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नवस्मरणादिसङ्गहे
(दाल) पास मनोरथ पूरा करे, वाहण एक बृषभ जोतरे । परिकरथी परियाणो करे, एक थल चढि बीजे ऊतरे ॥२५॥ बारै कोस आव्या जेतलै, प्रतिमा नवि चालै तेतले।। गोठी मनह विमासण थई, पासभुवन मंडावू सही ॥२६॥ आ अटवी किम करूं प्रयाण, कटको कोई न दिसे पाहाण । देवल पास जिनेसर तणो, मंडावु किम गरथे विणो ॥२७॥ जल बिन श्री संघ रहस्यै किहां, सिलावटो किम आवै इहाँ । चिंतातुर थयो निद्रा लहे, यक्षराज आवीने कहे ॥२८॥ गुंहली ऊपर नाणो जिहां, गरथ घणो जाणीजे तिहां । स्वस्तिक सोपारी सहिनाण, पाहण तणी ऊलटस्यै खाण ॥२९॥ श्रीफल सजल तिहां किल जूओ, अमृतजल नीसरसी कूओ। खारा कूवा नो इह सहिनाण, भूमि पड्यो छै नीलो झाण ॥३०॥ सिलावटो सीरोही वसै, कोढपराभवियो किस मिसै । तिहां थकी तूं इहां आणजे, सत्य वचन माहरो मानजे ॥३१॥ गोठीनो मन थिर थापियो, सिलावटने सुहणो दियो। रोग गमाऊं ने पूरूं आस, पास तणो मंडे आवास ॥३२॥ सुपन माहे मान्यो ते वेण, हेमवरण देखाड्यो नेण । गोठी मनह मनोरथ हुआ, सिलावटने गया तेडवा ॥३३॥ सिलावटो आवै सूरमो, जिमें खीर खांड घृत चूरमो। घडै घाट करे कोरणी, लगन भले पाया रोपणी ॥३४॥
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