ૧૨-૨૭ ૧૫–૨૩ ૧૮-૧૮ —૨૪ ૯-૩૨ ૧૧-૦ ૧૨–૨૭ ૧૫–૨૩ ૧૨ ૬-૩૬ ૧૮–૧૭ ૭–૨૪ ૯-૩૨ { ૧૧–૦ ૧૨–૨૭ ૧૫-૨ ૧૩ ૬-૩૭ ૧૮-૧૬ ૭–૨૫ ? ૯-૩૨ ૧૧–૦ ૧૨–૨૭ ૧૫–૨૨ ૧૪ ૬-૩૭ ! ૧૮-૧૫ ૭–૨૫ ! ૯-૩૨ ૧૦–૧૯ ૧૨–૨૬ ૧૫-૨૬ ૧૫ ૬-૩૭ ૧૮-૧૪ : ૯-૩૨ ૧૦–૫૯ ૧૨–૨૬ ૧૫-૨૦ ૧૮–૧૩ –૨૬ ૧૦–૧૯૧૨–૨૬ ૧૫-૨ ૧૮-૧૩ ૭–૨૬ ૧૦–૧૯ ૧૨–૨૬ ૧૫–૨ ૧૮-૧૨ ઉ–૨૭ ૧૦–૧૯૧૨–૨૬ ૧૫-૧ ૧૮-૧૧ ૭–૨૭ ૧૦-૫૯ ૧૨–૨૫ ૧૫–૧ { ૧૮-૧૦ ૭–૨૭ ટ-૩૩. ૧૦–૧૯ ૧૨-૨૫ ૧૫–૧ ૧૮–૯ G–૨૮ ૧૦–૧૯૧૨–૨૫ ૧૫૬-૪૧ { ૧૮-૮ { ૭–૨૯ ૧૦–૧૯ ૧૨-૨૫ ૧૫–' ૬-૪૧ ૭–૨૯ ૯-૩૩ ૧૦-પ૯ ૧૨-૨૫ ૧૫રિ૪ ૬-૪૨ : ૧૮-૭ ૭–૩૦ ૯-૩૪ ૧૦-૫૧૨–૨૫ ૧૫રિ૫ ૬-૪૨ { ૧૮-૬ ૭–૩૦ ૯-૩૪ ( ૧૦-૫૯ ૧૨-૨૪૧૫ર૬ ૬-૪૩ ૧૮-૫ ૭-૩૧ ૯–૩૪ ૧૦–૫૯ ૧૨–૨૪ ૧૫રિ૭ ૬-૪૩ ૧૮-૫ –૩૧ ૯-૩૪ : ૧૦–૧૯ ૧૨૨૪ ૧૫૨૮ ૬-૪૩ : ૧૮–૪ –૩૧ ૯-૩૪ ૧૦-૫૯ ૧૨-૨૪ [૧૫૨૯ ૬-૪૪ ૧૮-૩ ૭–૩૨ ૯-૩૪ | ૧૦–૫૯ ૧૨-૨૪ ૧૫૩૦ ૬-૪૫ ૧૮–૨ ૭–૩૩ ૯-૩પ ૧૦–૧૯૧૨–૨૪ ૧૫ ૩િ૧ ૬-૪૫ ૧૮-૨ || —-૩૩ | ૯-૩૫ | ૧૦–૧૯૧૨–૨૪! ૧૫ ૮ ૨ દે ૧૬ ૬-૩૮ . છે ૦ છ છે છ w છે છ . . . . . ( w w જ ૯–૩૩ . છ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સૂર્યોદય તા. ક. મિ. | ક. મિ. ૧ ૬-૪૬ ૧૮-૧ -૪૭૧૮-૧ 1801761 નવેમ્બર २२३ સૂર્યાસ્ત નવકારસી પેરિસી સાઢપેરિસી પુરિમ અવદ્ગ ક. મિ. ક. મિ. - ૬-૪૮૧૮ ક. મિ. ક. મિ. ક. મિ. ૭-૩૪} ૨-૩૫ ૧૧ --૭, ૧૨-૨૪ ૧૫-૧૩ ૭-૩૫ ૯૩૬ ૧૧-૦૦ ૧૨-૨૪ ૧૫–૧૩ ૭-૩૫|૯-૩૬ ૧૧-૦ ૧૨–૨૪ ૧૫-૧૨ જી~૩} | ૯ - ૩૬ | ૧૧૦ ૧૨-૨૪ ૧૫-૧૨ ૬ -૪૮ ૧૭ - ૫૯ ૭ - ૩૬ | ૯ - ૩૬ | ૧૧૦ ૧૨-૨૪ ૧૫-- ૧૨ } |}-૪૯ ૧૭-૫૭-૩૭ ૯૮—૩૭ ૧૧-૧૧૨–૨૪ ૧૫–૧૨ —૪૯ ૧૭—૫૮૭–૩૭૨૯ ૩૭ ૧૧-૧ ૧૨-૨૪ ૧૫-૧૧ ૮ | }~૫૦ ૧૭ - ૫૮૭ – ૩૮ | ૯-૩૦ ૧૧૦૧ ૧૨-૨૪ ૧૫-૧૧ ♦- ~~~ ૫૦ ૧૭ – ૫૭ ૭ – ૩૮ | ૯-૩૦ ૧૧-૧૧૨–૨૪ ૧૫-૧૧ ૧૦| ૬-૫૧ ૧૭-૫૭ ૭૩૯ ૨~૩૮ ૧૧૧ ૧૨-૨૪ ૧૫~૧૧ ૧૧ ૬ - ૫૧ ૧૭ - ૫૭ ૭-૩૯|૯-૩૮ ૧૧---૧૧૨-૨૪ ૧૫~૧૧ ૧૨ ૬ - પ૨ ૧૭-૫૬ ૭-૪૦ ૯ - ૩૮ ૧૧-૧ ૧૨-૨૪ ૧૫-૧૧ ૧૩ }—૫૩ ૧૭-૫૬ ૫—૪૧ ૯૦૩૯ ૧૧-૨ ૧૨-૨૫ ૧૫-૧૧ ૧૪ ૬ - ૫૪ ૧૭ -૫૬૭-૪૨ ૯-૪૦ ૧૧-૩ ૧૨-૨૫૧૫-૧૧ ૧૫ ૬ -૫૫ ૧૭-૫ ૭-૪૩ ૯-૪૦ ૧૧-૩| ૧૨-૨૫૧૫-૧૦ ૧૬૦ ૬-૫૫ ૧૭ - ૫૫૭-૪૩ ૯-૪૦ ૧૧-૩ ૧૨-૨૫ ૧૫-૧૦ S ――― ૧૭ ૬-૫૬ ૧૭-૫૪ ૭-૪૪ ૯-૪૧ ૧૧-૩ ૧૨-૨૫૧૫૧૦ ૧૮ ૬-૫૬ ૧૭ -૫૪૨૭૪૪ ૯૪૧૧૧-૭૧૨૨૫ ૧૫- -૧૦ ૧૯૦ ૬૫૭ ૧૭ -૫૪૭--૪૫ ૯-૪૨ ૧૧–૪ ૧૨-૨૬ | ૧૫-૧૦ ૨૦ ૬ -૫૮ ૧૭—૫૪ ૭-૪૬, ૯૧૪૨ ૧૧–૪ ૧૨-૨૬ | ૧૫-૧૦ ૨૧ ૬ -૫૮ ૧૭ -- ૫૩ ૭–૪૬૦૯-૪૨ | ૧૧-૪ ૧૨-૨૬ ૧૫-૧૦ ૨૨૩ ૬ -૫૯ ૧૭-૫૩ ૭૪૭૯ ૪૩ ૧૧-૫ ૧૨-૨૬ ૧૫-૧૦ ૨૩, ૬-૫૯ ૧૭-૫૩૭-૪૭ ૯--૪૩ ૧૧-૫ ૧૨–૨૬ ૧૫૧૦ ૨૪ ૭-૦ ૧૭-૫૩ ૭-૪૮ ૯૪૪|૧૧-૫ ૧૨-૨૭ ૧૫-૧૦ ૨૫ ૭–૧ ૧૭-૫૩૭–૪૯ ૯-૪૪ ૧૧-૬ ૧૨-૨૭ ૧૫-૧૦ ૨૬૭૨ ૧૭-૫૩ ૭-૫૦ ૯-૪૫૧૧—૭ ૧૨-૨૮ ૧૫—૧૦ ૧૭-૫૨૭~૫૧ ૯૦૪ ૧૧-૭ ૧૨-૨૮ ૧૫-૧૦ ૧૭ -૫૨૨૭-૫૧ ૯૦૪૬ ૧૧—૭ ૧૨-૨૮ ૧૫-૧૦ ૧૭—૫૨ ૭-૫૨ ૯-૪૬ ૧૧-૭ ૧૨-૨૮ ૧૫–૧૦ ૧૭-૫૨૭-૫૩ ૯-૪૭ ૧૧-૮ ૧૨–૨૯ ૧૫-૧૧ 2 ~^]? ૨૮૦૭–૩ ૨૯૩૫-૪ ૩૦૨ ૭-૫ --- - Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ --- ડિસેમ્બર સૂર્યોદય સૂર્યાસ્ત નવકારસી પેરિસી સાપરિસી પુરિમ અવડું તા. ક. મિ. કે. મિ. ક. મિ. કમિ. ક. મિ. ક. મિ. | કમિ ૧ – ૧૭–પર ! –૫૩ ૯-૪૭ ૧૧- ૧૨–૨૯ ૧૫–૧૧ ૨ – ૬ | ૧૭–૫૩ ૭–૫૪ : ૯-૪૮ ૧૧-ક ૧૨-૩૦ ૧૫–૧૨ ૩ – || ૧૭–૫૩ ૭-૫૫ ૬ ૯-૪૯, ૧૧–૧૦ ૧૨-૩૦ ૧૫–૧૨ ૪ ૭-૭ ૧૭૫૩ ૭-૫૫ } ૯-૪૯ ૧૧–૧૦ ૧૨-૩૦ ૧૫–૧૨ ૫ 972 ૧૭–૫૩ ૩–૫૬ | ૯-૧૦ ૧૧–૧૦ / ૧૨-૩૧ ૧૫–૧૨ ૧–૫૩ ૭–૧૭ | હ૫૦ ૧૧–૧૧ ૧૨-૩૧ ૧૫–૧૨ ૭ ૭–૯ ૧૩–૫૩ ૩–૧૭ | ૯-૫૦ ૧૧–૧૧ ૧૨–૩૧ ૧૫–૧૨ ૮ ૭–૧૦ ૧૩–૫૪ –૫૮ ૯-૫૧ ૧૧-૧૨ ૧૨-૩ | ૧૫–૧૩ ૯ ૭-૧૦ | ૧૭–૫૪ ૭-૫૮ ૯-૫૧ ૧૧-૧૨ ૧૨-૩૨. ૧૫–૧૩ ૧૦ ૭–૧૧ ૧–૫૪ | ૭-૫૯ ! –પર ૧૧–૧૩ ૧૨-૩૩ ૧૫–૧૪ ૧૧ ૭–૧૨ ૧૭-૫૫ ૮-૦ –૫૩ ૧૧-૧૪ ૧૨–૩૪ ૧૫–૧૫ ૧૨ ૭–૧૨ ૧૭–૫૫ –૫૩ ૧૧–૧૪ ૧૨-૩૪ ૧૫–૧૫ ૧૩ – ૧૩ ૧૩–૫૫. ૯-૫૪ ૧૧–૧૪ ૧૨-૩૪ ૧૫–૧૫ ૧૪ ૭–૧૩ ૧૭–૧૬ ૮-૧ ૯-૫૪ ૧૧-૧૫ ૧૨-૩૫ ૧૫–૧૬ ૧૫ ૭–૧૪ | ૧૭-૫૬ ૯-૫૫૩ ૧૧-૧૫ ૧૨-૩૫ ૧૫–૧૬ ૧૬ ૭–૧૫ | ૧૭–૧૬ ૯-૫૬ ૧૧-૧૬ ૧ર-૩૬ ૧૫–૧૬ ૧૭ ૩–૧૫ ૧૭–પ૭ ૮–૩ ૯-૫૬ ૧૧-૧૬ ૧૨–૩૬ ૧૫–૧૭ ૧૮ ૭–૧૬ ૧૭–૧૭ ૮-૪ –૧૭ ૧૧-૧૭ ૧૨–૩૭ ૧૫–૧૭ ૧૯ ૭–૧૬ ૧૭-૫૮ પ૭ ૧૧-૧૭ ૧૨–૩૭ ૧૫–૧૮ ર૦ ૭–૧૭ | ૧૭–૧૮ ૮-૫ | –૫૮ ૧૧–૧૮૧૨–૩૭ ૧૫–૧૮ | ૧૭–૧૯] [૮-૫ : ૯-૫૮ : ૧૧-૧૮ ૧૨–૩૮ ૧૫–૧૯ ૭–૧૮ ૧૭–૧૯ | ૯૫૯ ૧૧–૧૯ ૧૨–૩૯ ૧૫–૧૯ –૧૯ ૧૮-૦ ૮-૭ { ૧૦-૦ ૧૧–૨૦ ૧૨–૧૦ ૧૫-૨૦ ૭–૧૯ | ૧૮-૦ ૧૦–૦ ૧૧-૨૦ ૧૨-૪૦ ૧૫-૨૦ ૭–૨૦ | ૧૮-૧ ૧૦–૧ ૧૧-૨૧ ૧૨-૪૧ ૧૫–૨૧ ૧૮-૧ ૧૦–૧ ૧૧-૨૧ ૧૨-૪૧ ૧૫–૨૧ –૨૧ | ૧૮-૨ ૧૦–૨ ૧૧–૨૨ ૧૨–૨ ૧૫–૨૨ ૨૮ ૭-૨ | ૧૮–૨ ૮-૧૦ | ૧૦–૨ ૧૧–૨૨૧૨-૪૨ ૧૫–૨૨ ૨૯ ૭–૨૨ ૧૮-૩ ૮-૧૦ 1 ૧૦–૩ | ૧૧–૨૩ ૧૨-૪૩ ૧૫–૨૩. ૩૦ ૭–૨૨ ૧૮૩ ૮-૧૦ / ૧૦–૩ || ૧૧–૨૩ ૧૨–૫૩ ૧૫–૨૩ : ૩૧ ૭–૨૨ { ૧૮–૪ | ૮-૧૦ | ૧૦-૩ ૧૧–૨૩૪ ૧૨-૪૩ ૧૫૨૪ –૧૭ ૭–૨૧ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private & Personal use only