SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विचारसप्ततिका | ११५ जोअण असंख पोहत्ति संख ईसाणि अचि अचिमाली । वइरोअणं पहंकर, चंदाभं सूरिअ सुकाभं ॥४८॥ सुपट्ठामं रिद्वं, मज्झे वह बहिं विचित्त । तेसिंह सारस्यपमुहा तद्दुदुगपरिवारा ॥ ४९ ॥ सत्तसय सत्त चउदस, सहसा चउदहिअ सगसहससत्त । नव नवसय नव नवहिअ, अव्वाबाहागिञ्चरिट्ठेसु ॥ ५०॥ सारस्सय माइच्चा, वही वरुणा य गद्दतोया य । तुसिआ अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ॥ ५१ ॥ पुव्वंतर जम्मबर्हि, पुट्ठा जम्मंतरा बहिं वरुणं । तम्मज्झत्तर बाहिं, उईणमज्झा बहिं पुव्वं ॥ ५२ ॥ पुव्वावरा छलंसा, तंसा पुण दाहिणुत्तरा बज्झा । अभंतर चउरंसा, सव्वा वि अ कण्हरांईओ ॥ ५३ ॥ पुक्खरिगारस तेरेव, कुंडले रुअगि तेर ठारे वा । मंडलिआचल तिन्नि उ, मणुउत्तर कुंडलो रुअगो ॥ ५४ ॥ सत्तरस य इगवीसा, बायालसहस्स चुलसि सहसुच्चा । चउसय तीसा कोसं, सहसं सहसं च ओगाढा ॥ ५५ ॥ भुवि दससय बावीसा, मज्झे सत्त य सया उ तेवीमा । सिहरे चत्तारि सया, चडवीसा मणुअकुंडलगा ॥ ६६ ॥ दस सहसा बावीसा, भुवि मज्झे सगसहस्स तेवीसा । सिहरे चउरो सहसा, चवीसा रुअगसेलमि ॥ ५७ ॥ अगे सिहरे चउदिसि बिअसहसेगिंग चउत्थ अट्ठट्ठ । विदिसि चऊ इअ चत्ता, दिसिकुमरी कूड सहसंका ॥५८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003287
Book TitleNavsmaranadisangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVicharshreeji, Damayantishreeji
PublisherNagindas Kevalshi Shah Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages258
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy