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________________ ११६ मधस्मरणादिसङ्ग्रहे पढमो सीहनिसाई, अद्धजवनिभो अ चउदिसिं सिहरे । पन्नाई चउ जिणगिहो, सयाइ च चेइआ दुन्नि ॥५९॥ तेव कोडिसयं, लक्खा चुलसीइ वलयविक्खंभो । नंदिसरट्ठमदीवो, चउदिसि चड अंजणा मज्झे ॥ ६० ॥ गोपुच्छा अंजणमय, चुलसीसहसुच्च सहसमोगाढा । समभुवि दस सहसपिह सहस्रवरिं तेसिं चउदिसिसु ॥ ६१ ॥ लक्वंतरि च चउ, बावी दस दस य जोअणुव्विद्धा । लक्खं दीह-पित्ते, तम्मज्झे दहिमुहा सोल ॥ ६२ ॥ सहसोगाढा चउसठिसहसुच्चा दससहस्स पिहुला य । सव्वत्थ समा पल्लयसरिसा रुप्पामया सच्वे ॥ ६३ ॥ अंजण-दहिमुहचेइअ, वीसं चउदार दोह-पिहु-उच्चा । सय-पन्ना- बावन्तरिजोअण ठाणंगि जिअभिगमे ॥ ६४ ॥ नंदी विदिसिं चउरो, दसिगसहस्सा पिहुच पाओऽहे । झल्लरिसरिस अचेइअ रहकर ठाणंगि सुन्तम्मि ||६५ || नंदीसर व्व उडूढं, पन्नासाई य असुरजिणभवणा । तयअर्द्ध नागाइ, वंतरनगरेसु तयअद्धं ॥ ६६ ॥ मन्नह जिणाण आणं, मिच्छं परिहरह धरह सम्मतं । छव्विहआवसयम्मि अ, उज्जुत्ता होह पइदिअहं || ६७|| पत्र्वेस पोसहवयं, दाणं सीलं तवो अ भावो अ । सज्झाय नमुक्कारो, परोवयारो अ जयणा य ॥६८॥ जिणपूआ जिणथुणणं, गुरुथुइ साहम्मिआण वच्छलं । बहारस्स य सुद्धी, रहजन्ता तित्थजन्ता य ॥ ६९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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